Saturday, April 23, 2011

महालक्ष्मी को मनाने अक्षय तृतीया पर उपाय

नौकरी के लिए भी प्रतिस्पर्धा में काफी बढ़ोतरी हुई है। अधिकांश लोगों को या तो जॉब नहीं मिल पाती या योग्यता के अनुसार अच्छी नौकरी के लिए संघर्ष करना पड़ता है। अपनी इच्छानुसार जॉब नहीं मिल पा रही है तो निम्न उपाय करें।कई बार कुंडली में ग्रह दोष होने की वजह से अच्छी जॉब नहीं मिल पाती। यदि कुंडली में कोई ग्रह बाधा हो तो योग्य व्यक्तियों को भी सही नौकरी नहीं मिल पाती है। ऐसे में ज्योतिष के अनुसार संबंधित ग्रह का उचित उपचार या पूजन करना ही श्रेष्ठ रहता है। इसके लिए धन संबंधी कार्यों में महालक्ष्मी की कृपा अवश्य चाहिए।
ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नानादि कार्यों से निवृत्त हो जाएं। अब घर में किसी पवित्र और शांत स्थान में बाजोट पर सफेद वस्त्र बिछाएं और स्वयं पूर्व दिशा की ओर मुख करके कुश के आसन पर बैठ जाएं। सफेद वस्त्र पर चावल की ढेरी बनाएं। इस ढेरी गायत्री यंत्र स्थापित करें। अब सात गोमती चक्र लें, इन्हें हल्दी से रंगकर पीला कर दें। इन्हें भी गायत्री यंत्र के साथ ही रखें। फिर धूप-दीप करके विधिवत पूजन करें और मावे की मिठाई का भोग लगाएं। पूजन के बाद 11 माला मंत्र (ऊँ वर वरदाय सर्व कार्य सिद्धि करि-करि ऊँ नम:) का जप करें। मंत्र जप के लिए कमल के गट्टे की माला का प्रयोग करें। जप समाप्ति के बाद मिठाई का प्रसाद घर के सभी सदस्यों और अन्य लोगों को दें।अब समस्त पूजन सामग्री को सफेद कपड़े में बांधकर किसी तालाब, नदी, कुएं या अन्य पवित्र जल के स्थान पर विसर्जित कर आएं। ध्यान रहें घर लौटते समय पीछे मुड़कर न देखें। घर लौटकर पुन: स्नान करें।इस प्रयोग को करते समय मन में किसी प्रकार की शंका, संदेह लेकर न आएं अन्यथा उपाय निष्फल हो जाएगा। विधिवत पूजन के बाद जल्दी आपको अच्छी नौकरी मिलने की संभावनाएं बनने लगेंगी। ध्यान रहे इस दौरान किसी भी प्रकार के अधार्मिक कर्मों से खुद दूर ही रखें।
संसार में उन्नति करने के लिए जिन बातों की जरूरत होती है उनमें से एक है आत्मबल। यदि मानसिक अस्थिरता है तो यह बल बिखर जाता है। इस कारण भीतरी व्यक्तित्व में एक कंपन सा आ जाता है। भीतर से कांपता हुआ मनुष्य बाहरी सफलता को फिर पचा नहीं पाता, या तो वह अहंकार में डूब जाता है या अवसाद में, दोनों ही स्थितियों में हाथ में अशांति ही लगती है यह आत्मबल जिस ऊर्जा से बनता है वह ऊर्जा हमारे भीतर सही दिशा में बहना चाहिए। हमारे भीतर यह ऊर्जा या कहें शक्ति दो तरीके से बहती है। पहला विचारों के माध्यम से, दूसरा ध्यान यानी अटेंशन के जरिए।हम भीतर जिस दिशा में या विषय पर सोचेंगे यह ऊर्जा उधर बहने लगेगी और उसको बलशाली बना देगी। इसीलिए ध्यान रखें जब क्रोध आए तो सबसे पहला काम करें उस पर सोचना छोड़ दें। क्योंकि जैसे ही हम क्रोध पर सोचते हैं ऊर्जा उस ओर बहकर उसे और बलशाली बना देती है। गलत दिशा में ध्यान देने से ऊर्जा वहीं चली जाएगी। इसे सही दिशा में करना हो तो प्रेम जाग्रत करें। इस ऊर्जा को जितना भीतरी प्रेमपूर्ण स्थितियों पर बहाएंगे वही उसकी सही दिशा होगी। फिर यह ऊर्जा सृजन करेगी, विध्वंस नहीं। माता-पिता जब बच्चे को मारते हैं तब यहां क्रोध और हिंसा दोनों काम कर रहे हैं। बाहरी क्रिया में क्रोध-हिंसा है, परन्तु भीतर की ऊर्जा प्रेम की दिशा में बह रही होती है। माता-पिता यह क्रोध अपनी संतान के सृजन, उसे अच्छा बनाने के लिए कर रहे होते हैं। किसी दूसरे बच्चे को गलत करता देख वैसा क्रोध नहीं आता, क्योंकि भीतर जुड़ाव प्रेम का नहीं होता है। इसलिए ऊर्जा के बहाव को भीतर से चैक करते रहें उसकी दिशा सदैव सही रखें, तो बाहरी क्रिया जो भी हो भीतर की शांति भंग नहीं होगी।

1 comment:

  1. शुभागमन...!
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    बेहतर स्वास्थ्य की संजीवनी- त्रिफला चूर्ण

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