Sunday, January 30, 2011

त्वचा रोग और ग्रह

त्वचा रोग के लिए बुध ग्रह, शनि, राहु, मंगल के अशुभ होने पर तथा सूर्य, चंद्र के कमजोर होने पर त्वचा रोग होते हैं। कुण्डली में षष्ठम यानि छठां भाव त्वचा से संबंधित होता है। यदि कुंडली में सप्तम स्थान पर केतु भी त्वचा रोग का कारण बन सकता है। बुध यदि बलवान है तो यह रोग पूरा असर नहीं दिखाता, वहीं बुध के कमजोर रहने पर निश्चित ही त्वचा रोग परेशान कर सकते हैं।- चंद्र के कारण पानी अथवा मवाद से भरी फुंसी व मुंहासे होती है।- मंगल के कारण रक्त विकार वाले कील-मुंहासे होते हैं।- राहु के प्रभाव से दर्द देने वाले कील-मुंहासे होते हैं।
कील-मुंहासों : उपाय- यदि षष्ठम स्थान पर कोई अशुभ ग्रह है तो उसका उपचार कराएं।- सूर्य मंत्रों या आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।- शनिवार के दिन कुत्ते को तेल चुपड़ी रोटी खिलाएं।- सरस्वती स्तोत्र का पाठ करें।- पारद शिवलिंग का पूजन करें।- प्रतिदिन सूर्य को जल चढ़ाएं और 7 परिक्रमा करें।
माना जाता है कि कील-मुंहासे खून की खराबी से होते हैं। साथ ही खान-पान की गड़बड़ी भी कील-मुंहासों को पैदा कर देती है। इस बात से परेशान होकर आप डॉक्टर के पास जाते हैं। दवाइयां आदि लेने के बाद भी यदि कील-मुंहासे ठीक नहीं हो रहे हैं तो हो सकता है किसी ग्रह दोष की वजह से आपको इस समस्या का सामना करना पड़ रहा है।

Thursday, January 27, 2011

सरस्वती का ध्यान देता है ज्ञान

आदिशक्ति के तीन रूपों महादुर्गा, महालक्ष्मी और महासरस्वती की उपासना का विशेष विधान है। इनमें माता सरस्वती को विद्या, बुद्धि, ज्ञान, संगीत और कला की देवी माना जाता है। व्यावहारिक रूप से विद्या और ज्ञान चरित्र और व्यक्तित्व विकास के लिए अहम बताया गया है। विद्या से विनम्रता, विनम्रता से पात्रता, पात्रता से धन और धन से सुख मिलता है। सार यही है कि माता सरस्वती का ध्यान, स्मरण या पूजा मानसिक रूप से सेहतमंद, मजबूत और दृढ बनाती है।शुक्रवार का दिन देवी पूजा का विशेष दिन होता है। इस दिन देवी के किसी भी रूप की पूजा बहुत शुभ मानी जाती है। इसलिए इस दिन सफलता के लिए बुद्धि और विद्या की कामना से सरस्वती पूजा प्रभावी होती है। जानते हैं इस दिन के लिए सरस्वती की सामान्य पूजा विधि और विशेष प्रार्थना-

- सुबह स्नान कर पवित्र आचरण, वाणी के संकल्प के साथ सरस्वती की पूजा करें।- पूजा में गंध, अक्षत के साथ खासतौर पर सफेद और पीले फूल, सफेद चंदन, वस्त्र देवी सरस्वती को चढ़ाएं।- प्रसाद में खीर, दूध, दही, मक्खन, सफेद तिल के लड्डू, घी, नारियल, शक्कर व मौसमी फल चढ़ाएं।- इसके बाद माता सरस्वती की इस स्तुति से बुद्धि और कामयाबी की कामना कर घी के दीप जलाकर माता सरस्वती की आरती करें -

या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ।।1।।
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमांद्यां जगद्व्यापनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यांधकारपहाम्।
हस्ते स्फाटिक मालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।।2।।

Tuesday, January 25, 2011

सूर्य और चन्द्र एक साथ कराते हैं अपमान

कई लोगों को मेहनत के साथ ही कई बार अपमान भी झेलना पड़ता है। जीवन में बार-बार कई जगह अपमानित होते हैं। कुंडली में कुछ विशेष योग होते हैं जो बताते हैं व्यक्ति को मान-सम्मान मिलेगा या अपमान। कुंडली में सूर्य की स्थिति पर निर्भर होता है कि हमें कितना यश, मान-सम्मान मिलेगा।
कुंडली में अपमान के योग-
- सूर्य और चंद्र यदि एक साथ, एक ही भाव में स्थित हो तो व्यक्ति को जीवन में कई बार अपमान झेलना पड़ता है।- यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के प्रथम भाव में सूर्य और चंद्र स्थित हो तो उसे माता और पिता से दुख मिलता है। वह पुत्र से दुखी और निर्धन होता है।- चंद्रमा और सूर्य चतुर्थ भाव में हो तो व्यक्ति को पुत्र और सुख से वंचित रहता है। ऐसा व्यक्ति मूर्ख और गरीब होता है।- कुंडली के सप्तम भाव में सूर्य और चंद्रमा स्थित हो तो व्यक्ति जीवनभर पुत्र और स्त्रियों से अपमानित होता रहता है। ऐसे व्यक्ति के पास धन की भी कमी रहती है।- सूर्य और चंद्रमा किसी व्यक्ति की कुंडली के दशम भाव में स्थित हो तो वह सुंदर शरीर वाला, नेतृत्व क्षमता का धनी, कुटिल स्वभाव का और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाला होता है।
अपमानित होने से बचने के उपाय
- प्रति दिन सूर्य को ब्रह्म मुहूर्त में जल चढ़ाएं।- अधिक से अधिक हल्के और सफेद रंगों के कपड़ें पहनें। गहरे रंग के कपड़ों से बचें।- सफेद रंग का रुमाल हमेशा अपने साथ रखें।- प्रतिदिन केशर या चंदन का तिलक लगाएं।- सूर्य एवं चंद्रमा से संबंधित वस्तुओं का दान करें।- चंद्रमा से शुभ फल प्राप्त करने के लिए शिवजी और श्रीगणेश की आराधना करें।

अशुभ सूर्य को शुभ बनाया जा सकता है

सूर्य को ज्योतिष के अनुसार सूर्य को पाप ग्रह और पुरूष ग्रह भी कहा गया है। जन्मकुंडली के जिस भी भाव में सूर्य बैठा होता है उसका अलग फल मिलता है। सूर्य को यश का कारक माना गया साथ ही यह कार्य क्षेत्र को बहुत प्रभावित करता है। अगर जन्मकुंडली में सूर्य जिस भाव में बैठा हो उसके अनुसार उपाय करें तो अशुभ सूर्य को शुभ बनाया जा सकता है।
प्रथम भाव में सूर्य - अगर सूर्य पहले भाव में हो तो उसे शुभ बनाने के लिए 24 वर्ष के बाद शादी करनी चाहिए. व्यक्ति को अपने मान मर्यादा का ख्याल रखना चाहिए किसी के आगे व्यर्थ नहीं झुकना चाहिए।
द्वितीय भाव में सूर्य - सूर्य द्वितीय भाव में हो तो दूसरा भाव कुटुम्ब का होता है। इसलिए सूर्य का प्रबल बनाने के लिए कुटुम्बीजनों से आशीर्वाद लेना चाहिए। व्यक्ति को दूसरे का धन नहीं लेना चाहिए।अगर उपहार में भी धन प्राप्त हो तो उससे भी परहेज करना चाहिए।
तृतीय भाव में सूर्य- सूर्य तीसरे घर में अशुभ होकर बैठा हो तो चारित्रिक दुर्बलताओं से स्वयं को बचाकर रखना चाहिए। रविवार के दिन तांबे का पात्र मन्दिर में दान करने से सूर्य का मन्दा फल दूर होता है। रविवार के दिन चांदी का चौकोर टुकड़ा धारण करने से भी सूर्य शुभ फल देने लगता है।
चतुर्थ भाव में सूर्य- चौथे भाव में सूर्य अशुभ होकर बैठा हो तो व्यक्ति को अपना मन शांत रखना चाहिए। कलह और विवाद में उलझना हानिप्रद होता है. बुजुर्गों का अशीर्वाद लेना चाहिए, लोहे और मशीनरी के काम में लाभ की संभावना नहीं रहती, बल्कि व्यक्ति को नुकसान होता है अत: इन वस्तुओं के कारोबार से बचना चाहिए।
पांचवे भाव में सूर्य- पांचवें भाव में सूर्य हो तो उसके लिए घर में पूर्व और उत्तर दिशा में रोशनदान रखना चाहिए, सूर्य का शुभ फल प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को दूसरों की सहायता के लिए आगे आना चाहिए।
छठे भाव में सूर्य- छठे भाव में सूर्य होने पर उसके अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए बन्दर को गुड़ खिलाएं । घर में नदी का जल रखने से सूर्य का शुभ फल प्राप्त होता है। चीटियों को चीनी डालने से सूर्य का मंदा प्रभाव नहीं प्राप्त होता है।
सातवें भाव में सूर्य- सूर्य सातवें घर में मंदा होकर बैठा हो तो चांदी का चौकोर टुकड़ा ज़मीन में दबाने से अशुभ फल दूर होता है। इस भाव में मंदे सूर्य को नेक बनाने के लिए आदित्य हृदयस्तोत्र एवं हरिवंश पुरण का पाठ करना चाहिए। सींग वाली गाय की सेवा करनी चाहिए। बड़ों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
आठवें भाव में सूर्य- अगर सूर्य आठवें घर में अशुभ फल दे रहा हो तो इसे नेक बनाने के लिए बरसात का पानी जमा करके घर के पूर्व दिशा में रखना चाहिए। किसी कार्य को शुरू करने से पहले मीठी वस्तुओं का सेवन करना चाहिए किसी भी काम में असामाजिक और अनैतिक आचरण वाले लोगों की सहायता नहीं लेनी चाहिए।
नवम भाव में सूर्य- सूर्य अगर नवम घर में मंदा हो तो मनोकामना पूर्ति के लिए भूमि पर सोना चाहिए। सूर्य के अशुभ प्रभाव से बचाव हेतु घर में टूटे फूटे बर्तनो को नहीं रखना चाहिए, अपने स्वभाव को सामान्य रखना चाहिए न तो अधिक गुस्सा करना चाहिए और न ही अधिक शांत होना चाहिए।
दशम भाव में सूर्य- दसवें घर में बैठा सूर्य अगर अशुभ फल दे रहा हो तो सूर्य का शुभ फल प्राप्त करने के लिए 43 दिनो तक तांबे का सिक्का नदी मे प्रवाहित करना चाहिए। आदित्य हृदय स्तोत्र और हरिवंश पुराण का पाठ शुभ फलदायी होता है। सूर्य को अघ्र्य देना भी शुभ होता है।
एकादश भाव में सूर्य- सूर्य एकादश भाव में अशुभ हो तो व्यक्ति को मांस मदिरा के सेवन से परहेज रखना चाहिए।कल पूर्जे वाले सामान, मशीन आदि खराब हो गए हों तो उसे ठीक करा लेना चाहिए अन्यथा घर में नहीं रखना चाहिए ।
द्वादश भाव में सूर्य- बाहरवे भाव में शुभ प्रभाव पाने के लिए नदी में चौसठ दिनों तक लगातार गुड़ प्रवाहित करना चाहिए।

Monday, January 24, 2011

गंभीर बीमारी का ज्योतिषीय उपचार

एक कहावत प्रचलित है- पहला सुख, निरोगी काया। मतलब यह है कि यदि हमारे पास बहुत अधिक धन-संपत्ति हो लेकिन अच्छा स्वास्थ्य नहीं है तो सब बेकार ही है। इसी वजह से शरीर को निरोगी बनाए रखने के लिए सभी कई प्रकार के जतन करते हैं। दवाइयों के साथ-साथ योग भी हमें पूरी तरह स्वस्थ रखता है।
फिर भी यदि किसी व्यक्ति को पथरी या कोई गंभीर बीमारी हो जाए और वह जल्द ठीक नहीं हो रही हो तो निम्न ज्योतिषीय उपचार करें, जल्दी ही फायदा अवश्य मिलेगा।
यदि आपके घर में कोई बहुत दिनों से बीमार है और उसकी बीमारी किसी भी उपचार से ठीक नहीं हो रही है, तो उस व्यक्ति के कमरे में घी का दीपक केशर डालकर रोज शाम को लगाएं। कुछ ही दिनों में रोगी को आराम मिलेगा और वह स्वस्थ हो जाएगा। दवाइयां और अन्य सावधानियां यथावत जारी रखें।
पथरी के ईलाज के लिए:पथरी के ईलाज कराने पर भी यदि वह ठीक नहीं हो रही है, तो बुधवार के दिन स्नान कर हरे वस्त्र धारण करें तथा सुबह ही गाय को हरा चारा खाने को दें तो शीघ्र ही पथरी में लाभ होता है। दवाइयां और अन्य सावधानियां यथावत जारी रखें।

Friday, January 21, 2011

डायबिटीज से बचा जा सकता है

डायबिटीज से बचा जा सकता हैडायबिटीज एक अनुवांशिक बीमारी है। अगर आप डायबिटीज से पीड़ीत हैं या चाहते हैं कि आपके घर में वास्तुदोष होने पर भी डायबिटीज परेशान न करे तो इसके लिए आप नीचे लिखे वास्तु उपाय जरूर अपनाएं।
- घर के दक्षिण-पश्चिम भाग का वास्तु सुधार कर डायबिटीज से बचा जा सकता है।- अपने बेडरूम में कभी भी भूल कर भी खाना ना खाएं।-अपने बेडरूम में जूते चप्पल नए या पुराने बिलकुल भी ना रखें।- मिटटी के घड़े का पानी का इस्तेमाल करे तथा घडे में प्रतिदिन सात तुलसी के पत्ते डाल कर उसे प्रयोग करे।- दिन में एक बार अपनी माता के हाथ का बना हुआ खाना अवश्य खाएं।- अपने पिता को तथा जो घर का मुखिया हो उसे पूर्ण सम्मान दे।- प्रत्येक मंगलवार को अपने मित्रों को मिष्ठान जरूर दे।- रविवार भगवान सूर्य को जल दे कर यदि बन्दरों को गुड़ खिलाये तो आप स्वयं अनुभव करेंगे की मधुमेह शुगर कितनी जल्दी जा रही है।- ईशानकोण से लोहे की सारी वस्तुए हटा लें।

चार मणिबंध रेखाएं हो तो........

कलाई पर दिखाई देने वाली तीन रेखाएं भी व्यक्ति के जीवन और भाग्य को भी बहुत अधिक प्रभावित करती है। कलाई पर तीन आड़ी रेखाएं मणिबंध रेखाएं कहलाती है। कुछ लोगों के हाथों में दो मणिबंध रेखाएं होती है, तो कुछ के हाथों में चार मणिबंध रेखाएं भी देखी गई हैं। ये रेखाएं स्वास्थ्य, धन और प्रतिष्ठा की सूचक होती हैं।
- मणिबंध से यदि कोई रेखा निकलकर ऊपर की ओर जाती हुई हो तो उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
- यदि मणिबंध से कोई रेखा निकलकर चन्द्र पर्वत पर जाए तो ऐसा व्यक्ति जीवन में कई विदेश यात्राएं करता है।
- सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार यदि कलाई पर चार मणिबंध रेखाएं हो तो उसकी आयु पूरी सौ वर्ष की होती है। जिसके हाथ में तीन मणिबंध रेखाएं होती है। उसकी आयु 75 वर्ष की होती है। दो रेखाएं होने पर 50 वर्ष और एक मणिबंध होने पर उसकी आयु 25 वर्ष होती है।
-यदि मणिबंध रेखाएं टूटी हुई हो या छिन्न-भिन्न हो तो उस व्यक्ति के जीवन में बराबर बाधाएं आती रहती है। इसके विपरित यदि ये रेखाएं निर्दोष और सपष्ट हो तो उसका प्रबल भाग्योदय होता है। -यदि मणिबंध रेखा जंजीरदार हो तो उस व्यक्ति को अपने जीवन में बहुत सारी बाधाओं का सामना करना पड़ता है।-मणिबंध पर यव यानी गेहू की आकृति के समान चिन्ह हो तो वह चिन्ह सौभाग्य का सूचक है।- मणिबंध रेखा पर द्वीप का चिन्ह हो तो जीवन में अनेक दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ता है।- जंजीर के समान मणिबंध दुर्भाग्य की सूचक होती है।- दो मणिबंध रेखाएं आपस में मिल जाए तो दुर्घटना से उसका अंग भंग होने का योग बनता है। -मणिबंध की रेखाएं जितनी अधिक स्पष्ट और गहरी होती है। उतनी ही ज्यादा अच्छी मानी जाती है।

Wednesday, January 19, 2011

महिलाओं के लिए गौरीशंकर रुद्राक्ष

शिव पुराण के अनुसार रुद्राक्ष की उत्पत्ति शिवजी से हुई है। सामान्यत: रुद्राक्ष पुरुषों द्वारा ही धारण किया जाता है. इसे महिलाएं भी धारण कर सकती है क्योंकि भगवान के लिए महिला और पुरुष दोनों ही समान है, दोनों पर परमात्मा समान रूप से ही प्रेम और कृपा बरसाते हैं। शिवजी के लिए स्त्री और पुरुष में कोई भेद नहीं है। अत: रुद्राक्ष महिलाएं भी धारण कर सकती हैं। महिलाओं के लिए गौरीशंकर रुद्राक्ष सफल वैवाहिक जीवन के लिए लाभकारी माना गया है। वहीं संतान प्राप्ति और संतान से सुख प्राप्त हो इस मनोकामना की पूर्ति के लिए महिलाओं को गौरी गणेश रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। महिलाओं को रुद्राक्ष करने पर कुछ सावधानियां भी रखनी चाहिए: जैसे- सोते समय रुद्राक्ष उतारकर किसी पवित्र स्थान पर रख देना चाहिए। किसी अन्य व्यक्ति का रुद्राक्ष कतई धारण ना करें और अपना रुद्राक्ष किसी और का ना दें। मासिक धर्म के दिनों में रुद्राक्ष पवित्रता की दृष्टि से धारण नहीं किया जाना चाहिए। उन दिनों में रुद्राक्ष धारण करने पर वह अपवित्र हो जाएगा। रुद्राक्ष
धारण करने के पूर्व किसी विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें।

तावीज से बच्चों से बीमारी

कुछ लोगों को अधिकांश समय छोटी-छोटी बीमारियां घेरे रहती हैं। छोटे बच्चों के साथ विशेषकर ऐसा होता है।
छोटे बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर माता-पिता और अन्य परिवारजन हमेशा चिंतित रहते हैं। लगभग प्रतिदिन उन्हें डॉक्टर के क्लिनिक का चक्कर लगाना होता है। कई माता-पिता बच्चों को बीमारी से बचाने के लिए किसी संत-महात्मा या फकीर द्वारा दिए तावीज को बांध देते हैं। तावीज के प्रभाव से बच्चों से बीमारी दूर रहती है।
बच्चों को बीमारी से बचाने के लिए रावण संहिता का अचूक मंत्र है जिसे सिद्ध कर उसका तावीज पहनाने से बच्चे हमेशा निरोगी बने रहते हैं। इस तावीज को हम घर पर ही बना सकते हैं। तावीज बनाने की विधि इस प्रकार है:
तावीज बनाने के लिए उपयोगी बातें:
इस तावीज को बनाने के लिए आपको इन सामग्रियों की आवश्यकता होगी: शिशु स्वास्थ्य यंत्र, घी का दीपक, अगरबत्ती और मूंगे की माला। इस यंत्र को दिन में किसी भी समय बना सकते हैं। इस यंत्र को सिद्ध करने के लिए सफेद रंग का सूती आसन चाहिए। इस यंत्र को पश्चिम दिशा की ओर मुंह रखकर बनाया जाता है। तावीज बनाने के लिए मंत्र की जप संख्या तीन हजार है और इस जप को तीन दिन में पूरा करना होता है।
तावीज के लिए मंत्र
ऊँ नमो आदेश भगवती भवानी बालकष्ट, बाल रोग, बाल पीड़ा दूर कर सर्व विधि सुख दे, जो मेरा आदेश नहीं माने तो राजा राम की दुहाई।
मंत्र सिद्ध करने की विधि
मंत्र को सिद्ध करने के लिए सफेद रंग के सूती आसन पर बैठकर शिशु स्वास्थ्य यंत्र को सामने रखें और उस पर केशर का तिलक लगाकर, घी का दीपक, अगरबत्ती जलाएं। इस मंत्र को सिद्ध करने का समय तीन दिन है। उपरोक्त मंत्र के तीन दिनों तक प्रतिदिन 1 हजार जप करने हैं। जप करने के लिए मूंगे की माला का प्रयोग करें। तीन दिन में 3 हजार जप होने के बाद मंत्र और यंत्र सिद्ध और कारगर हो जाएगा। तीसरे दिन मंत्र के 3 हजार जप होने के पश्चात यंत्र को रोगी बालक के गले में काले धागे में तावीज बनाकर पहनाया जाना चाहिए। इस तावीज के प्रभाव से बच्चे को बुखार या अन्य रोग नहीं होगा।
सावधानी: इस मंत्र को सिद्ध करने के लिए तीन दिनों तक धार्मिक आचरण रखें एवं साधक ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करें। तावीज के संबंध में कोई शंका या संशय मन में ना लाए और ना ही किसी दूसरे व्यक्ति को इस संबंध में बताए। ऐसा करने पर तावीज प्रभावहीन हो जाएगा। बच्चे का डॉक्टरी इलाज बंद ना करें।

Monday, January 17, 2011

यदि शनि ग्रह अशुभ है

जन्मकुंडली शनि ग्रह अशुभ हो या आपको शनि का ढैय्या या साढ़ेसाती चल रही हो और इसके कारण आपका भाग्य साथ ना दे रहा हो तो नीचे लिखे इस उपाय को अपनाकर आप शनि के अशुभ प्रभाव को कम कर सकते हैं।ग्यारह नारियल जटा सहित कच्चे पानी वाले लें। एक-एक नारियल दायें हाथ से पकड़े और दांये कान की तरफ से बांयी ओर घुमाकर दोनों हाथ लगाकर जल में प्रवाहित करें। ऐसा ग्यारह बार करें।
- सवा किलो जौ काले कपड़े में बांधकर पोटली बनाएं। - सवा किलो कच्चा कोयला काले कपड़े में बांधकर पोटली बनाएं। - सवा किलो चना काले कपड़े में दो कोयले, दो कील बांधकर पोटली बनायें। - एक पोटली में कुछ सिक्के।- श्श्रद्धापूर्वक स्नान करें। उसके बाद एक- एक वस्तुओं को सिर पर से नारियल की तरह घुमाकर श्रद्धापूर्वक जल में प्रवाहित करें।घुमाते समय राहु और शनि देव का नाम लेकर कहें- हे शनि देव और राहु देव, मेरी ग्रह पीड़ा निवृत हो जाए मुझे सुख-शांति,धन-धान्य आदि की प्राप्ति हो।यह कार्य मैं आपकी प्रसन्नता के लिए कर रहा हूं। ऐसे ही हर वस्तु को सिर से घुमाते हुए प्रवाहित कर प्रार्थना करें।
इसके बाद स्नान करें। अपने कल्याण के लिए प्रार्थना करें और पहने हुए कपड़े, जुते, चप्पल सबको घाट पर छोड़ दें। उपरोक्त ग्यारह नारियल वाला उपाय ग्यारह शनिवार करना होगा।

Sunday, January 16, 2011

कमल का फूल विष्णु को प्रिय

देवताओं से लेकर तो सुन्दरियों तक फूल देकर हर किसी को प्रसन्न किया जा सकता है। इसलिए देवताओं को फूल चढ़ाएं जाते हैं। यदि आप अपने ईष्ट देवता को उनके प्रिय फूल चढ़ाएं तो आप पर उनकी कृपा बरसने लगेगी।
सूर्य- लाल फूल : सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं। पूजा में सूर्य को लाल रंग के फूल चढ़ाने का विधान हैं। सूर्य को लालिमा प्रिय है। वे तेज के पुंज हैं। लाल रंग तेज का प्रतीक है। इसलिए सूर्य पूजा में लाल कनेर, लाल कमल, केसर या पलाश के फूल चढ़ाने का विधान है।
गणेश- लाल फूल: गणेशप्रथम पूज्य हैं। वे मंगलमूर्ति हैं, मंगल के प्रतीक, मंगल करने वाले। गणोश को लाल रंग के फूल प्रिय हैं। लाल रंग मंगल का प्रतीक है। गणोशपूजा में तुलसी दल का निषेध है लेकिन दुर्वा चढ़ाई जाती है। गणोश विराट व्यक्तित्व वाले हैं लेकिन जिस तरह चूहा उनका वाहन है वैसे ही दुर्वा उन्हें प्रिय है। यह इस बात का प्रतीक है कि जितना बड़ा व्यक्तित्व होगा वह बहुत छोटे के प्रति भी अपनत्व का भाव रखेगा। विराट व्यक्तित्व वाले गणोश को घास के तिनकों के रूप में दुर्वा इसी भाव में प्रिय है।
शिव-सफेद फूल: शिव को कनेर, और कमल के अलावा लाल रंग के फूल प्रिय नहीं हैं। सफेद रंग के फूलों से शिव जल्दी प्रसन्न होते हैं। कारण शिव कल्याण के देवता हैं। सफेद शुभ्रता का प्रतीक रंग है। जो शुभ्र है, सौम्य है, शाश्वत है वह श्वेत भाव वाला है। यानि सात्विक भाव वाला। पूजा में शिव को आक और धतूरा के फूल अत्यधिक प्रिय हैं। इसका कारण शिव वनस्पतियों के देवता हैं। अन्य देवताओं के लिए जो फूल त्याज्य हैं, वे शिव को प्रिय हैं। उन्हें मौलसिरी चढ़ाने का उल्लेख मिलता है। शिव को केतकी और केवड़े के फूल चढ़ाने का निषेध किया गया है।
विष्णु- पीले फूल: विष्णु पीतांबरधारी हैं। पीला रंग उन्हें प्रिय है। सामान्यतया विष्णु पूजा में सभी रंगों के फूल अर्पित किए जाते हैं लेकिन पीतांबरप्रिय होने के कारण पीले रंग का फूल अर्पित करने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं। कमल का फूल विष्णु को बहुत प्रिय है।
देवी -लाल और सफेद फूल
लक्ष्मी को लाल और पीले, दुर्गा को लाल और सरस्वती को सफेद रंग के फूल अर्पित करने की परंपरा है। लक्ष्मी सौभाग्य की प्रतीक है अत: लाल रंग प्रिय है। विष्णु की पत्नी होने से वे पीले रंग के फूल से भी प्रसन्न होती हैं। दुर्गा शक्ति की प्रतीक है। लाल रंग शौर्य का रंग है। अत: वे लाल रंग के फूल से प्रसन्न होती हैं। सरस्वती ज्ञान और संगीत की देवी है। शुभ्रता की प्रतीक। उन्हें सफेद रंग के कमल पुष्प अर्पित किए जाते हैं।

श्री गणेश काटो कलेशं

अगर कोई भी काम आसानी से नहीं होता है हर काम चाहे वह नौकरी से जुड़ा हो, शादी से या अन्य किसी क्षेत्र से रूकावटें और असफलताएं आपका रास्ता रोक लेती हैं तो इसके लिए ये टोटके आपके लिए लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं।किसी के प्रत्येक शुभ कार्य में बाधा आती हो या विलम्ब होता हो तो रविवार को भैरों जी के मंदिर में सिंदूर का चोला चढ़ा कर बटुक भैरव स्तोत्रं का एक पाठ कर के गाय, कौओं और काले कुत्तों को उनकी रूचि का पदार्थ खिलाना चाहिए। ऐसा वर्ष में 4-5 बार करने से कार्य बाधाएं नष्ट हो जाएंगी।
- रूके हुए कार्यों की सिद्धि के लिए यह प्रयोग बहुत ही लाभदायक है। गणेश चतुर्थी को गणेश जी का ऐसा चित्र घर या दुकान पर लगाएं, जिसमें उनकी सूंड दायीं ओर मुड़ी हुई हो। इसकी आराधना करें। इसके आगे लौंग तथा सुपारी रखें। जब भी कहीं काम पर जाना हो, तो एक लौंग तथा सुपारी को साथ ले कर जाएं, तो काम सिद्ध होगा। लौंग को चूसें तथा सुपारी को वापस ला कर गणेश जी के आगे रख दें तथा जाते हुए कहें श्री गणेश काटो कलेशं।
- सरकारी या निजी रोजगार क्षेत्र में परिश्रम के उपरांत भी सफलता नहीं मिल रही हो, तो नियमपूर्वक किये गये विष्णु यज्ञ की विभूति ले कर, अपने पितरों की क्वकुशां की मूर्ति बना कर, गंगाजल से स्नान करायें तथा यज्ञ विभूति लगा कर, कुछ भोग लगा दें और उनसे कार्य की सफलता हेतु कृपा करने की प्रार्थना करें। किसी धार्मिक ग्रंथ का एक अध्याय पढ़ कर, उस कुशा की मूर्ति को पवित्र नदी या सरोवर में प्रवाहित कर दें। सफलता अवश्य मिलेगी। सफलता के बाद किसी शुभ कार्य में दान दें।
-व्यापार, विवाह या किसी भी कार्य के करने में बार-बार असफलता मिल रही हो तो यह टोटका करें सरसों के तैल में सिके गेहूँ के आटे व पुराने गुड़ से तैयार सात पूये, सात आक के पुष्प, सिंदूर, आटे से तैयार सरसों के तैल का रूई की बत्ती से जलता दीपक, पत्तल या अरण्डी के पत्ते पर रखकर शनिवार की रात्रि में किसी चौराहे पर रखें और कहें हे मेरे दुर्भाग्य तुझे यहीं छोड़े जा रहा हूँ कृपा करके मेरा पीछा ना करना।

वास्तु शास्त्र द्वारा घर में कुछ मामूली बदलाव कर समस्याओं को दूर कर आप घर एवं बाहर शांति का अनुभव कर सकते हैं।
- घर के मुख्यद्वार के दोनों ओर पत्थर या धातु का एक-एक हाथी रखने से सौभाग्य में वृद्धि होती है।- भवन में आपके नाम की प्लेट को बड़ी एवं चमकती हुई रखने से यश की वृद्धि होती है। - स्वर्गीय परिजनों के चित्र दक्षिणी दीवार पर लगाने से उनका आशीर्वाद मिलता रहता है। - विवाह योग्य कन्या को उत्तर-पश्चिम के कमरे में सुलाने से विवाह शीघ्र होता है।-किसी भी दुकान या कार्यालय के सामने वाले द्वार पर एक काले कपडे में फिटकरी बांधकर लटकाने से बरकत होती है। धंधा अच्छा चलता है।- दुकान के मुख्य द्वार के बीचों बीच नीबूं व हरी मिर्च लटकाने से नजर नहीं लगती है। - घर में स्वस्तिक का निशान बनाने से निगेटिव ऊर्जा का क्षय होता है- किसी भी भवन में प्रात: एवं सायंकाल को शंख बजाने से ऋणायनों में कमी होती है।- घर के उत्तर पूर्व में गंगा जल रखने से घर में सुख सम्पन्नता आती है। - पीपल की पूजा करने से श्री तथा यश की वृद्धि होती है। इसका स्पर्श मात्रा से शरीर में रोग प्रतिरोधक तत्वों की वृद्धि होती है। - घर में नित्य गोमूत्र का छिडकाव करने से सभी प्रकार के वास्तु दोषों से छुटकारा मिल जाता है। - मुख्य द्वार में आम, पीपल, अशोक के पत्तों का बंदनवार लगाने से वंशवृद्धि होती है।

Thursday, January 13, 2011

शत्रु को शांत कीजिए

कोई भी इंसान अपनी बुराई सुनना पसंद नहीं करता है। कोई भी नहीं चाहता कि उसका दुनिया में कोई भी दुश्मन हो। कोई कितनी भी कोशिश कर ले उसका कोई ना कोई विरोधी जरूर रहता है। ऐसे में जब कोई आपके पीठ के पीछे आपकी बुराई करता है। सफलता के रास्ते में रोड़े अटकाता है। ऐसे में तनाव होना एक साधारण सी बात है।यह कोई नहीं चाहता कि इस दुनिया में उसका कोई दुश्मन भी हो। यह अनुभव की बात है कि कई बार जहां इंसानी प्रयास सफ ल नहीं होते, वहां कोई तंत्र-मंत्र चमत्कार कर देते हैं। अपने विरोधियों अथवा शत्रुओं को शांत करने, अपने अनुकूल बनाने अथवा अपने वश में करने के लिये, नीचे दिये गए मंत्र का नियमबद्ध जप करना आश्चर्यजनक प्रभाव दिखाता है-

मंत्र- नृसिंहाय विद्महे, वज्र नखाय धी मही,तन्नो नृसिहं प्रचोदयात्

जप सूर्योदय से पूर्व शांत एवं एकांत स्थान पर हो सके तो जल्द ही सफलता मिलती है।

Monday, January 10, 2011

तीनों ग्रहों के कारण प्रेम होता है

प्रेम विवाह से संबंधित तीन ग्रह होते हैं। यह तीन ग्रह सूर्य, बुध और शुक्र हैं। इन तीनों ग्रहों के कारण व्यक्ति को प्रेम होता है। अगर यह तीनों ग्रह एक साथ एक ही भाव में स्थित हो तो वह व्यक्ति प्रेम विवाह निश्चित करता है। यदि शुक्र, सूर्य और बुध तीनों ग्रह एक ही क्रम में अलग-अलग भावों में हो तो प्रेम होता है परंतु इनका विवाह नहीं हो पाता।सूर्य, बुध और सूर्य इन ग्रहों में से कोई दो युति करते हो और एक अन्य ग्रह भाव में स्थित हो जाए तो बहुत मुश्किल से प्रेम विवाह होता है।सूर्य, बुध सप्तम स्थान में हो तो अपने से बड़ी उम्र का प्रेमी मिलता है। शुक्र बलवान होने पर कई साथी मिलते हैं परतुं अन्य दो ग्रह सूर्य-बुध के कमजोर होने पर व्यक्ति को अपना प्रेम नहीं मिलता।
क्या करें प्रेम विवाह हेतु?
- अपने साथी का नाम लिखकर एक पीपल का पत्ता रविवार, सोमवार और मंगलवार को शिवजी पर चढाएं। शिव चालीसा का पाठ करें। महाकाली का पूजन मंगलवार के दिन करें। मछली को आटे की गोली खिलाएं। मां पार्वती की आराधना करें। श्रीकृष्ण की पूजा करें।
बिल्व पत्र पर चंदन से (श्रीं) लिखकर शिवलिंग पर अर्पित करें।

Sunday, January 9, 2011

मंगल भूमि और भार्या या पत्नी का रक्षक

ब्रह्मांड में स्थित नवग्रह मानवीय जीवन पर अपना अलग-अलग प्रभाव छोड़ते हैं। जिनके अच्छे या बुरे नतीजे भी मिलते हैं। इन नवग्रहों में एक है मंगल। मंगल को नवग्रहों का सेनापति भी माना गया है।अलग-अलग पौराणिक मान्यताओं में मंगल का जन्म भगवान शिव के रक्त, आंसू या तेज से माना गया है। वहीं मंगल का पालन-पोषण पृथ्वी द्वारा किया गया। यही कारण है कि मंगल को भूमिपुत्र भी कहा जाता है। शिव की कृपा से ही मंगल ग्रह के रूप में आकाश में स्थित हुआ।ज्योतिष विज्ञान के मुताबिक मंगल क्रूर ग्रह है, किंतु इसका शुभ प्रभाव व्यक्ति का साहस, पराक्रम, ताकत और उदारता को नियत करता है। व्यावहारिक जीवन में विवाह, संतान सुख, यश, कर्ज और रोगों से मुक्ति भी मंगल ग्रह के शुभ प्रभाव से मिलती है। किंतु मंगल दोष होने पर खून, नेत्र और गले की बीमारियां भी होती है। जीवनसाथी के जीवन पर संकट आता है। वैवाहिक समस्याएं पैदा होती है।
भूमि पुत्र होने से मंगल भूमि और भार्या या पत्नी का रक्षक होता है। जिससे इसका नाम भौम हुआ। मंगल को अंगारक, कुजा के नाम से भी जाना जाता है। यह वृष्टि का देवता भी माना जाता है। वहीं मंगल कठिन हालात और संघर्ष में साहस और जूझने की ताकत देने वाला ग्रह भी है। मंगल के ऐसे ही मंगलकारी और कल्याणकारी स्वरूप और स्वभाव को उज़ागर करते 21 नाम बताए गए हैं। जिनका ध्यान जगत के लिए संकटमोचक और मंगलकारी बताया गया है -
- मंगल, भूमिपुत्र ,ऋणहर्ता,धनप्रदा, स्थिरासन, महाकाय, सर्वकामार्थ साधक, लोहित, लोहिताक्ष, सामगानंकृपाकर,धरात्मज, कुजा, भूमिजा,भूमिनंदन ,अंगारक ,भौम,यम,सर्वरोगहारक,वृष्टिकर्ता, पापहर्ता , सर्वकामफलदाता

Saturday, January 8, 2011

शनि के कोप से बचने के लिए

शनिदेव की आराधना का दिन है शनिवार। इस शनिदेव के अशुभ फल को शांत करने एवं शुभ फल को बनाए रखने के लिए विभिन्न पूजन आदि कर्म किए जाते हैं। साथ ही इस दिन के लिए कई नियम भी बनाए गए हैं जिससे शनिदेव का बुरा प्रभाव हम पर न पड़े। इन्हीं नियमों में से एक है कि शनिवार के दिन घर में तेल खरीदकर नहीं लाना चाहिए।
शनि को न्यायधिश माना गया है। इसी वजह से यह काफी कठोर ग्रह है। इसकी क्रूरता से सभी भलीभांति परिचित हैं। इसी वजह से सभी का प्रयत्न रहता है कि शनि देव किसी भी प्रकार से रुष्ट ना हो। शनि गलत कार्य करने वालों को मॉफ नहीं करता। जिसका जैसा कार्य होगा उसे शनि वैसा ही फल प्रदान करता है। ज्योतिष के अनुसार शनि के कोप से बचने के लिए ऐसे कई कार्य मना किए गए हैं जो शनिवार के दिन हमें नहीं करने चाहिए। इन्हीं कार्यों में से एक कार्य यह वर्जित है कि शनिवार को घर में तेल लेकर नहीं आना चाहिए। क्योंकि तेल शनि को अतिप्रिय है और शनिवार को तेल का दान किया जाना चाहिए। इस दिन तेल घर लेकर आने से शनि का बुरा प्रभाव हम पर पड़ता है। यदि घर के किसी सदस्य पर शनि की अशुभ दृष्टि हो तो उसके लिए यह और भी अधिक बुरा फल देने वाला सिद्ध होगा। इन बुरे प्रभावों से बचने के लिए शनिवार के दिन घर में तेल लेकर न आए बल्कि तेल का दान करें और शनि देव को तेल अर्पित करें।
शास्त्रों में शनि को न्याय का देवता बताया गया है। धार्मिक मान्यता है कि वह न्याय करने के साथ दण्ड भी देते हैं। यहीं नहीं शास्त्रों में शनि की वक्रदृष्टि से अनेक देवी-देवताओं के आहत होने का भी वर्णन है। इन कार्यों और रूपों से ही शनि क्रू र देवता माने जाते हैं।
शास्त्रों के मुताबिक शनि सूर्य पुत्र हैं। किंतु माँ का अपमान के कारण उनका अपने पिता सूर्य से बैर हुआ। माता के अपमान न सहन कर पाने से शनि ने शिव की तपस्या कर सूर्य की भांति ही शक्तिशाली और नौ ग्रहों में श्रेष्ठ स्थान पाने का वर प्राप्त किया।
असल में शनिदेव की क्रूर छबि का मतलब यह नहीं है कि वह कष्ट, पीड़ा और दु:खों को देने वाले ही देवता है। बल्कि सत्य यह है कि शनिदेव बुरे कर्मों का ही दण्ड देते हैं। चूंकि हर व्यक्ति जाने-अनजाने मन, वचन और कर्म से कोई न कोई पाप कर्म कर ही देता है। इसलिए वह शनि के कोप का भागी भी बनता है।
शनिदेव बुरे कामों के लिए सजा भी देते हैं तो अच्छे कामों से प्रसन्न भी होते हैं। यही कारण है कि शनि को किस्मत चमकाने वाला देवता भी कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक शनि शुभ होने पर अपार सुख, समृद्धि देता हैं। साथ ही भाग्य विधाता भी बन जाता है।
शास्त्रों में शनि के चरित्र, स्वरूप बताते ऐसे ही दस नामों का वर्णन है। जिनका स्मरण, ध्यान करने से ही सभी संकट, पीड़ा, भय, बाधा और दु:खों का नाश हो जाता है। जानते हैं शनि के वह दस कल्याणकारी नाम - कोणस्थ - पिंगल - बभ्रु - कृष्ण - रौद्रान्त- यम- सौरि- शनैश्चर- मन्द- पिप्पलाश्रय
शनि देव को खुश करने के लिए, ये प्रयोग करें-
तेल उड़द और काले कपड़े का दान दें। कोऔं को चावल या खीर खिलाएं।किसी साधु को तवा या अंगीठी का दान दें। शनि देन को तेल चढ़ाएं। नीले कपडे पहने।हनुमान चालिसा का पाठ करें। हनुमानजी को सिंदूर चढ़ाएं।

Tuesday, January 4, 2011

ऊँ श्रीराम जय राम जय जय राम।।

भगवान राम की उपासना दिनचर्या और जीवनशैली का अटूट हिस्सा है। क्योंकि श्रीराम ही नहीं बल्कि मात्र उनका नाम ही संकटमोचक माना जाता है। सनातन परंपरा और मूल्यों पर आस्था रखने वाला हर शख्स सोते-जागते, उठते-बैठते या किसी से मिलते वक्त राम नाम लेना नहीं भूलता। क्योंकि भगवान राम का जीवन और चरित्र वैसे ही संघर्षों और उन पर मर्यादाओं से जीत का ऐसा उदाहरण है, जिनसे होकर आम आदमी भी गुजरता है।
राम हर दिल में ही बसते हैं, इसलिए ऐसी आस्था है कि उन सभी मुश्किल हालातों में राम नाम ही दर्द से निज़ात देता है, जिनसे उबरना भी राम ने ही अपने आचरण से जगत को सिखाया।अगर आप भी जीवन में व्यक्तिगत, पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक, प्रशासनिक या शारीरिक कठिनाईयों के दौर से गुजर रहे हैं। मगर जिम्मेदारियों और कर्तव्यों के चलते कोई बड़ा धार्मिक उपाय न कर पाएं तो यहां बताया जा रहा है इतना आसान किंतु अचूक उपाय जो आपके कष्ट और दु:खों को चमत्कारिक रूप से दूर कर देगा। यह उपाय है भगवान श्रीराम के नाम का स्मरण और जप -
- किसी भी दिन सबेरे स्नान करने के बाद घर के देवालय या काम पर जाते वक्त किसी राम मंदिर में भगवान राम को फूल और धूप बत्ती जलाकर कम से कम पांच मौसमी फल चढ़ावें।
- श्रीराम के सामने प्रणाम कर या दण्डवत होकर राम नाम का ऐसा स्मरण करें -
ऊँ श्रीराम जय राम जय जय राम।।
इस तरह से राम नाम मंत्र जप आपके मनोबल को बनाए रखेगा। जिससे आपकी मनोदशा भी सकारात्मक होगी। राम नाम का यह जप आप चलती राह, कार्यालय जाते वक्त बीच सफर में या कहीं भी फुर्सत के लम्हों में कर सकते हैं। इसके प्रभाव से आप जल्द ही खुद को सुखद स्थिति में पाएंगे।

Sunday, January 2, 2011

इन टोटकों से होगी मनोकामना पूरी

तंत्र विज्ञान मे कुछ ऐसे टोटके हैं जिन्हे अपनाकर आप निश्चित ही अपनी सारी मनोकामनाओं को पूर्ण कर सकते हैं।
यदि आप चाहते हैं आपकी हर एक मनोकामना पूरी हो तो आपकी राशि के अनुसार नीचे लिखें टोटको को पूरी श्रद्धा से अपनाएं निश्चित ही आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी।

मेष- ग्यारह हनुमान जी को सिन्दूर का चोला चढ़ाएं या वर्ष में एक बार हनुमान जी के किसी मन्दिर में रामध्वजा लगवाएं।
वृषभ- ग्यारह शुक्रवार लक्ष्मीजी या देवी के मन्दिर में खुशबु वाली अगरबत्ती चढ़ाएं और खीर का प्रसाद बांटे।
मिथुन- रोज कुछ भी खाने से पूर्व इलायची और तुलसीदल गणपति के स्मरण के साथ सेवन करें।कर्क- भगवान शिव को हर सोमवार को मीठा दूध चढ़ाएं।
सिंह- जल में रोली और शहद मिलाकर रोज सूर्यदेव को तांबे के लोटे से अघ्र्य दें।
कन्या- २१ बुधवार गणेश जी को दूर्वा, गुड़ व साबुत मूंग चढाएं।
तुला- शुभ कार्य के लिए निकलने से पहले तुलसी के दर्शन करें और उसका एक पत्ता खाकर निकलें।
वृश्चिक- किसी भी महत्वपूर्ण कार्य के लिए निकलने से पूर्व हनुमान जी को पान का बीड़ा चढ़ाएं।
धनु- सूर्यदशा की ओर मुख करते हुए नित्य नाभि और मस्तक पर केसर का तिलक लगाएं।
मकर- हर शनिवार को उठते समय सबसे पहले खेजड़ी या पीपल के पेड़ पर जल चढाएं।
कुंभ- सात शनिवार दक्षिणामुखी हनुमान जी की परिक्रमा करें। अंत में गुड़ चने का प्रसाद चढ़ाकर हनुमान चालिसा का पाठ करें।
मीन- सात गुरुवार छोटी कन्याओं को गुड़ और भीगे चनों का प्रसाद बांटे।

Saturday, January 1, 2011

महामृत्युंजय मंत्र

शिव का महामृत्यंजय रूप पीड़ा और दु:खों से मुक्त कर सुख और आनंद देने वाला माना गया है। शिव के इस कल्याणकारी रूप की भक्ति और साधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र के जप को बहुत ही शुभ और सिद्ध माना गया है। पुराणों में इसे मृत संजीवनी मंत्र बताया गया है। इस मंत्र के असर और शक्ति का महत्व दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य ने महर्षि दधीचि को बताया था।धार्मिक मान्यताओं में महामृत्युंजय मंत्र ऐसा सिद्ध मंत्र जिसके जप या उच्चारण मात्र से ही कड़ी से बड़ी विपत्ति से छुटकारा मिल जाता है। यह मंत्र न केवल अकाल मौत और मृत्यु भय से बचाता है। बल्कि इसके जप मात्र से कुंटुब की भी रोगों और और शत्रुओं से रक्षा भी होती है। दौलत, वैभव, मान-सम्मान भी इस मंत्र के प्रभाव मिल जाता है।शिव उपासना के विशेष दिन सोमवार, प्रदोष, अष्टमी, चतुर्दशी पर शिव पूजा के साथ इस मंत्र का जप बहुत ही सिद्ध माना जाता है। महामृत्युंजय का यह सिद्ध मंत्र इस प्रकार है -
ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम।
उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।
इस मंत्र के जप की अलग-अलग प्रयोजन के लिए नियत संख्या बताई गई है। जिसे किसी विद्वान ब्राह्मण से विधि-विधान, हवन और ब्रह्मभोज के साथ कराया जाना शास्त्रों के मुताबिक सुनिश्चित फल देता है।