Saturday, November 27, 2010

पंचक में कुछ कार्यों को करना अशुभ

जब चन्द्रमा कुंभ और मीन राशि पर रहता हैं, तब उस समय को पंचक कहते है। यानि घनिष्ठा से रेवती तक जो पांच नक्षत्र (धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उतरा भाद्रपद एवं रेवती) होते है उन्हे पंचक कहा जाता है। कुछ विद्वानों ने इन नक्षत्रों को अशुभ माना है। इन नक्षत्रों के स्वभाव के अनुसार कोई भी किया हुआ कार्य पांच बार होता है। इसलिए पंचक में कुछ कार्यों को करना अशुभ माना गया है।
नक्षत्रों का प्रभाव-
धनिष्ठा नक्षत्र में अग्नि का भय रहता है।
शतभिषा नक्षत्र में कलह होने के योग बनते है।
पूर्वाभाद्रपद रोग कारक नक्षत्र होता है।
उतराभाद्रपद में धन के रूप में दण्ड होता है।
रेवती नक्षत्र में धन हानि की संभावना होती है।
पंचक में न करने वाले पांच कार्य-
1-घनिष्ठा नक्षत्र में घास लकड़ी आदि ईंधन इकट्ठा नही करना चाहिए इससे अग्रि का भय रहता है।
2- दक्षिण दिशा में यात्रा नही करनी चाहिए क्योंकि दक्षिण दिशा, यम की दिशा मानी गई है इन नक्षत्रों में दक्षिण दिशा की यात्रा करना हानि कारक माना गया है।
3- रेवती नक्षत्र में घर की छत डालना धन हानि और क्लेश कराने वाला होता है।
4- चारपाई नही बनवाना चाहिए।
5- पंचक में शव का अन्तिम संस्कार नही करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि पंचक में शव का अन्तिम संस्कार करने से उस कुंटुंब में पांच मृत्यु और हो जाती है।
यदि परिस्थितीवश किसी व्यक्ति की मृत्यु पंचक अवधि में हो जाती है तो शव के साथ पांच अन्य पुतले आटे या कुशा से बनाकर अर्थी पर रखें और इन पांचों का भी शव की तरह पूर्ण विधि-विधान से अन्तिम संस्कार करें तो परिवार में बाद में और म़त्यु नही होती एवं पंचक दोष समाप्त हो जाता है।

कौन सा पार्टनर बिजनेस में सफलता दिलाएगा

यदि आप अपने व्यापार में कोई साझेदार रखने का मन बना रहे है तो जान लें किस लग्र या राशि का साझेदार आपको बिजनेस में सफलता दिलाएगा और किस लग्र के साझेदार से आपके बिजनेस में हानि हो सकती है?
कुंडली में स्थित लग्र यानि पहले भाव से जानें-यदि आप जिससे मित्रता का हाथ मिलाने जा रहे हैं अगर उसके लग्न में स्थित राशि आपके लग्न में स्थित राशि से दूसरी हो तो, इस स्थिति में आपको लाभ होगा लेकिन आपके साझेदार को नुकसान होगा, यानी इस रिश्ते में परस्पर मित्रता वाली बात नहीं रहेगी।
साझेदार की कुंडली मे आपकी राशि से तीसरी राशि स्थित है तो वह व्यक्ति बुरे वक्त में काम नहीं आता है यानी जब आप पर कठिन समय आएगा तो वह मदद के लिए आगे नहीं आएगा।
जिस लग्न में आपका जन्म हुआ है उस लग्न से चौथी राशि वाले से आप साझेदारी करते हैं तो सुख के समय दोनों के बीच अच्छा प्यार रहेगा लेकिन जब दु:ख का समय आएगा तो साझेदार मुंह फेर लेगा।
आपकी लग्न राशि से पांचवी राशि के लग्र वालों के बीच होने वाली साझेदारी उत्तम मानी गई है।
आपकी लग्र राशि से छठी राशि वालों से की गई साझेदारी अच्छी नहीं होती है, इस साझेदारी से व्यापार में जरूर हानि होती है।
आपका साझेदार आपकी लग्न राशि से सातवीं राशि का है तो यह दोनों के लिए शुभ है। इस स्थिति में दोनों के अच्छे सम्बन्ध रहते है। साझेदार के भाग्य से आपकी उन्नति होगी।
स्वयं की लग्र राशि से अष्टम राशि वालों की साझेदारी भी दोषपूर्ण मानी गई है।
नौवीं राशि वालों से मित्रगत सम्बन्ध लाभदायक होते है। आपको अपने साथी से सुख एवं अनुकूल सहयोग मिलता है।
दसवीं राशि वाले साथी बहुत अधिक मधुर संबंध नहीं रखते है। आप इनसे जैसा व्यवहार करेंगे यह आपसे उसी प्रकार प्रस्तुत होंगे।
आपके लग्र से एकादश राशि वाला व्यक्ति साझोदारी के लिए बहुत ही अच्छा होता इससे दोनो मित्रों को लाभ मिलता है।
जबकि लग्र से बारहवीं राशि वालों के बीच मित्रता, साझेदारी एवं सम्बन्ध रखना परेशानी और कष्टदायक होता है।

Friday, November 26, 2010

दुश्मन चाहते हुए भी आपका विरोध ना कर पाए

कभी सुख तो कभी दुख, कभी फायदा तो कभी नुकसान। जिंदगी एक जैसी कभी नहीं रहती। परिवर्तन जिंदगी का नियम है। उतार-चढ़ाव जिंदगी में आते जाते रहते हैं। कई बार हमें बिना किसी कारण के ही नुकसान और अपमान का सामना करना पड़ता है कई बार ना चाहते हुए भी कई लोग अनजाने में या किसी गलतफहमी के कारण भी हमारे दुश्मन बन जाते हैं। किसी भी दुश्मन से निपटने के लिए लड़ाई- झगड़ा करने से अच्छा है कि आपका दुश्मन चाहते हुए भी आपका विरोध ना कर पाए इसके लिए बगलामुखी साधना सबसे सरल उपाय है। इस दुर्लभ बगलामुखी साधना की संक्षिप्त विधि इस प्रकार है।आधी रात के समय दक्षिणाभिमुख होकर बैठें। साधना प्रारंभ करने से पूर्व गणपति, इष्ट देवता और गुरु को नमन स्मरण कर प्रार्थना करें। साधक पद्मासन में बैठकर मां बगलामुखी के समक्ष वस्त्र, गंध, फल, तांबूल, धूप, दीप, नैवेध समर्पित करें। इसके बाद नीचे दिए मंत्र का पूर्ण विधि-विधान से 11 माला जप करें। मंत्र:
ओम् ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानाम वाचं, मुखं करं पदं स्तंभेय जिव्हाम कीलय कीलय बुद्धिय नाशय ह्रीं ओम्।

पूर्ण नियम कायदों और शास्त्रीय तरीके से करने पर यह साधना जरूर सफल होती है।

गाड़ी नंबर और रंग

यदि आप अपनी गाड़ी का नंबर और रंग, अंक ज्योतिष के अनुसार रखें तो भविष्य में होने वाली दुर्घटनाएं टल जाती है। जानिए अंक ज्यातिष के अनुसार कैसा होना चाहिए आपका गाड़ी नंबर और रंग..
अंक- 1 आपको अपने वाहन के नंबर का कुल योग 1, 2, 4 या 7 रखना चाहिये। पीले, सुनहरे, अथवा हल्के रंग के वाहन खरीदना चाहिए। आप 6 या 8 नंबर वाला वाहन न रखें साथ ही नीले, भूरे, बैंगनी या काले रंग के वाहन न खरीदें।
अंक- 2 आपके लिए वो वाहन अनुकूल है जिनका कुल योग 1, 2, 4 या 7 हो। 9 नंबर वाले वाहन ना रखें। आप सफेद अथवा हल्के रंग का वाहन खरीदें। लाल अथवा गुलाबी रंग की वाहन न लें।
अंक-3 आपकी गाड़ी नंबर का कुल योग 3,6, या 9 होना चाहिये। 5 या 8 नंबर वाला वाहन आपके लिए अच्छा नही रहेगा। पीले, बैंगनी, या गुलाबी रंग का वाहन खरीदें। हल्के हरे, सफेद ,भुरे रंग के वाहनों से बचें।
अंक-4 इस अंक वालों की गाड़ी नंबर का कुल योग 1, 2, 4 या 7 होना चाहिये। इनको 9, 6 या 8 नंबर वाले वाहन से हानि हो सकती है। नीले या भूरे रंग के वाहन खरीदें और गुलाबी या काले रंग की वाहन न खरीदें।
अंक-5 अगर आपका मूलांक 5 है तो आपको गाड़ी नंबर का कुल योग 5 रखना चाहिये। 3, 9 या 8 नंबर वाला वाहन ना रखें। हल्के हरे, सफेद अथवा भुरे रंग का वाहन खरीदें। पीले, गुलाबी या काले रंग की वाहन से हानि हो सकती है।
अंक-6 मूलांक 6 वालों को गाड़ी नंबर का कुल योग 3, 6, या 9 रखना चाहिये। 4 या 8 नंबर से बचें। आपको हल्के नीले, गुलाबी, अथवा पीले रंग का वाहन खरीदना चाहिए। काले रंग का वाहन क्रय करने से बचें।
अंक -7 आपकी गाड़ी नंबर का कुल योग 1, 2, 4 या 7 होना चाहिए। 9 या 8 नंबर वाला वाहन नही होना चाहिए। नीले, या सफेद रंग का वाहन खरीदें।
अंक-8 इस अंक वालों को अपना गाड़ी नंबर का कुल योग 8 रखना चाहिये। 1 या 4 नंबर वाला वाहन ना रखें तो बेहतर होगा. आपका अंक शनि का अंक है। इसलिए आप काले, नीले, अथवा बैगनी रंग के वाहन खरीदें।
अंक-9 मूलांक 9 वाले लोग आपनी गाड़ी नंबर का कुल योग 9, 3, या 6 रखे तो उन्हे अच्छा लाभ मिलता है। 5 या 7 नंबर वाले वाहन से नुकसान हो सकता है। बेहतर होगा आप लाल, या गुलाबी रंग का वाहन खरीदें।
यदि आपने कोई नया वाहन खरीदा हैं और आपके मन में हमेशा यही डर बना रहता है कि आपके या आपके परिवार के किसी भी सदस्य की थोड़ी सी भी लापरवाही से कहीं आपकी नए वाहन का एक्सीडेंट न हो जाए। कई बार हमारे साथ ऐसा होता है कि नए वाहन खरीदने के कुछ दिनों के भीतर ही कोई एक्सीडेंट हो जाता है। वाहन में खराबी आ जाती है। आपको भी चोट लगती है। आपकी अशुभ ग्रहों की दशा या अंतरदशा चल रही हैं या अनजाने में आपने अशुभ मुहूर्त में वाहन खरीद लिया हैं, तो घबराए नहीं नीचे लिखे उपाय को अपनाकर आप किसी भी तरह की वाहन दुर्घटना को टाल सकते हैं।- शनिवार को काले रंग की एक पोटली में काले तिल, सुपारी और सिन्दूर रखकर उसे अपने वाहन पर आगे की ओर बांध दें। इस उपाय को अपनाकर आप अपने वाहन को किसी भी तरह की दुर्घटना से बचा सकते हैं।

Thursday, November 25, 2010

संतान गोद लेने के सही मुहूर्त

विवाह के बाद हर पति-पत्नी को संतान प्राप्त करने की इच्छा होती है। वैसे तो अधिकांश लोगों की संतान सुख प्राप्त करने की कामना तो पूर्ण हो जाती है परंतु कुछ कारणों से कई दंपत्ति इस सुख को प्राप्त नहीं कर पाते। ऐसे में वे किसी अन्य के व्यक्ति के या अनाथालय से बच्चे को गोद लेते हैं। गोद लिए बच्चे भी अपने बच्चे की ही तरह माता-पिता का जीवनभर ध्यान रखें इसके लिए जरूरी है कि सही मुहूर्त में अनाथ बच्चे को अपनाया जाए-संतान गोद लेना बहुत ही पुण्य का काम है। इस पुण्य कार्य को शुभ मुहुर्त में करें तो उत्तम फल प्राप्त होता है। यदि आप शुभ मुहुर्त में संतान गोद लेते हैं तो गोद ली हुई संतान से सुख, आदर एवं सम्मान मिलेगा। शुभ मुहूर्त में गोद ली गई संतान जीवनभर आपकी सेवा करती है साथ ही आपकी मृत्यु के बाद के सभी आवश्यक संस्कार करती है।
दिन या वार का विचार- नक्षत्र और तिथि का विचार करने के बाद वार देख लें क्योंकि इस संदर्भ में वार का भी बहुत महत्व है। ज्योतिष सिद्धान्त के अनुसार संतान गोद लेने के लिए रविवार, मंगलवार, गुरुवार एवं शुक्रवार काफी शुभ माने गये हैं।
नक्षत्र- वार का विचार करने के बाद ये देख लें कि इस शुभ कार्य के दिन कौन सा नक्षत्र आ रहा है? संतान को गोद लेने के लिए कुछ नक्षत्रों को शुभ माना गया है। उनमें से 3 नक्षत्र, पुष्य, अनुराधा और पूर्वाफाल्गुनी को बहुत उत्तम माना गया है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ऊपर बताए गए वार को ये नक्षत्र हो उस दिन संतान गोद ले सकते है।तिथि- ज्योतिषशास्त्र के अनुसार संतान गोद लेने के लिए शुभ तिथियों का चयन करना चाहिए। जिस दिन प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी और त्रयोदशी में से कोई तिथि के साथ ऊपर बताए गए वार एवं नक्षत्रों का योग बन रहा हो, उस दिन यह शुभ कार्य करें। शास्त्रों में ये तिथियां कार्य सिद्धि करने वाली, धन देने वाली और शुभ कार्य को करने के लिए बताइ गई हैं।

बालक रोया या नहीं
जन्म लेते ही बालक रोना शुरू कर देता है। अगर वह नही रोया तो घबराने की आवश्यकता नहीं है। राशिगत स्वभाव के कारण भी यह होता है। अपनी राशि के अनुसार ही बालक रोते हंै। मेष, वृषभ, मिथुन, सिंह, मीन यह राशि शब्द वाली है। इन राशियों में जन्म लेने वाला जातक जन्म लेते ही रोना शुरू कर देता है।कन्या तथा कुम्भ यह दोनों राशि अद्र्ध शब्द वाली है। इन राशियों में जन्म लेना वाला बालक थोड़ा रोकर चुप हो जाता है, फिर बड़े जोर से रोता है।कर्क, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर राशियां निशब्द होती है। इनमें जन्म लेने वाला बालक जन्म लेते समय रोते नहीं बहुत देरी के बाद रोता है।चंद्रमा का बल भी इसमे कारक होता है।जिसका ज्यादा चंद्र बली होता है। वह उतना कम रोने वाला होता है।

Tuesday, November 23, 2010

शुक्र और चन्द्र सुन्दरता के प्रतीक

कहते हैं सुन्दरता अपने आप में एक खजाना है। जिसको भगवान ये खजाना देता है वह लोगों को सहज ही अपनी तरफ आकर्षित कर लेता है। इसलिए हर इंसान चाहता है कि वह सुन्दर दिखाई दें लेकिन हर व्यक्ति सुन्दर नहीं दिख सकता है क्योंकि ज्योतिष के अनुसार सुन्दरता जन्मकुंडली में बैठे ग्रहों के अनुसार होती है। शुक्र और चन्द्र दोनों ग्रह ज्योतिष में सुन्दरता के प्रतीक माने जाते हैं। जिसकी जन्मकुंडली में ये ग्रह शुभ स्थिति में बैठे होते हैं उन लोगों का व्यक्तित्व सभी को अपनी तरफ आकर्षित करता है। यदि कोई व्यक्ति शुक्र ग्रह से प्रभावित होता है तो उसके नयन नक्श सुन्दर होते हैं। ऐसे ही यदि किसी की कुंडली में चन्द्र उच्च का हो या शुभ प्रभाव देने वाला हो तो यह ग्रह सुन्दरता के साथ ही कामनीयता भी प्रदान करता है। ये दोनों ग्रह जिनकी कुण्डली में शुभ एवं मजबूत स्थित में हों उन्हें ये दोनों ग्रह रूप, सौन्दर्य एवं कोमलता प्रदान करते हैं।
- यदि कुंडली में शुक्र एवं चन्द्र की युति हो तो सुन्दरता मिलती है लेकिन, इनमें ध्यान देने वाली बात यह होती है कि इन दोनों ग्रहों की युति किस भाव एवं राशि में हो रही है। ग्रहों की दृष्टि तथा अन्य ग्रहों का इनपर प्रभाव भी काफी मायने रखता है।
- चन्द्र ,शुक्र की युति और सौन्दर्य चन्द्र एवं शुक्र की युति किसी भाव में होने पर आमतौर पर यह माना जाता है कि व्यक्ति सुन्दर एवं आकर्षक होगा. परंतु, ज्योतिषशास्त्र के अनुसार चन्द्र शुक्र की युति किस राशि में हो रही है यह सौन्दर्य में विचारणीय होता है।
- शुक्र की राशि में शुक्र चन्द्र की युति वृष एवं तुला शुुक्र की राशि होती है. शुक्र जब अपनी राशि में होता है तो शुक्र की स्थिति मजबूत होती है. शुक्र चमकीला ग्रह है इसके साथ चन्द्र की युति होने से व्यक्ति का रंग गोरा एवं निखरा होता है. इनकी त्वचा दुधिया गोरापन लिये होती है. व्यक्ति बहुत ही आकर्षक होता है.
- चन्द्र कर्क राशि का स्वामी है। चन्द्रमा यदि शुक्र के साथ अपने घर में बैठा हो तो उसी प्रकार का फल देता है जैसे तुला एवं वृष राशि में शुक्र चन्द्र की युति का फल होता है अर्थात व्यक्ति बहुत ही गोरा एवं आकर्षक दिखता है।ये कोमल एवं मासूम नजऱ आते हैं।
- बुध की राशि में शुक्र चन्द्र की युति मिथुन एवं कन्या राशि बुध की राशि होती है। बुध को भी त्वचा का कारक माना जाता है। बुध की राशि में शुक्र एवं चन्द्र की युति होने पर व्यक्ति सुन्दर तथा मोहक होता है।. इनका कद कुछ लम्बा होता है। नयन नक्श सुन्दर होते हैं परंतु कुछ सांवले दिखाई देते हैं।
- धनु एवं मीन राशि का स्वामी गुरू होता है। गुरू की इन राशियों में शुक्र एवं चन्द्र की युति सौन्दर्य की दृष्टि से बहुत ही अच्छी मानी जाती है। इस राशि में इन दोनों ग्रहों की युति होने से व्यक्ति बहुत ही सुन्दर होता है। शुक्र चन्द्र की युति से शारीरिक बनावट आकर्षक होती है। गुरू के प्रभाव के कारण इनका रंग निखरा होता है। इनकी त्वचा में पीली आभा झलकती है जो इनके सौन्दर्य को बहुत ही मोहक बनाती है।
- मंगल की राशि में शुक्र चन्द्र की युति मंगल की राशि में शुक्र चन्द्र की युति होने पर व्यक्ति खूबसूरत होता है। मंगल का प्रभाव भी व्यक्ति पर दिखता है इसलिए इनका रंग गेहुंआ तथा लालिमा लिये होता है।
- शनि की राशि में शुक्र चन्द्र की युति शनि की राशि मकर एवं कुम्भ है इन शुक्र चन्द्र की युति होने पर व्यक्ति लम्बा होता है। इनका रंग सांवला होता है परंतु इनकी त्वचा में चमक होती है।शरीर थोड़ा रूखा एवं कठोर भी प्रतीत होता है लेकिन, शुक्र चन्द्र की युति के कारण ये सांवले सलोने लगते हैं।
- सिंह राशि का स्वामी सूर्य है।सिंह राशि में चन्द्र एवं शुक्र की युति होने पर व्यक्ति लम्बा होता है।मस्तिष्क उन्नत तथा तेज से परिपूर्ण होता है जिससे यह आकर्षक लगते हैं इनका रंग लालिमा लिए होता है।त्वचा की देख-रेख में कमी करने पर ये सांवले दिख सकते हैं।

Saturday, November 20, 2010

जीवन साथी कहां मिलेगा ?

शादी के लिए माता-पिता को लड़की या लड़के की तलाश करते समय काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अगर यह पता हो कि विवाह किस दिशा और कितनी दूर होना है तो वर या वधू की तलाश करना माता-पिता के लिए आसान हो जाता है. सप्तम स्थान यानि सातवें भाव को विवाह, पति-पत्नी और दाम्पत्य जीवन के लिए देखा जाता है।
सप्तम भाव में ग्रह और राशि की स्थिति से जानिए, कहां होगी आपकी शादी?
कहां होगी शादी- अगर सप्तम भाव यानि कुंडली में सातवें स्थान में वृष (2 नंबर लिखा हो तो), कुंभ(11) या फिर वृश्चिक राशि(8) है तो यह समझना चाहिए कि व्यक्ति का जीवनसाथी माता-पिता के घर से लगभग 70-75 किलोमीटर दूर है।
मिथुन(3), कन्या(6), धनु(9) या फिर मीन(12) राशि सप्तम भाव में है तो जीवनसाथी की तलाश के लिए लगभग 125 किलोमीटर तक जाना पड़ सकता है। सप्तम भाव में मेष(1), कर्क (4), तुला(7) या मकर(10) राशि होने पर जीवनसाथी 200 किलोमीटर या उससे और अधिक दूर होता है।

किस दिशा में होगी शादी:-यदि सप्तम भाव में मेष राशि के साथ सूर्य हो तो पूर्व दिशा में शादी होने के योग बनते हैं।- शुक्र यदि तुला राशि के साथ हो तो पश्चिम दिशा में शादी होती है। - मीन राशि उत्तर दिशा में उदय होती है यदि यह राशि अपने स्वामी गुरु के साथ सातवें भाव में हो तो उत्तर दिशा विवाह के लिए उचित रहती है।- सप्तम भाव में कन्या राशि के साथ बुध का होना दक्षिण दिशा में विवाह होने का संकेत देता है।

पढ़ाई में मन नहीं लगता ?

अधिकतर विद्यार्थियों की समस्या है उनका पढ़ाई में मन नहीं लगता। यदि आपके साथ भी यही समस्या हो तो नीचे लिखे टोटकों को जरुर अपनाएं।
-शुक्ल पक्ष के पहले बृहस्पतिवार (गुरुवार) को सूर्यास्त से ठीक आधा घंटा पहले बड़ के पत्ते पर पांच अलग-अलग प्रकार की मिठाइयां तथा दो छोटी इलायची पीपल के वृक्ष के नीचे श्रद्धा भाव से रखें और अच्छी शिक्षा के लिए कामना करें। फिर सीधे अपने घर आ जाएं, पीछे मुड़कर न देखें। इस प्रकार बिना क्रम टूटे यह क्रिया तीन गुरुवार करें। यह उपाय माता-पिता भी अपने बच्चे के लिये कर सकते हैं।
- कमरे में हरे रंग के परदे लगाएं।- नियमित रूप से पढ़ाई से पहले नीचे लिखे मंत्र का जप करें।
मंत्र- ऐं .- रोज सुबह उसे नियमित रूप से नाश्ते के साथ अंकुरित हरे मूंग भी खिलाएं। - सूर्य को नित्य रक्त पुष्प डाल कर अर्ध्य दें।- जब भी परिक्षा देने जाएं तो लाल रंग का रूमाल साथ में लेकर जाएं।- पढ़ाई करने से पहले तुलसी के पांच पत्ते मुंह में लेकर बैठें।

Friday, November 19, 2010

ग्रहों के कारण हो सकता है त्वचा रोग

प्रदूषण के इस दौर में त्वचा रोग सर्वाधिक पाया जाने वाला रोग है। यह रोग शहर में ज्यादा होता है। खासतौर पर युवा पीढ़ी इससे सबसे ज्यादा प्रभावित है। ज्योतिष में इसका कारक ग्रह बुध है तथा कुण्डली का षष्ठ भाव इसमें प्रमुख होता है। इसके अलावा शनि, राहु, मंगल के अशुभ होने पर तथा सूर्य, चंद्र के क्षीण होने पर त्वचा रोग होते हैं।सप्तम स्थान पर केतु भी त्वचा रोग का कारण बन सकता है। बुध यदि बलवान है तो यह रोग पूरा असर नहीं दिखाता, वहीं बुध के कमजोर रहने पर यह कष्टकारी हो सकता है।
लक्षण
- पानी, मवाद से भरी फुंसी व मुंहासे चंद्र के कारण होती है
- मंगल के कारण रक्त विकार वाली फुंसी व मुंहासे होती है।
- राहु के प्रभाव से कड़ी दर्द वाली फुंसी होती है।
उपाय
- षष्ठ स्थान पर स्थित अशुभ ग्रह का उपचार कराएं।
- सूर्य मंत्रों या आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।
- शनिवार को कुत्ते को तेल चुपड़ी रोटी खिलाएं।
- सरस्वती स्तोत्र का पाठ करें।
- पारद शिवलिंग का पूजन करें।

बड़े काम का मोर पंख

मोर पंख को सम्मोहन का प्रतीक माना गया है। घर में मोर पंख रखना प्राचीनकाल से ही बहुत शुभ माना जाता है। वास्तु के अनुसार भी मोर पंख घर से अनेक प्रकार के वास्तुदोष दूर करता है। मोर पंख सकारात्मक उर्जा को अपनी तरफ खीचता है। मोर पंख को वास्तु के अनुसार बहुत उपयोगी माना गया है।
- मोर का एक पंख लेकर उसे दक्षिणामुखी राधा कृष्ण की मूर्ति के मुकुट में लगाएं। मूर्ति में मोर पंख चालीस दिन के लिए स्थापित कर दें और राधा कृष्ण को रोज भोग लगाएं। इकतालिसवे दिन उस मोर पंख को घर लाकर अपनी तिजोरी में रखें।- घर के दक्षिण-पूर्वी कोने में मोर का पंख लगाने से भी घर में बरकत बढ़ती है। - यदि घर की उत्तर- पश्चिमी कोने में रखें तो जहरीले जानवरों का भय नहीं रहता है।- अपनी जेब या डायरी में मोर पंख रखने पर राहु दोष कभी प्रभावित नहीं करता है।- नवजात बालक के सिर की तरफ चांदी की एक डिब्बी में भरकर उसके सिरहाने रखने से नजर नहीं लगती है।इसे पुस्तको में रखना भी बहुत शुभ माना जाता है।

Wednesday, November 17, 2010

पैसा बरसेगा तांत्रिक टोटका

यह तांत्रिक टोटका बहुत प्रभावकारी है। इस टोटके को करने से ना केवल धन की वृद्धि होती है बल्कि हर तरह के सुख प्राप्त होते हैं। यदि आपके घर में धन की आवक तो है पर धन रूकता ना हो यानी बरकत न होती हो तो एक मोती शंख एवं तीन हकीक पत्थर चार गोमती चक्र एवं एक तांबे का सिक्का लाल कपड़े में साथ बांधकर व्यापारिक प्रतिष्ठान में पूजा स्थान पर रख दें। इस क्रिया को करते समय लक्ष्मी का ध्यान करते रहें।नीचे लिखे इस मंत्र का जप करें।
मंत्र-ऊं श्रीं
रोज सुबह इसे अगरबत्ती और धूप दें।एक साल बाद नदी, तालाब, आदि में विसर्जित कर दें।
आज की इस बढ़ती महंगाई के जमाने में क्या आप भी धन की कमी से जूझ रहे हैं। आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया हो गया हैं। आप धन की कमी के कारण परेशान हैं और चाहते हैं कि आपके आपके घर में भी लक्ष्मी का आगमन हो। इसके लिए आप भी सावन के महीने में शिव पूजन के निम्न छोटे प्रयोग को अपना सकते हैं।
प्रयोग विधि -: - अशोक के वृक्ष नीचे सावन के महीने के पहले दिन शिव प्रतिमा स्थापित करें प्रतिदिन प्रात:काल उस पर जल चढ़ाएं। - धूप दीप दिखाकर पूजन अर्चन करें । उसके बाद ऊं नम:शिवाय मंत्र का जाप करें।- सायंकाल भी प्रतिमा की धूप-दीप से पूजा करनी चाहिए। इस प्रयोग से शीघ्र ही धन से जुड़ी सारी समस्याएं हल होने लगती हैं।

क्या आप बदहजमी से परेशान हैं
कभी-कभी खाने-पीने की गड़बड़ी से गैस, अपच जैसे रोग हो जाते है। पेट की तकलीफ बहुत सी बीमारियों को जन्म देती है। यदि जल्द ही इसका उपचार न करवाया जाए तो यह शरीर में बहुत सी दूसरी बीमारियों को पैदा कर सकती हैं। लेकिन कई बार इलाज करवाने के बाद भी आप के साथ खाना न पचने की समस्या बनी रहती है। ऐसे में आप नीचे लिखे उपाय को अपनाकर इस समस्या से निजात पा सकते हैं।-इस प्रयोग को प्रतिदिन भोजन के बाद करें। दोनो बार भोजन के बाद पेट पर हाथ फेरते हुए नीचे लिखे मंत्र को तीन बार पढ़ें।
मंत्र- अगस्त्यं कुम्भकर्णं च शनि च बड़वालनम्।
भोजनं पचानार्थाय स्मरेत भीमं च पंचकनम्।।

इस प्रयोग को करने से अपच से जुड़ी समस्या से शीघ्र ही मुक्ति मिलती है।

Tuesday, November 16, 2010

कब करें शादी:पत्नीअतिप्रिय होगी यदि...

शास्त्रों में शादी के लिए चार माह शुभ बताए गए हैं। जिसमें विवाह करने से अलग-अलग लाभ हैं। आइए जानें किस माह में विवाह करने से क्या लाभ हैं?
माघे धनवती कन्या, फाल्गुने शुभगा भवेत,
वैशाखे तथा ज्येष्ठे पतिउत्यन्तवल्लभा।
मार्गशिर्ष मपिच्छती, अन्यये मासाश्च वर्जिता।।
यानि जिस स्त्री का विवाह माघ मास में होता है, वह धनवान होती है, फाल्गुन में विवाह होने पर वह सौभाग्यवती होती है। वैशाख तथा ज्येष्ठ में विवाह होने पर पति को प्यारी होती है। अकस्मात बहुत आवश्यक होने पर ही मार्गशिर्ष मास में भी विवाह कर सकते है। बाकी सभी माह विवाह हेतु वर्जित है।
वर्तमान में वैशाख मास चल रहा है।इसके अलावा सूर्य जब गुरुकी राशि धनु एवं मीन में होने पर, गुरु-शुक्र तारा अस्त होने पर, मलमास या अधिमास होने पर विवाह निषेध होता है।भारतीय सामाजिक व्यवस्था में विवाह को पवित्र बंधन माना जाता है। हमारे शास्त्रों में तलाक जैसा कोई शब्द ही नहीं है।

Monday, November 15, 2010

मनोरथ पूर्ति के लिए शिव को चढ़ाएं अन्न

भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए व्रत, उपवास, जप, मंत्र, अभिषेक- इन पूजा कर्मों के दौरान छोटी-छोटी धार्मिक बातों को जानकारी के अभाव में अनेक मौकों पर नजरअंदाज कर दिया जाता है।ऐसी ही बातों में मनोरथ पूर्ति के लिए शिव पूजा में तरह-तरह के अन्न चढ़ाने का महत्व शास्त्रों में बताया गया है। इसलिए श्रद्धा और आस्था के साथ इन उपायों का भी ध्यान रखें। जानते हैं किस अन्न के चढ़ावे से कैसी कामना पूरी होती है -- शिव पूजा में गेंहू से बने व्यंजन चढ़ाने पर कुंटुब की वृद्धि होती है।- मूंग से शिव पूजा करने पर हर सुख और ऐश्वर्य मिलता है।- चने की दाल अर्पित करने पर श्रेष्ठ जीवन साथी मिलता है। - कच्चे चावल अर्पित करने पर कलह से मुक्ति और शांति मिलती है। - तिलों से शिवजी पूजा और हवन में एक लाख आहुतियां करने से हर पाप का अंत हो जाता है। - उड़द चढ़ाने से ग्रहदोष और खासतौर पर शनि पीड़ा शांति होती है।

कैसा है आपका स्वाभाव?

ज्योतिष शास्त्र के माध्यम से व्यक्ति के भूत, भविष्य और वर्तमान की सटिक जानकारी प्राप्त की जा सकती है। कुंडली में 12 भाव अर्थात 12 घर होते हैं। सभी का अपना अलग महत्व होता है परंतु लग्न भाव (प्रथम भाव) के अध्ययन से व्यक्ति के स्वभाव को जाना जा सकता है। लग्न स्थान व्यक्ति के सम्पूर्ण स्वभाव का परिचय करा देता है।

प्रथम भाव भी कहते है। लग्न में यदि सूर्य अच्छा हो तो वह व्यक्ति मिलनसार, कमजोर आंखो वाला परंतु दिलेर होता है। वहीं सूर्य कमजोर होने पर कम बोलने वाला, चिड़चिड़े स्वभाव का होता है।
यदि चंद्र भाव में चंद्र हो तो वह व्यक्ति सुन्दर होता है।
मंगल लग्न भाव में हो तो व्यक्ति गुस्सैल, क्रोधी, होता है। मंगली भी होता है।
कुंडली के प्रभम भाव में बुध स्थित हो तो व्यक्ति बुद्धिमान होता है।
गुरु प्रथम भाव में होने से व्यक्ति धार्मिक तथा बलवान होता है।
शुक्र लग्न में हो तो व्यक्ति कामी, होशियार तथा तेज स्वभाव का होता है।
यदि शनि प्रथम भाव तो वह व्यक्ति पिता के जैसी शक्ल वाला तथा समझदार होता है।
राहु लग्र में होने से व्यक्ति कडवा बोलने वाला विकृत मानसिकता का होता है।
केतु लग्र में स्थित हो तो सम प्रकृति का वह व्यक्ति होता है।
इसके लिए अन्य ग्रहों की लग्र पर कैसी दृष्टि पड रही है, यह भी विचार करना भी आवश्यक है।

Saturday, November 13, 2010

दाम्पत्य जीवन, संतान सुख

यदि आपका वैवाहिक जीवन फीका है, जीवनसाथी से नही बनती या झगड़े होते हो, तो समझ लीजिए आपका वैवाहिक जीवन शनि से प्रभावित हो रहा है और आपकी कुंडली में शनि की स्थिति अच्छी नही है।
कुंडली में शनि का सप्तम भाव या लग्र भाव में स्थित होना प्राय: अशुभ माना जाता है। शनि की इसी स्थिति से ही गृहस्थ जीवन में सुख नही मिल पाता, जीवन साथी से विचार नही मिलते या जीवन साथी किसी न किसी बीमारी से पीडि़त रहता है।ज्योतिष में शनि को पाप ग्रह माना गया है। शनि का स्वभाव कठोर होता है। यह एक रूखा ग्रह है एवं इसे स्त्री नपुंसक ग्रह भी माना गया है। शनि के इसी स्वभाव का प्रभाव जातक पर पड़ता है। जिससे जातक अपने जीवन साथी के साथ कठोर व्यवहार करता है। सप्तम भाव में शनि होने के कारण जातक जीवनसाथी की भावनाओं को नहीं समझ पाता है। ऐसा व्यक्ति अकेला रहना पसंद करता है एवं यथार्थ में जीने वाला होता है।

दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाने के उपाय :
-काली गाय को चारा खिलाएं।-किसी साधु को तवा या अंगीठी का दान दें।-बरगद के पेड़ पर दूध चढ़ा कर गिली मिट्टी का तिलक करें।-काले कपड़े में उड़द रख कर दान दें।- परिवार की खुशहाली और स्वास्थ्य के लिए पूरे परिवार का फोटो लकड़ी के फ्रेम में जड़वाकर घर की पूर्वी दीवार पर लटकाएं।
कैसे मिले संतान सुख?

दंपत्ति अपने परिवार को बढ़ाने के सपने देखने लगते हैं। सभी दंपत्तियों की मनोकामना होती है उन्हें कोई मम्मी-पापा कहने वाला हो।वैसे तो अधिकांश लोगों को संतान के संबंध कोई खास परेशानियों नहीं होती परंतु कुछ लोगों को विवाह के लंबे समय के बाद भी संतान का सुख प्राप्त नहीं हो पाता या कुछ दंपत्ति को आजीवन ही संतान के सुख से वंचित रहना पड़ता है। कई बार स्त्री का गर्भ ठहरने के बाद किसी वजह से गर्भपात हो जाता है या ऐसी ही कोई अन्य समस्या उत्पन्न हो जाती है।
शास्त्रों के अनुसार संतान पैदा नहीं होने के संबंध में दस कारण बताए गए हैं। इन दस कारणों में नौ कारणों के अतिरिक्त दसवां कारण ज्योतिष समस्या से संबंधित है।ग्रह दोष की वजह से भी कई बार दंपत्तियों को संतान उत्पन्न होने में विलंब होता है या संतान उत्पन्न नहीं हो पाती। पांचवा भाव यदि राहु, गुरु, शनि से ग्रस्त हो तथा इन पर किसी भी शुभ ग्रह की दृष्टि भी न हो तो संतान उत्पत्ति में परेशानी होती है या गर्भपात हो जाते हैं। ऐसे परिस्थिति में संबंधित ग्रहों के उपचार से संतान उत्पत्ति आसान हो सकती है।
पंचम भाव में यदि गुरु स्थित हो तो संतान में देरी होती है। साथ ही यदि पति या पत्नी में से किसी को गुरु की महादशा भी हो तो संतान विवाह के सोलह वर्षों के बाद होने की संभावना होती है। पंचम भाव में यदि गुरु की दृष्टि हो तो संतान विवाह के 8-10 वर्षों के बाद उत्पन्न होती है। राहु या शनि से युक्त पंचम स्थान बार-बार गर्भस्राव या हिनता का कारक होता है।
संतान सुख प्राप्ति के लिए यह उपाय करें-
-संतान में देरी हो तो पुत्रदा एकादशी व्रत करें।-हरिवंश पुराण का पाठ करें।-कार्तिक चैत्र, माद्य माह में प्रतिपदा से नवमी (शुक्लपक्ष) रामायण का नवाह्नपरायण करें।- यदि पति या पत्नी की कुंडली में पंचम भाव में गुरु हो तो उसका उपचार कराएं।
- यदि कुंडली में छठे भाव में नीच का शनि हो तो उसकी शांति हेतु शनि की विशेष पूजा कराएं।- शिवरात्री पर शिव-पार्वती का रातभर अभिषेक कराएं।- अनाथालय में दान दें और गरीब बच्चों को खाना खिलाएं।- वात, पित्त, कफ की बीमारी हो तो उसका इलाज कराएं।

चार प्रकार के होते हैं पुत्र

राजा चित्रकेतु को वैराग्य का उपदेश देते नारदजी ने बताया था कि पुत्र चार प्रकार के होते हैं- शत्रु पुत्र, ऋणानुबंध पुत्र, उदासीन और सेवा पुत्र।
शत्रु पुत्र: जो पुत्र माता-पिता को कष्ट देते हैं, कटु वचन बोलते हैं और उन्हें रुलाते हैं, शत्रुओं सा कार्य करते हैं वे शत्रु पुत्र कहलाते हैं।
ऋणानुबंध पुत्र: पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार शेष रह गए अपने ऋण आदि को पूर्ण करने के लिए जो पुत्र जन्म लेता है वे ऋणानुबंध पुत्र कहलाते हैं।
उदासीन पुत्र: जो पुत्र माता-पिता से किसी प्रकार के लेन-देन की अपेक्षा न रखते विवाह के बाद उनसे विमुख हो जाए, उनका ध्यान ना रखे, वे उदासीन पुत्र कहलाते हैं।
सेवा पुत्र: जो पुत्र माता-पिता की सेवा करता है, माता-पिता का ध्यान रखते हैं, उन्हें किसी प्रकार की कोई कमी नहीं होने देते, ऐसे पुत्र सेवा पुत्र अर्थात् धर्म पुत्र कहलाते हैं।
मनुष्य का वास्तविक संबंध किसी से नहीं होता। इसलिए आत्मचिंतन में रमना ही उसका परम कर्तव्य है।

Thursday, November 11, 2010

संपन्नता: धन ज्ञान बाहु की हो

भौतिक संपन्नता का क्षेत्र हो या आध्यात्मिक उन्नति का कामयाबी उसे ही मिलती है जिसमें उसे पाने की योग्यता और क्षमता होती है। बल या शक्ति उस समग्र और सम्मिलित क्षमता को कहते हैं जिसमें तीनों बल यानि धन, ज्ञान और बाहु बल शामिल हो। दुनिया में सर्वाधिक शक्तिशाली वही है जो जिसके पास तीनों बलों का पर्याप्त संचय यानि कि संग्रह हो। प्राचीन दुर्लभ शास्त्रों में कुछ ऐसे विलक्षण मंत्र दिये गए हैं जिनको सिद्ध करके आप जिंदगी के हर क्षेत्र में भरपूर कामयाबी प्राप्त कर सकते हैं। ये मंत्र पूरी तरह से ध्वनि विज्ञान के आधार पर कार्य करते हैं:
- धन बल के लिए: कमलासने विद्महे, विष्णु प्रयाये धीमही, तन्नौ लक्ष्मी प्रचोदयात्।
- ज्ञान बल के लिए: हंसवाहिनी विद्महे, ज्ञान प्रदानाय धीमही, तन्नौ सरस्वती प्रचोदयात्।
- बाहु बल के लिए: नृसिंहाय विद्महे, वज्रनखाय धीमही, तन्नौ नृसिंह प्रचोदयात्।
जप के नियम: ऊपर वर्णित अचूक मंत्रों का जप प्रारंभ करने से पूर्व कुछ सरल किंतु अनिवार्य नियमों पर एक नजर-
- ध्यान रहे की मंत्र जप की सारी सफलता एकाग्रता और श्रद्धा पर निर्भर होती है।- पूर्व या उत्तर दिशा में मुख करके पद्मासन में कमर सीधी रख कर बैठें।- तीनों, कोई दो या आवश्यकता के अनुसार मात्र एक मंत्र का जप करने से पूर्व भी अनिवार्यरूप से तिगुनी मात्रा में गायत्री जप अवश्य करें।- यदि ज्ञान बल वृद्धि के मंत्र का एक माला जप करना हो तो उससे पूर्व तीन माला गायत्री मंत्र की माला करना चाहिए। यानि 1:3 का ही हो।- मंत्र जप पूर्व बाहरी एवं आंतरिक पवित्रता के बाद प्रारंभ करें।
- ध्यान रहे मंत्र जप सूर्योदय से पूर्व ही समाप्त हो जाना चाहिए।

Wednesday, November 10, 2010

बुधवार: श्री गणेश और बुध देव की उपासना का दिन

सफलता के लिए बल और ज्ञान ही नहीं, इनके साथ बुद्धि का संतुलन भी जरूरी है। इन तीन उपायों से सफलता पाने के लिए देवकृपा का भी महत्व माना जाता है। बुद्धि और सफलता के लिए शास्त्रों में बुधवार का दिन देव उपासना के लिए श्रेष्ठ माना गया है। यह दिन बुद्धिदाता श्री गणेश के अलावा बुध देव की उपासना का विशेष दिन माना गया है। धार्मिक दृष्टि से बुध देव बुद्धि और समृद्धि देने वाले माने गए है। बुध ग्रह का शुभ प्रभाव कारोबार में सफलता, विद्या, एकाग्रता और अच्छी याददाश्त देने के साथ अनावश्यक तनावों से छुटकारा देता है। बुधवार के दिन बुध देव की प्रसन्नता के लिए उपाय करने से बुध ग्रह के सभी बुरे प्रभाव नष्ट हो जाते हैं और मनोवांछित फल मिलते हैं।
- सुबह स्नान कर बुधदेव की यथासंभव सोने की मूर्ति अन्यथा धातु की मूर्ति कांसे के पात्र पर स्थापित करें।- भगवान बुधदेव को दो सफेद वस्त्र अर्पित करें। - बुधदेव की पंचोपचार पूजा यानि गंध, अक्षत, फूल अर्पित करें। - भोग में गुड़, दही और भात का भोग लगाएं।- धूप और अगरबत्ती, दीप जलाकर पूजा-आरती करें।- पूजा के दौरान बुध देव का बीज मंत्र ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम: या ऊँ बुं बुधाय नम: का जप करें। - पूजा के बाद क्षमा प्रार्थना और मंगलकामना करें।- यथासंभव ब्राह्मणों को बुध देव को लगाए भोग के साथ भोजन कराएं।- इस दिन बुध देव की निमित्त कांसा, जौ, हाथीदांत, सोना, कपूर या हरा कपड़ा, घी, मूंग दाल, हरी वस्तुओं का दान करें। - बुधवार के दिन श्री गणेश की भी पूजा करें और पूजा में विशेष रूप से सिंदूर, दुर्वा, गुड़, धनिया अर्पित करें। मोदक का भोग लगाएं। - यथाशक्ति ऐसे ७, १७, २१ या ४५ बुधवार पर व्रत करें।
व्यक्ति का वाक कौशल यानि बोलने की कला या बुद्धिमानी बुध ग्रह नियत करता है। इसलिए बुधवार को बुध पूजा और व्रत के फल से व्यक्ति बुद्धिजीवी, कलाकार, सफल कारोबारी या शिक्षक बनता है। इसलिए बुधवार को बुध के साथ श्री गणेश पूजा का शुभ अवसर का हर छात्र, कारोबारी और कलाकार विशेष लाभ उठाएं।

Monday, November 8, 2010

केंद्र में शुभ ग्रह लखपति बनता

कुंडली में चार स्थान- प्रथम, चतुर्थ, सप्तम एवं दशम भाव केंद्र होते हैं जो तन, सुख, दांपत्य एवं कर्म के कारक होते हैं।
केंद्र में शुभ ग्रह हो तो जातक लक्ष्मीपति होता है। वहीं केंद्र में उच्च के पाप ग्रह बैठे हो तो जातक राजा तो होता ही है पर वह धन से हीन होता है।सूर्य यदि उच्च को हो तथा गुरु केंद्र में चतुर्थ स्थान पर बैठा हो तो जातक आधुनिक केंद्र या राज्य में मंत्री पद को प्राप्त करता है। सूर्य के केंद्र में होने से जातक राजा का सेवक, चंद्रमा केंद्र में हो तो व्यापारी, मंगल केंद्र में हो तो व्यक्ति सेना में कार्य करता है।बुध के केंद्र में होने से अध्यापक तथा गुरु के केंद्र में होने से विज्ञानी, शुक्र के केंद्र में होने पर धनवान तथा विद्यावान होता है। शनि के केंद्र में होने से नीच जनों की सेवा करने वाला होता है।यदि केंद्र में कोई भी ग्रह नहीं हो तो जातक समस्या ग्रस्त परेशान रहता है। कोई भी ग्रह केंद्र में न हो तथा आप, ऋण, रोग, दरिद्रता से परेशान हो तो निम्न उपाय करें।
- शिवजी की उपासना करें- सोमवार का व्रत करें।- भगवान शिव पर चांदी का नाग अर्पण करें।- बिल्व पत्रों से 108 आहूतियां दें। घी, कच्चा, दूध, शहद, मिश्री का हवन करें।

शिव की पंचामृत पूजा है फलदायी

कामनाओं की पूर्ति के लिए भगवान शिव की उपासना बहुत ही फलदायी मानी गई है। भगवान शिव की प्रसन्नता के इन खास दिनों में सोमवार का दिन बहुत महत्व रखता है।शास्त्रों में अलग-अलग कामनाओं की पूर्ति के लिए शिव की अलग-अलग तरह की पूजा बताई गई है। किंतु सोमवार के दिन शिव की पंचामृत पूजा हर मनौती को पूरा करने वाली मानी गई है। इस पूजा में खासतौर पर शिव को दूध, दही, घी, शक्कर और शहद से स्नान कराया जाता है। पंचामृत स्नान व पूजा न केवल मनौतियां पूरी करती है, बल्कि वैभव भी देती है। साथ ही अनेक परेशानियों और पीड़ा का अंत होता है। भगवान शिव की पंचामृत स्नान और पूजन का तरीका -
- सुबह जल्दी उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहन घर या देवालय में शिवलिंग के सामने बैठें।- सबसे पहले शिवलिंग पर जल और उसके बाद क्रम से दूध, दही, घी, शहद और शक्कर चढ़ाएं। हर सामग्री के बाद शिवलिंग का जल से स्नान कराएं। पूजा के दौरान पंचाक्षरी या षडाक्षरी मंत्र ऊँ नम: शिवाय बोलते रहें। - आखि़र में पांच सामग्रियों को मिलाकर शिव को स्नान कराएं। - पंचामृत स्नान के बाद गंगाजल या शुद्धजल से स्नान कराएं।- पंचामृत पूजन के साथ रुद्राभिषेक पूजा शीघ्र मनोवांछित फलदायक मानी जाती है। यह पूजन किसी विद्वान ब्राह्मण से कराया जाना श्रेष्ठ होता है। - पंचामृत स्नान और पूजा के बाद पंचोपचार पूजा करें। गंध, चंदन, अक्षत, सफेद फूल और बिल्वपत्र चढ़ाएं। नैवेद्य अर्पित करें।- शिव की धूप या अगरबत्ती और दीप से आरती करें। - शिव रुद्राष्टक, शिवमहिम्र स्त्रोत, पंचाक्षरी मंत्र का पाठ और जप करें या कराएं।
- आरती के बाद पूजा में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगे और मनौती करें।- शिव की पंचामृत पूजा ब्राह्मण से कराने पर पूर्ण फल तभी मिलता है जब दान-दक्षिणा भेंट की जाए। इसलिए ऐसा करना न भूलें।

Sunday, November 7, 2010

५६ पंखुडिय़ों वाले कमल पर विराजते हैं विष्णु

गोवर्धन पूजा पर भगवान श्रीकृष्ण को 56 भोग का अन्नकूट भी लगाया जाता है। वैष्णव जन इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। सवाल यह उठता है कि भगवान को 56 व्यंजनों का ही भोग क्यों लगता है? क्यों भगवान इससे कम या ज्यादा का भोग स्वीकार नहीं करते? 56 भोगों पर काफी कुछ लिखा गया है और लोग भी बड़ी श्रद्धा से इस परंपरा को निबाह रहे हैं। 56 भोग के पीछे सारे कारण बहुत ही दार्शनिक है। कुछ विद्वान यह मानते हैं कि यह संभव है कि जिस समय यह परंपरा शुरू हुई तो उस समय इतने ही पकवान बनते हों, इससे ज्यादा व्यंजन हो ही नहीं। लेकिन 56 के आंकड़े में कुछ खास बातें हैं। कहते हैं जिस कमल पर भगवान विष्णु विराजित हैं उसकी पंखुडिय़ों की संख्या 56 है, यह तीन चरणों में है, पहले में आठ, दूसरे में 16 और तीसरे में 32 पंखुडिय़ां होती हैं। इसी लिए भगवान को 56 भोग लगाए जाते हैं। एक कारण ओर है। एक प्राणी की 84 लाख योनियां बताई गई हैं, जिसमें से श्रेष्ठ है मनुष्य योनि। अगर मनुष्य योनि को अलग कर दिया जाए तो 83,99,999 संख्या होती है। ये सारी योनियां पशु-पक्षी की होती है। इन सबको जोड़ दिया जाए तो (8+3+9+9+9+9+9=56) 56 ही योग आता है। विद्वानों का मानना है कि मनुष्य जन्म को छोड़कर शेष जन्मों से मुक्ति पाने के लिए ही हम 56 भोग का प्रसाद भगवान को लगाते हैं। यह मानकर कि हमने अपने शेष 83,99,999 जन्म भगवान को अर्पित कर दिए हैं।

वास्तु दोष से करवाता है नुकसान

घर में दरवाजा गलत दिशा में बना है? कोई द्वार दोष है? ऐसा दोष आपको कर्ज में डुबो सकता है। नीचे लिखे वास्तु उपायों को अपनाकर आप भी अपने घर के दरवाजे से वास्तु दोष को कम कर सकते हैं।
उत्तर का दरवाजा हमेशा लाभकारी होता है।यदि द्वार दोष उत्पन्न होता है, तो भगवान विष्णु की आराधना करें। पीले फूलों की माला दरवाजे पर लगाएं। लाभ होगा।पूर्व दिशा में घर का दरवाजा है तो वो व्यक्ति को ऋणी बना देता है, तो सोमवार को रूद्राक्ष घर के दरवाजे के मध्य लटका दें और पहले सोमवार को रूद्राक्ष व शिव की आराधना करने से आपके समस्त कार्य सफल होंगे।दक्षिण दिशा में घर का प्रमुख द्वार दोष उत्पन्न होता है, तो भगवान विष्णु की आराधना करें। पीले फूलों की माला दरवाजे पर लगाएं। लाभ होगा।
पश्चिम दिशा में द्वार दोष उत्पन्न होने पर रविवार को सूर्योदय से पूर्व दरवाजे के सम्मुख नारियल के साथ कुछ सिक्के रखकर दबा दें। किसी लाल कपड़े में बांध कर लटका दें। सूर्य के मंत्र से हवन करें। द्वार दोष दूर होगा।
भूखंडों की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं,अपार्टमेंट में घर लेना काफी सुविधाजनक हो गया है। वास्तु सभी अपार्टमेंट को एक स्वतंत्र इकाई मानता है इसलिए अपार्टमेंट में आप ऊपर रहें या नीचे, दिशा निर्धारण का वही सिद्धांत लागू होता है। अगर अपार्टमेंट बहुत ऊंचाई पर है, तब भी बेहतर यह है कि पूरा ब्लॉक वर्गाकार या आयताकार हो ताकि पृथ्वी से उसका नाता जुड़ा रहे। वास्तु के अनुसार वर्गाकार भवन पुरुषोचित होते हैं जबकि आयताकार इमारतें स्त्रियोचित(नारी-जातीय) और कोमल।
यदि आप अपार्टमेंट ब्लॉक में रहने जा रहे हैं तो उसकी ऊपरी मंजिल चुनिए ताकि भूतल स्तर के नुकसानदायक प्रभावों से बचा जा सके। अपार्टमेंट के लिए सबसे अच्छी जगह ब्लॉक की उत्तर-पूर्व या पूर्व दिशा है, जो प्रात:कालीन प्रकाश के अनुकूल गुणों को ग्रहण करती है। उत्तर-पूर्व दिशा वाला अपार्टमेंट यह सुनिश्चित करेगा कि अन्य अपार्टमेंट दक्षिण-पश्चिम में बाधाएं पैदा कर नकारात्मक शक्तियों के प्रवेश को रोकेंगे। ब्लॉक पर्याप्त दूरी पर हों ताकि कमरों में रोशनी व हवा आ सके।
वास्तु शास्त्रों का यह भी मानना है कि घर बनाने में प्रयुक्त किए गए सभी पदार्थों में जैविक ऊर्जा होती है। बलुआ तथा संगमरमर जैसे पत्थर घर में रहने वाले लोगों पर शुभ प्रभाव डालते हैं जबकि ग्रेनाइट तथा स्फटिक जैसे पत्थर नसों में खून के प्रवाह में अवरोध उत्पन्न करते हैं तथा स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां भी खड़ी करते हैं। आदर्श अपार्टमेंट वह ब्लॉक है जो ईंटों या पत्थर से निर्मित हो न कि शीशे या पथरीली कांक्रीट से।
वर्तमान में आधुनिक भवनों में पथरीली क्रंकीट, इस्पात, शीशे या सिंथेटिक सामग्री के उपयोग किया जाने लगा है। यह इमारत को मजबूत तो बनाती हैं लेकिन सेहत पर बुरा प्रभाव भी डालती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार कंक्रीट मृत सामग्री है जो नकारात्मक ऊर्जा उत्सर्जित करती है जिसके कारण बीमारी व अन्य परेशानियां उत्पन्न होती है।

Saturday, November 6, 2010

शनि को प्रसन्न कीजिये

शनि के प्रकोप से बचने के लिए शनिश्चरी अमावस्या के दिन शनिदेव को प्रसन्न करने निम्न कर्म करें-
- लोहे की दो गोलियां लेकर आएं, एक गोली नदी में प्रवाहित करें और एक अन्य सदैव अपने साथ रखें।- काले घोड़े की नाल से बना छल्ला या अंगूठी सीधे हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें। यह प्रयोग बहुत कारगर सिद्ध होता है।- किसी बर्तन में तेल भरकर अपना चेहरा उसमें देखें और फिर उस तेल को दान कर दें।- राहु-केतु की लोहे या शीशे की मूर्तियों की विधि-विधान से पूजा करें।- पूजा में काले चावल, काले कपड़े, काले फूल व काले चंदन का प्रयोग करें।- यह पूजा पीपल के पेड़ के नीचे करेंगे तो जल्दी ही शुभ फल प्राप्त होगा।- पूजा के बाद पीपल की सात परिक्रमा करें।- परिक्रमा करने के बाद कच्चा धागा पीपल पर लपेटे।- अब शनि देव से प्रार्थना करें कि हमारे कष्टों और दुखों से हमें मुक्ति दिलाएं।
- लोहे के कटोरे में तेल भरकर, काले तिल या काली चीजों का दान करें।- काला कपड़ा, काली गाय, काली बकरी या काले लोहे के बर्तन दान करें। शनि देव प्रसन्न होंगे। इन उपायों के अतिरिक्त प्रतिदिन हनुमान चालिसा का पाठ करें।
- प्रतिदिन पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाएं और सात परिक्रमा अवश्य करें।- यदि शनि की वजह अत्यधिक कष्ट हैं तो 43 दिनों तक लगातार कौओं को दही रोटी खिलाएं। ऐसा करने से शनि बहुत जल्द ही आपके पक्ष में फल देना शुरू कर देगा।- कम से कम 9 शनिवार गरीबों को भोजन कराएं, भोजन में शनिदेव के प्रिय भोज्य सामग्री रखें।- प्रति शनिवार शनि के निमित्त व्रत-उपवास करें।- शुभ मुहूर्त देखकर शनि कवच धारण करें।- सात मुखी रुद्राक्ष धारण करें।- आज आपके खाने तिल से बनी सामग्री अवश्य खाएं।- शनि संबंधी दान या उपहार बिल्कुल ग्रहण ना करें।- प्रतिदिन या हर शनिवार इष्टदेवता को काले या नीले रंग के फूल अवश्य चढ़ाएं।- पुरुष परस्त्री और स्त्री परपुरुष का साथ तुरंत छोड़ दें अन्यथा शनि और क्रूर हो जाएगा और आपको उसके बहुत बुरे फल प्राप्त होंगे।- कम से कम सात शनिवार एक-एक नारियल नदी में प्रवाहित करें।- घर में पुरानी लकड़ी और कोयला हो तो उसे तुंरत बाहर कर दें।- शनिवार को जमीन में काजल की डिबिया गाढ़ दें।- किसी सूखे कुएं में प्रति शनिवार दूध डालें।

Thursday, November 4, 2010

क्या जीवन साथी से नहीं बनती है?

लाइफ पार्टनर से बनती है? जीवन साथी आपके रिश्ते को लेकर उदासीन है? छोटी सी बात अनबन का कारण बन गई? घर का वास्तु सीधा संबंधो को प्रभावित करता है। जानते हैं कुछ ऐसे ही वास्तुदोष जिनके होने पर पति-पत्नी के सबंधों को प्रभावित करते हैं। घर का वातावरण ऐसा होना चाहिए कि ऋणात्मक शक्तियां कम तथा सकारात्मक शक्तियां अधिक क्रियाशील हों। यह सब वास्तु के द्वारा ही संभव हो सकता है।
घर के ईशान कोण का बहुत ही महत्व है। यदि पति-पत्नी साथ बैठकर पूजा करें तो उनका आपस का अहंकार खत्म होकर संबंधों में मधुरता बढ़ेगी। गृहलक्ष्मी द्वारा संध्या के समय तुलसी में दीपक जलाने से नकारात्मक शक्तियों को कम किया जा सकता है। घर के हर कमरे के ईशान कोण को साफ रखें. शयनकक्ष के।पति-पत्नी में आपस में वैमनस्यता का एक कारण सही दिशा में शयनकक्ष का न होना भी है। अगर दक्षिण-पश्चिम दिशाओं में स्थित कोने में बने कमरों में आपकी आवास व्यवस्था नहीं है तो प्रेम संबंध अच्छे के बजाए, कटुता भरे हो जाते हैं।शयनकक्ष के लिए दक्षिण दिशा निर्धारित करने का कारण यह है कि इस दिशा का स्वामी यम, शक्ति एवं विश्रामदायक है। घर में आराम से सोने के लिए दक्षिण एवं नैऋत्य कोण उपयुक्त है। शयनकक्ष में पति-पत्नी का सामान्य फोटो होने के बजाए हंसता हुआ हो, तो वास्तु के अनुसार उचित रहता है।घर के अंदर उत्तर-पूर्व दिशाओं के कोने के कक्ष में अगर शौचालय है तो पति-पत्नी का जीवन बड़ा अशांत रहता है। आर्थिक संकट व संतान सुख में कमी आती है। इसलिए शौचालय हटा देना ही उचित है। अगर हटाना संभव न हो तो शीशे के एक बर्तन में समुद्री नमक रखें। यह अगर सील जाए तो बदल दें। अगर यह संभव न हो तो मिट्टी के एक बर्तन में सेंधा नमक डालकर रखें।
घर के अंदर यदि रसोई सही दिशा में नहीं है तो ऐसी अवस्था में पति-पत्नी के विचार कभी नहीं मिलेंगे। रिश्तों में कड़वाहट दिनों-दिन बढ़ेगी। कारण अग्नि का कहीं ओर जलना। रसोई घर की सही दिशा है आग्नेय कोण। अगर आग्नेय दिशा में संभव नहीं है तो अन्य वैकल्पिक दिशाएं हैं। आग्नेय एवं दक्षिण के बीच, आग्नेय एवं पूर्व के बीच, वायव्य एवं उत्तर के बीच।यदि हम अपने वैवाहिक जीवन को सुखद एवं समृद्ध बनाना चाहते हैं और अपेक्षा करते हैं कि जीवन के सुंदर स्वप्न को साकार कर सकें।

नरक चतुर्दशी : मन के सारे पाप दूर हो जाते

कार्तिक मास के कृष्ण चतुर्दशी के दिन यमराज की पूजा व व्रत का विधान है। इसे रूप चतुर्दशी और छोटी दीपावली भी कहते हैं। इस दिन नदी में दीप दान का विशेष महत्व है। नदी में स्नान सुबह और दीपदान के लिए शाम का समय श्रेष्ठ है।
यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को रखा जाता है। इस दिन शरीर पर तिल के तेल की मालिश करके सूर्योदय के पूर्व स्नान करने का विधान है। स्नान के दौरान अपामार्ग (एक प्रकार का पौधा) को शरीर पर स्पर्श करना चाहिए। अपामार्ग को निम्न मंत्र पढ़कर मस्तक पर घुमाना चाहिए-
सितालोष्ठसमायुक्तं सकण्टकदलान्वितम्।
हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाण: पुन: पुन:।।

स्नान करने के बाद शुद्ध वस्त्र पहनकर, तिलक लगाकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके निम्न मंत्रों से प्रत्येक नाम से तिलयुक्त तीन-तीन जलांजलि देनी चाहिए। यह यम-तर्पण कहलाता है। इससे वर्ष भर के पाप नष्ट हो जाते हैं-
ऊँ यमाय नम:, ऊँ धर्मराजाय नम:, ऊँ मृत्यवे नम:, ऊँ अन्तकाय नम:, ऊँ वैवस्वताय नम:, ऊँ कालाय नम:,
ऊँ सर्वभूतक्षयाय नम:, ऊँ औदुम्बराय नम:, ऊँ दध्राय नम:, ऊँ नीलाय नम:, ऊँ परमेष्ठिने नम:, ऊँ वृकोदराय नम:, ऊँ चित्राय नम:, ऊँ चित्रगुप्ताय नम:
तर्पण कर्म सभी पुरुषों को करना चाहिए, चाहे उनके माता-पिता गुजर चुके हों या जीवित हों। फिर देवताओं का पूजन करके सायंकाल यमराज को दीपदान करने का विधान है।दीपक जलाने का कार्य त्रयोदशी से शुरू करके अमावस्या तक करना चाहिए। रूप चतुर्दशी पर भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करने का भी विधान बताया गया है . इसी दिन उन्होंने नरकासुर का वध किया था। जो भी व्यक्ति विधिपूर्वक भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करता है, उसके मन के सारे पाप दूर हो जाते हैं और अंत में उसे बैकुंठ में जगह मिलती है।

Wednesday, November 3, 2010

समुद्र मंथन के समय निकले थे धनवंतरि

पूजन सामग्री- गंध, अबीर, गुलाल पुष्प, रोली, नैवेद्य के लिए चांदी का पात्र, प्रसाद के लिए खीरए पान, लौंग, सुपारी, वस्त्र (मौली) शंखपुष्पी, तुलसी, ब्राह्मी आदि पूजनीय औषधियां।
पूजन विधि
धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरि की पूजा इस तरह करें। सबसे पहले नहाकर साफ कपड़े पहनें। भगवान धनवंतरि की मूर्ति या चित्र साफ स्थान पर स्थापित करें तथा पूर्व की ओर मुखकर बैठ जाएं। उसके बाद भगवान धनवंतरि का आह्वान निम्न मंत्र से करें-
सत्यं च येन निरतं रोगं विधूतं,अन्वेषित च सविधिं आरोग्यमस्य।
गूढं निगूढं औषध्यरूपं, धनवंतरिं च सततं प्रणमामि नित्यं।।
इसके बाद पूजन स्थल पर आसन देने की भावना से चावल चढ़ाएं। इसके बाद आचमन के लिए जल छोड़े। भगवान धनवंतरि के चित्र पर गंध, अबीर, गुलाल पुष्प, रोली, आदि चढ़ाएं। चांदी के पात्र में खीर का नैवेद्य लगाएं। (अगर चांदी का पात्र उपलब्ध न हो तो अन्य पात्र में भी नैवेद्य लगा सकते हैं।) पुन: आचमन के लिए जल छोड़े। मुख शुद्धि के लिए पान, लौंग, सुपारी चढ़ाएं। भगवान धन्वन्तरि को वस्त्र (मौली) अर्पण करें। शंखपुष्पी, तुलसी, ब्राह्मी आदि पूजनीय औषधियां भी भगवान धन्वन्तरि को अर्पित करें। रोगनाश की कामना के लिए इस मंत्र का जाप करें-
ऊँ रं रूद्र रोगनाशाय धन्वन्तर्ये फट्।।
इसके बाद भगवान धनवंतरि को श्रीफल व दक्षिणा चढ़ाएं। पूजन के अंत में कर्पूर आरती करें।
क्यों खरीदे जाते हैं बर्तन
धनतेरस पर बर्तन खरीदने का महत्व है। ऐसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के समय धनवंतरि हाथ में अमृत का कलश लेकर निकले थे। इस कलश के लिए देवताओं और दानवों में भारी युद्ध भी हुआ था। इस कलश में अमृत था और इसी से देवताओं को अमरत्व प्राप्त हुआ। तभी से धनतेरस पर प्रतीक स्वरूप बर्तन खरीदने की परंपरा है। इस बर्तन की भी पूजा की जाती है और खुद व परिवार की बेहतर सेहत के लिए प्रार्थना की जाती है।

Tuesday, November 2, 2010

धनत्रयोदशी पर करें शंख की पूजा

शंख का बड़ा महत्व है। विष्णु के चार आयुधो में शंख को भी एक स्थान मिला है। आरती के समय शंखध्वनि का विधान है। पुजा में शंख का महत्व है। शंख की किसी भी शुभ मूहूर्त में पूजा की जा सकती है, यदि धनत्रयोदशी के दिन इसकी पूजा की जाए तो दरिद्रता निवारण, आर्थिक उन्नति, व्यापारिक वृद्धि और भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए तंत्र के अनुसार यह सबसे सरल प्रयोग है।यह दक्षिणावर्ती शंख जिसके घर में रहता है, वहां लक्ष्मी का स्थाई निवास होता है। घर में स्थिर लक्ष्मी का निवास हो तो ये प्रयोग जरुर करें

ऊं श्रीं क्लीं ब्लूं सुदक्षिणावर्त शंखाय नम:

मंत्र का पाठ कर लाल कपड़े पर चांदी या सोने के आधार पर शंख को रख दें। आधार रखने के पूर्व चावल और गुलाब के फूल रखे। यदि आधार न हो तो चावल और गुलाब पुष्पों (लाल रंग) के ऊपर ही शंख स्थापित कर दें। तत्पश्चात निम्न मंत्र का 108 बार जप करें-

मंत्र - ऊं श्रीं

10 से 12 बजे के बीच उपरोक्त प्रकार से सवा माह पूजन करने से-लक्ष्मी प्राप्ति। 12 बजे से 3 बजे के बीच सवा माह पूजन करने से यश कीर्ति प्राप्ति, वृद्धि। 3 से 6 बजे के बीच सवा माह पूजन करने से-संतान प्राप्ति
इसके अन्य प्रयोग निम्न है
सवा महा पूजन के बाद इसी रंग की गाय के दूध से स्नान कराओ तो बन्ध्या स्त्री भी पुत्रवती हो जाती है। पूजा के पश्चात शंख को लाल रंग के वस्त्र मं लपेटकर तिजोरी में रख दो तो खुशहाली आती है।
शंख को लाल वस्त्र से ढककर व्यापारिक संस्थान में रख दो तो दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि और लाभ होता है।

धनतेरस पर राशि के अनुसार बताई गई वस्तुएं खरीदें। वर्षभर शुभ फल देने वाली रहेगी:
मेष- मेष राशि वाले लोग इस धन तेरस तांबे के बर्तन से खरीददारी शुरू करें। इस शुभ पर्व पर आपके लिए भूमि, भवन की खरीददारी लाभ दायक रहेगी।वृष- चांदी के बर्तन और मूर्तियों की खरीददारी करना आपके लिए शुभ होगा। इसके अलावा आपकी राशि के लिए चावल की खरीददारी भी विशेष फलदायक रहेगी।मिथुन- सुखी जीवन के लिए आप कांसे की गणेश मूर्ति खरीदें और अपनी राशि के अनुसार घर सजाने के लिए हंस का जोड़ा अवश्य खरीदें। इससे घर के सदस्यों में प्रेम बना रहेगा।कर्क- धन तेरस पर धन प्राप्ति के लिए आप सर्वश्रेष्ठ स्फटिक श्री यंत्र खरीदें इस पर्व पर स्फटिक खरीदना आपके लिए अत्यंत शुभ और विशेष फल देने वाला रहेगा।सिंह- इस शुभ पर्व पर सिंह राशि वालों कों तांबे का सूर्य खरीदना चाहिए। अगर आप अपनी राशि के अनुसार लक्ष्मीजी की अत्यंत प्रिय धातु स्वर्ण से बनें आभूषण खरीदें, इससे मां लक्ष्मी की विशेष कृपा होगी।कन्या- इस राशि के लोगों को कांसे के दीपक खरीदना चाहिए और मां लक्ष्मी के स्वागत के लिए आप हाथीदांत से बनी हुई वस्तुओं से घर साजाएं।तुला- शुक्र की राशि होने के कारण आप अपनी राशि के अनुसार चांदी का श्री यंत्र और सिक्का खरीदें।वृश्चिक- इस पर्व पर आप तांबा और पंचधातु की खरीददारी की शुरूआत करें। वृश्चिक राशि वालों को तांबे या पंचधातु से बना श्री यंत्र और स्वस्तिक खरीदना चाहिए।धनु- धन तेरस के पर्व पर आप भगवान विष्णु और लक्ष्मीजी की स्वर्ण प्रतिमा खरीदें। इस मूर्ति के रूप में भगवान विष्णु-लक्ष्मी आपके घर हमेशा निवास करेंगे।मकर- मकर राशि वाले जातक राशि के अनुसार वाहन खरीदें। घर की सजावट के सामान में परदे, कुशन आदि खरीदें।कुंभ- अपने राशि स्वामी के अनुसार आप शनि का रत्न नीलम खरीदें। फ्रीज, एसी, पलंग और शनि से संबंधित वस्तुएं भी खरीद सकते है। मीन- आप अपनी राशि के अनुसार इस पर्व पर एक्वेरियम, कालीन, बेड शीट की खरीददारी करें।

कैसे कुबेर देव की कृपा प्राप्त हो

कुबेर देव को धन का देवता माना जाता है। वे देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं, इनकी कृपा से किसी को भी धन प्राप्ति के योग बन जाते हैं। इन्हें प्रसन्न करने के लिए एक सटिक मंत्र है, जिसके जप से कुबेर देव की कृपा प्राप्त हो जाती है।
कुबेर देव का मंत्र: ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय, धन धन्याधिपतये धन धान्य समृद्धि मे देहित दापय स्वाहा।
यह देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर देव का अमोघ मंत्र है। इस मंत्र का तीन माह तक रोज 108 बार जप करें। जप करते समय अपने सामने एक कौड़ी (धनलक्ष्मी कौड़ी) रखें। तीन माह के बाद प्रयोग पूरा होने पर इस कौड़ी को अपनी तिजोरी या लॉकर में रख दें। ऐसा करने पर कुबेर देव की कृपा से आपका लॉकर कभी खाली नहीं होगा। हमेशा उसमें धन भरा रहेगा।

वंदनवार, स्वास्तिक,रंगोली

दीपावली-पूजन में प्रयुक्त होने वाली वस्तुएं एवं मांगलिक लक्ष्मी चिह्नï सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य, शांति और उल्लास लाने वाले माने जाते हैं इनमें प्रमुख इस प्रकार हैं-
वंदनवार- आम या पीपल के नए कोमल पत्तों की माला को वंदनवार कहा जाता है। इसे दीपावली के दिन पूर्वीद्वार पर बांधा जाता है। यह इस बात का प्रतीक है कि देवगण इन पत्तों की भीनी-भीनी सुगंध से आकर्षित होकर घर में प्रवेश करते हैं। ऐसी मान्यता है कि दीपावली की वंदनवार पूरे 31 दिनों तक बंधी रखने से घर-परिवार में एकता व शांति बनी रहती हैं।
स्वास्तिक- लोक जीवन में प्रत्येक अनुष्ठान के पूर्व दीवार पर स्वास्तिक का चिह्नï बनाया जाता है। उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम इन चारों दिशाओं को दर्शाती स्वास्तिक की चार भुजाएं, ब्रह्मïचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास आश्रमों का प्रतीक मानी गई हैं। यह चिह्नï केसर, हल्दी, या सिंदूर से बनाया जाता है।
कौड़ी- लक्ष्मी पूजन की सजी थाली में कौड़ी रखने की प्राचीन परंपरा है, क्योंकि यह धन और श्री का पर्याय है। कौड़ी को तिजौरी में रखने से लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है।
लच्छा- यह मांगलिक चिह्नï संगठन की शक्ति का प्रतीक है, जिसे पूजा के समय कलाई पर बांधा जाता है।
तिलक- पूजन के समय तिलक लगाया जाता है ताकि मस्तिष्क में बुद्धि, ज्ञान और शांति का प्रसार हो।
पान-चावल- ये भी दीप पर्व के शुभ-मांगलिक चिह्नï हैं। पान घर की शुद्धि करता है तथा चावल घर में कोई काला दाग नहीं लगने देता।
बताशे या गुड़- ये भी ज्योति पर्व के मांगलिक चिह्नï हैं। लक्ष्मी-पूजन के बाद गुड़- बताशे का दान करने से धन में वृद्धि होती है।
ईख- लक्ष्मी के ऐरावत हाथी की प्रिय खाद्य-सामग्री ईख है। दीपावली के दिन पूजन में ईख शामिल करने से ऐरावत प्रसन्न रहते हैं और उनकी शक्ति व वाणी की मिठास घर में बनी रहती है।
ज्वार का पोखरा- दीपावली के दिन ज्वार का पोखरा घर में रखने से धन में वृद्धि होती है तथा वर्ष भर किसी भी तरह के अनाज की कमी नहीं आती। लक्ष्मी के पूजन के समय ज्वार के पोखरे की पूजा करने से घर में हीरे-मोती का आगमन होता है।
रंगोली- लक्ष्मी पूजन के स्थान तथा प्रवेश द्वार व आंगन में रंगों के संयोजन के द्वारा धार्मिक चिह्नï कमल, स्वास्तिक कलश, फूलपत्ती आदि अंकित कर रंगोली बनाई जाती है। कहते हैं कि लक्ष्मीजी रंगोली की ओर जल्दी आकर्षित होती है।

रानी सुनीति ने किया था गोवत्सद्वादशी व्रत

कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की द्वादशी गोवत्वद्वादशी के नाम से जानी जाती है। इस व्रत में गोमाता का पूजन किया जाता है।
सतयुग में महर्षि भृगु के आश्रम में भगवान शंकर के दर्शन की अभिलाषा से करोड़ों मुनिगण तपस्या कर रहे थे। एक दिन उन तपस्यारत मुनियों को दर्शन देने के लिए भगवान शंकर एक बूढ़े ब्राह्मण का वेष बनाकर आए। उनके साथ सवत्सा गौ के रूप में माता पार्वतीजी भी थीं। वृद्ध ब्राह्मण बने भगवान शंकर महर्षि भृगु के पास जाकर बोले- हे मुने। मैं यहां स्नानकर जम्बूक्षेत्र में जाऊंगा और दो दिन बात लौटूंगा, तब तक आप इस गाय की रक्षा करें।
मुनियों द्वारा इस बात की प्रतिज्ञा करने पर ब्राह्मण रूपधारी भगवान शंकर अंतध्र्यान हो गए और फिर थोड़ी देर में बाघ के रूप में प्रकट होकर बछड़े सहित गौ को डराने लगे। ऋषिगण भी बाघ से भयभीत हो गए तब उन्होंने गाय की रक्षा के लिए ब्रह्मा से प्राप्त भयंकर शब्द करने वाले घंटे को बजाना प्रारंभ किया। जिसे सुनकर भगवान शंकर अपने वास्तविक स्वरूप में आ गए और माता पार्वती भी अपने मूल स्वरूप में लौट आईं। भगवान की लीला देख सभी मुनियों ने उनका विधि पूर्वक पूजन किया। उस दिन कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की द्वादशी थी इसलिए यह व्रत गोवत्सद्वादशी के रूप में प्रारंभ हुआ।
एक अन्य कथा :राजा उत्तानपाद की रानी सुनीति इस व्रत को किया करती थी, जिसके प्रभाव से उन्हें ध्रुव जैसा पुत्र प्राप्त हुआ। आज भी माताएं पुत्ररक्षा व संतान सुख के लिए इस व्रत को करती हैं।

Monday, November 1, 2010

सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्।

सिंदूर गहरे नारंगी या भगवा रंग का होता है। पूजा में न केवल सिंदूर चढ़ाया जाता है बल्कि देवताओं की मूर्तियों पर सिंदूर का चोला भी चढ़ाया जाता है। हनुमान की मूर्ति पर सिंदूर का चोला चढ़ाया जाता है। पूजा में सिंदूर को चढ़ाने का अपना महत्व है। पूजा में इस मंत्र उच्चारण होता है-

सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्।
शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यïताम्॥
अर्थात- लाल रंग का सिंदूर शोभा, सौभाग्य और सुख बढ़ाने वाला है। शुभ और सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। हे देव! आप स्वीकार करें।

इसी प्रकार देवी-देवताओं के लिए यह मंत्र उच्चारित करें-
सिन्दूरमरुणाभासं जपाकुसुमसनिभम्।
अर्पितं ते मया भक्त्या प्रसीद परमेश्वरि॥
अर्थात- प्रात:कालीन सूर्य की आभा तथा जवाकुसुम की तरह सिंदूर आपको हम अर्पित करते हैं। हे मां! आप प्रसन्न हों।
सिंदूर का महत्व

सिंदूर का उपयोग महिलाओं द्वारा विवाह के पश्चात मांग भरने में भी किया जाता रहा है। आजकल सिंदूर से मांग भरने का चलन कम हो गया है। सिंदूर से मांग भरने से महिला के शरीर में स्थित वैद्युतिक उत्तेजना नियंत्रित होती है। सिंदूर में पारा होता है। इससे महिलाओं के सिर में होने वाली, जंू, लीख (डेन्ड्रफ) भी नष्ट होती है।
सिंदूर का विज्ञान
सिंदूर आरोग्य, बुद्धि, त्याग और दैवी महात्वाकांक्षा का प्रतीक है। साधु-संन्यासियों के वस्त्र का रंग भी ऐसा ही होता है। सिंदूर चढ़ाने का अभिप्राय यही है कि हमारा जीवन त्यागमय हो और लक्ष्य भगवान की प्राप्ति। सिंदूर में पारा होता है जो हमारे शरीर के लिए लाभकारी है। मूर्ति पर सिंदूर का चोला चढ़ाने से उसका संरक्षण होता है।