भगवान शिव के पांचवे अवतार भैरव माने गए हैं। शिव पुराण के अनुसार अष्टमी तिथि को भगवान शिव ने भैरव रुप में अवतार लिया। भैरव चरित्र पराक्रम और साहस का प्रतीक है। धार्मिक मान्यताओं में भैरव को काशी का कोतवाल यानि रक्षा करने वाले देवता कहा गया है। इस तरह भैरव की उपासना से जीवन में शत्रु, चिंता, कष्ट, परेशानियों से जुड़े हर भय का दमन हो जाता है। इसके साथ ही भैरव पूजा धन, संतान और निरोगी शरीर देकर व्यक्ति और कुटुंब को खुशहाल और कलह मुक्त करती है। यही कारण है कि लोक जीवन में भैरव अनेक रुप और नामों से पूजनीय है।
भगवान शिव तंत्र के देवता है। उनका ही अवतार होने से भैरव की भी तंत्र साधना बहुत असरदार मानी गई है। वहीं ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक भैरव साधना से मंगल दोष से होने वाली खून की बीमारियों या घटनाओं से रक्षा होती है।
यही कारण है कि मंगलवार और अष्टमी तिथि के शुभ योग में भैरव पूजा अति शुभ फल देने वाली मानी गई है। गृहस्थ जीवन के लिए रुद्रावतार भैरव के सात्विक रूप की उपासना का महत्व बताया गया है। इसलिए इस दिन भैरव की सामान्य पूजा के साथ नीचे लिखे भैरव मंत्र को भय और कष्ट दूर करने लिए अकाट्य मंत्र माना गया है -
- मंगलवार या अष्टमी के दिन दोपहर या शाम को पवित्र होकर भैरव की प्रतिमा की सामान्य पंचोपचार पूजा करें। जिसमें सिंदूर, कुंकूम, अक्षत, लाल फूल, गुड़-चने का भोग लगाकर पूजा करें। - पूजा के बाद भैरव गायत्री के प्रभावी मंत्र का जप करें। कम से कम एक माला कुश या ऊन के आसन पर बैठकर करें। मंत्र है -
ऊँ शिवगणाय विद्महे।
गौरीसुताय धीमहि।
तन्नो भैरव प्रचोदयात।
- यह मंत्र भी संभव न हो तो मन ही मन ऊँ भैरवाय नम: मंत्र का जप मंगलवार और अष्टमी पर भय व विघ्रनाशक माना जाता है।- जप के बाद गुग्गल धूप और घी का दीप जलाकर भैरव आरती करें।
Wednesday, December 15, 2010
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