Tuesday, October 25, 2011

मां लक्ष्मी की चौकी

पूजा के लिए मां लक्ष्मी किस प्रकार स्थापित करना है? मां लक्ष्मी की चौकी विधि-विधान से सजाई जानी चाहिए।
चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियां इस प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। लक्ष्मीजी, गणेशजी के दाहिनी ओर स्थापित करें। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावल पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटे कि नारियल का आगे का भाग दिखाई दे और इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुणदेव का प्रतीक है। अब दो बड़े दीपक रखें। एक घी व दूसरे में तेल का दीपक लगाएं। एक दीपक चौकी के दाहिनी ओर रखें एवं दूसरा मूर्तियों के चरणों में। इसके अतिरिक्त एक दीपक गणेशजी के पास रखें.लक्ष्मी पूजन के समय एक चौकी पर मां लक्ष्मी और श्रीगणेश आदि प्रतिमाएं स्थापित की जाती है। इसकी जानकारी पूर्व में प्रकाशित की जा चुकी है। इसके अतिरिक्त एक छोटी चौकी भी बनाई जाती है। शास्त्रों के अनुसार इस चौकी को विधि-विधान से सजाना चाहिए। इस छोटी चौकी को इस प्रकार सजाएं-
मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। फिर कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियां तीन लाइनों में बनाएं। इसे आप चित्र में (1) चिन्ह से देख सकते हैं। गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं। यह सोलह ढेरियां मातृका (2) की प्रतीक है। जैसा कि चित्र में चिन्ह (2) पर दिखाया गया है। नवग्रह व सोलह मातृका के बीच में स्वस्तिक (3) का चिन्ह बनाएं। इसके बीच में सुपारी (4) रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी रखें। लक्ष्मीजी की ओर श्री का चिन्ह (5) बनाएं। गणेशजी की ओर त्रिशूल (6) बनाएं। एक चावल की ढेरी (7) लगाएं जो कि ब्रह्माजी की प्रतीक है। सबसे नीचे चावल की नौ ढेरियां बनाएं (8) जो मातृक की प्रतीक है। सबसे ऊपर ऊँ (9) का चिन्ह बनाएं। इन सबके अतिरिक्त कलम, दवात, बहीखाते एवं सिक्कों की थैली भी रखें।
इस प्रकार मां लक्ष्मी की चौकी सजाने पर भक्त को साल भर पैसों की कोई कमी नहीं रहती है।

Friday, October 21, 2011

6 बुरी आदतों से किनारा करना चाहिए

महाभारत धन संपन्नता या लक्ष्मी का साया सिर पर बनाए रखने की ऐसी ही चाहत पूरी करने के लिए व्यावहारिक जीवन में कर्म व स्वभाव में कुछ गलत आदतों को पूरी तरह से दूर रहने की ओर साफ इशारा करता है। जिसके रहते लक्ष्मी की प्रसन्नता कठिन मानी गई है।
वैभवशाली, प्रतिष्ठित व सफल जीवन के लिए बेताब इंसान को बुरी आदतों से किनारा करना चाहिए - महाभारत में लिखा है कि -

षड् दोषा: पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता।

निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता।।


इस श्लोक मे कर्म, स्वभाव व व्यवहार से जुड़ी इन छ: आदतों से यथासंभव मुक्त रहने की सीख है -
नींद - अधिक सोना समय को खोना माना जाता है, साथ ही यह दरिद्रता का कारण बनता है, इसलिए नींद भी संयमित, नियमित और वक्त के मुताबिक हो। यानी वक्त और कर्म को महत्व देने वाला धन पाने का पात्र बनता है।
तन्द्रा - तन्द्रा यानि ऊँघना निष्क्रियता की पहचान है। यह कर्म और कामयाबी में सबसे बड़ी बाधा है। कर्महीनता से लक्ष्मी तक पहुंच संभव नहीं।
डर - भय व्यक्ति के आत्मविश्वास को कम करता है। जिसके बिना सफलता संभव नहीं। निर्भय व पावन चरित्र लक्ष्मी की प्रसन्नता का एक कारण है।
क्रोध
- क्रोध व्यक्ति के स्वभाव, गुणों और चरित्र पर बुरा असर डालता है। यह दोष सभी पापों का मूल है, जिससे लक्ष्मी दूर रहती है।
आलस्य
- आलस्य मकसद को पूरा करने में सबसे बड़ी बाधा है। संकल्पों को पूरा करने के लिए जरूरी है आलस्य को दूर ही रखें। यह अलक्ष्मी का रूप है।
दीर्घसूत्रता - जल्दी हो जाने वाले काम में अधिक देर करना, टालमटोल या विलंब करना।

वैभव लक्ष्मी की उपासना

देवी उपासना के किसी भी विशेष दिन जैसे, शुक्रवार, नवमी, नवरात्रि या दीपावली यानी, अमावस्या की रात्रि पर विशेष मंत्र से लक्ष्मी का ध्यान मनचाहे आनंद व समृद्धि देती है। वैभव लक्ष्मी की उपासना की आसान विधि और मंत्र विशेष - शुक्रवार को पूरे दिन व्रत रख शाम को स्नान के बाद माता लक्ष्मी की पूजा करें। वैभव लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र की पूजा में खासतौर पर लाल चंदन, गंध, लाल वस्त्र, लाल फूल अर्पित करें। खीर का भोग लगाएं। पूजा के बाद समृद्धि व शांति की इच्छा से इस वैभव लक्ष्मी मंत्र का यथाशक्ति जप करें -

या रक्ताम्बुजवासिनी विलासिनी चण्डांशु तेजस्विनी।

या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी॥

या रत्नाकरमन्थनात्प्रगटिता विष्णोस्वया गेहिनी।

सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती ॥


इस मंत्र जप के बाद वैभव लक्ष्मी व्रत कथा पढ़े या सुने। गोघृत दीप आरती करें। माता लक्ष्मी से क्षमा प्रार्थना करें व हर अभाव का दूर करने की कामना करें। प्रसाद ग्रहण कर घर के द्वार पर एक दीप लगाएं।

Sunday, September 25, 2011

शिव षडक्षर स्त्रोत

शिव उपासना की मंगलकारी घड़ी प्रदोष काल में कल्याणकारी देवता शिव के अद्भुत षड़ाक्षरी मंत्र स्तुति का स्मरण तमाम सफलता व सुख पाने के लिए असरदार माना गया है। जिसे शिव की पंचोपचार पूजा कर बोलना भी शुभ फलदायी माना गया है। शाम को शिव की पंचोपचार पूजा दूध, गंध, अक्षत, धतुरा, बिल्वपत्र व नैवेद्य अर्पित कर करें। धूप व दीप लगाकर नीचे लिखे षडाक्षरी मंत्र यानी ऊँ नम: शिवाय मंत्र की भी महिमा प्रकट करने वाले अद्भुत स्त्रोत का ध्यान कर शिव की आरती करें। यह शिव षडक्षर स्त्रोत के नाम से भी प्रसिद्ध है।

ऊँकार बिन्दुसंयुक्तं नित्यं ध्यायंति योगिन:।
कामदं मोक्षदं चैव ऊँकाराय नमो नम:।।

नमंति ऋषयो देवा नमन्त्यप्सरसां गणा:।
नरा नमंति देवेशं नकाराय नमो नम:।।

महादेव महात्मानं महाध्यानं परायणम्।
महापापहरं देव मकाराय नमो नम:।।

शिवं शातं जगन्ननाथं लोकानुग्रहकारकम्।
शिवमेकपदं नित्यं शिकाराय नमो नम:।।

वाहनं वृषभो यस्य वासुकि: कंठभूषणम्।
वामे शक्तिधरं वेदं वकाराय नमो नम:।।

यत्र तत्र स्थितो देव: सर्वव्यापी महेश्वर:।
यो गुरु : सर्वदेवानां यकाराय नमो नम:।।

षडक्षरमिदं स्तोत्रं य: पठेच्छिवसंनिधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते।।

Saturday, August 13, 2011

सूर्य उपासना शुभ फलदायी

भगवान सूर्य ही इस जगत के स्वामी है। सूर्य की शक्ति, गति और ऊर्जा ही जगत के लिये प्राणदायी है।ज्ञान व कर्म से सबल बन, समय की चाल को समझ और सकारात्मक सोच से ऊर्जावान बने रहकर ही सफलता, प्रतिष्ठा और यश से जीवन रोशन हो सकता है। रविवार को सूर्य उपासना बहुत ही शुभ फलदायी मानी गई है। सूर्य उपासना में विशेष मंत्र कामनासिद्धि में बहुत असरदार माने गए हैं। रविवार सूर्योदय से पहले स्नान करें, सूर्य उदय होने पर नीचे लिखे मंत्र से जल भरे तांबे के कलश से सूर्य अर्घ्य दें -
प्रभाकराय मित्राय नमस्तेदितिसम्भव।
नमो गोपतये नित्यं दिशां च पतये नम:।।

सूर्य को अर्घ्य देकर सूर्य की प्रतिमा को लाल चंदन, लाल कमल अर्पित कर गेहूं के आटे और घी व शक्कर से बने कसार का भोग लगाएं। इसके बाद नीचे लिखी सूर्य प्रार्थना बोलें -
यमाराध्य पुरा देवी सावित्री काममाप वै।
स मे ददातु देवेश: सर्वान् कामान् विभावसु:।।
यमाराध्यादिति: प्राप्ता सर्वान् कामान् यथेप्सितान्।
स ददात्वखिलान् कामान् प्रसन्नो मे दिवस्पति:।
भ्रष्टराज्यश्च देवेन्द्रो यमभ्यर्च्य दिवस्पति:।
कामान् सम्प्राप्तवान् राज्यं स मे कामं प्रयच्छतु।।

प्रार्थना पूजा के बाद गुग्गल धूप व दीप आरती कर निरोगी, सुखी व सफल जीवन की कामना सूर्य देव से करें।

Thursday, July 28, 2011

श्रंगार सुहागन के सुहाग के प्रतीक

हिन्दू धर्म में नववधु के लिए कुछ श्रंगार अनिवार्य माना माने गए हैं।है। हमारे धर्मशास्त्रों में भी इन सभी श्रंगारों को सुहागन के सुहाग का प्रतीक माना गया है। इसीलिए सभी नववधु के लिए ये सोलह श्रंगार बहुत जरूरी और एक तरह का शुभ शकुन माने गए हैं।
बिन्दी - सुहागिन स्त्रियां कुमकुम या सिन्दुर से अपने ललाट पर लाल बिन्दी जरूर लगाती है और इसे परिवार की समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
सिन्दुर - सिन्दुर को स्त्रियों का सुहाग चिन्ह माना जाता है। विवाह के अवसर पर पति अपनी पत्नि की मांग में सिंन्दुर भर कर जीवन भर उसका साथ निभाने का वचन देता है।
काजल - काजल आँखों का श्रृंगार है। इससे आँखों की सुन्दरता तो बढ़ती ही है, काजल दुल्हन को लोगों की बुरी नजर से भी बचाता है।
मेंहन्दी - मेहन्दी के बिना दुल्हन का श्रृंगार अधूरा माना जाता है। परिवार की सुहागिन स्त्रियां अपने हाथों और पैरों में मेहन्दी रचाती है। नववधू के हाथों में मेहन्दी जितनी गाढी़ रचती है, ऐसा माना जाता है कि उसका पति उतना ही ज्यादा प्यार करता है।
शादी का जोडा़ - शादी के समय दुल्हन को जरी के काम से सुसज्जित शादी का लाल जोड़ा पहनाया जाता है।
गजरा-दुल्हन के जूड़े में जब तक सुगंधित फूलों का गजरा न लगा हो तब तक उसका श्रृंगार कुछ फीका सा लगता है।
मांग टीका - मांग के बीचोंबीच पहना जाने वाला यह स्वर्ण आभूषण सिन्दुर के साथ मिलकर वधू की सुन्दरता में चार चाँद लगा देता है। राजस्थान में "बोरला" नामक आभूषण मांग टीका का ही एक रुप है। ऐसी मान्यता है कि इसे सिर के ठीक बीचोंबीच इसलिए पहना जाता है कि वधू शादी के बाद हमेशा अपने जीवन में सही और सीधे रास्ते पर चले और वह बिना किसी पक्षपात के सही निर्णय लें।
नथ - विवाह के अवसर पर पवित्र अग्नि के चारों ओर सात फेरे लेने के बाद में देवी पार्वती के सम्मान में नववधू को नथ पहनाई जाती है।
कर्ण फूल - कान में जाने वाला यह आभूषण कई तरह की सुन्दर आकृतियों में होता है, जिसे चेन के सहारे जुड़े में बांधा जाता है।
हार - गले में पहना जाने वाला सोने या मोतियों का हार पति के प्रति सुहागन स्त्री के वचनबध्दता का प्रतीक माना जाता है। वधू के गले में वर व्दारा मंगलसूत्र (काले रंग की बारीक मोतियों का हार जो सोने की चेन में गुंथा होता है) पहनाने की रस्म की बड़ी अहमियत होती है। इसी से उसके विवाहित होने का संकेत मिलता है।
बाजूबन्द - कड़े के समान आकृति वाला यह आभूषण सोने या चान्दी का होता है। यह बांहो में पूरी तरह कसा रहता है, इसी कारण इसे बाजूबन्द कहा जाता है।
कंगण और चूडिय़ाँ - हिन्दू परिवारों में सदियों से यह परम्परा चली आ रही है कि सास अपनी बडी़ बहू को मुंह दिखाई रस्म में सुखी और सौभाग्यवती बने रहने के आशीर्वाद के साथ वही कंगण देती है, जो पहली बार ससुराल आने पर उसकी सास ने दिए थे। पारम्परिक रूप से ऐसा माना जाता है कि सुहागिन स्त्रियों की कलाइयां चूडिय़ों से भरी रहनी चाहिए।
अंगूठी - शादी के पहले सगाई की रस्म में वर-वधू द्वारा एक-दूसरे को अंगूठी पहनाने की परम्परा बहुत पूरानी है। अंगूठी को सदियों से पति-पत्नी के आपसी प्यार और विश्वास का प्रतीक माना जाता रहा है।
कमरबन्द - कमरबन्द कमर में पहना जाने वाला आभूषण है, जिसे स्त्रियां विवाह के बाद पहनती है। इससे उनकी छरहरी काया और भी आकर्षक दिखाई देती है। कमरबन्द इस बात का प्रतीक कि नववधू अब अपने नए घर की स्वामिनी है। कमरबन्द में प्राय: औरतें चाबियों का गुच्छा लटका कर रखती है।
बिछुआ - पैरें के अंगूठे में रिंग की तरह पहने जाने वाले इस आभूषण को अरसी या अंगूठा कहा जाता है। पारम्परिक रूप से पहने जाने वाले इस आभूषण के अलावा स्त्रियां कनिष्का को छोडकर तीनों अंगूलियों में बिछुआ पहनती है।
पायल- पैरों में पहने जाने वाले इस आभूषण के घुंघरूओं की सुमधुर ध्वनि से घर के हर सदस्य को नववधू की आहट का संकेत मिलता है।

Wednesday, July 20, 2011

ग्रह को बलवान बनाने के कुछ उपाय

कई बार कुछ न कुछ नई परेशानी अवश्य ही उत्पन्न हो जाती है . बहुत से कार्य अटक जाते हैं। घर-परिवार में क्लेश, मानसिक तनाव रहता है। सामान्यत: इस प्रकार की सभी परेशानियों की वजह पैसा ही होता है। पर्याप्त धन नहीं है तो कई तरह की समस्याएं आपकों घेर लेंगी। इस प्रकार की परेशानियां विभिन्न ग्रहों की अलग-अलग अशुभ स्थिति के कारण उत्पन्न होती हैं। अपनी राशि से संबंधित ग्रह के शुभ प्रभाव के लिए एवं ग्रह को बलवान बनाने के लिए कुछ आसान उपाय अपना सकते है।
रत्न - राशि ग्रह के अशुभ प्रभाव को शुभ बनाने के लिए आप अपनी जन्म कुंडली के अनुसार उस ग्रह से संबंधित रत्न पहनें जो अशुभ प्रभाव दे रहा है। रत्न को ग्रह से संबंधित धातु में जड़वा कर अंगूठी, पेन्डेन्ट व ब्रेस्लेट में पहन सकते है। उस रत्न के माध्यम से किरणे शरीर में प्रवेश करके ग्रह को शक्ति प्रदान करती हैं।
जप- किसी भी ग्रह की दुर्बलता को दूर करने के लिए उस ग्रह से सम्बन्धित मन्त्र का जप निश्चित संख्या में करने से उस ग्रह को शक्ति प्राप्त होती है। जप करने से रत्न को भी सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
यज्ञ- वैदिक विधि के द्वारा ग्रह से सम्बन्धित मन्त्र का अनुष्ठान (हवन-यज्ञ) करने से अशुभ ग्रह भी बलवान होकर शुभ फल देने लग जाता है।
दान- ग्रह विशेष से संबंधित वस्तुओ को दान करने से अशुभ ग्रह के देवता प्रसन्न होकर अच्छा फल देते है।
यन्त्र- जन्मकुण्डली में जो ग्रह कमजोर होता है उससे संबंधित मन्त्र को विशेष मुहूर्त या उस ग्रह की होरा में भोजपत्र पर लिखें या किसी धातु (सोना, चाँदी, ताँबा) इत्यादि पर खुदवाकर सिद्ध कर लें. इस प्रकार सिद्ध किये हुए यन्त्र का नित्य प्रति पूजन करने से भी सम्बन्धित ग्रह में शक्ति का संचार होता है।
व्रत - जो ग्रह कमजोर होता है उससे संबंधित वार को व्रत रखने से व्यक्ति को उस ग्रह का शुभ फल प्राप्त होता है।

Thursday, July 7, 2011

मनचाही दुल्हन मिलेगी

- नवरात्रि में प्रतिदिन सुबह किसी शिव मंदिर में जाएं। वहां शिवलिंग पर दूध, दही, घी, शहद और शक्कर चढ़ाते हुए उसे अच्छी तरह से साफ करें। फिर शुद्ध जल चढ़ाएं और पूरे मंदिर में झाड़ू लगाकर उसे साफ करें। अब भगवान शिव की चंदन, पुष्प एवं धूप, दीप आदि से पूजा-अर्चना करें। रात्रि 10 बजे के पश्चात अग्नि प्रज्वलित कर ऊँ नम: शिवाय मंत्र का उच्चारण करते हुए घी से 108 आहुति दें। अब 40 दिनों तक नित्य इसी मंत्र का पांच माला जप भगवान शिव के सम्मुख करें। इससे शीघ्र ही आपकी मनोकामना पूर्ण होगी और अच्छे स्थान पर विवाह संबंध तय होगा। यदि विवाह में अड़चने अधिक आ रही हों तो मां जगदंबा का एक चित्र लाल कपड़े पर रखें और उसके सामने चावल से दो स्वस्तिक बनाएं। एक स्वस्तिक पर गणेशजी को विराजमान करें और दूसरे पर गौरी-शंकर रुद्राक्ष को स्थापित करें। यह रुद्राक्ष साक्षात मां पार्वती और भगवान शिव का प्रतीक है। अब इसके सम्मुख निम्नलिखित मंत्र का 108 बार जाप करें और विवाह में आ रही बाधाओं के निवारण और शीघ्र विवाह की प्रार्थना भगवान से करें-
ऊँ कात्यायन्यै नम:अंत में इस रुद्राक्ष को मां गौरी और भगवान शिव का प्रसाद समझकर गले में धारण कर लें। शीघ्र ही आपका विवाह अच्छे स्थान पर तय हो जाएगा।
- गुप्त नवरात्रि में रोज नीचे लिखे मंत्र का जप तीन माला करें। जप से पूर्व मां दुर्गा की पंचोपचार पूजा करें और उन्हें लाल रंग का सुगंधित पुष्प अवश्य चढ़ाएं। इसके प्रभाव से शीघ्र ही आपका विवाह अच्छे स्थान पर तय हो जाएगा-
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीं तारिणीं दुर्ग संसारसागरस्य कुलोद्भवाम्।।
नवरात्र के गुरुवार को पीले रंग का एक रुमाल मां दुर्गा को चढ़ाएं और पूजन के पश्चात यह रूमाल अपने साथ रखें। यह मां दुर्गा के प्रसादस्वरूप है। अब इसे आपको सदैव अपने साथ रखना है। शीघ्र आप देंखेंगे कि आपकी मनोकामना पूर्ण हो गई है।

Wednesday, June 29, 2011

एक वर्ष में चार नवरात्रि

हिंदू धर्म के अनुसार एक वर्ष में चार नवरात्रि होती है। वर्ष के प्रथम मास अर्थात चैत्र में प्रथम नवरात्रि होती है। चौथे माह आषाढ़ में दूसरी नवरात्रि होती है। इसके बाद अश्विन मास में प्रमुख नवरात्रि होती है। इसी प्रकार वर्ष के ग्यारहवें महीने अर्थात माघ में भी गुप्त नवरात्रि मनाने का उल्लेख एवं विधान देवी भागवत तथा अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।इनमें अश्विन मास की नवरात्रि सबसे प्रमुख मानी जाती है। इस दौरान पूरे देश में गरबों के माध्यम से माता की आराधना की जाती है। दूसरी प्रमुख नवरात्रि चैत्र मास की होती है। इन दोनों नवरात्रियों को क्रमश: शारदीय व वासंती नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। इसके अतिरिक्त आषाढ़ तथा माघ मास की नवरात्रि गुप्त रहती है। इसके बारे में अधिक लोगों को जानकारी नहीं होती, इसलिए इन्हें गुप्त नवरात्रि कहते हैं। गुप्त नवरात्रि विशेष तौर पर गुप्त सिद्धियां पाने का समय है। साधक इन दोनों गुप्त नवरात्रि में विशेष साधना करते हैं तथा चमत्कारिक शक्तियां प्राप्त करते हैं।

Sunday, June 26, 2011

शिव की साकार और निराकार भक्ति

शिव की भक्ति और पूजा साकार और निराकार दोनों रूप में होती है। शिव मूर्त या सगुण और अमूर्त या निर्गुण रूप में पूजे जाते हैं। शिव ऐसे स्वरूप, अलग-अलग गुण और शक्तियों के कारण अनेक नामों से प्रसिद्ध हैं। शिव का साकार रूप सदाशिव नाम से प्रसिद्ध है। इसी तरह शिव की पंचमूर्तियां - ईशान, तत्पुरुष, अघोर, वामदेव और सद्योजात से पूजनीय है, जो खासतौर पर पंचवक्त्र पूजा में पंचानन रूप का पूजन किया जाता है। भगवान शिव की अष्टमूर्ति पूजा का भी महत्व बताया गया है। यह अष्टमूर्ति है - शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव जो क्रम से पृथ्वी, जल, अग्रि, वायु, आकाश, क्षेत्रज्ञ, सूर्य और चन्द्र रूप में स्थित मूर्ति मानी गई है। साम्ब-सदाशिव, अर्द्धनारीश्वर, महामृत्युञ्जय, पशुपति, उमा-महेश्वर, पञ्चवक्त्र, कृत्तिवासा, दक्षिणामूर्ति, योगीश्वर और महेश्वर नाम से भी शिव के अद्भुत और शक्ति संपन्न स्वरूप पूजनीय है। रुद्र भगवान शिव का परब्रह्म स्वरूप है, जो सृष्टि रचना, पालन और संहार शक्ति के नियंत्रक माने गए हैं। रुद्र शक्ति के साथ शिव घोरा के नाम से भी प्रसिद्ध है। रुद्र रूप माया से परे ईश्वर का वास्तविक स्वरूप और शक्ति मानी गई है।
शैव ग्रंथों में शिव चरित्र और स्वभाव कल्याणकारी, समर्थ, पालक, उद्धारक, सर्वश्रेष्ठ, अविनाशी बताया गया है। यही कारण है कि शिव की उपासना सभी सांसारिक जीवों के लिये सुखद फल देने वाली मानी गई है। शास्त्रों में शिव की प्रसन्नता के लिये विशेष मंत्र बहुत प्रभावी माने गए हैं। इन मंत्रों में शिव पंचाक्षरी मंत्र सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। पांच अक्षरों का यह मंत्र छोटा जरूर है, लेकिन माना गया है कि इसमें वेद का सार समाया है। यह शिव द्वारा सिद्ध मंत्र माना गया है। जिसके जप से हर सुख और प्रसन्नता प्राप्त होती है। यही कारण है कि शिव उपासना के विशेष दिन सोमवार को पंचाक्षरी मंत्र के जप का महत्व सभी इच्छाओं की सिद्धी के लिये बहुत ही शुभ माना गया है।
सोमवार को यथासंभव व्रत रखकर रात्रि में भोजन करें। प्रात: स्नान कर शिवालय में शिव को गंगाजल या गाय के दूध से स्नान कराएं। शिव की पूजा में गंध, अक्षत, फूल, बिल्वपत्र चढ़ाकर नैवेद्य अर्पित करें। पूजा के बाद नीचे लिखे छोटे और बेहद आसान पंचाक्षरी मंत्र का जप करें-
नम: शिवाय
पूजा , मंत्र जप के बाद शिव आरती कर मनोकामना पूर्ति के लिये शिव के सामने मन ही मन प्रार्थना करें।

Saturday, June 18, 2011

शनैश्चर स्तवराज

शनि के कोप से बचने के लिये ही शास्त्रों में दोपहर में शनि पूजा कर शनैश्चर स्तवराज का पाठ बहुत असरदार माना गया है। विशेष तौर पर शनि दशा में यह शनि को अनुकूल बनाता है। अगर आप शनि दशा से गुजर रहे हैं या शनि दशा लगने वाली हो तो नीचे लिखी सरल विधि से शनि पूजा और मंत्र स्तुति करें - शनिवार के दिन दोपहर में शनि मंदिर में शनि प्रतिमा को गंध, तिल का तेल, काले तिल, उड़द, काला कपड़ा व तेल से बने व्यजंन चढ़ाकर नीचे लिखे शनैश्चर स्तवराज का पाठ करें -

ध्यात्वा गणपतिं राजा धर्मराजो युधिष्ठिरः।
धीरः शनैश्चरस्येमं चकार स्तवमुत्तमम।।
शिरो में भास्करिः पातु भालं छायासुतोवतु।
कोटराक्षो दृशौ पातु शिखिकण्ठनिभः श्रुती ।।
घ्राणं मे भीषणः पातु मुखं बलिमुखोवतु।
स्कन्धौ संवर्तकः पातु भुजौ मे भयदोवतु ।।
सौरिर्मे हृदयं पातु नाभिं शनैश्चरोवतु ।
ग्रहराजः कटिं पातु सर्वतो रविनन्दनः ।।
पादौ मन्दगतिः पातु कृष्णः पात्वखिलं वपुः ।
रक्षामेतां पठेन्नित्यं सौरेर्नामबलैर्युताम।।
सुखी पुत्री चिरायुश्च स भवेन्नात्र संशयः ।
सौरिः शनैश्चरः कृष्णो नीलोत्पलनिभः शन।।
शुष्कोदरो विशालाक्षो र्दुनिरीक्ष्यो विभीषणः ।
शिखिकण्ठनिभो नीलश्छायाहृदयनन्दनः ।।
कालदृष्टिः कोटराक्षः स्थूलरोमावलीमुखः ।
दीर्घो निर्मांसगात्रस्तु शुष्को घोरो भयानकः ।।
नीलांशुः क्रोधनो रौद्रो दीर्घश्मश्रुर्जटाधरः।
मन्दो मन्दगतिः खंजो तृप्तः संवर्तको यमः ।।
ग्रहराजः कराली च सूर्यपुत्रो रविः शशी ।
कुजो बुधो गुरूः काव्यो भानुजः सिंहिकासुत।।
केतुर्देवपतिर्बाहुः कृतान्तो नैऋतस्तथा।
शशी मरूत्कुबेरश्च ईशानः सुर आत्मभूः ।।
विष्णुर्हरो गणपतिः कुमारः काम ईश्वरः।
कर्ता हर्ता पालयिता राज्यभुग् राज्यदायकः ।।
छायासुतः श्यामलाङ्गो धनहर्ता धनप्रदः।
क्रूरकर्मविधाता च सर्वकर्मावरोधकः ।।
तुष्टो रूष्टः कामरूपः कामदो रविनन्दनः ।
ग्रहपीडाहरः शान्तो नक्षत्रेशो ग्रहेश्वरः ।।
स्थिरासनः स्थिरगतिर्महाकायो महाबलः ।
महाप्रभो महाकालः कालात्मा कालकालकः ।।
आदित्यभयदाता च मृत्युरादित्यनंदनः।
शतभिद्रुक्षदयिता त्रयोदशितिथिप्रियः ।।
तिथ्यात्मा तिथिगणनो नक्षत्रगणनायकः ।
योगराशिर्मुहूर्तात्मा कर्ता दिनपतिः प्रभुः ।।
शमीपुष्पप्रियः श्यामस्त्रैलोक्याभयदायकः ।
नीलवासाः क्रियासिन्धुर्नीलाञ्जनचयच्छविः ।।
सर्वरोगहरो देवः सिद्धो देवगणस्तुतः।
अष्टोत्तरशतं नाम्नां सौरेश्छायासुतस्य यः ।।
पठेन्नित्यं तस्य पीडा समस्ता नश्यति ध्रुवम् ।
कृत्वा पूजां पठेन्मर्त्यो भक्तिमान्यः स्तवं सदा ।।
विशेषतः शनिदिने पीडा तस्य विनश्यति।
जन्मलग्ने स्थितिर्वापि गोचरे क्रूरराशिगे ।।
दशासु च गते सौरे तदा स्तवमिमं पठेत् ।
पूजयेद्यः शनिं भक्त्या शमीपुष्पाक्षताम्बरैः ।।
विधाय लोहप्रतिमां नरो दुःखाद्विमुच्यते ।
वाधा यान्यग्रहाणां च यः पठेत्तस्य नश्यति ।।
भीतो भयाद्विमुच्येत बद्धो मुच्येत बन्धनात् ।
रोगी रोगाद्विमुच्येत नरः स्तवमिमं पठेत् ।।
पुत्रवान्धनवान् श्रीमान् जायते नात्र संशयः ।।
स्तवं निशम्य पार्थस्य प्रत्यक्षोभूच्छनैश्चरः ।
दत्त्वा राज्ञे वरः कामं शनिश्चान्तर्दधे तदा ।।

Wednesday, June 1, 2011

बहुत ही पुण्य और संकटनाशक योग

बुधवार बुध ग्रह दोष शांति और श्री गणेश उपासना से विघ्रनाश और बुद्धि, समृद्धि पाने का बहुत ही शुभ दिन माना जाता है। बुध को शनि का मित्र ग्रह भी माना गया है।
शनि जयंती के साथ बुधवार बहुत ही पुण्य और संकटनाशक योग है। पुराणों के मुताबिक भगवान गणेश के जन्म के बाद जब शनिदेव की शापित नजर से श्री गणेश का सिर धड़ से अलग हो गया और वह गजमुख बने, तब माता पार्वती द्वारा दिये गए अंगरहित हो जाने के शाप से रक्षा के लिए शनिदेव ने भी गणेश की उपासना की।
शनि दोष से बचने के लिए भी भगवान श्री गणेश की स्तुति बहुत ही प्रभावी मानी गई है। खासतौर पर बुधवार और शनि जयंती की घड़ी में गणेश गायत्री के अलग-अलग मंत्रों और शनि का ध्यान शनि पीड़ा से रक्षा करेगा - सुबह और शाम दोनों वक्त स्नान कर नवग्रह मंदिर में या घर के देवालय में भगवान गणेश और शनि की पूजा करें। शनि प्रतिमा को तिल का तेल चढ़ाएं और शनि का नीचे लिखे मंत्र से ध्यान करें, गंध, अक्षत, फूल अर्पित करें। तिल के पकवान चढ़ावें।

नीलांबुज समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छाया मार्तण्ड सम्भूतं शनिमावाह्याम्यहम्।।

भगवान गणेश की प्रतिमा की भी लाल चंदन, अक्षत, दूर्वा, फूल, सिंदूर, मोदक का भोग चढ़ाकर पूजा करें। पूजा के बाद नीचे लिखें गणेश गायत्री मंत्रों में सभी या एक का जप कर शनि पीड़ा के साथ जीवन में विघ्रों से रक्षा की कामना करें -

- ॐ तत्कराटाय विद्महे। हस्तिमुखाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।।
- ॐ तत्पुरुषाय विद्महे। वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।।
- ॐ लम्बोदराय विद्महे। महोदराय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।।
- ॐ महोल्काय विद्महे। वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।।

अंत में शनि और गणेश की आरती करें।

Wednesday, May 25, 2011

बुधवार के साथ अष्टमी

श्री गणेश की उपासना के लिए ही बुधवार का विशेष महत्व है। वहीं बुधवार के साथ अष्टमी का योग बहुत ही शुभ बताया गया है। क्योंकि अष्टमी तिथि के स्वामी शिव हैं, जो भगवान गणेश के पिता हैं। इसलिए आज (25 मई) बुधवार-अष्टमी के इस शुभयोग में शिव उपासना सांसारिक इच्छाओं को शीघ्र पूरा करने वाली और गणेश का स्मरण इन कामनाओं की बाधाओं का नाश करने वाली होगा। अगर आप भी जीवन से जुड़ी कामनाओं को पूरा करने और उनमें आने वाले विघ्रों को दूर करना चाहते हैं तो शास्त्रों में बताए भगवान गणेश के इन विशेष नामों का स्मरण और शिव पूजा के नीचे बताए तरीके को अपनाकर बहुत ही शुभ फल पा सकते हैं . सुबह स्नान कर शिव या गणेश मंदिर में भगवान गणेश की पूजा में गंध, अक्षत, पीले फूल, पीले वस्त्र, दूर्वा, सिंदूर और मोदक का भोग अर्पित कर नीचे लिखे गणेश मंत्र का ध्यान करें -

गणपूज्यो वक्रतुण्ड एकदंष्ट्री त्रियम्बक:।
नीलग्रीवो लम्बोदरो विकटो विघ्रराजक:।।
धूम्रवर्णों भालचन्द्रो दशमस्तु विनायक:।
गणपर्तिहस्तिमुखो द्वादशारे यजेद्गणम्।।


इसमें भगवान गणेश के बारह नामों का स्मरण है। संस्कृत भाषा पढऩे में असुविधा होने पर - गणपूज्य, वक्रतुण्ड, एकदंष्ट्र, त्रियम्बक (त्र्यम्बक), नीलग्रीव, लम्बोदर, विकट, विघ्रराज, धूम्रवर्ण, भालचन्द्र, विनायक और हस्तिमुख ये 12 गणेश नाम भी बोल कर भी पूजा की जा सकती है। इसी तरह शिवलिंग पर दूध मिला जल अर्पित कर शिव की पंचोपचार पूजा में गंध, अक्षत, फूल, बिल्वपत्र, आंकड़े के फूल अर्पित करें और पंचाक्षरी मंत्र 'नम: शिवाय' का ही जप कर लें। भगवान गणेश और शिव की पूजा के बाद गणेश और शिव आरती धूप और घी के दीप जलाकर करें। आरती के बाद क्षमाप्रार्थना करें. शिव-गणेश से जीवन की तमाम परेशानियों को दूर रखने या संकटमुक्ति की कामना करें। धार्मिक दृष्टि से बुधवार और अष्टमी के शुभ योग में शिव-गणेश की ऐसी पूजा, आरती और प्रार्थना संकटमुक्त जीवन देने वाली मानी गई है।

Friday, May 20, 2011

लक्ष्मी स्त्रोत

धन और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी की पूजा से जहां दरिद्रता का अंधेरा दूर होकर सुख समृद्धि का उजाला भरने वाली है। वहीं व्यावहारिक संदेश यह है कि जीवन में धन के साथ ज्ञान, विचार और बुद्धि बल भी जीवन से कलह, दु:ख और कष्टों को दूर करने के लिए अहम हैं। अगर आप भी जीवन से जुड़े किसी संताप, परेशानी या समस्याओं का सामना कर रहे हैं तो शाम के वक्त नियमित रूप से खासतौर पर शुक्रवार के दिन माता लक्ष्मी के इस स्त्रोत का पाठ जरूर करें - शाम को माता लक्ष्मी की सामान्य पूजा उपचारों गंध, अक्षत, फूल, फल, धूप और घी का दीप लगाने के बाद लक्ष्मी स्त्रोत का पाठ करें -

नमस्तेस्तु महामाये श्री पीठे सुरपूजिते।
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते।।
नमस्ते गरुडारूढ़े कोलासुरभयंकरि।
सर्वपापहरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते।।
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरि।
सर्वदु:खहरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते।।
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवी महालक्ष्मी भुक्ति-मुक्तिप्रदायिनी।
मन्त्रपूते सदादेवी महालक्ष्मी नमोस्तुते।।

Tuesday, May 17, 2011

सफलता और सौभाग्य

श्रेष्ठ मुहूर्त देखकर उस दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्म से निवृत्त हो लें। अब स्नान कर साफ वस्त्र पहन लें और उसके ऊपर पीला वस्त्र भी अवश्य पहनें। घर के किसी शांत कमरे में उत्तर दिशा की ओर मुंह करके ऊन के आसन पर चावल बिखेरें। इन चावलों पर मां सरस्वती, मां लक्ष्मी और भगवान गणेश का सम्मिलित चित्र स्थापित करें। इसके बाद पंचामृत का तिलक करें और आरती उतारें। तीन हकीक और सात गोमती चक्र अर्पित करें। फूल चढ़ाएं और मावे का प्रसाद चढ़ाएं। धूप-दीप और अगरबत्ती दिखाएं। अब इस हकीक की माला से इस मंत्र का 1188 बार उच्चारण करें अर्थात 21 माला।
ऊँ श्रीं कृं क्षौं सिद्धये ऊँ
मंत्र जपते समय बीच में किसी से कोई बात न करें। अब मां लक्ष्म, मां सरस्वती और गणपति देव का स्मरण करें और प्रार्थना करें कि आपका भविष्य उज्जवल हो, आपको सफलता मिले और सौभाग्य की प्राप्ति हो। साधना समाप्ति के बाद पूजन सामग्री किसी लक्ष्मी मंदिर में चढ़ा दें। चित्र पूजाघर में स्थापित कर प्रसाद बांट दें।

हनुमान भक्ति से मंगल दोष शांति

श्री हनुमान की उपासना। श्री हनुमान भी रुद्र यानी शिव के अवतार माने जाते हैं। मंगल भी शिव के ही अंश है। यही कारण है कि हनुमान की भक्ति मंगल पीड़ा को भी शांत करने में प्रभावी मानी गई है। इसलिए जाने श्री हनुमान भक्ति से मंगल दोष शांति के लिए कुछ विशेष हनुमान मंत्र, जो हनुमान की सामान्य पूजा के बाद बोलें -
- मंगलवार के दिन स्नान कर खासतौर पर लाल वस्त्र पहनकर श्री हनुमान की पूजा में सिंदूर, लाल चंदन, लाल अक्षत, लाल कलेवा, वस्त्र, लाल फूल चढ़ाकर लाल अनार का भोग लगाएं। पूजा के बाद मंगलदोष शांति की कामना के साथ श्री हनुमान के इन सरल मंत्रों का जप करें -
- ॐ रुद्रवीर्य समुद्भवाय नम: - ॐ शान्ताय नम: - ॐ तेजसे नम: - ॐ प्रसन्नात्मने नम: - ॐ शूराय नम:
हनुमान मंत्र जप के बाद श्री हनुमान और मंगल देव का ध्यान कर लाल चन्दन लगे लाल फूल और अक्षत लेकर श्री हनुमान के चरणोंं में अर्पित करें। श्री हनुमान की आरती करें और मंगल दोष से रक्षा की प्रार्थना करें।

Tuesday, May 10, 2011

केतु के अशुभ प्रभाव को कम करें

ज्योतिष शास्त्र में केतु को पाप ग्रह माना गया है। इसके प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में कई संकट आते हैं। कुछ साधारण उपाय कर केतु के अशुभ प्रभाव को कम किया जा सकता है। इन टोटकों को करने से केतु से संबंधित आपकी हर समस्या स्वत: ही समाप्त हो जाएगी।
त्रयोदशी का व्रत रखे .भैरवजी की उपासना करें। केले के पत्ते पर चावल का भोग लगाएं। गाय के घी का दीपक प्रतिदिन शाम को जलाएं। हरा रुमाल सदैव अपने साथ में रखें। तिल के लड्डू सुहागिनों को खिलाएं और तिल का दान करें। कन्याओं को रविवार के दिन मीठा दही और हलवा खिलाएं। बरफी के चार टुकड़े बहते पानी में बहाएं। कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन शाम को एक दोने में पके हुए चावल लेकर उस पर मीठा दही डाल लें और काले तिल के कुछ दानों को रख दान करें। यह दोना पीपल के नीचे रखकर केतु दोष शांति के लिए प्रार्थना करें। पीपल के वृक्ष के नीचे प्रतिदिन कुत्ते को मीठी रोटी खिलाएं। दो रंग का कंबल किसी गरीब को दान करें।

Saturday, April 30, 2011

चौदह मुखी रुद्राक्ष श्री हनुमान का रूप

रुद्राक्ष शिव का अंश माना गया है। धार्मिक मान्यताओं में इसकी उत्पत्ति भी शिव के आंसुओं से मानी गई है। रुद्र और अक्ष यानी आंसु शब्द को मिलाकर इसे रुद्राक्ष पुकारा जाता है। शिव का अंश होने से ही यह सांसारिक पीड़ाओं को दूर करने वाला तो माना ही गया है। साथ ही धर्म और आध्यात्मिक रूप से भी रुद्राक्ष का प्रभाव धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाला होता है। अलग-अलग रूपों और आकार के रुद्राक्ष जगत के लिए संकटमोचक, सुख-सौभाग्य देने वाले और मनोरथ पूरे करने वाले बताए गए हैं। रुद्राक्ष की पहचान उस पर बनी धारियों से होती है। इन धारियों को रुद्राक्ष का मुख मानकर शास्त्रों में एकमुखी से इक्कीस मुखी रुद्राक्ष का महत्व बताया गया है।
सभी रुद्राक्ष में अलग-अलग देव शक्तियों का रूप और वास माना गया है। जिनमें बहुत से दुर्लभ हैं। जिनमें चौदह मुखी रुद्राक्ष श्री हनुमान का रूप माना गया है। जिसकी पूजा या धारण करने से श्री हनुमान की शक्तियों का प्रभाव विपत्तियों से बचाने वाला माना गया है। श्री हनुमान भी रुद्रावतार है और रुद्राक्ष भी शिव का वरदान माना गया है। वहीं पौराणिक मान्यताओं में शनि ने शिव कृपा से ही शक्ति और ऊंचे पद को पाया। इसलिए माना गया है कि शिव और हनुमान की शक्तियों के आगे शनि भी नतमस्तक रहते हैं। शनि साढ़े साती, महादशा या शनि पीड़ा के दौरान चौदह मुखी रुद्राक्ष को पहनना या उसकी उपासना शनि दशा में अनिष्ठ से रक्षा ही नहीं करती, बल्कि सुख-सौभाग्य लाने वाली होती है। चौदहमुखी रुद्राक्ष श्री हनुमान कृपा से उपासक को निडर, ऊर्जावान, निरोगी बनाता है। यह संतान व भूतबाधा दूर करता है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इसके गुण व शुभ प्रभाव अनंत है। यह स्वर्ग के सुख के साथ ही शनि पीड़ा जैसे क्रूर देवीय प्रकोप से भी बचाता है।

Tuesday, April 26, 2011

विवाह संबंधी समस्या का त्वरित निराकरण

एक महत्वपूर्ण समस्या है सही समय पर विवाह। युवा अपने कैरियर को लेकर इतने व्यस्त रहते हैं कि उनकी शादी की सही आयु कब निकल जाती है उन्हें पता भी नहीं चलता। ऐसे में विवाह होना और मुश्किल हो जाता है। एक अचूक प्रयोग हैं जिससे अविवाहित युवाओं की विवाह संबंधी समस्या का त्वरित निराकरण हो जाएगा। यह प्रयोग लड़के और लड़कियों दोनों द्वारा किया जा सकता है। इस प्रयोग को अक्षय तृतीया के शुभ मुहूर्त में किया जाना चाहिए।
प्रयोग रात के समय किया जाना चाहिए। इसके लिए आप एक बाजोट पर पीला कपड़ा बिछाएं और पूर्व दिशा की ओर मुख करके उस बैठ जाएं।मां पार्वती का चित्र अपने सामने रखें।अपने सामने बाजोट पर एक मुट्ठी गेहूं की ढेरी रखें। गेहूं पर एक विवाह बाधा निवारण विग्रह स्थापित करें और चंदन या केसर से तिलक करें। पूरी प्रक्रिया ठीक से होने के बाद हल्दी माला से निम्न मंत्र का जप करें:
लड़कों के लिए मंत्र-
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोदभवाम्।।

लड़कियों के लिए मंत्र-
ऊँ गं घ्रौ गं शीघ्र विवाह सिद्धये गौर्यै फट्।
मंत्र को चार दिनों तक नित्य 3-3 माला का जप करें। अंतिम दिन इस सामग्री को देवी पार्वती के चरणों में किसी भी मंदिर में छोड़ आएं। शीघ्र ही विवाह हो जाएगा।

Monday, April 25, 2011

बुध बुद्धिमत्ता -वाकपटुता का निर्धारक

बुधवार के दिन बुध ग्रह की देव रुप में उपासना का महत्व है। बुध ग्रह, चंद्र देव और तारा की संतान है। लिंग पुराण के अनुसार बुध चंद्रमा और रोहिणी की संतान माने जाते हैं। जबकि विष्णु पुराण बुध चंद्रमा और बृहस्पति की पत्नी तारा की संतान है। बुध देव चार भुजाओं वाले हैं और उनका वाहन सिंह है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार बुध ग्रह बुद्धिमत्ता और वाकपटुता का निर्धारक है। बुध के शुभ प्रभाव से किसी भी व्यक्ति को विद्वान, शिक्षक, कलाकार और सफल व्यवसायी बना सकता है।
कड़ी प्रतियोगिता के दौर में आज का युवाओं के लिए भी मजबूत मानसिक क्षमताओं का होना बहुत जरूरी है। क्योंकि अच्छे कॅरियर बनाने के लिए शिक्षा व ज्ञान बहुत अहम है। अगर आप भी तेज दिमाग, मानसिक शक्ति, एकाग्रता चाहें तो बुधवार के दिन बुध देव की प्रसन्नता के यह मंत्र जप जरूर करें -
स्नान कर किसी नवग्रह मंदिर या घर के देवालय में बुधदेव की मूर्ति की पंचोपचार पूजा करें। पूजा में खासतौर पर हरी पूजा सामग्री भी चढ़ाएं। गंध, अक्षत, फूल के अलावा हरे वस्त्र अर्पित करें। गुड़, दही और भात का भोग लगाएं। धूप और अगरबत्ती, दीप जलाकर पूजा-आरती करें।पूजा या आरती के बाद बुध देव का बीज मंत्र
ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम: या ऊँ बुं बुधाय नम: का जप करें। कम से कम 108 बार मंत्र जप अवश्य करें।

Saturday, April 23, 2011

महालक्ष्मी को मनाने अक्षय तृतीया पर उपाय

नौकरी के लिए भी प्रतिस्पर्धा में काफी बढ़ोतरी हुई है। अधिकांश लोगों को या तो जॉब नहीं मिल पाती या योग्यता के अनुसार अच्छी नौकरी के लिए संघर्ष करना पड़ता है। अपनी इच्छानुसार जॉब नहीं मिल पा रही है तो निम्न उपाय करें।कई बार कुंडली में ग्रह दोष होने की वजह से अच्छी जॉब नहीं मिल पाती। यदि कुंडली में कोई ग्रह बाधा हो तो योग्य व्यक्तियों को भी सही नौकरी नहीं मिल पाती है। ऐसे में ज्योतिष के अनुसार संबंधित ग्रह का उचित उपचार या पूजन करना ही श्रेष्ठ रहता है। इसके लिए धन संबंधी कार्यों में महालक्ष्मी की कृपा अवश्य चाहिए।
ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नानादि कार्यों से निवृत्त हो जाएं। अब घर में किसी पवित्र और शांत स्थान में बाजोट पर सफेद वस्त्र बिछाएं और स्वयं पूर्व दिशा की ओर मुख करके कुश के आसन पर बैठ जाएं। सफेद वस्त्र पर चावल की ढेरी बनाएं। इस ढेरी गायत्री यंत्र स्थापित करें। अब सात गोमती चक्र लें, इन्हें हल्दी से रंगकर पीला कर दें। इन्हें भी गायत्री यंत्र के साथ ही रखें। फिर धूप-दीप करके विधिवत पूजन करें और मावे की मिठाई का भोग लगाएं। पूजन के बाद 11 माला मंत्र (ऊँ वर वरदाय सर्व कार्य सिद्धि करि-करि ऊँ नम:) का जप करें। मंत्र जप के लिए कमल के गट्टे की माला का प्रयोग करें। जप समाप्ति के बाद मिठाई का प्रसाद घर के सभी सदस्यों और अन्य लोगों को दें।अब समस्त पूजन सामग्री को सफेद कपड़े में बांधकर किसी तालाब, नदी, कुएं या अन्य पवित्र जल के स्थान पर विसर्जित कर आएं। ध्यान रहें घर लौटते समय पीछे मुड़कर न देखें। घर लौटकर पुन: स्नान करें।इस प्रयोग को करते समय मन में किसी प्रकार की शंका, संदेह लेकर न आएं अन्यथा उपाय निष्फल हो जाएगा। विधिवत पूजन के बाद जल्दी आपको अच्छी नौकरी मिलने की संभावनाएं बनने लगेंगी। ध्यान रहे इस दौरान किसी भी प्रकार के अधार्मिक कर्मों से खुद दूर ही रखें।
संसार में उन्नति करने के लिए जिन बातों की जरूरत होती है उनमें से एक है आत्मबल। यदि मानसिक अस्थिरता है तो यह बल बिखर जाता है। इस कारण भीतरी व्यक्तित्व में एक कंपन सा आ जाता है। भीतर से कांपता हुआ मनुष्य बाहरी सफलता को फिर पचा नहीं पाता, या तो वह अहंकार में डूब जाता है या अवसाद में, दोनों ही स्थितियों में हाथ में अशांति ही लगती है यह आत्मबल जिस ऊर्जा से बनता है वह ऊर्जा हमारे भीतर सही दिशा में बहना चाहिए। हमारे भीतर यह ऊर्जा या कहें शक्ति दो तरीके से बहती है। पहला विचारों के माध्यम से, दूसरा ध्यान यानी अटेंशन के जरिए।हम भीतर जिस दिशा में या विषय पर सोचेंगे यह ऊर्जा उधर बहने लगेगी और उसको बलशाली बना देगी। इसीलिए ध्यान रखें जब क्रोध आए तो सबसे पहला काम करें उस पर सोचना छोड़ दें। क्योंकि जैसे ही हम क्रोध पर सोचते हैं ऊर्जा उस ओर बहकर उसे और बलशाली बना देती है। गलत दिशा में ध्यान देने से ऊर्जा वहीं चली जाएगी। इसे सही दिशा में करना हो तो प्रेम जाग्रत करें। इस ऊर्जा को जितना भीतरी प्रेमपूर्ण स्थितियों पर बहाएंगे वही उसकी सही दिशा होगी। फिर यह ऊर्जा सृजन करेगी, विध्वंस नहीं। माता-पिता जब बच्चे को मारते हैं तब यहां क्रोध और हिंसा दोनों काम कर रहे हैं। बाहरी क्रिया में क्रोध-हिंसा है, परन्तु भीतर की ऊर्जा प्रेम की दिशा में बह रही होती है। माता-पिता यह क्रोध अपनी संतान के सृजन, उसे अच्छा बनाने के लिए कर रहे होते हैं। किसी दूसरे बच्चे को गलत करता देख वैसा क्रोध नहीं आता, क्योंकि भीतर जुड़ाव प्रेम का नहीं होता है। इसलिए ऊर्जा के बहाव को भीतर से चैक करते रहें उसकी दिशा सदैव सही रखें, तो बाहरी क्रिया जो भी हो भीतर की शांति भंग नहीं होगी।

Friday, April 22, 2011

पति-पत्नी का रिश्ता टूटने से बच सकता है

पति-पत्नी की रिश्ता बड़ा नाजुक होता है। छोटी सी गलतफहमी इस रिश्ते को तोड़ सकती है। वर्तमान के समय काम का बोझ व दूसरी जिम्मेदारियों के चलते पति-पत्नी एक-दूसरे को समय नहीं दे पाते। ऐसे में उनके बीच दूरियां बढऩे लगती है और कई बार यह रिश्ता टूटने की कगार पर पहुंच जाता है। यदि इस मंत्र का जप किया जाए तो पति-पत्नी के मतभेद समाप्त हो जाते हैं और उनका रिश्ता टूटने से बच सकता है

अक्ष्यौ नौ मधुसंकाशे अनीकं नौ समंजनम्।
अंत कृणुष्व मां ह्रदि मन इन्नौ सहासति

प्रतिदिन इस मंत्र का 21 माला जप करने से पति-पत्नी में न केवल प्रेम बना रहता है बल्कि प्रेम में प्रगाढ़ता भी आती है। यह मंत्र पति-पत्नी स्वयं भी कर सकते हैं या किसी योग्य ब्राह्मण से भी करवा सकते हैं।
हर माता-पिता की इच्छा होता है कि उनके बेटे का विवाह धूम-धाम से हो। लेकिन कभी-कभी कुछ कारणों के चलते उचित समय पर उसका विवाह नहीं हो पाता। यदि आपके साथ भी यही समस्या है तो नीचे लिखे टोटके से इस समस्या का निदान संभव है . कुम्हार अपने चाक को जिस डंडे से घुमाता है, उसे किसी तरह किसी को बिना बताए प्राप्त कर लें। इसके बाद घर के किसी कोने को रंग-रोगन कर साफ कर लें। इस स्थान पर उस डंडे को लंहगा-चुनरी व सुहाग का अन्य सामग्री से सजाकर दुल्हन का स्वरूप देकर एक कोने में खड़ करके गुड़ और चावलों से इसकी पूजा करें। इससे लड़के का विवाह शीघ्र ही हो जाता है। यदि चालीस दिनों में इच्छा पूरी न हो तो फिर यही प्रक्रिया दोहराएं(डंडा प्राप्त करने से लेकर पूजा तक)। यह प्रक्रिया सात बार कर सकते हैं।

बुध के कमजोर रहने पर त्वचा रोग

चेहरे पर कील-मुंहासे हैं तो हर बात बेकार हो जाती है। कील-मुंहासे चेहरों पर भद्दे दाग के समान होते हैं। दवाइयां आदि लेने के बाद भी यदि कील-मुंहासे ठीक नहीं हो रहे हैं तो हो सकता है किसी ग्रह दोष की वजह से आपको इस समस्या का सामना करना पड़ रहा है। त्वचा रोग के लिए बुध ग्रह, शनि, राहु, मंगल के अशुभ होने पर तथा सूर्य, चंद्र के कमजोर होने पर त्वचा रोग होते हैं। कुण्डली में षष्ठम यानि छठां भाव त्वचा से संबंधित होता है। यदि कुंडली में सप्तम स्थान पर केतु भी त्वचा रोग का कारण बन सकता हैै। बुध यदि बलवान है तो यह रोग पूरा असर नहीं दिखाता, वहीं बुध के कमजोर रहने पर निश्चित ही त्वचा रोग परेशान कर सकते हैं।
चंद्र के कारण पानी अथवा मवाद से भरी फुंसी व मुंहासे होती है। मंगल के कारण रक्त विकार वाले कील-मुंहासे होते हैं। राहु के प्रभाव से दर्द देने वाले कील-मुंहासे होते हैं। यदि षष्ठम स्थान पर कोई अशुभ ग्रह है तो उसका उपचार कराएं। सूर्य मंत्रों या आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें। शनिवार के दिन कुत्ते को तेल चुपड़ी रोटी खिलाएं। सरस्वती स्तोत्र का पाठ करें। पारद शिवलिंग का पूजन करें। प्रतिदिन सूर्य को जल चढ़ाएं और 7 परिक्रमा करें।

Thursday, April 21, 2011

शराब का आदि शराब छोड़ देगा

शराब न सिर्फ एक व्यक्ति को बल्कि पूरे परिवार को नष्ट कर देती है। जीवन खराब हो जाता है। ऐसे कई टोटके हैं जिनसे शराब की लत को छुड़वाया जा सकता है. शुक्ल पक्ष के पहले शनिवार को सुबह सवा मीटर काला कपड़ा तथा सवा मीटर नीला कपड़ा लेकर इन दोनों को एक-दूसरे के ऊपर रख दें। इस पर 800 ग्राम कच्चे कोयले, 800 ग्राम काली साबूत उड़द, 800 ग्राम जौ एवं काले तिल, 8 बड़ी कीलें तथा 8 सिक्के रखकर एक पोटली बांध लें। फिर जिस व्यक्ति की शराब छुड़वाना हो उसकी लंबाई से आठ गुना अधिक काला धागा लेकर एक जटा वाले नारियल पर लपेट दें। इस नारियल को काजल का तिलक लगाकर धूप-दीप अर्पित करके शराब पीने की आदत छुड़ाने का निवेदन करें। फिर यह सारी सामग्री किसी नदी में प्रवाहित कर दें। जब सामग्री दूर चली जाए तो घर वापस आ जाएं। इस दौरान पीछे मुड़कर न देखें। घर में प्रवेश करने से पहले हाथ-पैर धोएं। शाम को किसी पीपल के वृक्ष के नीचे जाकर तिल के तेल का दीपक लगाएं। यही प्रक्रिया आने वाले बुधवार व शनिवार को फिर दोहराएं। इस टोटके के बारे में किसी को कुछ न बताएं।कुछ ही समय में आप देखेंगे कि जो व्यक्ति शराब का आदि था वह शराब छोड़ देगा।

Sunday, April 17, 2011

कालसर्प के मुख और शुभ प्रभाव में ग्रह

आमतौर पर माना जाता है कि कालसर्प दोष जीवन में बहुत दु:ख देता है और असफलता का कारण भी होता है। कई बार कुंडली में विशेष योगों के चलते यह शुभाशुभ फल भी प्रदान करता है। राहु को कालसर्प का मुख माना गया है। यदि राहु के साथ कोई भी ग्रह उसी राशि और नक्षत्र में शामिल है, तो वह ग्रह कालसर्प योग के मुख में स्थित माना जाता है। यदि जातक की कुंडली में सूर्य कालसर्प के मुख में स्थित है अर्थात राहु के साथ स्थित हो तथा 1, 2, 3, 10 अथवा 12 वें स्थान में हो एवं शुभ राशि और शुभ प्रभाव में हो तो प्रतिष्ठा दिलवाता है। जातक का स्वास्थ्य उत्तम रहता है। वह राजनीतिक और सामाजिक कार्यों में प्रसिद्धि प्राप्त करता है।
यदि जातक की कुंडली में कालसर्प के मुख में चंद्रमा शुभ स्थिति और प्रभाव में हो तो जातक को परिपक्व और उच्च विचारधारा वाला बनाता है।यदि जातक की कुंडली में मंगल कालसर्प के मुख में स्थित हो तो इसकी शुभ एवं बली स्थिति जातक को पराक्रमी और साहसी तथा व्यवहार कुशल बनाती है। वह हमेशा कामयाब होता है।बुध यदि कालसर्प के मुख में स्थित हो तथा शुभ स्थिति और प्रभाव में हो तो ऐसे जातक को उच्च शिक्षा मिलती है तथा वह बहुत उन्नति भी करता है।राहु के साथ गुरु की युति गुरु-चांडाल योग बनाती है। ज्योतिष में इसे अशुभ माना जाता है। लेकिन अगर यह योग शुभ स्थिति और शुभ प्रभाव में हो तो जातक को अच्छी प्रगति मिलती है। कालसर्प के मुख में स्थित शुक्र शुभ स्थिति और प्रभाव में होने पर पूर्ण स्त्री सुख प्रदान करता है। दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है। यदि कालसर्प के मुख में शनि शुभ स्थिति हो तो जातक को परिपक्व और तीक्ष्ण बुद्धि वाला होता है।

Saturday, April 16, 2011

पंचमुखी हनुमान की भक्ति चमत्कारिक फलदायी

चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को श्री हनुमान का जन्मोत्सव मनाया जाता है। श्री हनुमान रूद्र अवतार माने गए हैं। श्री हनुमान चरित्र गुण, शील, शक्ति, बुद्धि कर्म, समर्पण, भक्ति, निष्ठा, कर्तव्य जैसे आदर्शों से भरा है। आशुतोष यानि भगवान शिव का अवतार होने से उनकी तरह ही श्री हनुमान भी थोड़ी ही भक्ति से जल्दी ही हर कलह, दु:ख व पीड़ा को दूर करने वाली मानी जाती है। यही कारण है कि श्री हनुमान भक्ति से गहरी धार्मिक और जन आस्था जुड़ी है। श्री हनुमान की साधना अनेक रूपों में की जाती है। जिनमें बाल हनुमान, भक्त हनुमान, वीर हनुमान, दास हनुमान, योगी हनुमान आदि प्रसिद्ध है। किंतु शास्त्रों में श्री हनुमान के ऐसे चमत्कारिक स्वरूप और चरित्र की भक्ति का महत्व बताया गया है, जिससे भक्त को बेजोड़ शक्तियां प्राप्त होती है। श्री हनुमान का यह रूप है - पंचमुखी हनुमान।

पांच मुख वाले हनुमान की भक्ति न केवल लौकिक मान्यताओं में बल्कि धार्मिक और तंत्र शास्त्रों में भी बहुत ही चमत्कारिक फलदायी मानी गई है। जानते हैं पंचमुखी हनुमान के स्वरूप और उनसे मिलने वाली शक्तियों को -
एक बार पांच मुंह वाले दैत्य ने तप कर ब्रह्मदेव से यह वर पा लिया कि उसे अपने जैसे ही रूप वाले से मृत्यु प्राप्त हो। ऐसा वर पाकर उसने जगत को भयंकर पीड़ा पहुंचाना शुरू किया। तब देवताओं की प्रार्थना पर श्री हनुमान ने पांच मुखों वाले रूप में अवतार लिया और उस दैत्य का अंत कर दिया। श्री हनुमान के पांच मुख पांच दिशाओं में हैं। हर रूप एक मुख वाला, त्रिनेत्रधारी यानि तीन आंखों और दो भुजाओं वाला है। यह पांच मुख नरसिंह, गरुड, अश्व, वानर और वराह रूप है। पंचमुखी हनुमान का पूर्व दिशा में वानर मुख है, जो बहुत तेजस्वी है। जिसकी उपासना से विरोधी या शत्रु पराजित हो जाता है। पंचमुखी हनुमान का पश्चिमी मुख गरूड का है, जिसके दर्शन और भक्ति संकट और बाधाओं का नाश करती है। पंचमुखी हनुमान का उत्तर दिशा का मुख वराह रूप होता है, जिसकी सेवा-साधना अपार धन, दौलत, ऐश्वर्य, यश, लंबी आयु, स्वास्थ्य देती है। पंचमुखी हनुमान का दक्षिण दिशा का मुख भगवान नृसिंह का है। इस रूप की भक्ति से हर चिंता, परेशानी और डर दूर हो जाता है। पंचमुखी हनुमान का पांचवा मुख आकाश की ओर दृष्टि वाला होता है। यह रूप अश्व यानि घोड़े के समान होता है। श्री हनुमान का यह करुणामय रूप होता है, जो हर मुसीबत में रक्षा करने वाला माना जाता है। पंचमुख हनुमान की साधना से जाने-अनजाने हुए सभी बुरे कर्म और विचारों के दोषों से छुटकारा मिलता है। वही धार्मिक रूप से ब्रह्मा, विष्णु और महेश त्रिदेवों की कृपा भी प्राप्त होती है। इस तरह श्री हनुमान का यह अद्भुत रूप शारीरिक, मानसिक, वैचारिक और आध्यात्मिक आनंद और सुख देने वाला माना गया है।

Saturday, April 9, 2011

सूर्य-शनि एक दूसरे के शत्रु

सूर्य-शनि को एक दूसरे का शत्रु माना गया है। सूर्य की उच्च राशि मेष में शनि बुरा फल देने वाला होता है . शनि की उच्च राशि तुला में सूर्य भी बुरा फल देता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य और शनि एक साथ एक ही भाव में स्थित हो तो अधिकांशत: इसके बुरे प्रभाव ही झेलने पड़ते हैं। सूर्य-शनि की युति कुंडली के कुछ भावों में शुभ फल दे सकती है लेकिन कुंडली के प्रमुख भावों में अशुभ फल ही देने वाली रहेगी। कुंडली का पहला भाव, चौथा भाव, सातवां और दसवां भाव ये चार प्रमुख घर होते हैं, जिनमें सूर्य-शनि अशुभ फल देते हैं। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य और शनि लग्न में स्थित है तो वह व्यक्ति दुराचारी, बुरी आदतों वाला, मंदबुद्धि और पापी प्रवृत्ति का होता है। यदि शनि और सूर्य चतुर्थ भाव में है तो व्यक्ति नीच, दरिद्र और भाइयों तथा समाज में अपमानित होने वाला होता है। यदि सूर्य और शनि सप्तम भाव में स्थित है तो व्यक्ति आलसी, भाग्यहीन, स्त्री और धन से रहित, शिकार खेलने वाला और महामूर्ख होता है। यदि दशम भाव में यह दोनों ग्रह स्थित हो तो व्यक्ति विदेश में नौकरी करने वाला होता है। यदि इन्हें अपार धन की प्राप्ति भी हो जाए तो वह चोरी हो जाता है।
शनि की नजर तीन तरह की होती है। तीसरी, सातवीं और दसवीं। कुंडली में जिस राशि में शनि हो उस राशि से तीसरी, सातवीं और दसवी राशि वालों पर शनि की नजर पड़ती है। शनि की दृष्टि अशुभ होती है। ब्रह्मवैवर्तपुराण की एक कथा के अनुसार शनि को अपनी पत्नी से ही शाप मिला था जिसकी वजह से इनकी दृष्टि में दोष बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि शनि की नजर पडऩे पर कुछ न कुछ बुरा हो ही जाता है लेकिन शनि की हर नजर इतनी अशुभ नही होती जितनी अशुभ तीसरी नजर होती है। कुंडली के जिस घर में शनि होता है उस घर से तीसरे घर पर शनि की नजर होती है। ज्योतिष में इस दृष्टि को खराब माना गया है। कुंडली में जिस घर पर शनि की ये दृष्टि होती है शनि उस भाव से संबंधित फल को कम कर देता है। इस तीसरी नजर को शनि की वक्र दृष्टि कहा जाता है, यानी टेढ़ी नजर। जब शनि टेढ़ी नजर से देखता है तो नुकसान ही उठाना पड़ता है। शनि की यह टेढ़ी नजर सातवीं और दसवीं नजर की तुलना में खराब फल देने वाली होती है। जिस पर शनि की ये टेढ़ी नजर होती है उसे जरूरत से ज्यादा मेहनत करने पर ही परिणाम मिलते हैं। शनि की इस दृष्टि से शरीर के अंगों में दोष हो जाता है। ऐसी नजर पडऩे पर व्यक्ति विकलांग भी हो सकता है। शनि की तीसरी नजर के प्रभाव से आलस्य, प्रमाद और पुरुषार्थ में कमी करता है। निराशा, चिंता और मानसिक तनाव भी इसी दृष्टि के प्रभाव से होता है।

Thursday, April 7, 2011

एक श्लोकी भागवत देता हर कष्ट से मुक्ति

ऐसे में नीचे लिखे इस एक मंत्र का विधि-विधान पूर्वक जप करने से संपूर्ण भागवत पढऩे या सुनने का फल मिलता है। इस श्लोक को एक श्लोकी भागवत कहते हैं। यह बहुत चमत्कारी श्लोक है। इसका जप करने से साधक को हर कष्ट से मुक्ति मिल जाती है।
एक श्लोकी भागवत
आदौ देवकी देव गर्भजननं, गोपी गृहे वद्र्धनम्।
माया पूज निकासु ताप हरणं गौवद्र्धनोधरणम्।।
कंसच्छेदनं कौरवादिहननं, कुंतीसुपाजालनम्।
एतद् श्रीमद्भागवतम् पुराण कथितं श्रीकृष्ण लीलामृतम्।।
अच्युतं केशवं रामनारायणं कृष्ण:दामोदरं वासुदेवं हरे।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं जानकी नायकं रामचन्द्रं भजे।।
सुबह जल्दी नहाकर, साफ वस्त्र पहनकर भगवान श्रीकृष्ण के चित्र का विधिवत पूजन करें। भगवान श्रीकृष्ण के चित्र के सामने आसन लगाकर रुद्राक्ष की माला लेकर इस मंत्र का जप करें। प्रतिदिन पांच माला जप करने से उत्तम फल मिलता है। आसन कुश का हो तो अच्छा रहता है। एक ही समय, आसन व माला हो तो यह मंत्र जल्दी ही सिद्ध हो जाता है।

Wednesday, March 30, 2011

लक्ष्मी कृपा सदैव बनी रहे

देवी लक्ष्मी कृपा आप पर सदैव बनी रहे तो घर में कभी धन की कमी नहीं होती। रात्रि 10 बजे के बाद सब कार्यों से निवृत्त होकर उत्तर दिशा की ओर मुंह करके पीले आसन पर बैठ जाएं। सामने 9 तेल के दीपक जलाएं। ये दीपक पूजा के दौरान बुझना नहीं चाहिए। दीपक के सामने लाल रंगे चावलों की एक ढेरी बनाएं। फिर उस पर श्रीयंत्र रखकर उसका कुंकुम, फूल, धूप तथा दीप से पूजन करें। उसके बाद किसी प्लेट पर स्वस्तिक बनाकर उसे अपने सामने रखकर उसका पूजन करें। इस प्रयोग से धन लाभ होने लगेगा।
एक नारियल को पूजा चमकीले लाल कपड़े में लपेटकर वहां रख दें, जहां आप पैसा इत्यादि धन रखते हैं। गुरुवार के दिन पुष्य नक्षत्र में स्नान करके एक गांठ हल्दी को पीले रूमाल में रखें। फिर हल्दी द्वारा रंगे चावल, नारियल का समूचा गोला और एक सुपारी भी रखें। अब इसे धूप-दीप दिखाकर हल्दी में रंगा सिक्का रखें। इसको रोज धूप-दीप दिखाएं। इस प्रयोग से धन-धान्य में वृद्धि होती है। धन प्राप्ति के लिए प्रतिदिन देवी लक्ष्मी की पूजा करें और उन्हें साबूत लौंग अर्पित करें। इससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। 11 कौडिय़ों को शुद्ध केसर में रंगकर पीले कपड़े में बांधकर धन स्थान पर रखने से धन का आगमन होता है।

Sunday, March 27, 2011

मनोकामनाओं के लिए अलग-अलग देवी-देवता

आवश्यकताओं और मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए भगवान की भक्ति से अच्छा कोई और उपाय नहीं है। सच्चे से भगवान से प्रार्थना की जाए तो सभी मनोकामनाएं अवश्य ही पूर्ण हो जाती हैं। देवी-देवता हमारी सभी इच्छाएं पूर्ण करने में समर्थ माने गए हैं लेकिन शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग मनोकामनाओं के लिए अलग-अलग देवी-देवताओं को पूजने का विधान भी बताया गया है।
शादी या विवाहित जीवन से जुड़ी समस्याओं के निराकरण के लिए शिव-पार्वती, लक्ष्मी-विष्णु, सीता-राम, राधा-कृष्ण, श्रीगणेश की पूजा करनी चाहिए।
धन संबंधी समस्याओं के लिए देवी महालक्ष्मी, कुबेर देव, भगवान विष्णु से प्रार्थना करनी चाहिए।
पूरी मेहनत के बाद भी यदि आपको कार्यों में असफलता मिलती है तो किसी भी कार्य की शुरूआत श्रीगणेश के पूजन के साथ ही करें।
यदि आपको किसी प्रकार का भय या भूत-प्रेत आदि का डर सताता है तो पवनपुत्र श्री हनुमान का ध्यान करें।
पति-पत्नी बिछड़ गए हैं और काफी प्रयत्नों के बाद भी वापस मिलने का योग नहीं बन पा रहा हो तो ऐसे में श्रीराम भक्त बजरंग बली की पूजा करें। सीता और राम का मिलन भी हनुमानजी द्वारा ही कराया गया, अत: इनकी पूजा से विवाहित जीवन की सभी समस्याएं भी दूर हो जाती हैं।
पढ़ाई से संबंधित परेशानियों को दूर करने के लिए मां सरस्वति का ध्यान करें एवं बल, बुद्धि, विद्या के दाता हनुमानजी और श्रीगणेश का पूजन करें।
यदि किसी गरीब व्यक्ति की वजह से कोई परेशानी हो रही हो तो शनिदेव, राहु और केतु की वस्तुओं का दान करें, उनकी पूजा करें।
भूमि संबंधी परेशानियों को दूर करने के लिए मंगलदेव को पूजें।
विवाह में विलंब हो रहा हो तो ज्योतिष के अनुसार विवाह के कारक ग्रह ब्रहस्पति बताए गए हैं अत: इनकी पूजा करनी चाहिए।

Saturday, March 26, 2011

लक्ष्मी जी के उपाय

अपनी कमाई के साधन के अलावा पैसों का एक अन्य साधन और चाहते हैं तो शुक्र देव को प्रसन्न करने के लिए धन प्राप्ति के उपाय करने चाहिए क्योंकि शुक्र ग्रह धन एवं ऐश्वर्य के अधिपति देव है और शुक्रवार को मां लक्ष्मी का भी प्रिय दिन माना गया है। इस दिन धन, ऐश्वर्य, भौतिक सुख और कमाई के अन्य स्त्रोत की प्राप्ति के लिए अगर कोई प्रयोग करें तो विशेष सफलता प्राप्त होती है। इसलिए इस दिन किए गए उपाय दोहरा लाभ दिलाते हैं। शुक्रवार को लक्ष्मी जी के उपाय करने से दो तरफा यानि एक्स्ट्रा इनकम के योग बनते हैं। इसलिए शुक्रवार का दिन धन संबंधित प्रयोग के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
धन प्राप्ति के लिए अपने पास चांदी का शुक्र यंत्र रखें। पिता से सोना लेकर धारण करें या धन स्थान पर रख कर पूजा करें तो जल्दी ही कमाई का अन्य साधन मिल जाएगा। भाई या बहन को शुक्र देव के लिए सफेद वस्त्र के साथ चांदी का सिक्का दें। स्फटिक श्री यंत्र की स्थापना करें तो आपके घर में दो तरफ से लक्ष्मी आएगी। सात शुक्रवार तक 10 वर्ष से कम उम्र की कन्याओं को गाय के दूध की खीर खीलाएं तो आपको जल्दी ही इसके शुभ परिणाम मिलेंगे। सोने या चांदी की लक्ष्मी प्रतिमा का पूजन कर के धन स्थान पर रखें। माता से सफेद कपड़े में चावल और चांदी का सिक्का लेकर धन स्थान पर रखने से मां लक्ष्मी प्रस्रन्न होगी। लक्ष्मी जी को कमल पुष्प और कमल गट्टे अर्पित करें। भोजपत्र पर लाल चंदन से श्रीं: लिख कर उसकी पूजा करें। सुगंधित सफेद फूल महालक्ष्मी जी को चढ़ाएं।मां लक्ष्मी को शुद्ध गाय के घी का दीपक लगाएं।
शनिवार के दिन पीपल का एक पत्ता तोड़कर उसे गंगाजल से धोकर उसके ऊपर हल्दी तथा दही के घोल से अपने दाएं हाथ की अनामिका अंगुली से ह्रीं लिखें। इसके बाद इस पत्ते को धूप-दीप दिखाकर अपने बटुए में रखे लें। प्रत्येक शनिवार को पूजा के साथ वह पत्ता बदलते रहें। यह उपाय करने से आपका बटुआ कभी धन से खाली नहीं होगा। पुराना पत्ता किसी पवित्र स्थान पर ही रखें। काली मिर्च के 5 दाने अपने सिर पर से 7 बार उतारकर 4 दाने चारों दिशाओं में फेंक दें तथा पांचवें दाने को आकाश की ओर उछाल दें। यह टोटका करने से आकस्मिक धन लाभ होगा। अचानक धन प्राप्ति के लिए सोमवार के दिन श्मशान में स्थित महादेव मंदिर जाकर दूध में शुद्ध शहद मिलाकर चढ़ाएं। अगर धन नहीं जुड़ रहा हो तो तिजोरी में लाल वस्त्र बिछाएं। तिजोरी में गुंजा के बीज रखने से भी धन की प्राप्ति होती है। जिस घर में प्रतिदिन श्रीसूक्त का पाठ होता है, वहां लक्ष्मी अवश्य निवास करती हैं।

Tuesday, March 22, 2011

कोई परेशानी : हनुमानजी का पूजन सर्वश्रेष्ठ

सुख और दुख जीवन के दो पहलु हैं, हर व्यक्ति के जीवन में सुख और अवश्य ही आते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि कुछ लोगों की जिंदगी में दुख अधिक होते हैं और सुख कम। दुख की कई कारण हो सकते हैं लेकिन सभी परेशानियों को दूर करने के लिए हनुमानजी की आराधना सटिक उपाय है। ज्योतिष संबंधी कोई ग्रह बाधा हो या अन्य कोई परेशानी श्रीराम के भक्त पवनपुत्र श्री हनुमानजी का पूजन सर्वश्रेष्ठ उपाय है। इनकी आराधना से सभी ग्रहों की कृपा प्राप्त होती है और हमारी कुंडली में स्थित ग्रह दोष दूर हो जाते हैं। हनुमानजी के लिए मंगलवार का दिन विशेष महत्व रखता है। ऐसा माना जाता है कि मंगलवार को ही हनुमानजी का जन्म हुआ है। इसी वजह से इस दिन पवनपुत्र की पूजा का खास महत्व है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगलवार ग्रहों के सेनापति मंगल देव की आराधना का दिन है। हनुमानजी की आराधना से मंगलदेव की कृपा भी भक्त को प्राप्त होती है। साथ ही यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि बुरा फल देने वाला है तो उसके लिए बजरंगबली की पूजा से अच्छा कोई दूसरा उपाय नहीं है। मंगलवार के दिन हनुमान मंदिर जाकर भगवान को सिंदूर और चमेली का तेल अर्पित करें। प्रसाद चढ़ाएं। सुंदरकांड का पाठ करें या यह संभव ना हो तो हनुमान चालिसा का पाठ करें। इस दिन रात को हनुमानजी के समक्ष तेल का दीपक जलाएं।

Monday, March 21, 2011

धन प्राप्ति के कुछ तंत्र प्रयोग

धन प्राप्ति के मार्ग खुल सकते हैं धन जीवन की सबसे प्रमुख आवश्यकताओं में से एक है। इसके अभाव में जीवन बेकार ही लगता है। सभी लोगों को धन की कामना होती है लेकिन कम ही लोग ऐसे होते हैं जिनकी यह इच्छा पूरी होती है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनहे जीवन भर धन के अभाव में रहना पड़ता है। कुछ साधारण तंत्र प्रयोग करने से धन प्राप्ति के मार्ग खुल सकते हैं। इन प्रयोगों को करते समय मन में श्रृद्धा का भाव होना चाहिए तभी यह प्रयोग सफल होते हैं। कुछ तंत्र प्रयोग इस प्रकार हैं-
शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार को लक्ष्मी-नारायण मंदिर में जाकर शाम के समय नौ वर्ष से कम उम्र की कन्याओं को खीर के साथ मिश्री का भोजन कराएं तथा उपहार में कोई लाल वस्तु दें। यह उपाय लगातार तीन शुक्रवार करें। यदि अचानक ज्यादा खर्च की स्थिति बने तो मंगलवार के दिन हनुमानजी के मंदिर में गुड़-चने का भोग लगाएं और 11 बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। यह प्रयोग तीन मंगलवार तक करें। पुष्य नक्षत्र के शुभ मुहूर्त में शंखपुष्पी की जड़ को विधिवत लेकर आएं और उसे धूप देकर भगवान शिव का ध्यान करते हुए चांदी की डिब्बी में रखें। इसे अपनी तिजोरी में रखने से आर्थिक समस्या दूर हो जाएगी।
पीपल के पत्ते पर राम लिखकर तथा कुछ मीठा रखकर हनुमान मंदिर में चढ़ाएं। इससे धन लाभ होने लगेगा। शुक्रवार के दिन से प्रतिदिन शाम के समय तुलसी के पौधे के सामने गाय के घी का दीपक जलाएं। तिजोरी में गुंजा के बीज रखने से भी धन की वृद्धि होती है।

आदित्य दिलाएं नौकरी पाने में सफलता

इंटरव्यू देते समय नर्वस हो जाते हैं? आपकी जॉब नहीं लग पा रही है, आप अकेले ही ऐसे नहीं है जिसे इस तरह की समस्या है। अधिकांश लोग इंटरव्यू देते समय नर्वस हो जाते हैं। यदि आप इंटरव्यू देने से पहले नीचे लिखा उपाय करेंगे तो इंटरव्यू में आप नर्वस नहीं होंगे और सक्सेस भी मिलेगी।
प्रयोग शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से शुरू करें। बारह गुलाब के फूल लेकर एक सफेद कपड़े पर रख लें। एक सफेद कागज पर रोली से यह मंत्र लिखें- ऊँ घृणीं ह्रीं आदित्य श्रीं - मंत्र को धूप-दीप से पूजित करें। मंत्र बोलते जाएं और एक-एक फूल सफेद रूमाल से उठाकर मंत्र लिखे उस सफेद कागज पर रख दें। बारह फूलों को इस तरह पूजित करें और कागज पर रखते जाएं। इस तरह यह प्रयोग बारह दिन तक दोहराएं और फूलों को बहती नदी में प्रवाहित करें। शीघ्र ही इंटरव्यू में सक्सेस मिलेगी।

Friday, March 18, 2011

शनि देव कुछ न कुछ देकर ही जाते हैं

राशि पर शनि देव का अच्छा और बुरा असर साढ़े सात साल तक होता है। इस समय को शनि की साढ़ेसाती कहा जाता है। कहा जाता है शनि की साढ़ेसाती बुरी होती है और इस समय में व्यक्ति परेशान हो जाता है। व्यक्ति के पास कुछ नही बचता। लेकिन ऐसा नही है खत्म होती शनि की साढ़ेसाती में जातक को शनि देव कुछ न कुछ देकर ही जाते हैं।
क्या मिलता है उतरती हुई साढ़ेसाती में-
मेष- शनि साढ़ेसाती की आखिरी ढैय्या मेष राशि वालों के लिए धन लाभ देने वाली होती है। नए भूमि, वाहन और मकान का शुभ योग बनता है। मुख से संबंधितरोग होते हैं। वृष- साढ़ेसाती इस राशि वालों को व्यवसाय में लाभ देती है। और अंतिम ढैय्या में धार्मिक यात्राओं के योग बनते हैं। वाक् चातुर्यता से संबंधों में सफलता मिलती है। मिथुन- इस राशि वालो को शनि की अंतिम ढैय्या में यात्राओं से लाभ होता है। अचानक धन लाभ होने के योग बनते हैं। जलिय व्यापार से भी इस राशि वालों को लाभ मिलता है। सर्दी, जुकाम और ह्द्य रोग होते हैं। कर्क- कर्क राशि वालों का विवाह योग शनि की अंतिम ढैय्या में ही बनता है। इस ढैय्या में साझेदारी से लाभ होता है। सिंह- इस राशि वाले लोगों का जमा धन शेयर बाजार और बैंक में शनि की अंतिम ढैय्या में बढ़ता है। वाणी से शत्रु भी बढ़ते हैं। कन्या- शनि के अंतिम ढैय्या में कन्या राशि वालों का ऋण लेने या देने का योग बन रहा है। पैतृक धन लाभ होता है। आर्थिक स्तर बढ़ता है। धन लाभ के योग बनते हैं। शनि के इस अंतिम ढैय्या में ही कन्या राशि वालों को मान, सम्मान मिलता है और उन्नति होती है। तुला- तुला राशि वाले जातकों को साढ़ेसाती की अंतिम ढैय्या में विद्या और बोद्धिक कार्यों में सफलता मिलती है। वाहन मशीन और स्थायी सम्पत्ति का लाभ भी इसी समय में ही मिलता है। धन लाभ के योग भी बनते हैं। वृश्चिक- इस राशि वालों के लिए अंतिम ढैय्या का समय भूमि, प्रॉपर्टी से संबंधित लाभ के योग बनते हैं। वृश्चिक राशि के व्यवसायियों के लिए यह समय शुभ रहता है। लेकिन मानसिक अस्थिरता और माता के स्वास्थ्य की चिंता बनी रहेगी। धनु- धनु राशि वालों के लिए साढ़ेसाती का अंतिम ढैय्या शुभ और अनुकूल समय होता है। इस समय में इनको मेहनत से उन्नति और आर्थिक दृष्टि से लाभ होता है। इसी समय में इनके महत्पूर्ण लेन देन भी होते है जिनसे इनको लाभ मिलता है। मकर- आपकी राशि के स्वामी शनि की अंतिम ढैय्या में आपको उन्नति मिलेगी। इस राशि वालों को अचानक धन लाभ तो होता है लेकिन शारीरिक चोट का भी भय बना रहता है। पारीवारिक कार्यक्रमों में में धन व्यय होने के भी योग बनते हैं। कुंभ- इस राशि वालों को अंतिम ढैय्या में बाहरी क्षेत्रों से धन लाभ होता है। शनि की अंतिम ढैय्या इस राशि के आयात-निर्यात के व्यवसायियों के लिए बहुत शुभ होता है। इस समय में इनका धार्मिक यात्राओं के योग भी बनते हैं। मीन- इस समय में पुराने शत्रु उभरते हैं। अंतिम ढैय्या में इस राशि वालों के साथ धोखा और जालसाजी होने के योग बनते हैं। कार्यक्षेत्र में पदावनति के भी योग बनते हैं। यह समय इस राशि वालों के लिए प्रतिकूल रहता है।

Thursday, March 17, 2011

नवग्रह यंत्र की पूजा

जीवन में ग्रहों का विशेष प्रभाव पड़ता है। कोई भी एक ग्रह प्रतिकूल असर डालता है तो इससे जीवन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ऐसा भी होता है कि कई ग्रह एक साथ प्रतिकूल हो जाते हैं। ऐसे लोग परिश्रम करने के बाद भी सफल नहीं हो पाते। ऐसी स्थिति में उन्हें नवग्रह यंत्र की पूजा करना चाहिए। इस यंत्र के माध्यम से सभी ग्रहों का एक साथ विधिवत पूजन हो जाता है। इस यंत्र को सामने रखकर नौग्रहों की उपासना करने से सभी प्रकार के भय नष्ट होते हैं। शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है, व्यापार आदि में सफलता मिलती है, समाज में सम्मान बढ़ता है।
सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए इस यंत्र को साथ विष्णु भगवान का पूजन करना चाहिए तथा हरिवंश पुराण की कथा करवानी चाहिए। चन्द्र देव को प्रसन्न करना हो तो यंत्र के साथ भगवान शिव की उपासना करनी चाहिए। मंगल देव को प्रसन्न करना हो तो यंत्र के सम्मुख हनुमानजी पूजा करें। बुध को प्रसन्न करना हो तो यंत्र के साथ दुर्गाजी की पूजा तथा दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। बृहस्पति (गुरु) को प्रसन्न करना हो तो यंत्र के साथ ब्रह्माजी की पूजा करनी चाहिए। शुक्र को प्रसन्न करना हो तो यंत्र के साथ लक्ष्मीजी की पूजा करें। शनि अथवा राहु को को प्रसन्न करना हो तो यंत्र के साथ भैरवजी की पूजा करें। केतु को प्रसन्न करना हो तो यंत्र के साथ गणेशजी की पूजा करें।

Tuesday, March 8, 2011

गणेश सभी संकटों को टालने वाले

शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है, इन्हें प्रथम पूज्य भी कहा जाता है। भगवान गणेश सभी संकटों को टालने वाले तथा सुख-समृद्धि प्रदान करने वाले हैं। ये भक्त की हर परेशानी का हल कर देते हैं। तंत्र शास्त्र के अंतर्गत पारद गणपति की पूजा करने का विधान है। पारद गणेश की पूजा करने से शीघ्र ही सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। बुधवार को भगवान गणेश का दिन माना गया है अत: इसी दिन पारद गणेश की स्थापना करना श्रेष्ठ होता है। पारद गणपति पर नित्य 11 पुष्प चढ़ाएं और इस प्रकार 11 दिन करें तथा ऊँ गं गणपतये नम: मंत्र का जप करें तो सभी बाधाओं का नाश होता है और दरिद्रता समाप्त होती है। घर में पारद गणपति स्थापित हो तो हर बुधवार को उस पर गुलाब का एक पुष्प चढ़ाएं तथा उस फूल को अपने कानों में लगाएं तो आपकी सर्वत्र विजय होगी। यदि पारद गणपति के सामने ऊँ गणाधिपतये पूर्णत्व सिद्धिं देहि देहि नम: मंत्र का एक माला जप 11 दिन करें तो घर में अटूट धन प्राप्त होने की संभावनाएं बनती हैं। पारद गणपति को बुधवार के दिन अपनी दुकान में स्थापित करें व्यापार-व्यवसाय में निरंतर वृद्धि होती रहती है।

Monday, March 7, 2011

सिद्ध नागकेसर का फूल

तंत्र क्रियाओं के अंतर्गत कई प्रकार की वनस्पतियों का उपयोग भी किया जाता है। नागकेसर के फूल का उपयोग भी तांत्रिक क्रियाओं में किया जाता है। नागकेसर को तंत्र के अनुसार एक बहुत ही शुभ वनस्पति माना गया है। काली मिर्च के समान गोल या कबाब चीनी की भांति दाने में डंडी लगी हुई गेरू के रंग का यह गोल फूल होता है। इसकी गिनती पूजा- पाठ के लिए पवित्र पदार्थों में की जाती है। तंत्र के अनुसार नागकेसर एक धनदायक वस्तु है। इस धन प्राप्ति के प्रयोग को अपनाकर धनवान बन सकते हैं- किसी पूर्णिमा को सोमवार हो उस दिन यह प्रयोग करें। किसी मन्दिर के शिवलिंग पर पांच बिल्वपत्रों के साथ यह फूल भी चढ़ाएं। इससे पूर्व शिवलिंग को कच्चे दूध, दही, शक्कर, घी, गंगाजल, आदि से धोकर पवित्र करें। पांच बिल्व पत्र और नागकेशर के फूल की संख्या हर बार एक ही रखना चाहिए। यह क्रिया अगली पूर्णिमा तक निरंतर रखें। आखिरी दिन चढ़ाए गये फूल तथा बिल्व पत्रों में से एक अपने घर ले आएं। यह सिद्ध नागकेसर का फूल आपकी किस्मत बदल देगा तथा धन संबंधी आपकी जितनी भी समस्याएं हैं, वह सभी समाप्त हो जाएंगी।
गोमती चक्र के उपयोग
तांत्रिक क्रियाओं में एक ऐसे पत्थर का उपयोग किया जाता है जो दिखने में बहुत ही साधारण होता है . इसका प्रभाव असाधारण होता है। गोमती चक्र कम कीमत वाला ऐसा पत्थर है जो गोमती नदी में मिलता है। गोमती चक्र के साधारण तंत्र उपयोग इस प्रकार हैं- पेट संबंधी रोग होने पर 10 गोमती चक्र लेकर रात को पानी में डाल दें तथा सुबह उस पानी को पी लें। इससे पेट संबंध के विभिन्न रोग दूर हो जाते हैं। धन लाभ के लिए 11 गोमती चक्र अपने पूजा स्थान में रखें। उनके सामने श्री नम: का जप करें। इससे आप जो भी कार्य या व्यवसाय करते हैं उसमें बरकत होगी और आमदनी बढऩे लगेगी। गोमती चक्रों को यदि चांदी अथवा किसी अन्य धातु की डिब्बी में सिंदूर तथा चावल डालकर रखें तो ये शीघ्र शुभ फल देते हैं। होली, दीवाली तथा नवरात्र आदि प्रमुख त्योहारों पर गोमती चक्र की विशेष पूजा की जाती है। अन्य विभिन्न मुहूर्तों के अवसर पर भी इनकी पूजा लाभदायक मानी जाती है। सर्वसिद्धि योग तथा रविपुष्य योग पर इनकी पूजा करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है।

Sunday, March 6, 2011

शिवलिंग पूजा - पीड़ा और दु:ख भी दूर हो सकते हैं

शिव उपासना से जीवन में आने वाली सभी बाधाओं को दूर किया जा सकता है। शिव का स्वरूप व चरित्र ही नहीं बल्कि शिव परिवार संतुलन और जीने की कला सिखाता है। शिव का वाहन बैल है तो पार्वती का सिंह। शिव के पुत्र गणेश का वाहन चूहा और कार्तिकेय का मोर है। शिव का जीवन ओघड़ की तरह है, जबकि माता पार्वती राजकन्या थी। इतने विरोधाभास के बाद भी शिव परिवार भक्ति आनंद और सुख देने वाली है। यह गृहस्थ जीवन के लिए आदर्श है। शिव पूजा गृहस्थ ही नहीं निराशा और परेशानियों से जूझ रहे हर व्यक्ति के लिए बहुत शुभ फल देती है। इसलिए जानते हैं सोमवार के दिन कामनाओं को पूरा करने वाले शिवलिंग पूजा के कुछ ऐसे उपाय जिनसे अनेक तरह की पीड़ा और दु:ख भी दूर हो सकते हैं -सोमवार को पंचमुखी शिवलिंग पर तीर्थ का जल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। इससे गंभीर रोग से पीडि़त व्यक्ति भी रोगमुक्त हो जाता है।सोमवार के दिन शिवलिंग का शहद से अभिषेक करने पर रोजगार और धन की इच्छा पूरी होती है। परिवार में कलह फैला हो तो सोमवार के दिन गाय के दूध से शिव का अभिषेक करें। दु:ख और कष्टों के कारण बुरी हालात से गुजर रहा व्यक्ति शिवलिंग का श्रृंगार लाल चंदन से करें। रोली का प्रयोग कतई न करे। शिवलिंग पर आंकड़े का फूल और धतूरा चढ़ाने से व्यर्थ के विवाद या शासकीय बाधाओं से मुक्ति मिलती है। कालसर्प दोष शांति के लिए शिवालय में राहु के 18000 जप करने चाहिए। दूध में भांग मिलाकर चढ़ाने से जीवन में किसी समस्या से हो रही उथल-पुथल थम जाती है। जीवन को तनावमुक्त और शांत रखने के लिए शिव पूजा का एक उपाय सबसे आसान माना जाता है, यह है शिव को पवित्र जल और बेलपत्र चढ़ाएं।

धन-वैभव में वृद्धि होने लगेगी

पैसा टिकता नहीं है। पैसा आते ही चला जाता है। घर में बरकत भी नहीं होती तथा हमेशा पैसों की तंगी में ही जीते हैं। अगर यही समस्या है तो इसका निदान मोती शंख से संभव है। मोती शंख का सही विधि- विधान से पूजन कर यदि तिजोरी में रखा जाए तो घर, कार्यस्थल, व्यापार स्थल और भंडार में पैसा टिकने लगता है। आमदनी बढऩे लगती है। मोती शंख का प्रयोग इस प्रकार करें- किसी बुधवार को सुबह स्नान कर साफ कपड़े में अपने सामने इस शंख को रखें और उस पर केसर से स्वस्तिक का चिह्न बना दें। इसके बाद नीचे लिखे मंत्र का जप करें-
श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:
मंत्र का जप स्फटिक माला से ही करें।
मंत्रोच्चार के साथ एक-एक चावल इस शंख में डालें। इस बात का ध्यान रखें की चावल टूटे हुए ना हो। इस प्रयोग लगातार ग्यारह दिनों तक करें। इस प्रकार रोज एक माला का जप करें। उन चावलों को एक सफेद रंग के कपड़े की थैली में रखें और ग्यारह दिनों के बाद चावल के साथ शंख को भी उस थैली में रखकर तिजोरी में रखें कुछ ही दिनों में आपके धन-वैभव में वृद्धि होने लगेगी। पैसा आएगा भी और टिकेगा भी।

Saturday, March 5, 2011

भवन निर्माण की संभावना

भाग्य में भवन निर्माण की संभावना है या नहीं इसकी जानकारी जन्मकुण्डली से मिल सकती है।
जैसे-
भूमि का ग्रह मंगल है। जन्मकुण्डली काचौथा भाव भूमि व भवन का है। इसके स्वामी (चतुर्थेश) का केंद्र त्रिकोण में होना उत्तम भवन प्राप्ति का योग दर्शाता है। जन्म कुण्डली के चौथे भाव का स्वामी(चतुर्थेश) किसी शुभ ग्रह के साथ युति करके 1,4,5,7,9, 10 वें भाव में हो तो ऐसे व्यक्ति को स्वश्रम से निर्मित भवन प्राप्त होता है। जन्म कुण्डली के चौथे भाव का स्वामी (चतुर्थेश) एवं लग्न का स्वामी(लग्नेश) चौथे भाव में हो तो ऐसे व्यक्ति को अचानक निर्मित भवन की प्राप्ति होती है.जन्म कुण्डली के तीसरे भाव का स्वामी या तृतीय भाव का कारक मंगल चौथे भाव के स्वामी के साथ स्थित हो तो ऐसे व्यक्ति को भाई से भूमि या भवन मिलता है।
जन्म कुण्डली में शुक्र चौथे भाव में और चौथे भाव का स्वामी सातवें भाव में स्थित हो और दोनों परस्पर मित्र हों तो ऐसे जातक को स्त्री के द्वारा भूमि प्राप्त होती है। जन्म कुण्डली के चौथे भाव का स्वामी व दसवें भाव का स्वामी एक साथ युति करके शनि एवं मंगल के साथ हो तो ऐसे व्यक्ति के पास कई भवन होते हैं। पहले व सातवें भाव का स्वामी पहले (लग्न) भाव में हो तथा चौथे भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो व्यक्ति को बिना प्रयास के भवन प्राप्त होता है।

Wednesday, March 2, 2011

भगवान रुद्र का अभिषेक

शिवरात्रि पर अधिकांश शिव भक्त शिवजी का अभिषेक करते हैं। बहुत कम ऐसे लोग हैं कि शिव का अभिषेक क्यों करते हैं? अभिषेक शब्द का अर्थ है स्नान करना या कराना। यह स्नान भगवान मृत्युंजय शिव को कराया जाता है। अभिषेक को आजकल रुद्राभिषेक के रुप में ही ज्यादातर पहचाना जाता है। अभिषेक के कई प्रकार तथा रुप होते हैं। आजकल विशेष रूप से रुद्राभिषेक ही कराया जाता है। रुद्राभिषेक का मतलब है भगवान रुद्र का अभिषेक यानि कि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है। भगवान शिव को जलधाराप्रिय:, माना जाता है। भगवान रुद्र से सम्बंधित मंत्रों का वर्णन बहुत ही पुराने समय से मिलता है। रुद्रमंत्रों का विधान ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में दिये गए मंत्रों से किया जाता है। रुद्राष्टाध्यायी में अन्य मंत्रों के साथ इस मंत्र का भी उल्लेख है। अभिषेक में उपयोगी वस्तुएं: अभिषेक साधारण रूप से तो जल से ही होता है। विशेष अवसर पर या सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्व के दिनों में गोदुग्ध या अन्य दूध मिला कर अथवा केवल दूध से भी अभिषेक किया जाता है। विशेष पूजा में दूध, दही, घृत, शहद और चीनी से अलग-अलग अथवा सब को मिला कर पंचामृत से भी अभिषेक किया जाता है। तंत्रों में रोग निवारण हेतु अन्य विभिन्न वस्तुओं से भी अभिषेक करने का विधान है।
भगवान शिव का एक नाम शशिधर भी है। शिव अपने सिर पर चंद्र को धारण किया है इसी वजह से इन्हें शशिधर के नाम से भी जाना जाता है। भोलेनाथ ने मस्तक पर चंद्र को क्यों धारण कर रखा है? शिव पुराण में उल्लेख है कि जब देवताओं और असुरों द्वारा समुद्र मंथन किया गया, तब 14 रत्नों के मंथन से प्रकट हुए। इस मंथन में सबसे विष निकला। विष इतना भयंकर था कि इसका प्रभाव पूरी सृष्टि पर फैलता जा रहा था परंतु इसे रोक पाना किसी भी देवी-देवता या असुर के बस में नहीं था। इस समय सृष्टि को बचाने के उद्देश्य से शिव ने वह अति जहरीला विष पी लिया। इसके बाद शिवजी का शरीर विष प्रभाव से अत्यधिक गर्म होने लगा। शिवजी के शरीर को शीतलता मिले इस वजह से उन्होंने चंद्र को धारण किया।शिवजी को अति क्रोधित स्वभाव का बताया गया है। शिवजी अति क्रोधित होते हैं तो उनका तीसरा नेत्र खुल जाता हैं तो पूरी सृष्टि पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। साथ ही विषपान के बाद शिवजी का शरीर और अधिक गर्म हो गया जिसे शीतल करने के लिए उन्होंने चंद्र आदि को धारण किया। चंद्र को धारण करके शिवजी यही संदेश देते हैं कि आपका मन हमेशा शांत रहना चाहिए। आपका स्वभाव चाहे जितना क्रोधित हो परंतु आपका मन हमेशा ही चंद्र की तरह ठंडक देने वाला रहना चाहिए। जिस तरह चांद सूर्य से उष्मा लेकर भी हमें शीतलता ही प्रदान करता है उसी तरह हमें भी हमारा स्वभाव बनाना चाहिए।

Saturday, February 26, 2011

जरूरी नहीं की राहू बुरा फल ही दे

राहु को पौराणिक ग्रंथों में सांप का सिर और केतु को उसका धड़ कहा गया है। राहु और केतु के बीच जब सब ग्रह आ जाते हैं तो कालसर्प नाम का अशुभ योग बनता है। राहु पापी ग्रह के रूप में जाना जाता है। इसकी अपनी कोई राशि नहीं होती है, इसलिए कुंडली में यह जिस राशि और ग्रह के साथ में होता है उसके अनुसार फल देता है। राहु पाप ग्रह होने के कारण हमेशा बुरा फल दे यह जरूरी नही है। कुंडली में धन प्राप्त हाने के योग भी राहु के द्वारा बन सकते हैं
अष्टलक्ष्मी योग- जब किसी कुंडली में राहु छठे भाव में होता है और 1, 4, 7, 10वें भाव में गुरू होता है तब यह अष्टलक्ष्मी योग बनता है। पापी ग्रह राहु, गुरु के समान अच्छा फल देता है। यह योग जिसकी कुण्डली में होता है वह व्यक्ति धार्मिक, आस्तिक एवं शान्त स्वभाव वाला होता है और यश व सम्मान के साथ-साथ धनवान हो जाता है।
लग्न कारक योग- अगर किसी का लग्र मेष, वृष या कर्क लग्न है तभी यह योग बनता है। कुण्डली में राहु दुसरे, 9वें या दसवें भाव में नहीं है तो उनकी कुंडली में ये योग होता है। कुंडली की इस स्थिति से राहु का अशुभ प्रभाव नही होता क्योंकि उपर बताए गए लग्र वालों के लिए राहु शुभ फल देने वाला होता है। ऐसे लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी रहती है।
राहुकोप मुक्त योग- राहु पहले भाव में हो या तीसरे, छठे या ग्यारहवें भाव में होता है और उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो यह योग बनता है। ऐसे में व्यक्ति पर राहु के अशुभ प्रभाव नही पड़ते। ऐसे व्यक्तियों के सभी काम आसानी से होते हैं और उनके जीवन में कभी पैसों की कमी नही होती।
राहु की महादशा लगने पर मानते हैं कि जैसे सब कुछ खत्म हो गया। लेकिन ऐसा नहीं है। राहु और उसकी महादशा हर समय नुकसानदायक नहीं होती। राहु रंक को भी राजा बनाने की क्षमता रखता है। राहु की महादशा में विदेश जाने से बहुत लाभ होता है। विदेश का मतलब है वर्तमान निवास से दूर जाकर कार्य करने से सफलता मिलती है। अगर कुंडली में राहु , चौथे, दसवें, ग्यारहवें या नवें स्थान में अपने मित्र ग्रहों की राशि यानी शनि और शुक्र की राशि (मकर, कुंभ, वृषभ या तुला) में स्थित होता है तो बहुत सफलता दिलाता है।वहीं राहु यदि मिथुन राशि में हो तो कई ज्योतिष विद्वानों द्वारा उच्च का माना जाता है। राहु एक छाया ग्रह है। यह किसी भी राशि का स्वामी नही है। लेकिन यह जिसके अनुकुल हो जाता है उसे जीवन मे बहुत मान सम्मान प्रतिष्ठा और पद प्राप्त होता है। राजनितिज्ञों के लिए तो राहु का अनूकुल होना अत्यधिक फायदेमंद होता है। राहु के अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए शनिवार के दिन अपना उपयोग किया हुआ कंबल किसी गरीब को दान करें। काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। अमावस्या को पीपल पर रात में 12 बजे दीपक जलाएं। शनिवार को उड़द के बड़े बनाकर खाएं। -शिवजी पर जल, धतुरा के बीज, चढ़ाएं और सोमवार का व्रत करें।

Friday, February 25, 2011

लिंगाष्टक : बाधा दूर करने वाला

शिवलिंग पूजा सभी सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति करने वाली मानी गई है, जो शिवलिंग पर मात्र जल और बिल्वपत्र चढ़ाने मात्र से भी पूरी हो जाती हैं। महाशिवरात्रि शिवलिंग के प्रागट्य का ही शुभ दिन है। इसलिए इस दिन शिव उपासना में लिंगाष्टक का पाठ बहुत ही शुभ फल देने वाला होता है। जिससे कामना सिद्धि के साथ भाग्य या संतान बाधा दूर करने वाला भी माना गया है। शिव की महिमा का यह अद्भुत पाठ इस प्रकार है :
ब्रह्ममुरारिसुरार्चित लिगं निर्मलभाषितशोभित लिंग,
जन्मजदुःखविनाशक लिंग तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं
देवमुनिप्रवरार्चित लिंगं, कामदहं करुणाकर लिंगं,
रावणदर्पविनाशन लिंगं तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं
सर्वसुगंन्धिसुलेपित लिंगं, बुद्धिविवर्धनकारण लिंगं
सिद्धसुरासुरवन्दित लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं
कनकमहामणिभूषित लिंगं, फणिपतिवेष्टितशोभित लिंगं,
दक्षसुयज्ञविनाशन लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं
कुंकुमचंदनलेपित लिंगं, पंकजहारसुशोभित लिंगं,
संञ्चितपापविनाशिन लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं
देवगणार्चितसेवित लिंग, भवैर्भक्तिभिरेवच लिंगं,
दिनकरकोटिप्रभाकर लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं
अष्टदलोपरिवेष्टित लिंगं, सर्वसमुद्भवकारण लिंगं,
अष्टदरिद्रविनाशित लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं
सुरगुरूसुरवरपूजित लिंगं, सुरवनपुष्पसदार्चित लिंगं,
परात्परं परमात्मक लिंगं, ततप्रणमामि सदाशिव लिंगं

सड़क दुर्घटना का खतरा

लापरवाही जीवन के खतरनाक होती है। कुछ लोगों पूरी सावधानी के साथ चलते हैं फिर भी दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली में कुछ ग्रह दुर्घटना से संबंधित बताए गए हैं। ज्योतिष शास्त्र से जाना जा सकता है यदि किसी के साथ वाहन दुर्घटना या अन्य कोई एक्सीडेंट से नुकसान होने के योग हों। मंगल, शनि, राहु या सूर्य इनमें से कोई एक ग्रह अष्टम स्थान मे हो तथा इन पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तब दुर्घटना के योग बनाते हैं। इन चारों ग्रहों में से कोई एक ग्रह भी पाप ग्रह के साथ हो तो सड़क दुर्घटना का भय रहता है। पितृ दोष का विचार भी अष्टम भाव से किया जाता है, पितृदोष भी दुर्घटना का कारण होता हैं। स्त्री की पत्रिका में उसके पति की आयु का विचार अष्टम भाव से होता है। नवांश कुंडली मे सूर्य-मंगल यदि एक दूसरे पर दृष्टि रखते हों तो भी सड़क दुर्घटना का खतरा बनता है। राहु की महादशा हो तथा सूर्य या चंद्र अष्टम स्थित हो, तो भी यह खतरा बना रहता है। द्वितीय भाव दूषित होने पर भी यह खतरा मंडराता है। दुर्घटना के योग बचने के लिए अष्टम भाव में स्थित अशुभ ग्रह का उपचार कराएं। श्री हनुमानजी का पूजन करें। शिवजी का अभिषेक करें। वाहन चलाते समय पूरी सावधानी रखें और यातायात के नियमों का पालन करें।

Wednesday, February 23, 2011

सात दिनों की प्रकृति और स्वभाव

सप्ताह के सात दिनों की प्रकृति और स्वभाव बताए गए हैं। इन की प्रकृति और स्वभाव के अनुसार कार्यों को करें तो आपको निश्चत ही हर काम में सफलता मिलेगी। सोचे हुए कार्य पूरे नही होते या उनका काई परिणाम नही मिलता तो उन कार्यों को पुराणों, मुहूर्त ग्रंथों और फलति ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार बताए गए वार को करें। जरूर सफल होंगे।
रविवार- यह सूर्य देव का वार माना गया है। इस दिन नवीन गृह प्रवेश और सरकारी कार्य करना चाहिए। सोने के आभूषण और तांबे की वस्तुओं का क्रय विक्रय करना चाहिए या इन धातुओं के आभूषण पहनना चाहिए।
सोमवार- सरकारी नौकरी वालों के लिए पद ग्रहण करने के लिए यह दिन बहुत महत्वपूर्ण है। गृह शुभारम्भ, कृषि, लेखन कार्य और दूध, घी व तरल पदार्थों का क्रय विक्रय करना इस दिन फायदेमंद हो सकता है।
मंगलवार- मंगल देव के इस दिन विवाद एवं मुकद्दमे से संबंधित कार्य करने चाहिए। शस्त्र अभ्यास, शौर्य और पराक्रम के कार्य इस दिन करने से उस कार्य में सफलता मिलती है। मेडिकल से संबंधित कार्य और ऑपरेशन इस दिन करने से सफलता मिलती है। बिजली और अग्नि से संबधित कार्य इस दिन करें तो अवश्य ही लाभ मिलेगा। सभी प्रकार की धातुओं का क्रय विक्रय करना चाहिए।
बुधवार- इस दिन यात्रा करना, मध्यस्थता करना, योजना बनाना आदि कार्य करने चाहिए। लेखन, शेयर मार्केट का कार्य, व्यापारिक लेखा-जोखा आदि का कार्य करना चाहिए।
गुरुवार- बृहस्पति देव के इस दिन यात्रा, धार्मिक कार्य, विद्याध्ययन और बैंक से संबंधित कार्र्य करना चाहिए। इस दिन वस्त्र आभूषण खरीदना, धारण करना और प्रशासनिक कार्य करना शुभ माना गया है।
शुक्रवार- शुक्रवार के दिन गृह प्रवेश, कलात्मक कार्य, कन्या दान, करने का महत्व है। शुक्र देव भौतिक सुखों के स्वामी है। इसलिए इस दिन सुख भोगने के साधनों का उपयोग करें। सौंदर्य प्रसाधन, सुगन्धित पदार्थ, वस्त्र, आभूषण, वाहन आदि खरीदना लाभ दायक होता है।
शनिवार- मकान बनाना , टेक्रीकल कार्य, गृह प्रवेश, ऑपरेशन आदि काम करने चाहिए। प्लास्टिक , लकड़ी , सीमेंट, तेल, पेट्रोल खरीदना और वाद-विवाद के लिए जाना इस दिन सफलता देने वाला होता है।

Sunday, February 20, 2011

धन-धान्य की कमी न हो

हर व्यक्ति चाहता है कि वह सुख-शांतिपूर्ण तरीके से जीवन जीए। कभी धन-धान्य की कमी न हो। इसके लिए वह दिन-रात मेहनत भी करता है। लेकिन इतना सब करने के बाद भी ऐसा नहीं हो पाता जैसा वह चाहता है। कुछ साधारण तांत्रिक उपाय करने पर जीवन को सुखी व शांतिपूर्ण बनाया जा सकता है।
- प्रतिदिन सुबह एक लौटे में पानी लेकर उसमें फूल, कुंकुम व चावल डालकर बरगद के पेड़ की जड़ में डालें तथा गाय को गुड़ व रोटी खिलाएं। ऐसा करने से आपके जीवन में सुख-शांति बनी रहेगी।
- सूर्यास्त के समय रोज आधा किलो कच्चे दूध में 9 बूंदें शहद मिलाकर घर के सभी कमरों में छींटे और फिर चौराहे पर जाकर वह दूध रखकर लौट आएं। लौटते समय पीछे पलटकर न देंखे। 21 दिन तक यह टोटका करने से घर में जितनी भी नकारात्मक शक्तियां होती हैं स्वत: ही दूर चली जाती हैं और शांति का अनुभव होता है।
- प्रतिदिन सुबह नहाकर घर के प्रत्येक सदस्य के मस्तक पर चंदन का तिलक लगाने से भी परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती हैं तथा धन-वैभव बढ़ता है।
- किसी भी महीने के कृष्ण पक्ष में शनिवार के दिन नाव की कील से बना लॉकेट गले में धारण करने से समस्त प्रकार के दोषों का नाश हो जाता है तथा समृद्धि में वृद्धि होती है।
- शुक्रवार के दिन पीले कपड़े पर हल्दी की 7 साबूत गंाठ, 7 जनेऊ, 7 लग्नमंडप की सुपारी, गुड़ की 7 डली तथा 7 पीले फूल रखें। इसके पश्चात धूप-दीप से पूजा करें तथा इसे बांधकर तिजोरी या जहां आप पैसे रखते हैं, वहां रख दें। निश्चय ही इस टोटके से धन-धान्य में वृद्धि होगी।

Saturday, February 19, 2011

संतान गोपाल मन्त्र

संतान के बिना गृहस्थ जीवन की खुशिययां अधूरी हो जाती हैं। धर्म के नजरिए से गृहस्थ जीवन की चार पुरूषार्थ में से एक काम की प्राप्ति में अहम भूमिका है। यही कारण है कि हर दंपत्ति संतान प्राप्ति की कामना करते हैं। आज के दौर में जहां पुत्रियां भी किसी भी क्षेत्र में पुत्रों से कम नहीं है। फिर भी अक्सर परंपराओं और धर्म से जुड़ी मान्यताओं के चलते हर कोई पुत्र कामना करता है। किंतु कभी-कभी यह देखा जाता है कि शारीरिक समस्या या किसी घटना के कारण संतान प्राप्ति में बाधाएं आती है, जो परिवार के माहौल में मायूसी और दु:ख पैदा करते हैं। शास्त्रों में संतान कामना को पूरा करने के ऐसे ही उपाय बताए गए हैं, जिनसे बिना किसी ज्यादा परेशानी या आर्थिक बोझ के मनचाही खुशियां मिलती हैं। यह उपाय है संतान गोपाल मन्त्र का जप। स्वस्थ्य, सुंदर संतान खासतौर पर पुत्र प्राप्ति के लिए यह मंत्र पति-पत्नी दोनों के द्वारा किया जाना बेहतर नतीजे देता है।
पति-पत्नी दोनों सुबह स्नान कर पूरी पवित्रता के साथ इस मंत्र का जप तुलसी की माला से करें। इसके लिए घर के देवालय में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र की चन्दन, अक्षत, फूल, तुलसी दल और माखन का भोग लगाकर घी के दीप व कर्पूर से आरती करें। बालकृष्ण की मूर्ति विशेष रूप से श्रेष्ठ मानी जाती है। भगवान की पूजा के बाद या आरती के पहले इस संतान गोपाल मंत्र का जप करें -
देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:

मंत्र जप के बाद भगवान से समर्पित भाव से निरोग, दीर्घजीवी, अच्छे चरित्रवाला, सेहतमंद पुत्र की कामना करें। यह मंत्र जप पति या पत्नी अकेले भी कर सकते हैं। धार्मिक मान्यताओं में इस मंत्र की 55 माला या यथाशक्ति जप के एक माह में चमत्कारिक फल मिलते हैं।

अचूक शनि मंत्र

शनि दण्ड देने वाले देवता के रूप में पूजनीय है। शनि की टेढ़ी चाल किसी भी व्यक्ति को बेहाल कर सकती है। यही कारण है कि उनकी छबि क्रूर भी मानी जाती है। जिससे शनि की साढ़े साती, महादशा आदि में शनिदेव की उपासना का महत्व है। शनि के बुरे असर से अनेक तरह की पीड़ाएं मिलती है, किंतु इनमें से शारीरिक रोग की बात करें तो शनि दोष से पैरों की बीमारी, गैस की समस्या, लकवा, वात और मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। जिससे व्यक्ति की कमजोरी उसे सुख और आनंद से वंचित कर सकती है। शनि दोष से पैदा हुए ऐसे ही रोगों से छुटकारे और बचाव के लिए यह वैदिक शनि मंत्र अचूक माना गया है। इस मंत्र का जप स्वयं या किसी विद्वान ब्राह्मण से कराना रोगनाश के लिए अचूक माना जाता है।
शनि के इस खास मंत्र और सामान्य पूजा विधि :
शनिवार के दिन सुबह स्नान कर घर या नवग्रह मंदिर में शनिदेव की गंध, अक्षत, काले तिल, उड़द और तिल का तेल चढ़ाकर पूजा करें। पूजा के बाद शनि के इस वैदिक मंत्र का जप कम से कम 108 बारे जरूर करें -
ऊँ शन्नो देवीरभीष्टय, आपो भवन्तु पीतये। शं योरभिस्त्रवन्तु न:।।
मंत्र जप के बाद शनिदेव से पूजा या मंत्र जप में हुई गलती के लिए क्षमा मांग स्वयं या परिजन की बीमारी से मुक्ति के लिए प्रार्थना करें। हिन्दू धर्म में प्रकृति को भी देव रूप मानता है। जिससे कोई भी इंसान चाहे वह धर्म को मानने वाला हो या धर्म विरोधी सीधे ही किसी न किसी रूप में प्रकृति और प्राणियों से प्रेम के द्वारा जुड़कर धर्म पालन कर ही लेता है। कुदरत की देव रूप उपासना का ही अंग हे पीपल पूजा। पीपल को अश्वत्थ भी कहा जाता है। शास्त्रों के मुताबिक पीपल देववृक्ष होकर इसमें त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास माना जाता है। ब्रह्मा का स्थान जड़ में, विष्णु का मध्य भाग या तने और अगले भाग यानि शाखाओं में शिव का स्थान है। इस वृक्ष की टहनियों में त्रिदेव सहित इंद्र और गो, ब्राह्मण, यज्ञ, नदी और समुद्र देव वास भी माना जाता है। इसलिए यह वृक्ष पंचदेव, ऊंकार या कल्पवृक्ष के नाम से भी पूजित है।
पीपल वृक्ष की पूजा से सांसारिक जीवन के अनेक कष्टों का दूर करती है। यहां हम ग्रहदोष खासतौर पर शनि पीड़ा का अंत करने के लिए पीपल पूजा की सरल विधि जानते हैं -
स्नान कर सफेद वस्त्र पहन पीपल के व़ृक्ष के नीचे की जमीन गंगाजल से पवित्र करें। दु:खों को दूर करने के मानसिक संकल्प के साथ स्वस्तिक बनाकर पीपल में सात बार जल चढ़ाएं। सामान्य पूजा सामग्रियों कुंकुम, अक्षत, फूल चढ़ाकर भगवान विष्णु, लक्ष्मी, त्रिदेव, शिव-पार्वती का ध्यान करें। इन देवताओं के सरल मंत्रों का बोलें।
इसके बाद पीपल वृक्ष के आस-पास वस्त्र या सूत लपेट कर परिक्रमा करें। परिक्रमा के समय भी भगवान विष्णु का ध्यान जरूर करते रहें। यथाशक्ति मिठाई का भोग लगाएं। घी या तिल के तेल का दीप जलाकर शिव, विष्णु या त्रिदेव की आरती करें। अंत में शनि पीड़ा दूर करने और अपने दोषों के लिए क्षमा प्रार्थना करें। पीपल वृक्ष की मात्र परिक्रमा से ही शनि पीड़ा का अंत हो जाता है।

Friday, February 18, 2011

यंत्रों से अशुभ ग्रह भी देने लगता है शुभ फल

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य अशुभ हो तो उसे हर कार्य में असफलता ही हाथ लगती है। अधिक मेहनत करने पर भी उसका फल नहीं मिलता। कई बार ऐसी स्थिति भी आ जाती है वह जीवन से पूरी तरह से निराश हो जाता है। ऐसी स्थिति में सूर्य यंत्र का विधि-विधान पूर्वक पूजन करने से सूर्य अशुभ होने पर भी शीघ्र ही शुभ फल प्राप्त होने लगते हैं। सूर्य यंत्र दो प्रकार के होते हैं। पहला नौग्रहों का एक ही यंत्र होता है तथा दूसरा नौग्रहों का अलग-अलग नौयंत्र होता है। प्राय: दोनों यंत्रों के एक जैसे ही कार्य एवं लाभ होते हैं। इस यंत्र को सम्मुख रखकर नौग्रहों की उपासना करने से सफलता तो मिलती ही है साथ स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी स्वत: ही समाप्त हो जाती हैं। व्यापार में लाभ होता है, समाज में यश तथा प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।
यंत्र का उपयोग -कभी-कभी ग्रह अनुकूल होने पर भी अनेक रोग व्याधि से मानव पीडि़त होता है। जहां तक उपाय का प्रश्न है इनमें महामृत्युंजय मंत्र का जप भी लाभप्रद होता है। कभी-कभी राहु की शांति के लिए सरसों और कोयले का दान अत्यन्त लाभकारी होता है। सूर्य आदि ग्रहों की शान्त एक मौलिक नियम यह भी है कि जिस ग्रह पर पाप प्रभाव पड़ रहा हो उसको बलवान किया जाना अभीष्ट है। उससे सम्बन्धित रत्न आदि धारण किया जाए अथवा यंत्र रखकर वैदिक मंत्रों द्वारा अनुष्ठान किया जाए।
यंत्रों का विधिवत पूजन करने से अशुभ ग्रह भी शुभ फल देने लगता हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि आपकी कुंडली में शनि अशुभ है तो आपको हर कार्य में असफलता ही हाथ लगती है या सोचे गए कार्य देर से होते हैं। कभी वाहन दुर्घटना, कभी यात्रा स्थागित तो कभी क्लेश आदि से परेशानी बढ़ती जाती है। ऐसी स्थिति में ग्रह पीड़ा निवारक शनि यंत्र की पूजा प्रतिष्ठा करने से अनेक लाभ मिलते हैं। यदि किसी व्यक्ति पर शनि की ढैय़ा या साढ़ेसाती चल रही है तो शनि यंत्र की पूजा करना बहुत लाभदायक होता है। श्रद्धापूर्वक इस यंत्र की प्रतिष्ठा करके प्रतिदिन यंत्र के सामने सरसों के तेल का दीप जलाएं। नीला या काला पुष्प चढ़ाएं ऐसा करने से लाभ होगा। इसके साथ ही प्रतिदिन शनि स्त्रोत का पाठ करें।मृत्यु, कर्ज, मुकद्दमा, हानि, क्षति, पैर आदि की हड्डी तथा सभी प्रकार के रोग से परेशान लोगों के लिए शनि यंत्र की पूजा फायदेमंद होती है। नौकरी पेशा लोगों को उन्नति भी शनि द्वारा ही मिलती है अत: यह यंत्र बहुत उपयोगी है।

Thursday, February 17, 2011

फूहड़ स्त्री पसंद नहीं लक्ष्मी जी को

स्त्री को शक्ति और लक्ष्मी का रूप मानती है। गृहस्थ जीवन की खुशहाली और बदहाली पुरुष ही नहीं स्त्री के श्रेष्ठ आचरण, व्यवहार और चरित्र पर भी निर्भर है। स्त्री परिवार की जिम्मेदारियों की बागडोर संभाल अपने तन के साथ मन और धन के संतुलन व प्रबंधन से शक्ति बन परिवार में खुशियां बनाए रखती है। हिन्दू धर्म में भी देवी लक्ष्मी ऐश्वर्य, धन और सुख-समृद्धि देने वाली मानी जाती है और वह दरिद्रता पसंद नहीं करती। इसलिए स्त्री को लक्ष्मी रूप मानना सही भी है। सांसारिक नजरिए से लक्ष्मी रूप होने पर भी स्त्री के लिए धन की अहमियत कम नहीं है। चाहे वह विवाहित हो या फिर अविवाहित।
शास्त्रों में साफ बताया गया है कि लक्ष्मी कैसी स्त्रियों से रूठ जाती है? जानते हैं ऐसी स्त्रियों के लक्षण - जो स्त्री हमेशा पति के खिलाफ़ काम करे, पति को कटु बोल बोलती है, पति को तरह-तरह से दु:ख देती है, लज्जाहीन स्त्री, झगड़ालू, गुस्सैल, चिढ़चिढ़ी और निर्मम , पति का घर छोड़कर दूसरे के घर में रहना पसंद करे, बड़ों का अपमान करने वाली , परपुरुष को पसंद करे। , आलसी और अस्वच्छ रहने वाली,वाचाल यानि ज्यादा बोलने वाली, घर का सामान इधर-उधर फेंकने वाली , अधिक सोने वाली, घर को अस्त-व्यस्त रखने वाली, अनजान लोगों से अनावश्यक बात करने वाली

Wednesday, February 16, 2011

सफलता देता गणेश मंत्र

शुभ और मंगल की चाहत तभी पूरी हो सकती है, जब बुद्धि और विवेक के संतुलन से लक्ष्य तक पहुंचा जाए। किंतु लक्ष्य भेदन के लिए भी जरूरी है कि उसके लिए की जाने वाली कोशिशों में आने वाली बाधाओं को ध्यान रख पहले से ही तैयारी रखी जाए। इनके बावजूद भी अनेक अवसरों पर अनजानी-अनचाही मुसीबतों से दो-चार होना पड़ता है। हिन्दू धर्म में भगवान श्री गणेश ऐसे ही देवता के रूप में पूजनीय है, जिनका नाम जप ही कार्य में आने वाली जानी-अनजानी विघ्र, बाधाओं का नाश कर देता है। शास्त्रों में गृहस्थी हो या व्यापार या फिर किसी परीक्षा और प्रतियोगिता में सफलता की चाह रखने वालों के लिए श्री गणेश के इस मंत्र जप का महत्व बताया गया है। जिसमें भगवान श्री गणेश के 12 नामों की स्तुति है। जानते हैं यह श्री गणेश मंत्र - बुधवार या हर रोज इस मंत्र का सुबह श्री गणेश की सामान्य पूजा के साथ जप बेहतर नतीजे देता है। पूजा में दूर्वा चढ़ाना और मोदक का यथाशक्ति भोग लगाना न भूलें।
गणपर्तिविघ्रराजो लम्बतुण्डो गजानन:।
द्वेमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिप:।।
विनायकश्चायकर्ण: पशुपालो भावात्मज:।
द्वाद्वशैतानि नामानि प्रातरूत्थाय य: पठेत्।
विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्रं भवते् कश्चित।

40 प्रतिशत आबादी हमेशा शनि देव की गिरफ्त में

दुनिया की कुल आबादी का 40 प्रतिशत भाग हमेशा क्रूर ग्रह शनि देव की गिरफ्त में रहता है। हर समय 5 राशियों के लोग सीधे-सीधे शनि से प्रभावित रहते हैं। शनि को न्याय का देवता माना जाता है लेकिन शनिदेव अति क्रूर ग्रह है। यदि किसी व्यक्ति से कोई गलत और अधार्मिक कार्य हो गया है तो शनि उसके पाप का बुरा फल जरूर देता है। यह फल शनि साढ़ेसाती और ढैय्या के समय व्यक्ति के जीवन को पूरी तरह प्रभावित करता है। शनि का प्रभाव सभी राशियों पर पड़ता है लेकिन इसका 5 राशियों पर अत्यधिक सीधा प्रभाव होता है। शनि एक मात्र ऐसा ग्रह है जो सीधे-सीधे एक साथ पांच राशियों को पूरी तरह प्रभावित करता है। इन राशियों में तीन राशियों पर शनि की साढ़े साती होती है और दो राशियों पर शनि की ढैय्या। ज्योतिष के अनुसार दुनिया की आबादी 12 राशियों में ही विभाजित है। अत: 12 में से 3 राशियों पर शनि की साढ़ेसाती और 2 राशियों पर शनि ढैय्या हर समय चलती रहती है। साढ़ेसाती और ढैय्या में शनि की सीधी नजर संबंधित राशि पर ही रहती है।
शनि की साढ़ेसाती: शनि की साढ़ेसाती का मतलब यह है किसी राशि को शनि साढ़े सात साल तक प्रभावित करता है। वैसे तो शनि किसी भी राशि में ढाई वर्ष (2 साल 6 माह) ही रुकता है परंतु इसका प्रभाव आगे और पीछे वाली राशियों पर भी पड़ता है। इस तरह प्रति राशि के ढाई वर्ष के अनुसार एक राशि को शनि साढ़े सात वर्ष प्रभावित करता है। शनि की साढ़ेसाती को तीन हिस्सो में विभक्त किया जाता है। एक-एक भाग ढाई-ढाई वर्ष का होता है।
शनि की ढैय्या: शनि की ढैय्या अर्थात् किसी राशि पर शनि का प्रभाव ढाई साल तक रहना। शनि जिस राशि में स्थित है उस राशि से ऊपर की ओर चौथी राशि और नीचे की ओर छठी राशि में भी शनि की ढैय्या रहती है। अभी शनि कन्या राशि में स्थित है और उसकी ढैय्या मिथनु और कुंभ पर भी चल रही है।
किसी व्यक्ति से कोई गलत और अधार्मिक कार्य हो गया है तो शनि उसके पाप का बुरा फल जरूर देते है। यह फल शनि साढ़ेसाती और ढैय्या के समय व्यक्ति के जीवन को पूरी तरह प्रभावित करता है।शनि के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए काले कुत्ते को रोटी दी जाती है। लेकिन शनि के अशुभ फल को दूर करने के लिए काले कुत्ते को ही चपाती क्यों दें? यह जिज्ञासा अक्सर लोगों के मन में होती है और जब उन्हें इसका उचित जवाब नहीं मिलता तो वे इसे अंधविश्वास मान लेते हैं। दरअसल इस उपाय को करने का कारण यह है शनि को श्याम वर्ण माना जाता है अर्थात् शनि देव स्वयं काले रंग के हैं और वे काले रंग के लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। साथ ही वराह संहिता के अनुसार काले कुत्ते को शनि का वाहन माना गया है। शनि को सेवा करने वाले और वफादार लोग पसंद होते हैं और काले कुत्ते में ये दोनों ही गुण होते हैं इसलिए शनि को प्रसन्न करने के लिए काले कुत्ते को तेल से लगी हुई चपाती देने की मान्यता है।

Saturday, February 12, 2011

बजरंग बाण का जप

संकटमोचक हनुमान की उपासना मानवीय जीवन के दु:ख, भय और चिंता को दूर करने के लिए अचूक मानी जाती है। श्री हनुमान साधना की इस कड़ी में बजरंग बाण का जप और पाठ शनिवार या मंगलवार के दिन करने का महत्व है। इस दिन यथाशक्ति श्री हनुमान की प्रसन्नता और शनिकृपा के लिए व्रत भी रख सकते हैं। - सुबह स्नान कर पवित्रता के साथ भगवा या सिंदूरी वस्त्र पहनें। तब मंदिर या घर के ही देवालय में बजरंग बाण का जप किया जा सकता है। इसके लिए तन के साथ मन की पवित्रता और शांत स्थान का जरूर ध्यान रखें।- श्री हनुमान की मूर्ति या तस्वीर के सामने कुश के आसन पर बैठें।- बजरंग बाण के जप प्रयोग की शुरुआत पवित्रीकरण और संकल्प के साथ करें। - संकल्प में मात्र बजरंग बाण के जप का ही न हो, बल्कि इसके साथ यह भी संकल्प करें कि मनोरथ पूर्ति और कष्ट शमन होने पर श्री हनुमान की तन, मन, धन से यथाशक्ति सेवा करेंगे। - शास्त्रों में हनुमान साधना में दीपदान का बहुत महत्व बताया गया है। अत: पंचधानों यानि गेंहू, चावल, मूंग, उड़द और काले तिल के मिश्रित आटे में गंगाजल मिलाकर एक दीपक बनाएं। - इस दीपक में सुगंधित तेल भरें और उसमें एक कच्चे सूत की मोटी बत्ती जो सिंदूरी रंग में रंगी हो, को जलाएं। बजरंग बाण के पाठ और अनुष्ठान पूर्ण होने तक यह दीपक प्रज्जवलित रखें। - श्री हनुमान को गुग्गल की धूप में लगाएं। - इसके बाद श्री राम और श्री हनुमान का ध्यान कर श्री हनुमान की मूर्ति पर ध्यान लगाकर स्थिर मन से बजरंग बाण का जाप शुरु करें। जाप करते समय अशुद्ध उच्चारण से बचें। - पूरे बजरंग बाण का पाठ की एक माला जप करें। एक माला संभव न होने पर 11, 21, 31 इसी तरह की संख्या में जप भी कर सकते हैं। - जप पूरे होने पर गुग्गल धूप, दीप, नैवेद्य अर्पण करें। नैवेद्य में विशेष रुप से गुड़, चने या गुड़ और आटे का मीठा चूरमा, लाल अनार या मौसमी फलों का भोग लगाएं।इस तरह बजरंग बाण का ऐसा पाठ तन, मन और धन से जुड़े सभी कलह और संताप दूर करता है।
आज शनि के लिए यह प्रयोग करें-
-मेष और वृश्चिक राशि वाले बजरंग बाण का पाठ करें।- लाल वस्त्र पहन कर हनुमान चालिसा का पाठ करें।- हनुमान मन्दिर में तेल का दीपक जलाएं।- हनुमान जी को लाल पूष्प अर्पित करें।- किसी जरूरतमंद को काला कंबल दान करें।- गुड़ चने की प्रसाद चढ़ाएं।- हनुमान जी को केवड़े का इत्र लगाएं।

Thursday, February 10, 2011

माँ दुर्गा का रोग नाशक मंत्र

मनुष्य कई बार बीमारियों से ग्रसित होता है। कुछ बीमारियां हैं लंबे समय तक परेशान करती हैं। कुछ बीमारियां ऐसी भी होती हैं जो इंसान को आर्थिक व मनोवैज्ञानिक तरीके से काफी नुकसान पहुंचाती हैं। उपचार के बाद भी यह बीमारियां ठीक नहीं होती। ऐसे समय में मंत्र शक्ति के माध्यम से इन रोगों को ठीक किया जा सकता है। दुर्गा सप्तशती में ऐसे अनेक मंत्रों का वर्णन है जो हमारी समस्याओं के निदान के लिए उपयोगी है। इन मंत्रों के जप से हमारे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है, जो रोग का समूल नाश कर देता है। नीचे ऐसा ही एक मंत्र लिखा है जो रोग नाश के लिए अचूक माना जाता है।मंत्र:
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।

प्रात:काल जल्दी उठकर साफ वस्त्र पहनकर सबसे पहले माता दुर्गा की पूजा करें। इसके बाद एकांत में कुश के आसन पर बैठकर लाल चंदन के मोतियों की माला से इस मंत्र का जप करें। इस मंत्र की प्रतिदिन 5 माला जप करने से असाध्य रोग भी ठीक हो जाते हैं। यदि जप का समय, स्थान, आसन, तथा माला एक ही हो तो यह मंत्र शीघ्र ही सिद्ध हो जाता है।

Wednesday, February 9, 2011

वाक कौशल बुध ग्रह नियत करता है

बुधवार का दिन देव उपासना के लिए श्रेष्ठ माना गया है। यह दिन बुद्धिदाता श्री गणेश के अलावा बुध देव की उपासना का खास दिन भी होता है। बुद्धि और सफलता के लिए श्री गणेश और बुध पूजा प्रभावी होती है। ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक बुध ग्रह का अच्छा प्रभाव नौकरी या बिजनेस में भारी कामयाबी, विद्या, एकाग्रता और अच्छी याददाश्त देने के साथ अनचाहे तनावों से छुटकारा देता है। इसलिए बुधवार के दिन बुध देव की प्रसन्नता के लिए बुध पूजा करने से बुध ग्रह के सभी बुरे प्रभाव दूर हो जाते हैं और मनोवांछित फल मिलते हैं।
- सुबह स्नान कर बुधदेव की यथासंभव सोने की मूर्ति अन्यथा धातु की मूर्ति कांसे के पात्र पर स्थापित करें। - भगवान बुधदेव को दो सफेद वस्त्र अर्पित करें। बुधदेव की पंचोपचार पूजा यानि गंध, अक्षत, फूल अर्पित करें। - भोग में गुड़, दही और भात का भोग लगाएं। - धूप और अगरबत्ती, दीप जलाकर पूजा-आरती करें। - पूजा के दौरान बुध देव का बीज मंत्र -ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम: या ऊँ बुं बुधाय नम: का जप करें। - पूजा के बाद क्षमा प्रार्थना और मंगलकामना करें। - यथासंभव ब्राह्मणों को बुध देव को लगाए भोग के साथ भोजन कराएं। - इस दिन बुध देव की निमित्त कांसा, जौ, हाथीदांत, सोना, कपूर या हरा कपड़ा, घी, मूंग दाल, हरी वस्तुओं का दान करें। - बुधवार के दिन श्री गणेश की भी पूजा करें और पूजा में विशेष रूप से सिंदूर, दुर्वा, गुड़, धनिया अर्पित करें। मोदक का भोग लगाएं। यथाशक्ति ऐसे 7, 17, 21 या 45 बुधवार पर व्रत करें। व्यक्ति का वाक कौशल यानि बोलने की कला या बुद्धिमानी बुध ग्रह नियत करता है। इसलिए बुधवार को बुध पूजा और व्रत के फल से व्यक्ति बुद्धिजीवी, कलाकार, सफल कारोबारी या शिक्षक बनता है। इसलिए बुधवार को बुध के साथ श्री गणेश पूजा के शुभ योग का फायदा हर छात्र, बिजनेसमेन और कलाकार उठाएं।

Tuesday, February 8, 2011

शकुन-अपशकुन

कई प्रकार के शकुन-अपशकुन प्रचलित हैं। पशु-पक्षियों को भी शकुन-अपशकुन की मान्यताओं से जोड़ा गया है। कौए को पितरों की संज्ञा भी दी गई है। कौओं से जुड़ी शकुन-अपशकुन की कई मान्यताएं काफी प्रचलित है। इन्हीं में से कुछ मान्यताएं नीचे उल्लेखित हैं-
1- यदि किसी व्यक्ति के ऊपर कौआ आकर बैठ जाए तो उसेधन व सम्मान की हानि होती है। यदि किसी महिला के सिर पर कौआ बैठता है तो उसके पति को गंभीर संकट का सामना करना पड़ता है। 2- यदि बहुत से कौए किसी नगर या गांव में एकत्रित होकर शौर करें तो उस नगर या गांव पर भारी विपत्ति आती है। 3- किसी के भवन पर कौओं का झुण्ड आकर शौर मचाए तो भवन मालिक पर कई संकट एक साथ आ जाते हैं। 4- कौआ यदि यात्रा करने वाले व्यक्ति के सामने आकर सामान्य स्वर में कांव-कांव करें और चला जाए तो कार्य सिद्धि की सूचना देता है। 5- यदि कौआ पानी से भरे घड़े पर बैठा दिखाई दे तो धन-धान्य की वृद्धि करता है। 6- कौआ मुंह में रोटी, मांस आदि का टुकड़ा लाता दिखाई दे तो उसे अभिष्ट फल की प्राप्ति होती है। 7- पेड़ पर बैठा कौआ यदि शांत स्वर में बोलता है तो स्त्री सुख मिलता है। 8- यदि उड़ता हुआ कौआ किसी के सिर पर बीट करे तो उसे रोग व संताप होता है। और यदि हड्डी का टुकड़ा गिरा दे तो उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। 9- यदि कौआ पंख फडफ़ड़ाता हुआ उग्र स्वर में बोलता है तो यह अशुभ संकेत है। 10- यदि कौआ ऊपर मुंह करके पंखों को फडफ़ड़ाता है और कर्कश स्वर में आवाज करता है तो वह मृत्यु की सूचना देता है।
घरों में आमतौर पर पाई जाने वाली छिपकली भी जीवन में होने वाली कई घटनाओं के बारे में संकेत करती है। 1- अगर छिपकली समागम करती मिले तो किसी पुराने मित्र से मिलन होता है। लड़ती दिखे तो किसी दूसरे से झगड़ा होता है और अलग होती दिखे तो किसी प्रियजन से बिछुडऩे का दु:ख होता है। 2- भोजन करते समय छिपकली का बोलना शुभ फलकारक होता है। 3- नए घर में प्रवेश करते समय गृहस्वामी को छिपकली मरी हुई व मिट्टी लगी हुई दिखाई दे तो उसमें निवास करने वाले लोग रोगी रहेंगे। 4- छिपकली किसी व्यक्ति के सिर अथवा दाहिने हाथ पर गिरे तो सम्मान तो मिलता है किंतु बाएं हाथ पर गिरती है तो धन हानि होती है। 5- यदि छिपकली किसी व्यक्ति के दाई ओर से चढ़कर बाईं ओर उतरती है तो उसे पदोन्नति और धन लाभ मिलता है। 6- यदि छिपकली पेट पर गिरती है तो अनेक प्रकार के उत्पात और छाती पर गिरती है तो सुस्वादु भोजन मिलता है। 7- घुटने पर गिरकर सुख प्राप्ति की सूचना देती है छिपकली। 8- स्त्री की बाईं बांह पर छिपकली गिरे तो सौभाग्य में वृद्धि और दाहिनी बांह पर गिरे तो सौभाग्य की हानि होती है। 9- यदि किसी के दाहिने गाल पर छिपकली गिरे तो उसे भोग-विलास की प्राप्ति होती है। बाएं गाल पर गिरे तो स्वास्थ्य में विकार उत्पन्न होते हैं। 10- यदि छिपकली नाभि पर गिरे तो पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। गुप्त अंगों पर गिरे तो रोग की संभावना व्यक्त करती है।
छींक आना एक सामान्य शारीरीक प्रक्रिया है लेकिन पुरातन समय से ही छींक को शकुन-अपशकुन से जोड़कर देखा जाता है। छींक आना कहीं शुभ माना जाता है कहीं अशुभ। छींक से जुड़ीं कुछ मान्यताएं तथा विश्वास हैं हमारे समाज में प्रचलित हैं जो प्राचीन समय से चले आ रहे हैं। अलग-अलग जाति तथा धर्म में छींक आने को लेकर कई धारणाएं मानी जाती हैं। उनमें से कुछ नीचे दी गई हैं-
1- यदि घर से निकलते समय कोई सामने से छींकता है तो कार्य में बाधा आती है। अगर एक से अधिक बार छींकता है तो कार्य सरलता से संपन्न हो जाता है। 2- किसी मेहमान के जाते समय कोई उसके बाईं ओर छींकता है तो यह अशुभ संकेत है। 3- कोई वस्तु क्रय करते समय यदि छींक आ जाए तो खरीदी गई वस्तु से लाभ होता है। 4- सोने से पूर्व और जागने के तुरंत बाद छींक की ध्वनि सुनना अशुभ माना जाता है। 5- नए मकान में प्रवेश करते समय यदि छींक सुनाई दे तो प्रवेश स्थगित कर देना ही उचित होता है। 6- व्यावसायिक कार्य आरंभ करने से पूर्व छींक आना व्यापार वृद्धि का सूचक होती है। 7- कोई मरीज यदि दवा ले रहा हो और छींक आ जाए तो वह शीघ्र ही ठीक हो जाता है। 8- भोजन से पूर्व छींक की ध्वनि सुनना अशुभ मानी जाती है। 9- यदि कोई व्यक्ति दिन के प्रथम प्रहर में पूर्व दिशा की ओर छींक की ध्वनि सुनता है तो उसे अनेक कष्ट झेलने पड़ते हैं। दूसरे प्रहर में सुनता है तो देह कष्ट, तीसरे प्रहर में सुनता है तो दूसरे के द्वारा स्वादिष्ट भोजन की प्राप्ति और चौथे प्रहर में सुनता है तो किसी मित्र से मिलना होता है। 10- धार्मिक अनुष्ठान या यज्ञादि प्रारंभ करते समय कोई छींकता है तो अनुष्ठान संपूर्ण नहीं होता है।

Monday, February 7, 2011

विश्वविजय सरस्वती कवच

सरस्वती ज्ञान, बुद्धि, कला व संगीत की देवी हैं। इनकी उपासना करने से मुर्ख व्यक्ति भी विद्वान बन सकता है। अनेक प्रकार से देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। उन्हीं में से एक है विश्वविजय सरस्वती कवच। यह बहुत ही अद्भुत है। विद्यार्थियों के लिए यह विशेष फलदाई है। धर्मशास्त्रों के अनुसार भगवती सरस्वती के इन अदुभुत विश्वविजय सरस्वती कवच को धारण करके ही महर्षि वेदव्यास, ऋष्यश्रृंग, भरद्वाज, देवल तथा जैगीषव्य आदि ऋषियों ने सिद्धि पाई थी। इस कवच को सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन में रासोत्सव के समय ब्रह्माजी से कहा था। इसके बाद ब्रह्माजी ने गंदमादन पर्वत पर भृगुमुनि को इसे बताया था।
विश्वविजय सरस्वती कवच
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श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा शिरो मे पातु सर्वत:।
श्रीं वाग्देवतायै स्वाहा भालं मे सर्वदावतु।।
ऊँ सरस्वत्यै स्वाहेति श्रोत्र पातु निरन्तरम्।
ऊँ श्रीं ह्रीं भारत्यै स्वाहा नेत्रयुग्मं सदावतु।।
ऐं ह्रीं वाग्वादिन्यै स्वाहा नासां मे सर्वतोवतु।
ह्रीं विद्याधिष्ठातृदेव्यै स्वाहा ओष्ठं सदावतु।।
ऊँ श्रीं ह्रीं ब्राह्मयै स्वाहेति दन्तपंक्ती: सदावतु।
ऐमित्येकाक्षरो मन्त्रो मम कण्ठं सदावतु।।
ऊँ श्रीं ह्रीं पातु मे ग्रीवां स्कन्धं मे श्रीं सदावतु।
श्रीं विद्याधिष्ठातृदेव्यै स्वाहा वक्ष: सदावतु।।
ऊँ ह्रीं विद्यास्वरुपायै स्वाहा मे पातु नाभिकाम्।
ऊँ ह्रीं ह्रीं वाण्यै स्वाहेति मम पृष्ठं सदावतु।।
ऊँ सर्ववर्णात्मिकायै पादयुग्मं सदावतु।
ऊँ रागधिष्ठातृदेव्यै सर्वांगं मे सदावतु।।
ऊँ सर्वकण्ठवासिन्यै स्वाहा प्राच्यां सदावतु।
ऊँ ह्रीं जिह्वाग्रवासिन्यै स्वाहाग्निदिशि रक्षतु।।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सरस्वत्यै बुधजनन्यै स्वाहा।
सततं मन्त्रराजोऽयं दक्षिणे मां सदावतु।।
ऊँ ह्रीं श्रीं त्र्यक्षरो मन्त्रो नैर्ऋत्यां मे सदावतु।
कविजिह्वाग्रवासिन्यै स्वाहा मां वारुणेऽवतु।।
ऊँ सदाम्बिकायै स्वाहा वायव्ये मां सदावतु।
ऊँ गद्यपद्यवासिन्यै स्वाहा मामुत्तरेवतु।।
ऊँ सर्वशास्त्रवासिन्यै स्वाहैशान्यां सदावतु।
ऊँ ह्रीं सर्वपूजितायै स्वाहा चोध्र्वं सदावतु।।
ऐं ह्रीं पुस्तकवासिन्यै स्वाहाधो मां सदावतु।
ऊँ ग्रन्थबीजरुपायै स्वाहा मां सर्वतोवतु।।

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Saturday, February 5, 2011

मां सरस्वती : हितकारी सुखकारी

वसंत पंचमी पर मां सरस्वती की पूजा विशेष रूप से की जाती है। मां सरस्वती को विद्या, बुद्धि, ज्ञान, संगीत और कला की देवी माना जाता है। व्यावहारिक रूप से विद्या तथा बुद्धि व्यक्तित्व विकास के लिए जरुरी है। शास्त्रों के अनुसार विद्या से विनम्रता, विनम्रता से पात्रता, पात्रता से धन और धन से सुख मिलता है। वसंत पंचमी के दिन यदि विधि-विधान से देवी सरस्वती की पूजा की जाए तो विद्या व बुद्धि के साथ सफलता भी निश्चित मिलती है। वसंत पंचमी पर मां सरस्वती की पूजा इस प्रकार करें-
सुबह स्नान कर पवित्र आचरण, वाणी के संकल्प के साथ सरस्वती की पूजा करें। पूजा में गंध, अक्षत के साथ खासतौर पर सफेद और पीले फूल, सफेद चंदन तथा सफेद वस्त्र देवी सरस्वती को चढ़ाएं। प्रसाद में खीर, दूध, दही, मक्खन, सफेद तिल के लड्डू, घी, नारियल, शक्कर व मौसमी फल चढ़ाएं। इसके बाद माता सरस्वती की इस स्तुति से बुद्धि और कामयाबी की कामना कर घी के दीप जलाकर माता सरस्वती की आरती करें -
आरती :
जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता।
सद्गुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता।। जय सरस्वती...।।
चंद्रवदनि पद्मासिनी, द्युति मंगलकारी।
सोहे शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी।। जय सरस्वती...।।
बाएँ कर में वीणा, दाएं कर माला।
शीश मुकुट मणि सोहे, गल मोतियन माला।। जय सरस्वती...।।
देवि शरण जो आए, उनका उद्धार किया।
पैठि मंथरा दासी, रावण संहार किया।। जय सरस्वती...।।
विद्या ज्ञान प्रदायिनि ज्ञान प्रकाश भरो।
मोह, अज्ञान और तिमिर का, जग से नाश करो।। जय सरस्वती...।।
धूप दीप फल मेवा, मां स्वीकार करो।
ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो।।।। जय सरस्वती...।।
मां सरस्वती जी की आरती, जो कोई नर गावे।
हितकारी सुखकारी, ज्ञान भक्ति पावे।। जय सरस्वती...।।

सफलता दिलाने वाले मंत्र

हर व्यक्ति की तमन्ना होती है कि उसकी जि़दगी सुख और सफलताओं से भरी हो। किंतु कामयाबी की डगर जितनी कठिन होती है, उतना ही पेचीदा होता है उस सफलता को कायम रखना। वैसे तो शिखर पर बने रहने के लिए जरूरी है काबिलियत, जज्बा और लगातार चलते रहने की इच्छा शक्ति। किंतु सुख के साथ दु:ख भी जीवन का हिस्सा है, जो किसी न किसी रूप में जीवन की गति को बाधित करता ही है। इसलिए हर व्यक्ति ऐसे उपाय और तरीके अपनाना चाहता है, जो सरल और एक के बाद एक कामयाबी देने में कारगर हो। हिन्दू धर्म शास्त्रों में ज़िंदगी में आने वाली अनचाही परेशानियों, कष्ट, बाधाओं और संकट को दूर करने के लिए ऐसे देवताओं की उपासना के धार्मिक उपाय बताए हैं, जो न केवल मुश्किल हालात में भरपूर मानसिक शक्ति और शांति देते है, बल्कि उनका अचूक प्रभाव हर भय चिंता से मुक्त कर सफलताओं की बुलंदियों तक ले जाता है। यहां कुछ ऐसे देवताओं के मंत्र बताए जा रहें हैं। जिनको घर, कार्यालय, सफर में मन ही मन बोलना भी संकटमोचक माना गया है। इन मंत्रों को बोलने के अलावा यथासंभव समय निकालकर साथ ही बताई जा रही पूजा सामग्री संबंधित देवता को जरूर चढ़ाएं -
शिव - पंचाक्षर मंत्र - नम: शिवाय, षडाक्षरी मंत्र ऊँ नम: शिवाय
पूजा सामग्री - जल व बिल्वपत्र।

श्री गणेश - ऊँ गं गणपतये नम:
पूजा सामग्री - दूर्वा, सिंदूर

विष्णु - ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय
पूजा सामग्री - पीले फूल या वस्त्र

महामृंत्युजय मंत्र - ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धि पुष्टिवर्द्धनम्‌।
उर्वारुकमिव बन्धानान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌।
पूजा सामग्री - दूध मिला जल, धतूरा।

श्री हनुमान - ऊँ हं हनुमते नम:
पूजा सामग्री - सिंदूर, गुड़-चना
इन मंत्रों के जप के समय सामान्य पवित्रता का ध्यान रखें। जैसे घर में हो तो देवस्थान में बैठकर, कार्यालय में हो तो पैरों से जूते-चप्पल उतारकर इन मंत्र और देवताओं का ध्यान करें। इससे आप मानसिक बल पाएंगे, जो आपकी ऊर्जा को जरूर बढ़ाने वाले साबित होंगे।

Friday, February 4, 2011

लड़की के विवाह के लिए उपाय

माघ मास की गुप्त नवरात्रि के दौरान विशेष साधना तथा पूजन से अपनी सभी मनोकामना पूरी कर सकते हैं। यदि लड़की के विवाह में अड़चनें आ रही हैं तो निम्न उपाय करने पर यह समस्या दूर हो जाएगी। (1) नवरात्रि में पडऩे वाले सोमवार को अपने आस-पास स्थित किसी शिव मंदिर में जाएं। वहां भगवान शिव एवं मां पार्वती पर जल एवं दूध चढ़ाएं और पंचोपचार (चंदन, पुष्प, धूप, दीप एवं नेवैद्य) से उनका पूजन करें। अब मौली से उन दोनों के मध्य गठबंधन करें। अब वहां बैठकर लाल चंदन की माला से निम्नलिखित मंत्र का जाप 108 बार करें-
हे गौरी शंकरार्धांगी। यथा त्वं शंकर प्रिया।
तथा मां कुरु कल्याणी, कान्त कान्तां सुदुर्लभाम्।।

इसके बाद तीन माह तक नित्य इसी मंत्र का जाप शिव मंदिर में अथवा अपने घर के पूजाकक्ष में मां पार्वती के सामने 108 बार जाप करें। घर पर भी आपको पंचोपचार पूजा करनी है। शीघ्र ही पार्वतीजी की कृपा से आपको सुयोग्य वर की प्राप्ति होगी।
(2) शीघ्र विवाह एवं विवाह में आ रही बाधाओं के निवारण के लिए प्रथम नवरात्रि से प्रारंभ करते हुए 40 दिनों तक कात्यायनी देवी की पूजा करें। इसके बाद नित्य निम्नलिखित मंत्र का 3, 5 अथवा 10 माला जाप करें-
कात्यायनि महामाये, महा योगिन्यधीश्वरि।
नन्दगोपस्तुतं देवि, पतिं मे कुरु ते नम:।।

(3) नवरात्रि में शिव-पार्वती का एक चित्र अपने पूजास्थल में रखें और उनकी पूजा-अर्चना करने के पश्चात निम्नलिखित मंत्र का 3, 5 अथवा 10 माला जाप करें। जप के पश्चात भगवान शिव से विवाह में आ रही बाधाओं को दूर करने की प्रार्थना करें-
ऊँ शं शंकराय सकल-जन्मार्जित-पाप-विध्वंसनाय,
पुरुषार्थ-चतुष्टय-लाभाय च पतिं मे देहि कुरु कुरु स्वाहा।।

यह प्रयोग 9 दिनों तक इसी प्रकार से करें। साथ ही प्रतिदिन सुबह केले के पत्ते में जल चढ़ाने के बाद उसकी 11 परिक्रमा भी करें।

अधिक धन प्राप्ति के लिए उपाय

किसी के पास कितना पैसा होगा? यह ज्योतिष शास्त्र से जाना जा सकता है। जन्म पत्रिका का दूसरा भाव धन या पैसों से संबंधित होता है। इसी दूसरे भाव से व्यक्ति को धन, आकर्षण, खजाना, सोना, मोती, चांदी, हीरे, जवाहारात आदि मिलते हैं। साथ ही इसी से व्यक्ति को स्थायी संपत्ति जैसे घर, भवन-भूमि का कारक भी प्राप्त होता है।- किसी की कुंडली में द्वितीय भाव पर शुभ ग्रह या शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो उस व्यक्ति के अमीर बनने में कोई रूकावट नहीं होती है। - यदि कुंडली में द्वितीय भाव में बुध हो तथा उस पर चंद्रमा की दृष्टि हो तो जातक धनहीन होता है वह जीवनभर मेहनत करते रहता हैं परंतु उसे ज्यादा धन की प्राप्ति नहीं होती है। वह गरीब ही रहता है।- यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में द्वितीय भाव पर किसी पाप ग्रह की दृष्टि हो तो वह धनहीन होता है।- यदि कुंडली के द्वितीय भाव में चंद्रमा हो तो अपार धन प्राप्ति का योग बनता है परंतु यदि उस पर नीच के बुध की दृष्टि पड़ जाए तो घर में भरा हुआ धन भी नष्ट हो जाता है।- चंद्रमा यदि अकेला हो तथा कोई भी ग्रह उससे द्वितीय या द्वादश न हो तो व्यक्ति गरीब ही रहता है।- यदि कुंडली में सूर्य, बुध द्वितीय भाव में स्थित हो तो धन स्थिर नहीं होता।

यह उपाय करें:- प्रतिदिन शिवलिंग पर जल, बिलपत्र और अक्षत (चावल) चढ़ाएं।- महालक्ष्मी और श्री विष्णु की पूजा करें।- सोमवार का व्रत करें।- सोमवार को अनामिका उंगली में सोने, चांदी और तांबे से बनी अंगुठी पहनें।- शाम को शिवजी के मंदिर में दीपक लगाएं।- पूर्णिमा को चंद्र का पूजन करें।- श्रीसूक्त का पाठ करें।- श्री लक्ष्मीसूक्त का पाठ करें।- कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें।- किसी की बुराई करने से बचें।- पूर्णत: धार्मिक आचरण बनाएं रखें।- घर में साफ-सफाई बनाएं रखें इससे धन स्थाई रूप से आपके घर में रहेगा।

Thursday, February 3, 2011

अकाल मृत्यु के कारण

मृत्यु एक अटल सत्य है। कोई इसे बदल नहीं सकता। कब, किसी कारण से, किस की मौत होगी, यह कोई भी नहीं कह सकता। कुछ लोगों की अल्पायु में ही किसी कारण से मौत हो जाती है। ऐसी मौत को अकाल मृत्यु कहते हैं। जातक की कुंडली के आधार पर अकाल मृत्यु के संबंध में जाना जा सकता है।
1- यदि जातक की कुंडली के लग्न में मंगल स्थित हो और उस पर सूर्य या शनि की अथवा दोनों की दृष्टि हो तो दुर्घटना में मृत्यु होने की आशंका रहती है। 2- राहु-मंगल की युति अथवा दोनों का समसप्तक होकर एक-दूसरे से दृष्ट होना भी दुर्घटना का कारण हो सकता है। 3- षष्ठ भाव का स्वामी पापग्रह से युक्त होकर षष्ठ अथवा अष्टम भाव में हो तो दुर्घटना होने का भय रहता है। 4- लग्न, द्वितीय भाव तथा बारहवें भाव में क्रूर ग्रह की स्थिति हत्या का कारण बनती है। 5- दशम भाव की नवांश राशि का स्वामी राहु अथवा केतु के साथ स्थित हो तो जातक की मृत्यु अस्वभाविक होती है। 6- लग्नेश तथा मंगल की युति छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तो जातक क शस्त्र से घाव होता है। इसी प्रकार का फल इन भावों में शनि और मंगल के होने से मिलता है। 7- यदि मंगल जन्मपत्रिका में द्वितीय भाव, सप्तम भाव अथवा अष्टम भाव में स्थित हो और उस पर सूर्य की पूर्ण दृष्टि हो तो जातक की मृत्यु आग से होती है।