रुद्राक्ष शिव का अंश माना गया है। धार्मिक मान्यताओं में इसकी उत्पत्ति भी शिव के आंसुओं से मानी गई है। रुद्र और अक्ष यानी आंसु शब्द को मिलाकर इसे रुद्राक्ष पुकारा जाता है। शिव का अंश होने से ही यह सांसारिक पीड़ाओं को दूर करने वाला तो माना ही गया है। साथ ही धर्म और आध्यात्मिक रूप से भी रुद्राक्ष का प्रभाव धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाला होता है। अलग-अलग रूपों और आकार के रुद्राक्ष जगत के लिए संकटमोचक, सुख-सौभाग्य देने वाले और मनोरथ पूरे करने वाले बताए गए हैं। रुद्राक्ष की पहचान उस पर बनी धारियों से होती है। इन धारियों को रुद्राक्ष का मुख मानकर शास्त्रों में एकमुखी से इक्कीस मुखी रुद्राक्ष का महत्व बताया गया है।
सभी रुद्राक्ष में अलग-अलग देव शक्तियों का रूप और वास माना गया है। जिनमें बहुत से दुर्लभ हैं। जिनमें चौदह मुखी रुद्राक्ष श्री हनुमान का रूप माना गया है। जिसकी पूजा या धारण करने से श्री हनुमान की शक्तियों का प्रभाव विपत्तियों से बचाने वाला माना गया है। श्री हनुमान भी रुद्रावतार है और रुद्राक्ष भी शिव का वरदान माना गया है। वहीं पौराणिक मान्यताओं में शनि ने शिव कृपा से ही शक्ति और ऊंचे पद को पाया। इसलिए माना गया है कि शिव और हनुमान की शक्तियों के आगे शनि भी नतमस्तक रहते हैं। शनि साढ़े साती, महादशा या शनि पीड़ा के दौरान चौदह मुखी रुद्राक्ष को पहनना या उसकी उपासना शनि दशा में अनिष्ठ से रक्षा ही नहीं करती, बल्कि सुख-सौभाग्य लाने वाली होती है। चौदहमुखी रुद्राक्ष श्री हनुमान कृपा से उपासक को निडर, ऊर्जावान, निरोगी बनाता है। यह संतान व भूतबाधा दूर करता है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इसके गुण व शुभ प्रभाव अनंत है। यह स्वर्ग के सुख के साथ ही शनि पीड़ा जैसे क्रूर देवीय प्रकोप से भी बचाता है।
Saturday, April 30, 2011
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