Wednesday, June 29, 2011

एक वर्ष में चार नवरात्रि

हिंदू धर्म के अनुसार एक वर्ष में चार नवरात्रि होती है। वर्ष के प्रथम मास अर्थात चैत्र में प्रथम नवरात्रि होती है। चौथे माह आषाढ़ में दूसरी नवरात्रि होती है। इसके बाद अश्विन मास में प्रमुख नवरात्रि होती है। इसी प्रकार वर्ष के ग्यारहवें महीने अर्थात माघ में भी गुप्त नवरात्रि मनाने का उल्लेख एवं विधान देवी भागवत तथा अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।इनमें अश्विन मास की नवरात्रि सबसे प्रमुख मानी जाती है। इस दौरान पूरे देश में गरबों के माध्यम से माता की आराधना की जाती है। दूसरी प्रमुख नवरात्रि चैत्र मास की होती है। इन दोनों नवरात्रियों को क्रमश: शारदीय व वासंती नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। इसके अतिरिक्त आषाढ़ तथा माघ मास की नवरात्रि गुप्त रहती है। इसके बारे में अधिक लोगों को जानकारी नहीं होती, इसलिए इन्हें गुप्त नवरात्रि कहते हैं। गुप्त नवरात्रि विशेष तौर पर गुप्त सिद्धियां पाने का समय है। साधक इन दोनों गुप्त नवरात्रि में विशेष साधना करते हैं तथा चमत्कारिक शक्तियां प्राप्त करते हैं।

Sunday, June 26, 2011

शिव की साकार और निराकार भक्ति

शिव की भक्ति और पूजा साकार और निराकार दोनों रूप में होती है। शिव मूर्त या सगुण और अमूर्त या निर्गुण रूप में पूजे जाते हैं। शिव ऐसे स्वरूप, अलग-अलग गुण और शक्तियों के कारण अनेक नामों से प्रसिद्ध हैं। शिव का साकार रूप सदाशिव नाम से प्रसिद्ध है। इसी तरह शिव की पंचमूर्तियां - ईशान, तत्पुरुष, अघोर, वामदेव और सद्योजात से पूजनीय है, जो खासतौर पर पंचवक्त्र पूजा में पंचानन रूप का पूजन किया जाता है। भगवान शिव की अष्टमूर्ति पूजा का भी महत्व बताया गया है। यह अष्टमूर्ति है - शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव जो क्रम से पृथ्वी, जल, अग्रि, वायु, आकाश, क्षेत्रज्ञ, सूर्य और चन्द्र रूप में स्थित मूर्ति मानी गई है। साम्ब-सदाशिव, अर्द्धनारीश्वर, महामृत्युञ्जय, पशुपति, उमा-महेश्वर, पञ्चवक्त्र, कृत्तिवासा, दक्षिणामूर्ति, योगीश्वर और महेश्वर नाम से भी शिव के अद्भुत और शक्ति संपन्न स्वरूप पूजनीय है। रुद्र भगवान शिव का परब्रह्म स्वरूप है, जो सृष्टि रचना, पालन और संहार शक्ति के नियंत्रक माने गए हैं। रुद्र शक्ति के साथ शिव घोरा के नाम से भी प्रसिद्ध है। रुद्र रूप माया से परे ईश्वर का वास्तविक स्वरूप और शक्ति मानी गई है।
शैव ग्रंथों में शिव चरित्र और स्वभाव कल्याणकारी, समर्थ, पालक, उद्धारक, सर्वश्रेष्ठ, अविनाशी बताया गया है। यही कारण है कि शिव की उपासना सभी सांसारिक जीवों के लिये सुखद फल देने वाली मानी गई है। शास्त्रों में शिव की प्रसन्नता के लिये विशेष मंत्र बहुत प्रभावी माने गए हैं। इन मंत्रों में शिव पंचाक्षरी मंत्र सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। पांच अक्षरों का यह मंत्र छोटा जरूर है, लेकिन माना गया है कि इसमें वेद का सार समाया है। यह शिव द्वारा सिद्ध मंत्र माना गया है। जिसके जप से हर सुख और प्रसन्नता प्राप्त होती है। यही कारण है कि शिव उपासना के विशेष दिन सोमवार को पंचाक्षरी मंत्र के जप का महत्व सभी इच्छाओं की सिद्धी के लिये बहुत ही शुभ माना गया है।
सोमवार को यथासंभव व्रत रखकर रात्रि में भोजन करें। प्रात: स्नान कर शिवालय में शिव को गंगाजल या गाय के दूध से स्नान कराएं। शिव की पूजा में गंध, अक्षत, फूल, बिल्वपत्र चढ़ाकर नैवेद्य अर्पित करें। पूजा के बाद नीचे लिखे छोटे और बेहद आसान पंचाक्षरी मंत्र का जप करें-
नम: शिवाय
पूजा , मंत्र जप के बाद शिव आरती कर मनोकामना पूर्ति के लिये शिव के सामने मन ही मन प्रार्थना करें।

Saturday, June 18, 2011

शनैश्चर स्तवराज

शनि के कोप से बचने के लिये ही शास्त्रों में दोपहर में शनि पूजा कर शनैश्चर स्तवराज का पाठ बहुत असरदार माना गया है। विशेष तौर पर शनि दशा में यह शनि को अनुकूल बनाता है। अगर आप शनि दशा से गुजर रहे हैं या शनि दशा लगने वाली हो तो नीचे लिखी सरल विधि से शनि पूजा और मंत्र स्तुति करें - शनिवार के दिन दोपहर में शनि मंदिर में शनि प्रतिमा को गंध, तिल का तेल, काले तिल, उड़द, काला कपड़ा व तेल से बने व्यजंन चढ़ाकर नीचे लिखे शनैश्चर स्तवराज का पाठ करें -

ध्यात्वा गणपतिं राजा धर्मराजो युधिष्ठिरः।
धीरः शनैश्चरस्येमं चकार स्तवमुत्तमम।।
शिरो में भास्करिः पातु भालं छायासुतोवतु।
कोटराक्षो दृशौ पातु शिखिकण्ठनिभः श्रुती ।।
घ्राणं मे भीषणः पातु मुखं बलिमुखोवतु।
स्कन्धौ संवर्तकः पातु भुजौ मे भयदोवतु ।।
सौरिर्मे हृदयं पातु नाभिं शनैश्चरोवतु ।
ग्रहराजः कटिं पातु सर्वतो रविनन्दनः ।।
पादौ मन्दगतिः पातु कृष्णः पात्वखिलं वपुः ।
रक्षामेतां पठेन्नित्यं सौरेर्नामबलैर्युताम।।
सुखी पुत्री चिरायुश्च स भवेन्नात्र संशयः ।
सौरिः शनैश्चरः कृष्णो नीलोत्पलनिभः शन।।
शुष्कोदरो विशालाक्षो र्दुनिरीक्ष्यो विभीषणः ।
शिखिकण्ठनिभो नीलश्छायाहृदयनन्दनः ।।
कालदृष्टिः कोटराक्षः स्थूलरोमावलीमुखः ।
दीर्घो निर्मांसगात्रस्तु शुष्को घोरो भयानकः ।।
नीलांशुः क्रोधनो रौद्रो दीर्घश्मश्रुर्जटाधरः।
मन्दो मन्दगतिः खंजो तृप्तः संवर्तको यमः ।।
ग्रहराजः कराली च सूर्यपुत्रो रविः शशी ।
कुजो बुधो गुरूः काव्यो भानुजः सिंहिकासुत।।
केतुर्देवपतिर्बाहुः कृतान्तो नैऋतस्तथा।
शशी मरूत्कुबेरश्च ईशानः सुर आत्मभूः ।।
विष्णुर्हरो गणपतिः कुमारः काम ईश्वरः।
कर्ता हर्ता पालयिता राज्यभुग् राज्यदायकः ।।
छायासुतः श्यामलाङ्गो धनहर्ता धनप्रदः।
क्रूरकर्मविधाता च सर्वकर्मावरोधकः ।।
तुष्टो रूष्टः कामरूपः कामदो रविनन्दनः ।
ग्रहपीडाहरः शान्तो नक्षत्रेशो ग्रहेश्वरः ।।
स्थिरासनः स्थिरगतिर्महाकायो महाबलः ।
महाप्रभो महाकालः कालात्मा कालकालकः ।।
आदित्यभयदाता च मृत्युरादित्यनंदनः।
शतभिद्रुक्षदयिता त्रयोदशितिथिप्रियः ।।
तिथ्यात्मा तिथिगणनो नक्षत्रगणनायकः ।
योगराशिर्मुहूर्तात्मा कर्ता दिनपतिः प्रभुः ।।
शमीपुष्पप्रियः श्यामस्त्रैलोक्याभयदायकः ।
नीलवासाः क्रियासिन्धुर्नीलाञ्जनचयच्छविः ।।
सर्वरोगहरो देवः सिद्धो देवगणस्तुतः।
अष्टोत्तरशतं नाम्नां सौरेश्छायासुतस्य यः ।।
पठेन्नित्यं तस्य पीडा समस्ता नश्यति ध्रुवम् ।
कृत्वा पूजां पठेन्मर्त्यो भक्तिमान्यः स्तवं सदा ।।
विशेषतः शनिदिने पीडा तस्य विनश्यति।
जन्मलग्ने स्थितिर्वापि गोचरे क्रूरराशिगे ।।
दशासु च गते सौरे तदा स्तवमिमं पठेत् ।
पूजयेद्यः शनिं भक्त्या शमीपुष्पाक्षताम्बरैः ।।
विधाय लोहप्रतिमां नरो दुःखाद्विमुच्यते ।
वाधा यान्यग्रहाणां च यः पठेत्तस्य नश्यति ।।
भीतो भयाद्विमुच्येत बद्धो मुच्येत बन्धनात् ।
रोगी रोगाद्विमुच्येत नरः स्तवमिमं पठेत् ।।
पुत्रवान्धनवान् श्रीमान् जायते नात्र संशयः ।।
स्तवं निशम्य पार्थस्य प्रत्यक्षोभूच्छनैश्चरः ।
दत्त्वा राज्ञे वरः कामं शनिश्चान्तर्दधे तदा ।।

Wednesday, June 1, 2011

बहुत ही पुण्य और संकटनाशक योग

बुधवार बुध ग्रह दोष शांति और श्री गणेश उपासना से विघ्रनाश और बुद्धि, समृद्धि पाने का बहुत ही शुभ दिन माना जाता है। बुध को शनि का मित्र ग्रह भी माना गया है।
शनि जयंती के साथ बुधवार बहुत ही पुण्य और संकटनाशक योग है। पुराणों के मुताबिक भगवान गणेश के जन्म के बाद जब शनिदेव की शापित नजर से श्री गणेश का सिर धड़ से अलग हो गया और वह गजमुख बने, तब माता पार्वती द्वारा दिये गए अंगरहित हो जाने के शाप से रक्षा के लिए शनिदेव ने भी गणेश की उपासना की।
शनि दोष से बचने के लिए भी भगवान श्री गणेश की स्तुति बहुत ही प्रभावी मानी गई है। खासतौर पर बुधवार और शनि जयंती की घड़ी में गणेश गायत्री के अलग-अलग मंत्रों और शनि का ध्यान शनि पीड़ा से रक्षा करेगा - सुबह और शाम दोनों वक्त स्नान कर नवग्रह मंदिर में या घर के देवालय में भगवान गणेश और शनि की पूजा करें। शनि प्रतिमा को तिल का तेल चढ़ाएं और शनि का नीचे लिखे मंत्र से ध्यान करें, गंध, अक्षत, फूल अर्पित करें। तिल के पकवान चढ़ावें।

नीलांबुज समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छाया मार्तण्ड सम्भूतं शनिमावाह्याम्यहम्।।

भगवान गणेश की प्रतिमा की भी लाल चंदन, अक्षत, दूर्वा, फूल, सिंदूर, मोदक का भोग चढ़ाकर पूजा करें। पूजा के बाद नीचे लिखें गणेश गायत्री मंत्रों में सभी या एक का जप कर शनि पीड़ा के साथ जीवन में विघ्रों से रक्षा की कामना करें -

- ॐ तत्कराटाय विद्महे। हस्तिमुखाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।।
- ॐ तत्पुरुषाय विद्महे। वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।।
- ॐ लम्बोदराय विद्महे। महोदराय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।।
- ॐ महोल्काय विद्महे। वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।।

अंत में शनि और गणेश की आरती करें।