कुंडली में चार स्थान- प्रथम, चतुर्थ, सप्तम एवं दशम भाव केंद्र होते हैं जो तन, सुख, दांपत्य एवं कर्म के कारक होते हैं।
केंद्र में शुभ ग्रह हो तो जातक लक्ष्मीपति होता है। वहीं केंद्र में उच्च के पाप ग्रह बैठे हो तो जातक राजा तो होता ही है पर वह धन से हीन होता है।सूर्य यदि उच्च को हो तथा गुरु केंद्र में चतुर्थ स्थान पर बैठा हो तो जातक आधुनिक केंद्र या राज्य में मंत्री पद को प्राप्त करता है। सूर्य के केंद्र में होने से जातक राजा का सेवक, चंद्रमा केंद्र में हो तो व्यापारी, मंगल केंद्र में हो तो व्यक्ति सेना में कार्य करता है।बुध के केंद्र में होने से अध्यापक तथा गुरु के केंद्र में होने से विज्ञानी, शुक्र के केंद्र में होने पर धनवान तथा विद्यावान होता है। शनि के केंद्र में होने से नीच जनों की सेवा करने वाला होता है।यदि केंद्र में कोई भी ग्रह नहीं हो तो जातक समस्या ग्रस्त परेशान रहता है। कोई भी ग्रह केंद्र में न हो तथा आप, ऋण, रोग, दरिद्रता से परेशान हो तो निम्न उपाय करें।
- शिवजी की उपासना करें- सोमवार का व्रत करें।- भगवान शिव पर चांदी का नाग अर्पण करें।- बिल्व पत्रों से 108 आहूतियां दें। घी, कच्चा, दूध, शहद, मिश्री का हवन करें।
Monday, November 8, 2010
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