ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रहों की शुभ अशुभ स्थिति के कारण ही कोई बीमारी होती है यदि आप अपनी राशि के अनुसार कोई उपचार या उपाय करें तो जल्दी ही स्वस्थ्य हो जाएंगे। इन उपायों में अपने राशि स्वामी के अनुसार दान और पूजा कर सकते हैं।
मेष राशि- आपकी राशि का स्वामी मंगल है इसलिए आप अपने राशि स्वामी मंगल के उपाय करें तों बड़ी बीमारीयों से बच जाऐंगे। यदि आप मसूर की दाल लाल कपड़े में रख कर दान दें तो आपको लाभ होगा।
वृषभ राशि- सफेद गाय को घास खिलाएं और शुक्र्र देव से संबंधित दान करें।
मिथुन राशि- 10 वर्ष से कम उम्र की कन्या को भोजन कराएं और भेंट दें तो आपकी बीमारीयां खत्म हो जाएगी।
कर्क राशि- अपनी राशि के अनुसार आप चिंटीयों को आटा डालें तो बीमारीयों से बच जाएंगे।
सिंह राशि- रोज सुबह सूर्योदय के साथ सूर्य को तांबे के बर्तन से जल चढ़ाए। सावधानी रखें की जल चढ़ाते समय चढ़ा हुआ जल किसी बर्तन में इकट्ठा कर के उस जल से किसी पौधें को सींच दें।
कन्या राशि- राशि स्वामी बुध के अनुसार आप किन्नरों को हरी चूड़ियाँ दान दें।
तुला राशि- आपको अपनी राशि के अनुसार गाय का घी, दही और रूई किसी मंदिर में दान दें।
वृश्चिक राशि- बीमारीयों से नीजात पाने के लिए आप गाय को गुड़ खिलाएं।
धनु राशि- पीली गाय की सेवा करने से आपके सारे रोग दूर हो जाएंगे।
मकर राशि- आपकी राशि शनि की राशि होने के कारण आप काले कुत्ते को रोटी दें।
कुम्भ राशि- किसी गरीब को काला कंबल दान दे तो आप नीरोगी रहेंगे।
मीन राशि- पीपल के पेड़ में जल सींचने से आपको कोई रोग परेशान नही करेगा।
Friday, December 31, 2010
शुक्र गायत्री मंत्र का जप
सरल शब्दों में कहें तो इस मंत्र का जप व्यक्ति को तन, मन से जोशीला और जवां बनाए रखता है। जिससे हर कोई भौतिक सुखों को प्राप्त करने में सक्षम बन सकता है।
असल में ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक शुक्र का शुभ प्रभाव ही सांसारिक सुखों को नियत करता है। जैसे घर, वाहन, सुविधा। यह सहूलियत ही किसी भी व्यक्ति को मनचाहे लक्ष्य पाने में मदद करती है। वह उमंग और उत्साह से भरा होता है। इसी तरह शुक्र ग्रह यौन अंगों, रज और वीर्य का कारक भी है। जिससे वह किसी व्यक्ति में सुंदरता और शारीरिक सुख की ओर खिंचाव पैदा करता है। धर्म की भाषा में कहें तो शुक्र का शुभ होना चार पुरुषार्थ में एक काम को पाने में अहम भूमिका निभाता है। यही कारण है कि कुण्डली में शुक्र के बली होने से व्यक्ति यौन सुख पाता है। वहीं कमजोर होने पर रज और वीर्य विकार से व्यक्ति का चेहरा तेजहीन और शरीर दुर्बल हो जाता है। शुक्रवार के दिन शुक्र ग्रह को शुभ और बली बनाने के लिए इस शुक्र मंत्र के जप का विधान बताया गया है -
- शुक्रवार के दिन किसी नवग्रह मंदिर या घर के देवालय में यथासंभव शुक्रदेव की सोने से बनी मूर्ति या लिंग रूप प्रतिमा की यथाविधि पूजा करें। - पूजा में दो सफेद वस्त्र, सफेद फूल, गंध और अक्षत चढ़ाएं। - पूजा के बाद शुक्रदेव को खीर या घी से बने सफेद पकवान का भोग लगाएं। - पूजा के बाद इस शुक्र गायत्री मंत्र का यथाशक्ति जप कर अंत में अगरबत्ती या घी के दीप जलाकर आरती करें। कम से कम 108 बार इस मंत्र का जप करना श्रेष्ठ होता है
- ऊँ भृगुवंशजाताय विद्यमहे।
श्वेतवाहनाय धीमहि।
तन्न: कवि: प्रचोदयात॥
इस मंत्र से शुक्र ग्रह का देव रूप स्मरण शारीरिक, मानसिक रुप से जोश, उमंग बनाए रख तमाम सुखों को देने वाला होता है।
असल में ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक शुक्र का शुभ प्रभाव ही सांसारिक सुखों को नियत करता है। जैसे घर, वाहन, सुविधा। यह सहूलियत ही किसी भी व्यक्ति को मनचाहे लक्ष्य पाने में मदद करती है। वह उमंग और उत्साह से भरा होता है। इसी तरह शुक्र ग्रह यौन अंगों, रज और वीर्य का कारक भी है। जिससे वह किसी व्यक्ति में सुंदरता और शारीरिक सुख की ओर खिंचाव पैदा करता है। धर्म की भाषा में कहें तो शुक्र का शुभ होना चार पुरुषार्थ में एक काम को पाने में अहम भूमिका निभाता है। यही कारण है कि कुण्डली में शुक्र के बली होने से व्यक्ति यौन सुख पाता है। वहीं कमजोर होने पर रज और वीर्य विकार से व्यक्ति का चेहरा तेजहीन और शरीर दुर्बल हो जाता है। शुक्रवार के दिन शुक्र ग्रह को शुभ और बली बनाने के लिए इस शुक्र मंत्र के जप का विधान बताया गया है -
- शुक्रवार के दिन किसी नवग्रह मंदिर या घर के देवालय में यथासंभव शुक्रदेव की सोने से बनी मूर्ति या लिंग रूप प्रतिमा की यथाविधि पूजा करें। - पूजा में दो सफेद वस्त्र, सफेद फूल, गंध और अक्षत चढ़ाएं। - पूजा के बाद शुक्रदेव को खीर या घी से बने सफेद पकवान का भोग लगाएं। - पूजा के बाद इस शुक्र गायत्री मंत्र का यथाशक्ति जप कर अंत में अगरबत्ती या घी के दीप जलाकर आरती करें। कम से कम 108 बार इस मंत्र का जप करना श्रेष्ठ होता है
- ऊँ भृगुवंशजाताय विद्यमहे।
श्वेतवाहनाय धीमहि।
तन्न: कवि: प्रचोदयात॥
इस मंत्र से शुक्र ग्रह का देव रूप स्मरण शारीरिक, मानसिक रुप से जोश, उमंग बनाए रख तमाम सुखों को देने वाला होता है।
Thursday, December 30, 2010
बुध ग्रह बुद्धिमत्ता और वाकपटुता का निर्धारक
सनातन धर्म की खासियत है कि वह इंसान का धर्म के माध्यम से प्रकृति के साथ गहरा संबंध बनाती है। इसी परंपरा में ब्रह्मांड में स्थित सभी ग्रह, नक्षत्रों को ईश्वर मानकर उनकी पूजा और उपासना के विधान शास्त्रों में बताए गए। इन उपायों से इंसान को सुखों की कामना पूर्ति के साथ पीड़ाओं और कष्टों से मुक्ति की राह भी मिली।
इसी कड़ी में बुधवार के दिन बुध ग्रह की देव रुप में उपासना का महत्व है। पौराणिक और ज्योतिष विज्ञान में बुध का महत्व बताया गया है। पुराणों में बुध ग्रह, चंद्र देव और तारा की संतान है। लिंग पुराण के अनुसार बुध चंद्रमा और रोहिणी की संतान माने जाते हैं। जबकि विष्णु पुराण बुध चंद्रमा और बृहस्पति की पत्नी तारा की संतान है। बुध देव चार भुजाओं वाले हैं और उनका वाहन सिंह है।ज्योतिष विज्ञान के अनुसार बुध ग्रह बुद्धिमत्ता और वाकपटुता का निर्धारक है। बुध के शुभ प्रभाव से किसी भी व्यक्ति को विद्वान, शिक्षक, कलाकार और सफल व्यवसायी बना सकता है।कड़ी प्रतियोगिता के दौर में आज का युवाओं के लिए भी मजबूत मानसिक क्षमताओं का होना बहुत जरूरी है। क्योंकि अच्छे कॅरियर बनाने के लिए शिक्षा व ज्ञान बहुत अहम है। अगर आप भी तेज दिमाग, मानसिक शक्ति, एकाग्रता चाहें तो बुधवार के दिन बुध देव की प्रसन्नता के यह मंत्र जप जरूर करें -
- सुबह स्नान कर किसी नवग्रह मंदिर या घर के देवालय में बुधदेव की मूर्ति की पंचोपचार पूजा करें। - पूजा में खासतौर पर हरी पूजा सामग्री भी चढ़ाएं। गंध, अक्षत, फूल के अलावा हरे वस्त्र अर्पित करें। गुड़, दही और भात का भोग लगाएं।- धूप और अगरबत्ती, दीप जलाकर पूजा-आरती करें।- पूजा या आरती के बाद बुध देव का बीज मंत्र ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम: या ऊँ बुं बुधाय नम: का यथाशक्ति मंत्र जप करें। - कम से कम 108 बार मंत्र जप अवश्य करें।
इसी कड़ी में बुधवार के दिन बुध ग्रह की देव रुप में उपासना का महत्व है। पौराणिक और ज्योतिष विज्ञान में बुध का महत्व बताया गया है। पुराणों में बुध ग्रह, चंद्र देव और तारा की संतान है। लिंग पुराण के अनुसार बुध चंद्रमा और रोहिणी की संतान माने जाते हैं। जबकि विष्णु पुराण बुध चंद्रमा और बृहस्पति की पत्नी तारा की संतान है। बुध देव चार भुजाओं वाले हैं और उनका वाहन सिंह है।ज्योतिष विज्ञान के अनुसार बुध ग्रह बुद्धिमत्ता और वाकपटुता का निर्धारक है। बुध के शुभ प्रभाव से किसी भी व्यक्ति को विद्वान, शिक्षक, कलाकार और सफल व्यवसायी बना सकता है।कड़ी प्रतियोगिता के दौर में आज का युवाओं के लिए भी मजबूत मानसिक क्षमताओं का होना बहुत जरूरी है। क्योंकि अच्छे कॅरियर बनाने के लिए शिक्षा व ज्ञान बहुत अहम है। अगर आप भी तेज दिमाग, मानसिक शक्ति, एकाग्रता चाहें तो बुधवार के दिन बुध देव की प्रसन्नता के यह मंत्र जप जरूर करें -
- सुबह स्नान कर किसी नवग्रह मंदिर या घर के देवालय में बुधदेव की मूर्ति की पंचोपचार पूजा करें। - पूजा में खासतौर पर हरी पूजा सामग्री भी चढ़ाएं। गंध, अक्षत, फूल के अलावा हरे वस्त्र अर्पित करें। गुड़, दही और भात का भोग लगाएं।- धूप और अगरबत्ती, दीप जलाकर पूजा-आरती करें।- पूजा या आरती के बाद बुध देव का बीज मंत्र ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम: या ऊँ बुं बुधाय नम: का यथाशक्ति मंत्र जप करें। - कम से कम 108 बार मंत्र जप अवश्य करें।
बिजनेस में निश्चित सफलता प्राप्त करें
कारोबार में असफलता का सामना करना पड़ रहा है? कर्ज में डूब रहे हैं। बिजनेस में सिर्फ नुकसान हो रहा हो तो। आप हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं पर कोई फायदा नहीं हो रहा हो तो नीचे लिखे टोटकों को अपनाकर आप बिजनेस में निश्चित सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
- कार्यस्थल पर अधिक से अधिक पीले रंग का प्रयोग करें। पूजाघर में हल्दी की माला लटकाएं। भगवान लक्ष्मी नारायण के मंदिर में लड्डुओं का भोग लगाएं।- शनिवार के दिन रक्तगुंजा के इक्कीस दाने बांधकर तिजोरी में रख दें। हर रोज दीप अवश्य लगाएं।- महीने के प्रथम गुरूवार से इस प्रयोग को शुरू करें नियमित रूप से186 दिन तक इस प्रयोग को करें। रोज पीपल या बरगद के नीचे चौ मुखी दीपक लगाएं। एक पाठ विष्णुसहस्त्रनाम रोज करें।- हर शाम गोधुली बेला में लक्ष्मी जी की तस्वीर के समक्ष गाय के घी का दीपक लगाएं। दीपक जलाने के बाद उसके अंदर अपने इष्ट देव का ध्यान करके एक इलायची डाल दें। इस प्रयोग को नियमित रूप से 186 दिन तक दोहराएं।- मिट्टी के पांच पात्र लेकर उसमें हर पात्र में सवा किलो जौ, सवा किलो उड़द, सवा किलो साबुत मुंग, सवा किलो सफेद तिल, सवा किलो पीली सरसों इन सभी को पांच पात्रों में भरकर पात्र के मुंह को लाल कपड़े से बांध दे। व्यवसायिक स्थल पर इन पांचों कलश को रख दें। एक साल बाद इन सभी पात्रों को अपने ऊपर से उतारकर नदी में प्रवाहित करें।
- कार्यस्थल पर अधिक से अधिक पीले रंग का प्रयोग करें। पूजाघर में हल्दी की माला लटकाएं। भगवान लक्ष्मी नारायण के मंदिर में लड्डुओं का भोग लगाएं।- शनिवार के दिन रक्तगुंजा के इक्कीस दाने बांधकर तिजोरी में रख दें। हर रोज दीप अवश्य लगाएं।- महीने के प्रथम गुरूवार से इस प्रयोग को शुरू करें नियमित रूप से186 दिन तक इस प्रयोग को करें। रोज पीपल या बरगद के नीचे चौ मुखी दीपक लगाएं। एक पाठ विष्णुसहस्त्रनाम रोज करें।- हर शाम गोधुली बेला में लक्ष्मी जी की तस्वीर के समक्ष गाय के घी का दीपक लगाएं। दीपक जलाने के बाद उसके अंदर अपने इष्ट देव का ध्यान करके एक इलायची डाल दें। इस प्रयोग को नियमित रूप से 186 दिन तक दोहराएं।- मिट्टी के पांच पात्र लेकर उसमें हर पात्र में सवा किलो जौ, सवा किलो उड़द, सवा किलो साबुत मुंग, सवा किलो सफेद तिल, सवा किलो पीली सरसों इन सभी को पांच पात्रों में भरकर पात्र के मुंह को लाल कपड़े से बांध दे। व्यवसायिक स्थल पर इन पांचों कलश को रख दें। एक साल बाद इन सभी पात्रों को अपने ऊपर से उतारकर नदी में प्रवाहित करें।
Sunday, December 26, 2010
इष्टसिद्धि में गायत्री मंत्र
इष्टसिद्धि से शक्ति, कामयाबी और इच्छापूर्ति का महत्व बताया गया है। इष्टसिद्धि को सरल शब्दों में समझना चाहें तो इसका मतलब होता है कि व्यक्ति जिस देव शक्ति के लिए श्रद्धा और आस्था मन में बना लेता है, तब उसी के मुताबिक उस देवता से जुड़ी सभी शक्तियां, प्रभाव और वस्तुएं संबंधित को मिलने लगती है। साथ ही वह देव उपासना का वास्तविक लाभ पाता है। इष्टसिद्धि की कड़ी में गायत्री का ध्यान भी बहुत अहम माना जाता है। खासतौर पर तंत्र शास्त्रों में गायत्री साधना में गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों से 24 देव शक्तियों को पाने का फल बताया गया है।
असल में गायत्री मंत्र के हर अक्षर का एक देवता है यानि हर अक्षर देव शक्ति बीज है। इस तरह गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों में 24 देव शक्तियों का आवाहन हो जाता है। इष्टसिद्धि के नजरिए से मात्र एक मंत्र से ही 24 देवताओं का इष्ट और उनसे जुड़ी शक्ति प्राप्त होना बहुत महत्व रखती है। ऐसी इष्टसिद्धि से जिंदगी में किसी भी तरह की भय, परेशानी, बाधा या संकटों का सामना नहीं करना पड़ता।
जानते हैं ऐसे महाशक्तिशाली मंत्र के 24 अक्षरों के 24 देवताओं के नाम -
- श्री गणेश - नृसिंह- विष्णु- शिव -कृष्ण - राधा- लक्ष्मी- अग्रि- इन्द्र - सरस्वती- दुर्गा- हनुमान -पृथ्वी- सूर्य - राम - सीता - चन्द्रमा - यम - ब्रह्मा- वरुण- नारायण- हयग्रीव - हंस- तुलसी
धार्मिक दृष्टि से देव शक्तियां जाग्रत होती है। इसलिए इष्ट रूप में गायत्री और गायत्री मंत्र के स्मरण से ही इन 24 देवताओं के अधीन शक्तियां और पदार्थ भी उपासक को प्राप्त होते हैं। जिससे वह सांसारिक और भौतिक शक्तियों से पूर्ण हो जाता है।
असल में गायत्री मंत्र के हर अक्षर का एक देवता है यानि हर अक्षर देव शक्ति बीज है। इस तरह गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों में 24 देव शक्तियों का आवाहन हो जाता है। इष्टसिद्धि के नजरिए से मात्र एक मंत्र से ही 24 देवताओं का इष्ट और उनसे जुड़ी शक्ति प्राप्त होना बहुत महत्व रखती है। ऐसी इष्टसिद्धि से जिंदगी में किसी भी तरह की भय, परेशानी, बाधा या संकटों का सामना नहीं करना पड़ता।
जानते हैं ऐसे महाशक्तिशाली मंत्र के 24 अक्षरों के 24 देवताओं के नाम -
- श्री गणेश - नृसिंह- विष्णु- शिव -कृष्ण - राधा- लक्ष्मी- अग्रि- इन्द्र - सरस्वती- दुर्गा- हनुमान -पृथ्वी- सूर्य - राम - सीता - चन्द्रमा - यम - ब्रह्मा- वरुण- नारायण- हयग्रीव - हंस- तुलसी
धार्मिक दृष्टि से देव शक्तियां जाग्रत होती है। इसलिए इष्ट रूप में गायत्री और गायत्री मंत्र के स्मरण से ही इन 24 देवताओं के अधीन शक्तियां और पदार्थ भी उपासक को प्राप्त होते हैं। जिससे वह सांसारिक और भौतिक शक्तियों से पूर्ण हो जाता है।
Wednesday, December 22, 2010
केन्द्र स्थान जीवन पर बहुत प्रभाव डालते है
जन्मकुंडली में चार केंद्र स्थान होते हैं। कुंडली में केन्द्र स्थान किसी भी व्यक्ति के जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव डालते है . कुंडली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम एवं दशम भाव को केन्द्र भाव माना गया है। पहले भाव को स्वयं के तन का, चौथे भाव को सुख का, सप्तम भाव को वैवाहिक जीवन का और दसवें भाव को कुंडली में कर्मभाव माना गया है।यदि इन चारों भाव में कोई शुभ ग्रह हो तो जातक धनवान होता है। वहीं केंद्र में उच्च के पाप ग्रह बैठे हो तो जातक राजा तो होता ही है पर वह धन से हीन होता है।
- बुध के केंद्र में होने से अध्यापक तथा गुरु के केंद्र में होने से विज्ञानी।
- शुक्र के केंद्र में होने पर धनवान तथा विद्यावान होता है।
- शनि के केंद्र में होने से नीच जनों की सेवा करने वाला होता है।
- यदि केन्द्र में उच्च का सूर्य यदि उच्च हो तथा गुरु केंद्र में चतुर्थ स्थान पर बैठा हो तो जातक आधुनिक केंद्र या राज्य में मंत्री पद को प्राप्त करता है।
- सूर्य के केंद्र में होने से जातक राजा का सेवक, चंद्रमा केंद्र में हो तो व्यापारी, मंगल केंद्र में हो तो व्यक्ति सेना में कार्य करता है।
अगर केन्द्र में कोई ग्रह ना बैठे हों तो ऐसी कुंडली को शुभ नहीं माना जाता है। ऐसा व्यक्ति जीवन में कर्ज से हमेशा परेशान रहता है। इसके लिए नीचे लिखे उपाय करना जातक के लिए फायदेमंद रहता है।
- शिवजी की उपासना करें।- सोमवार का व्रत करें।
- भगवान शिव पर चांदी का नाग अर्पण करें।
- बिल्व पत्रों से 108 आहूतियां दें।
- बुध के केंद्र में होने से अध्यापक तथा गुरु के केंद्र में होने से विज्ञानी।
- शुक्र के केंद्र में होने पर धनवान तथा विद्यावान होता है।
- शनि के केंद्र में होने से नीच जनों की सेवा करने वाला होता है।
- यदि केन्द्र में उच्च का सूर्य यदि उच्च हो तथा गुरु केंद्र में चतुर्थ स्थान पर बैठा हो तो जातक आधुनिक केंद्र या राज्य में मंत्री पद को प्राप्त करता है।
- सूर्य के केंद्र में होने से जातक राजा का सेवक, चंद्रमा केंद्र में हो तो व्यापारी, मंगल केंद्र में हो तो व्यक्ति सेना में कार्य करता है।
अगर केन्द्र में कोई ग्रह ना बैठे हों तो ऐसी कुंडली को शुभ नहीं माना जाता है। ऐसा व्यक्ति जीवन में कर्ज से हमेशा परेशान रहता है। इसके लिए नीचे लिखे उपाय करना जातक के लिए फायदेमंद रहता है।
- शिवजी की उपासना करें।- सोमवार का व्रत करें।
- भगवान शिव पर चांदी का नाग अर्पण करें।
- बिल्व पत्रों से 108 आहूतियां दें।
Sunday, December 19, 2010
श्री हनुमान के एक चमत्कारिक रूप
पंचमुखी हनुमान के स्वरुप
श्री हनुमान रूद्र के अवतार माने जाते हैं। आशुतोष यानि भगवान शिव का अवतार होने से उनके समान ही श्री हनुमान थोड़ी ही भक्ति से जल्दी ही हर कलह, दु:ख व पीड़ा को दूर कर मनोवांछित फल देने वाले माने जाते हैं। श्री हनुमान चरित्र गुण, शील, शक्ति, बुद्धि कर्म, समर्पण, भक्ति, निष्ठा, कर्तव्य जैसे आदर्शों से भरा है। इन गुणों के कारण ही भक्तों के ह्रदय में उनके प्रति गहरी धार्मिक आस्था जुड़ी है, जो श्री हनुमान को सबसे अधिक लोकप्रिय देवता बनाती है।
श्री हनुमान के अनेक रूपों में साधना की जाती है। लोक परंपराओं में बाल हनुमान, भक्त हनुमान, वीर हनुमान, दास हनुमान, योगी हनुमान आदि प्रसिद्ध है। किंतु शास्त्रों में श्री हनुमान के एक चमत्कारिक रूप और चरित्र के बारे में लिखा गया है। वह है पंचमुखी हनुमान।
धर्मग्रंथों में अनेक देवी-देवता एक से अधिक मुख वाले बताए गए हैं। किंतु पांच मुख वाले हनुमान की भक्ति न केवल लौकिक मान्यताओं में बल्कि धार्मिक और तंत्र शास्त्रों में भी बहुत ही चमत्कारिक फलदायी मानी गई है। जानते हैं पंचमुखी हनुमान के स्वरुप और उनसे मिलने वाले शुभ फलों को -
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार पांच मुंह वाले दैत्य ने तप कर ब्रह्मदेव से यह वर पा लिया कि उसे अपने जैसे ही रूप वाले से मृत्यु प्राप्त हो। उसने जगत को भयंकर पीड़ा पहुंचाना शुरु किया। तब देवताओं की विनती पर श्री हनुमान से पांच मुखों वाले रूप में अवतार लेकर उस दैत्य का अंत कर दिया।
श्री हनुमान के पांच मुख पांच दिशाओं में हैं। हर रूप एक मुख वाला, त्रिनेत्रधारी यानि तीन आंखों और दो भुजाओं वाला है। यह पांच मुख नरसिंह, गरुड, अश्व, वानर और वराह रूप है।
पंचमुखी हनुमान का पूर्व दिशा में वानर मुख है, जो बहुत तेजस्वी है। जिसकी उपासना से विरोधी या दुश्मनों को हार मिलती है।
पंचमुखी हनुमान का पश्चिमी मुख गरूड का है, जिसके दर्शन और भक्ति संकट और बाधाओं का नाश करती है।
पंचमुखी हनुमान का उत्तर दिशा का मुख वराह रूप होता है, जिसकी सेवा-साधना अपार धन, दौलत, ऐश्वर्य, यश, लंबी आयु, स्वास्थ्य देती है।
पंचमुखी हनुमान का दक्षिण दिशा का मुख भगवान नृसिंह का है। इस रूप की भक्ति से जिंदग़ी से हर चिंता, परेशानी और डर दूर हो जाता है। पंचमुखी हनुमान का पांचवा मुख आकाश की ओर दृष्टि वाला होता है। यह रूप अश्व यानि घोड़े के समान होता है। श्री हनुमान का यह करुणामय रूप होता है, जो हर मुसीबत में रक्षा करने वाला माना जाता है।
पंचमुख हनुमान की साधना से जाने-अनजाने हुए सभी बुरे कर्म और विचारों के दोषों से छुटकारा मिलता है। वही धार्मिक रूप से ब्रह्मा, विष्णु और महेश त्रिदेवों की कृपा भी प्राप्त होती है। इस तरह श्री हनुमान का यह अद्भुत रूप शारीरिक, मानसिक, वैचारिक और आध्यात्मिक आनंद और सुख देने वाला माना गया है।
श्री हनुमान बल, बुद्धि और ज्ञान देने वाले देवता माने जाते हैं। श्री हनुमान की भक्ति और दर्शन कर्तव्य, समर्पण, ईश्वरीय प्रेम, स्नेह, परोपकार, वफादारी और पुरुषार्थ के लिए प्रेरित करते हैं। उनके विराट और पावन चरित्र के कारण ही उन्हें शास्त्रों में सकलगुणनिधान शब्द से पुकारा गया है।गोस्वामी तुलसीदास ने अपनी रचना हनुमान चालीसा में श्री हनुमान को माता सीता की कृपा से आठ सिद्धियों और नवनिधि प्राप्त करने और उसको भक्तों को देने का बल प्राप्त होने के बारे में लिखा है। यही कारण है कि हनुमान की भक्ति भक्त की सभी बुराईयों और दोषों को दूर कर गुण और बल देने वाली मानी गई है।
जहां गुण और गुणी व्यक्ति होते हैं, वहां संकट भी दूर रहते हैं। ऐसा व्यक्ति व्यावहारिक रूप से हनुमान की तरह ही संकटमोचक माना जाता है। इसलिए जानते हैं कि आखिर माता सीता की कृपा से श्री हनुमान ने किन नौ निधि को पाया, जो हनुमान उपासना से भक्तों को भी मिलती है। यह निधियाँ वास्तव में शक्तियों का ही रूप है।
पद्म निधि- इससे परिवार में सुख-समृद्धि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को प्राप्त होती रहती है।
महापद्म निधि - इसके असर से खुशहाली सात पीढियो तक बनी रहती है।
नील निधि - यह सफल कारोबार बनाती है।
मुकुंद निधि - यह भौतिक सुखों को देती है।
नन्द निधि- इसके प्रभाव से लम्बी उम्र और कामयाबी मिलती है।
मकर निधि -यह निधि शस्त्र और युद्धकला में दक्ष बनाती है।
कच्छप निधि-इस निधि के प्रभाव से दौलत और संपत्ति बनी रहती है।
शंख निधि - इससे व्यक्ति अपार धनलाभ पाता है।
खर्व निधि -इससे व्यक्ति को विरोधियों और कठिन समय पर विजय पाने की ताकत और दक्षता मिलती है।
श्री हनुमान शिव के अवतार माने गए हैं। शास्त्रों के मुताबिक श्री हनुमान सर्वगुण, सिद्धि और बल के अधिपति देवता हैं। यही कारण है कि वह संकटमोचक कहलाते हैं। हर हिन्दू धर्मावलंबी विपत्तियों से रक्षा के लिए श्री हनुमान का स्मरण और उपासना जरूर करता है।
श्री हनुमान की भक्ति और प्रसन्नता के लिए सबसे लोकप्रिय स्तुति गोस्वामी तुलसीदास द्वारा बनाई गई श्री हनुमान चालीसा है। इसी चालीसा में एक चौपाई आती है। जिसमें श्री हनुमान को आठ सिद्धियों को स्वामी बताया गया है।
यह चौपाई है -
अष्टसिद्धि नव निधि के दाता।
अस बर दीन्ह जानकी माता।।
अक्सर हर हनुमान भक्त चालीसा पाठ के समय इस चौपाई का भी आस्था से पाठ करता है। लेकिन इसमें बताई गई अष्टसिद्धियों के बारे में बहुत कम ही श्रद्धालु जानकारी रखते हैं। इस चौपाई के अनुसार यह अष्टसिद्धि माता सीता के आशीर्वाद से श्री हनुमान को प्राप्त हुई और साथ ही उनको इन सिद्धियों को अपने भक्तों को देने का भी बल प्राप्त हुआ। जानते हैं इन आठ सिद्धियों के नाम और सरल अर्थ -
अणिमा - इससे बहुत ही छोटा रूप बनाया जा सकता है।
लघिमा - इस सिद्धि से छोटा और हल्का बना जा सकता है।
महिमा - बड़ा रूप लेकर कठिन और दुष्कर कार्यों को आसानी से पूरा करने की सिद्धि।
गरिमा - शरीर का वजन बढ़ा लेने की सिद्धि। अध्यात्म की भाषा में अहंकारमुक्त होने का बल।
प्राप्ति - इच्छाशक्ति से मनोवांछित फल प्राप्त करने की सिद्धि।
प्राकाम्य - कामनाओं की पूर्ति और लक्ष्य पाने की दक्षता।
वशित्व - वश में करने की सिद्धि।
ईशित्व - ईष्टसिद्धि और ऐश्वर्य सिद्धि।
श्री हनुमान रूद्र के अवतार माने जाते हैं। आशुतोष यानि भगवान शिव का अवतार होने से उनके समान ही श्री हनुमान थोड़ी ही भक्ति से जल्दी ही हर कलह, दु:ख व पीड़ा को दूर कर मनोवांछित फल देने वाले माने जाते हैं। श्री हनुमान चरित्र गुण, शील, शक्ति, बुद्धि कर्म, समर्पण, भक्ति, निष्ठा, कर्तव्य जैसे आदर्शों से भरा है। इन गुणों के कारण ही भक्तों के ह्रदय में उनके प्रति गहरी धार्मिक आस्था जुड़ी है, जो श्री हनुमान को सबसे अधिक लोकप्रिय देवता बनाती है।
श्री हनुमान के अनेक रूपों में साधना की जाती है। लोक परंपराओं में बाल हनुमान, भक्त हनुमान, वीर हनुमान, दास हनुमान, योगी हनुमान आदि प्रसिद्ध है। किंतु शास्त्रों में श्री हनुमान के एक चमत्कारिक रूप और चरित्र के बारे में लिखा गया है। वह है पंचमुखी हनुमान।
धर्मग्रंथों में अनेक देवी-देवता एक से अधिक मुख वाले बताए गए हैं। किंतु पांच मुख वाले हनुमान की भक्ति न केवल लौकिक मान्यताओं में बल्कि धार्मिक और तंत्र शास्त्रों में भी बहुत ही चमत्कारिक फलदायी मानी गई है। जानते हैं पंचमुखी हनुमान के स्वरुप और उनसे मिलने वाले शुभ फलों को -
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार पांच मुंह वाले दैत्य ने तप कर ब्रह्मदेव से यह वर पा लिया कि उसे अपने जैसे ही रूप वाले से मृत्यु प्राप्त हो। उसने जगत को भयंकर पीड़ा पहुंचाना शुरु किया। तब देवताओं की विनती पर श्री हनुमान से पांच मुखों वाले रूप में अवतार लेकर उस दैत्य का अंत कर दिया।
श्री हनुमान के पांच मुख पांच दिशाओं में हैं। हर रूप एक मुख वाला, त्रिनेत्रधारी यानि तीन आंखों और दो भुजाओं वाला है। यह पांच मुख नरसिंह, गरुड, अश्व, वानर और वराह रूप है।
पंचमुखी हनुमान का पूर्व दिशा में वानर मुख है, जो बहुत तेजस्वी है। जिसकी उपासना से विरोधी या दुश्मनों को हार मिलती है।
पंचमुखी हनुमान का पश्चिमी मुख गरूड का है, जिसके दर्शन और भक्ति संकट और बाधाओं का नाश करती है।
पंचमुखी हनुमान का उत्तर दिशा का मुख वराह रूप होता है, जिसकी सेवा-साधना अपार धन, दौलत, ऐश्वर्य, यश, लंबी आयु, स्वास्थ्य देती है।
पंचमुखी हनुमान का दक्षिण दिशा का मुख भगवान नृसिंह का है। इस रूप की भक्ति से जिंदग़ी से हर चिंता, परेशानी और डर दूर हो जाता है। पंचमुखी हनुमान का पांचवा मुख आकाश की ओर दृष्टि वाला होता है। यह रूप अश्व यानि घोड़े के समान होता है। श्री हनुमान का यह करुणामय रूप होता है, जो हर मुसीबत में रक्षा करने वाला माना जाता है।
पंचमुख हनुमान की साधना से जाने-अनजाने हुए सभी बुरे कर्म और विचारों के दोषों से छुटकारा मिलता है। वही धार्मिक रूप से ब्रह्मा, विष्णु और महेश त्रिदेवों की कृपा भी प्राप्त होती है। इस तरह श्री हनुमान का यह अद्भुत रूप शारीरिक, मानसिक, वैचारिक और आध्यात्मिक आनंद और सुख देने वाला माना गया है।
श्री हनुमान बल, बुद्धि और ज्ञान देने वाले देवता माने जाते हैं। श्री हनुमान की भक्ति और दर्शन कर्तव्य, समर्पण, ईश्वरीय प्रेम, स्नेह, परोपकार, वफादारी और पुरुषार्थ के लिए प्रेरित करते हैं। उनके विराट और पावन चरित्र के कारण ही उन्हें शास्त्रों में सकलगुणनिधान शब्द से पुकारा गया है।गोस्वामी तुलसीदास ने अपनी रचना हनुमान चालीसा में श्री हनुमान को माता सीता की कृपा से आठ सिद्धियों और नवनिधि प्राप्त करने और उसको भक्तों को देने का बल प्राप्त होने के बारे में लिखा है। यही कारण है कि हनुमान की भक्ति भक्त की सभी बुराईयों और दोषों को दूर कर गुण और बल देने वाली मानी गई है।
जहां गुण और गुणी व्यक्ति होते हैं, वहां संकट भी दूर रहते हैं। ऐसा व्यक्ति व्यावहारिक रूप से हनुमान की तरह ही संकटमोचक माना जाता है। इसलिए जानते हैं कि आखिर माता सीता की कृपा से श्री हनुमान ने किन नौ निधि को पाया, जो हनुमान उपासना से भक्तों को भी मिलती है। यह निधियाँ वास्तव में शक्तियों का ही रूप है।
पद्म निधि- इससे परिवार में सुख-समृद्धि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को प्राप्त होती रहती है।
महापद्म निधि - इसके असर से खुशहाली सात पीढियो तक बनी रहती है।
नील निधि - यह सफल कारोबार बनाती है।
मुकुंद निधि - यह भौतिक सुखों को देती है।
नन्द निधि- इसके प्रभाव से लम्बी उम्र और कामयाबी मिलती है।
मकर निधि -यह निधि शस्त्र और युद्धकला में दक्ष बनाती है।
कच्छप निधि-इस निधि के प्रभाव से दौलत और संपत्ति बनी रहती है।
शंख निधि - इससे व्यक्ति अपार धनलाभ पाता है।
खर्व निधि -इससे व्यक्ति को विरोधियों और कठिन समय पर विजय पाने की ताकत और दक्षता मिलती है।
श्री हनुमान शिव के अवतार माने गए हैं। शास्त्रों के मुताबिक श्री हनुमान सर्वगुण, सिद्धि और बल के अधिपति देवता हैं। यही कारण है कि वह संकटमोचक कहलाते हैं। हर हिन्दू धर्मावलंबी विपत्तियों से रक्षा के लिए श्री हनुमान का स्मरण और उपासना जरूर करता है।
श्री हनुमान की भक्ति और प्रसन्नता के लिए सबसे लोकप्रिय स्तुति गोस्वामी तुलसीदास द्वारा बनाई गई श्री हनुमान चालीसा है। इसी चालीसा में एक चौपाई आती है। जिसमें श्री हनुमान को आठ सिद्धियों को स्वामी बताया गया है।
यह चौपाई है -
अष्टसिद्धि नव निधि के दाता।
अस बर दीन्ह जानकी माता।।
अक्सर हर हनुमान भक्त चालीसा पाठ के समय इस चौपाई का भी आस्था से पाठ करता है। लेकिन इसमें बताई गई अष्टसिद्धियों के बारे में बहुत कम ही श्रद्धालु जानकारी रखते हैं। इस चौपाई के अनुसार यह अष्टसिद्धि माता सीता के आशीर्वाद से श्री हनुमान को प्राप्त हुई और साथ ही उनको इन सिद्धियों को अपने भक्तों को देने का भी बल प्राप्त हुआ। जानते हैं इन आठ सिद्धियों के नाम और सरल अर्थ -
अणिमा - इससे बहुत ही छोटा रूप बनाया जा सकता है।
लघिमा - इस सिद्धि से छोटा और हल्का बना जा सकता है।
महिमा - बड़ा रूप लेकर कठिन और दुष्कर कार्यों को आसानी से पूरा करने की सिद्धि।
गरिमा - शरीर का वजन बढ़ा लेने की सिद्धि। अध्यात्म की भाषा में अहंकारमुक्त होने का बल।
प्राप्ति - इच्छाशक्ति से मनोवांछित फल प्राप्त करने की सिद्धि।
प्राकाम्य - कामनाओं की पूर्ति और लक्ष्य पाने की दक्षता।
वशित्व - वश में करने की सिद्धि।
ईशित्व - ईष्टसिद्धि और ऐश्वर्य सिद्धि।
Saturday, December 18, 2010
परेशानियों से बचाता है गोमती चक्र
गोमती चक्र सीप जैसे होते हैं। ये भी सीप के समान समुद्र में मिलती है। इनके आधार पर गोल घुमावदार आकृति बनी होती हैं ,यदि आपके घर में एक के बाद एक परेशानियां आ रही हो। व्यक्ति एक के बाद एक नई समस्याओं में उलझता जा रहा हो उसकी परेशानियों के निवारण के लिए है। गोमती चक्र हो किसी भी अमावस्या की रात्रि में या ग्रहण कल में सिद्ध करना चाहिए। एक बार सिद्ध होने पर गोमती चक्र तिन वर्षों तक प्रभावशाली रहता है।
- यदि घर में भूत-प्रेतों का उपद्रव हो तो दो गोमती चक्र लेकर घर के मुखिया के ऊपर घुमाकर आग में डाल दें तो घर से भूत -प्रेत का उपद्रव समाप्त हो जाता है।-घर में बीमारी हो या किसी का रोग शांत नहीं हो रहा हो तो एक गोमती चक्र लेकर उसे चांदी हो तो एक गोमती चक्र लेकरउसे चांदी में पिरोकर रोगी के पलंग के पायै पर बांध दें तो उसी दिन से रोगी का रोग समाप्त होने लगती है।- प्रमोशन नहीं हो रहा हो तो एक गोमती चक लेकर शिव मंदिर में शिवलिंग पर चढ़ा दें।- यदि गोमती चक्र को लाल सिंदूर की डिब्बी में घर में रखें तो घर में सुख शांति बनी रहती है।- पति-पत्नी मे मतभेद हो तो तीन गोमती चक्र लेकर उसे घर के दक्षिण दिशा में दोनों पर से घुमाकर फेंक दें।- यदि बार - बार गर्भ गिर रहा हो तो दो गोमती चक्र लाल कपड़े में बांधकर कमर में बांध दें तो गर्भ गिरना बंद हो जाता है।- कचहरी जाते समय घर के बाहर गोमती चक्र रखकर उस पर दाहिना पांव रखकर जावे तो उस दिन कोर्ट कचहरी में सफलता प्राप्त करता है।
- यदि घर में भूत-प्रेतों का उपद्रव हो तो दो गोमती चक्र लेकर घर के मुखिया के ऊपर घुमाकर आग में डाल दें तो घर से भूत -प्रेत का उपद्रव समाप्त हो जाता है।-घर में बीमारी हो या किसी का रोग शांत नहीं हो रहा हो तो एक गोमती चक्र लेकर उसे चांदी हो तो एक गोमती चक्र लेकरउसे चांदी में पिरोकर रोगी के पलंग के पायै पर बांध दें तो उसी दिन से रोगी का रोग समाप्त होने लगती है।- प्रमोशन नहीं हो रहा हो तो एक गोमती चक लेकर शिव मंदिर में शिवलिंग पर चढ़ा दें।- यदि गोमती चक्र को लाल सिंदूर की डिब्बी में घर में रखें तो घर में सुख शांति बनी रहती है।- पति-पत्नी मे मतभेद हो तो तीन गोमती चक्र लेकर उसे घर के दक्षिण दिशा में दोनों पर से घुमाकर फेंक दें।- यदि बार - बार गर्भ गिर रहा हो तो दो गोमती चक्र लाल कपड़े में बांधकर कमर में बांध दें तो गर्भ गिरना बंद हो जाता है।- कचहरी जाते समय घर के बाहर गोमती चक्र रखकर उस पर दाहिना पांव रखकर जावे तो उस दिन कोर्ट कचहरी में सफलता प्राप्त करता है।
Friday, December 17, 2010
राहु शुभ या अशुभ
किसी भी ग्रह के शुभ या अशुभ होने का निर्धारण कुंडली देखकर ही किया जाता है। राहु और केतु जिन्हे पाप ग्रह माना गया है। यदि वे कुंडली में दोष में हो तो जिन्दगी में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। राहु का शुभ या अशुभ होने का निर्धारण जन्मपत्रिका के आधार पर किया जाता है, लेकिन जिनकी जन्मपत्रिका ही नहीं बनी होती है। यदि बनी हुई भी है तो कभी किसी ज्योतिष को दिखाई नहीं है।ऐसी स्थिति में नीचे बताए गए लक्षणों को देखकर यह जानना चाहिए कि राहु अशुभ है या नहीं।
- यदि मानसिक स्थिति अच्छी नहीं है मानसिक भय हमेशा महसूस होता हो।- सांप, बिच्छु आदि जहरीले जानवर बार-बार काटते हों या इनके कारण कई बार खतरे में पड़ चुके हों।- बिना किसी बीमारी के हाथों के नाखून खराब हो जाएं या झड़ जाएं।- अचानक ऐसा लगे कि खराब समय आ गया है और एक के बाद एक कई सारी परेशानियां आपके सामने आ जाएं। जातक का भूरे रंग का कुत्ता खो जाए या मर जाए।- ऊंचाई वाले स्थान से आपको डर लगता हो या आप ऊंचे स्थान से एक दो बार गिर चुके हों।- बुखार अधिक होता हो और लम्बे समय तक चलता हो।-विवाह के पश्चात ससुराल में धनहानि हो या ससुराल से कोई आर्थिक लाभ नहीं हो।- हाथ पैरों में अक्सर सुजन रहती हो।
जन्म कुंडली राहु-केतु को छाया ग्रह माना जाता है परंतु फिर भी यह दोनों ग्रह व्यक्ति की जीवन दिशा बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। राहु की महादशा में गरीब भी किसी राजा के समान सुख प्राप्त करने लगता है और राहु विपरित होने पर रातोरात एक राजा भी रोड पर आ जाता है। यदि आपकी कुंडली में राहु अशुभ है और इसकी वजह से आपके सारे काम बिगड़ जाते हैं तो यह उपाय करें:
- प्रति सोमवार भगवान शिव का जलाभिषेक या रुद्राभिषेक अवश्य करें।- लोहे के बर्तन में खाना खाएं।- गरीबों को कंबल, खाना, अनाज आदि उनके जरूरत की वस्तुएं दान करें।- राहु से संबंधी वस्तुएं दान में स्वीकार ना करें।- सोमवार या शनिवार का उपवास रखें।- शिवलिंग की नित्य नियम से पूजा करें, बिल्व पत्र, धतुरा आदि शिव को प्रिय वस्तुएं अर्पित करें।- राहु को काला रंग अतिप्रिय है, काले रंग से वह और अधिक सक्रीय हो जाता है। अत: अपने आसपास से काले रंग को पूर्णतया दूर कर दें।- मछलियों को आटे की छोटी-छोटी गोलियां बनाकर खिलाएं।- अपने विश्वासपात्र ज्योतिषी से परामर्श लें।
- यदि मानसिक स्थिति अच्छी नहीं है मानसिक भय हमेशा महसूस होता हो।- सांप, बिच्छु आदि जहरीले जानवर बार-बार काटते हों या इनके कारण कई बार खतरे में पड़ चुके हों।- बिना किसी बीमारी के हाथों के नाखून खराब हो जाएं या झड़ जाएं।- अचानक ऐसा लगे कि खराब समय आ गया है और एक के बाद एक कई सारी परेशानियां आपके सामने आ जाएं। जातक का भूरे रंग का कुत्ता खो जाए या मर जाए।- ऊंचाई वाले स्थान से आपको डर लगता हो या आप ऊंचे स्थान से एक दो बार गिर चुके हों।- बुखार अधिक होता हो और लम्बे समय तक चलता हो।-विवाह के पश्चात ससुराल में धनहानि हो या ससुराल से कोई आर्थिक लाभ नहीं हो।- हाथ पैरों में अक्सर सुजन रहती हो।
जन्म कुंडली राहु-केतु को छाया ग्रह माना जाता है परंतु फिर भी यह दोनों ग्रह व्यक्ति की जीवन दिशा बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। राहु की महादशा में गरीब भी किसी राजा के समान सुख प्राप्त करने लगता है और राहु विपरित होने पर रातोरात एक राजा भी रोड पर आ जाता है। यदि आपकी कुंडली में राहु अशुभ है और इसकी वजह से आपके सारे काम बिगड़ जाते हैं तो यह उपाय करें:
- प्रति सोमवार भगवान शिव का जलाभिषेक या रुद्राभिषेक अवश्य करें।- लोहे के बर्तन में खाना खाएं।- गरीबों को कंबल, खाना, अनाज आदि उनके जरूरत की वस्तुएं दान करें।- राहु से संबंधी वस्तुएं दान में स्वीकार ना करें।- सोमवार या शनिवार का उपवास रखें।- शिवलिंग की नित्य नियम से पूजा करें, बिल्व पत्र, धतुरा आदि शिव को प्रिय वस्तुएं अर्पित करें।- राहु को काला रंग अतिप्रिय है, काले रंग से वह और अधिक सक्रीय हो जाता है। अत: अपने आसपास से काले रंग को पूर्णतया दूर कर दें।- मछलियों को आटे की छोटी-छोटी गोलियां बनाकर खिलाएं।- अपने विश्वासपात्र ज्योतिषी से परामर्श लें।
Wednesday, December 15, 2010
शिव के पांचवे अवतार भैरव
भगवान शिव के पांचवे अवतार भैरव माने गए हैं। शिव पुराण के अनुसार अष्टमी तिथि को भगवान शिव ने भैरव रुप में अवतार लिया। भैरव चरित्र पराक्रम और साहस का प्रतीक है। धार्मिक मान्यताओं में भैरव को काशी का कोतवाल यानि रक्षा करने वाले देवता कहा गया है। इस तरह भैरव की उपासना से जीवन में शत्रु, चिंता, कष्ट, परेशानियों से जुड़े हर भय का दमन हो जाता है। इसके साथ ही भैरव पूजा धन, संतान और निरोगी शरीर देकर व्यक्ति और कुटुंब को खुशहाल और कलह मुक्त करती है। यही कारण है कि लोक जीवन में भैरव अनेक रुप और नामों से पूजनीय है।
भगवान शिव तंत्र के देवता है। उनका ही अवतार होने से भैरव की भी तंत्र साधना बहुत असरदार मानी गई है। वहीं ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक भैरव साधना से मंगल दोष से होने वाली खून की बीमारियों या घटनाओं से रक्षा होती है।
यही कारण है कि मंगलवार और अष्टमी तिथि के शुभ योग में भैरव पूजा अति शुभ फल देने वाली मानी गई है। गृहस्थ जीवन के लिए रुद्रावतार भैरव के सात्विक रूप की उपासना का महत्व बताया गया है। इसलिए इस दिन भैरव की सामान्य पूजा के साथ नीचे लिखे भैरव मंत्र को भय और कष्ट दूर करने लिए अकाट्य मंत्र माना गया है -
- मंगलवार या अष्टमी के दिन दोपहर या शाम को पवित्र होकर भैरव की प्रतिमा की सामान्य पंचोपचार पूजा करें। जिसमें सिंदूर, कुंकूम, अक्षत, लाल फूल, गुड़-चने का भोग लगाकर पूजा करें। - पूजा के बाद भैरव गायत्री के प्रभावी मंत्र का जप करें। कम से कम एक माला कुश या ऊन के आसन पर बैठकर करें। मंत्र है -
ऊँ शिवगणाय विद्महे।
गौरीसुताय धीमहि।
तन्नो भैरव प्रचोदयात।
- यह मंत्र भी संभव न हो तो मन ही मन ऊँ भैरवाय नम: मंत्र का जप मंगलवार और अष्टमी पर भय व विघ्रनाशक माना जाता है।- जप के बाद गुग्गल धूप और घी का दीप जलाकर भैरव आरती करें।
भगवान शिव तंत्र के देवता है। उनका ही अवतार होने से भैरव की भी तंत्र साधना बहुत असरदार मानी गई है। वहीं ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक भैरव साधना से मंगल दोष से होने वाली खून की बीमारियों या घटनाओं से रक्षा होती है।
यही कारण है कि मंगलवार और अष्टमी तिथि के शुभ योग में भैरव पूजा अति शुभ फल देने वाली मानी गई है। गृहस्थ जीवन के लिए रुद्रावतार भैरव के सात्विक रूप की उपासना का महत्व बताया गया है। इसलिए इस दिन भैरव की सामान्य पूजा के साथ नीचे लिखे भैरव मंत्र को भय और कष्ट दूर करने लिए अकाट्य मंत्र माना गया है -
- मंगलवार या अष्टमी के दिन दोपहर या शाम को पवित्र होकर भैरव की प्रतिमा की सामान्य पंचोपचार पूजा करें। जिसमें सिंदूर, कुंकूम, अक्षत, लाल फूल, गुड़-चने का भोग लगाकर पूजा करें। - पूजा के बाद भैरव गायत्री के प्रभावी मंत्र का जप करें। कम से कम एक माला कुश या ऊन के आसन पर बैठकर करें। मंत्र है -
ऊँ शिवगणाय विद्महे।
गौरीसुताय धीमहि।
तन्नो भैरव प्रचोदयात।
- यह मंत्र भी संभव न हो तो मन ही मन ऊँ भैरवाय नम: मंत्र का जप मंगलवार और अष्टमी पर भय व विघ्रनाशक माना जाता है।- जप के बाद गुग्गल धूप और घी का दीप जलाकर भैरव आरती करें।
Saturday, December 11, 2010
शुक्र देव को प्रसन्न करें
ज्योतिष में शुक्र को स्त्री ग्रह माना गया है। शुक्र ग्रह से प्रभावित व्यक्ति सौम्य एवं अत्यंत सुंदर होते है। यदि किसी की कुंडली में शुक्र शुभ प्रभाव देता है तो वह जातक आकर्षक, सुंदर और मनमोहक होता है। शुक्र के विशेष प्रभाव से वह जीवनभर सुखी रहता है।
शुक्र को पति-पत्नि, प्रेम संबंध, ऐश्वर्य, आनंद आदि का भी कारक ग्रह माना गया है। यदि आपकी कुंडली में शुक्र की स्थिति अच्छी है तो आपका पूरा जीवन भोग,आनंद और ऐश्वर्य के साथ बितता है। साथ ही दाम्पत्य जीवन सुख और प्रेम से भर जाता है।
शुक्र अपने प्रभाव से व्यक्ति को मकान और वाहन आदि का भी सुख देता है। यदि आप चाहते है कि आपका भी दाम्पत्य जीवन प्रेम, आंनद और सुख से बीते तो, शुक्र के शुभफल देने वाले उपाय करें...
शुक्र देव को प्रसन्न करने के उपाय-
- काली चींटियों को चीनी खिलानी चाहिए।- शुक्रवार के दिन सफेद गाय को आटा खिलाना चाहिए।- किसी काने व्यक्ति को सफेद वस्त्र एवं सफेद मिष्ठान्न का दान करना चाहिए।- 10 वर्ष से कम आयु की कन्या को भोजन कराए और चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लें।- अपने घर में सफेद पत्थर लगवाना चाहिए।- किसी कन्या के विवाह में कन्यादान का अवसर मिले तो अवश्य स्वीकारना चाहिए।- शुक्रवार के दिन गाय के दुध से स्नान करना चाहिए।- किसी मन्दिर में गाय का घी दान दें।- जरूरतमंद व्यक्ति को भोजन कराएं।
शुक्र के शुभ प्रभाव के लिए किए जा रहे उपाय शुक्रवार के दिन करे तो ज्यादा प्रभावशाली होते है या जिस दिन शुक्र का कोई नक्षत्र (भरणी, पूर्वा-फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा) आ रहा हो उस दिन करें।
शुक्र को पति-पत्नि, प्रेम संबंध, ऐश्वर्य, आनंद आदि का भी कारक ग्रह माना गया है। यदि आपकी कुंडली में शुक्र की स्थिति अच्छी है तो आपका पूरा जीवन भोग,आनंद और ऐश्वर्य के साथ बितता है। साथ ही दाम्पत्य जीवन सुख और प्रेम से भर जाता है।
शुक्र अपने प्रभाव से व्यक्ति को मकान और वाहन आदि का भी सुख देता है। यदि आप चाहते है कि आपका भी दाम्पत्य जीवन प्रेम, आंनद और सुख से बीते तो, शुक्र के शुभफल देने वाले उपाय करें...
शुक्र देव को प्रसन्न करने के उपाय-
- काली चींटियों को चीनी खिलानी चाहिए।- शुक्रवार के दिन सफेद गाय को आटा खिलाना चाहिए।- किसी काने व्यक्ति को सफेद वस्त्र एवं सफेद मिष्ठान्न का दान करना चाहिए।- 10 वर्ष से कम आयु की कन्या को भोजन कराए और चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लें।- अपने घर में सफेद पत्थर लगवाना चाहिए।- किसी कन्या के विवाह में कन्यादान का अवसर मिले तो अवश्य स्वीकारना चाहिए।- शुक्रवार के दिन गाय के दुध से स्नान करना चाहिए।- किसी मन्दिर में गाय का घी दान दें।- जरूरतमंद व्यक्ति को भोजन कराएं।
शुक्र के शुभ प्रभाव के लिए किए जा रहे उपाय शुक्रवार के दिन करे तो ज्यादा प्रभावशाली होते है या जिस दिन शुक्र का कोई नक्षत्र (भरणी, पूर्वा-फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा) आ रहा हो उस दिन करें।
Saturday, December 4, 2010
किस ग्रह के लिए कौन सी जड़?
- यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य अशुभ प्रभाव दे रहा हो और सूर्य के लिए माणिक रत्न एफोर्ड नहीं कर सकते हैं तो, विकल्प के रूप में सूर्य को बल देने के लिए बेलपत्र की जड़ लाल या गुलाबी धागे में रविवार को धारण करें।
- चंद्र के शुभ प्रभाव के लिए सोमवार को सफेद वस्त्र में खिरनी की जड़ सफेद धागे के साथ धारण करें।
- मंगल को बलवान बनाने के लिए अनंत मूल या खेर की जड़ को लाल वस्त्र के साथ लाल धागे में मंगलवार को धारण करें।
- बुधवार के दिन हरे वस्त्र के साथ विधारा (आंधीझाड़ा) की जड़ को हरे धागे में पहनने से बुध देव प्रसन्न होते है।
- गुरु को बल देने के लिए केले की जड़ गुरुवार को पीले धागे में धारण करें।
- गुलर की जड़ को सफेद वस्त्र में लपेट कर शुक्रवार को सफेद धागे के साथ गले में धारण करने से शुक्र देव प्रसन्न होते हैं।
-शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शमी पेड़ की जड़ को शनिवार के दिन नीले वस्त्र में धारण करना चाहिए।
-राहु को बल देने के लिए सफेद चंदन का टुकड़ा नीले धागे में बुधवार के दिन धारण करें।
- केतु के शुभ प्रभाव के लिए अश्वगंधा की जड़ नीले धागे में गुरुवार के दिन धारण करें।
- चंद्र के शुभ प्रभाव के लिए सोमवार को सफेद वस्त्र में खिरनी की जड़ सफेद धागे के साथ धारण करें।
- मंगल को बलवान बनाने के लिए अनंत मूल या खेर की जड़ को लाल वस्त्र के साथ लाल धागे में मंगलवार को धारण करें।
- बुधवार के दिन हरे वस्त्र के साथ विधारा (आंधीझाड़ा) की जड़ को हरे धागे में पहनने से बुध देव प्रसन्न होते है।
- गुरु को बल देने के लिए केले की जड़ गुरुवार को पीले धागे में धारण करें।
- गुलर की जड़ को सफेद वस्त्र में लपेट कर शुक्रवार को सफेद धागे के साथ गले में धारण करने से शुक्र देव प्रसन्न होते हैं।
-शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शमी पेड़ की जड़ को शनिवार के दिन नीले वस्त्र में धारण करना चाहिए।
-राहु को बल देने के लिए सफेद चंदन का टुकड़ा नीले धागे में बुधवार के दिन धारण करें।
- केतु के शुभ प्रभाव के लिए अश्वगंधा की जड़ नीले धागे में गुरुवार के दिन धारण करें।
Thursday, December 2, 2010
पुत्र प्राप्ति की कामना
रामचरित मानस का पाठ भगवान श्रीराम के साथ-साथ अनेक देव शक्तियों की उपासना और साधना है। इसलिए इसकी हर चौपाई बहुत ही शुभ और मंगलकारी मानी गई है। धार्मिक महत्व की दृष्टि से मानस की इन चौपाईयों के स्मरण और पाठ से ही अनेक व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और समस्त सांसारिक सुखों और कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। सांसारिक सुखों की बात करें तो संतान सुख अहम माना जाता है। खासतौर पर पुत्र प्राप्ति हर दंपत्ति की कामना होती है। रामचरित मानस में विशेष कामनापूर्ति के लिए भी अलग-अलग चौपाईयों के जप का महत्व है। इसी कड़ी में पुत्र प्राप्ति की कामना से इस चौपाई का यथाविधि पाठ बहुत ही प्रभावी माना गया है। जानते हैं यह चौपाई और इसके पाठ की आसान विधि -
चौपाई -
प्रेम मगन कौसल्या निसि दिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बाल चरित कर गान॥- इस चौपाई का जप करने के लिए भगवान राम और माता सीता की मूर्ति या राम दरबार की तस्वीर सामनें रखें। - मूर्ति या तस्वीर पर गंध, अक्षत, सुगंधित फूल चढाएं। - मन ही मन पुत्र प्राप्ति की कामना का संकल्प करें। - घी का दीप और धूप या अगरबत्ती जलाकर तुलसी की माला से 108 बार इस चौपाई का जप करें। - जप के बाद फल या मिठाई का भोग लगाएं। श्रीराम की आरती श्रद्धा और विश्वास के साथ करें। - धार्मिक मान्यता है कि इस चौपाई का जप अन्य धार्मिक उपायों या मंत्र की तरह ही प्रभावी होकर मनोरथ पूर्ति करता है।- समय होने पर रामचरित मानस का पाठ भी मनोकामना पूर्ति के लिए श्रेष्ठ होता है।
चौपाई -
प्रेम मगन कौसल्या निसि दिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बाल चरित कर गान॥- इस चौपाई का जप करने के लिए भगवान राम और माता सीता की मूर्ति या राम दरबार की तस्वीर सामनें रखें। - मूर्ति या तस्वीर पर गंध, अक्षत, सुगंधित फूल चढाएं। - मन ही मन पुत्र प्राप्ति की कामना का संकल्प करें। - घी का दीप और धूप या अगरबत्ती जलाकर तुलसी की माला से 108 बार इस चौपाई का जप करें। - जप के बाद फल या मिठाई का भोग लगाएं। श्रीराम की आरती श्रद्धा और विश्वास के साथ करें। - धार्मिक मान्यता है कि इस चौपाई का जप अन्य धार्मिक उपायों या मंत्र की तरह ही प्रभावी होकर मनोरथ पूर्ति करता है।- समय होने पर रामचरित मानस का पाठ भी मनोकामना पूर्ति के लिए श्रेष्ठ होता है।
Subscribe to:
Posts (Atom)