Sunday, October 31, 2010

पैसों की परेशानी से निजात पायें

पैसों की बरकत नहीं रहती? पर्स अक्सर खाली रहने लगा है। जीवन में मुश्किलों से जुझ रहे हैं, तो नीचे लिखे इस टोटके को अपनाकर कोई भी पैसों की परेशानी से निजात पा सकता हैं।
- लक्ष्मी का स्वरूप माना जाने वाला एकाक्षरी बीज मंत्र ह्रीं बहुत प्रभावशाली और चमत्कारी है। - किसी भी शनिवार के दिन सुबह स्नान आदि से निपट कर शनि की होरा में एक साबुत पीपल का पत्ता तोड़कर ले आएं। - मन में ऊं नमो: नारायण मंत्र का जप करते रहे। - फिर उस पत्ते को गंगाजल या किसी तीर्थ स्थल के जल से धोकर उस पर अष्टगंध की स्याही से अपने हाथ की अनामिका अंगुली से ह्रीं लिख लें। - उसके बाद धूप-दीप करने के बाद उक्त पत्ते को नये पत्ते से बदल लें। - पुराने पत्ते को किसी बहते जल में प्रवाहित कर दें। नये पत्ते को आप अपनी दुकान आदि में पैसे रखने के स्थान पर या जेब में पर्स भी रख सकते हैं।- विशेष ध्यान यह रहे कि पत्ता नीचे रखें।

भक्त महालक्ष्मी का प्रिय हो जाता

जीवन धन अभाव में परेशानियों और दुखों से भरा है, उसके लिए एक अचूक लक्ष्मी मंत्र है। इस मंत्र के प्रभाव से बहुत गरीब लोगों को भी अच्छा धन प्राप्त होने के योग बन जाते हैं।मंत्र सिद्ध होने के बाद साधक को कभी भी धन की कमी नहीं होती। इस मंत्र जप से भक्त महालक्ष्मी का प्रिय हो जाता है और देवी लक्ष्मी उस पर सदैव अपनी कृपा बरसाती रहती हैं।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं दरिद्रय विनाशके जगत्प्रसूत्यै नम:

इस मंत्र को सिद्ध करने के लिए दीपावली के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें, सभी आवश्यक कार्यों से निवृत्त हो जाएं। फिर घर में किसी पवित्र स्थान पर महालक्ष्मी का चित्र स्थापित करें। चित्र के समक्ष घी का दीपक, अगरबत्ती आदि लगाएं। मां लक्ष्मी के सामने बैठकर उक्त मंत्र की 11 मालाएं जपें। माला कमलगट्टे की होनी चाहिए। मंत्र जप के समय दीपक जलता रहना चाहिए।
दीपावली के दिन 11 मालाएं जप करने के बाद प्रतिदिन अपने सामथ्र्य के अनुसार इस मंत्र का जप करें। 12 लाख मंत्र जप के बाद यह सिद्ध हो जाता है और देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद साधक को प्राप्त हो जाता है। इसका शुभ प्रभाव कुछ दिनों में दिखाई देने लगेगा। इस दौरान किसी भी प्रकार का अधार्मिक कृत्य ना करें। अन्यथा मंत्र लाभदायक नहीं होगा।

Saturday, October 30, 2010

लक्ष्मी स्तवन का पाठ

महालक्ष्मी की पूजा-उपासना लोक पंरपराओं में प्राय: धन-दौलत की परेशानियों को दूर करने का एक धार्मिक उपाय अधिक दिखाई देता है। माता लक्ष्मी प्रकाश की ही प्रतीक है और प्रकाश ज्ञान का यानि मां लक्ष्मी जागरण का संदेश देती है। दीपावली पर की जाने वाली रोशनी भी जागकर उठ खड़े होने को ही प्रेरित करती है। सरल शब्दों में जब आप विचार, व्यवहार, दृष्टि की मलीनता दूर कर सद्गुणों को अपनाने की शुरुआत करते हैं, तब खुशहाली के दरवाजे खुल जाते हैं। जिंदगी खुशियों की रोशनी से जगमगा जाती है। धार्मिक आस्था भी यही है कि खुले दरवाजों में माता लक्ष्मी प्रवेश करती है।
माता लक्ष्मी के आवाहन, ध्यान और प्रसन्नता के लिए धर्म शास्त्रों में तरह-तरह के सूक्त, स्त्रोत और मंत्र बताए गए हैं। इनमें से ही एक है लक्ष्मी स्तवन। इस लक्ष्मी स्तवन का पाठ हर लक्ष्मी पूजा, शुक्रवार को वैभव लक्ष्मी पूजा, दीपावली, धनतेरस या अन्य किसी भी विशेष लक्ष्मी पूजा की आरंभ में करने पर वैभव, ऐश्वर्य के साथ मनोरथ पूर्ति करता है। संस्कृत भाषा या व्याकरण की जानकारी के अभाव में आप इसकी हिन्दी अर्थ का भी पाठ कर लक्ष्मी की प्रसन्नता से दरिद्रता दूर कर सकते हैं।
लक्ष्मी स्तवन -
या रक्ताम्बुजवासिनी विलासिनी चण्डांशु तेजस्विनी ।
या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी ॥
या रत्नाकरमन्थनात्प्रगटिता विष्णोस्वया गेहिनी ।
सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती ॥

इस लक्ष्मी स्तवन का सरल अर्थ है - लाल कमल पर रहने वाली, अद्भुत आभा और कांतिवाली, असह्य तेजवाली, रक्त की भाति लाल रंग वस्त्र धारण करने वाली, मन को आनंदित करने वाली, समुद्रमंथन से प्रकट हुईं विष्णु भगवान की पत्नी, भगवान विष्णु को अति प्रिय, कमल से जन्मी है और अतिशय पूज्य मां लक्ष्मी आप मेरी रक्षा करें और मनोरथ पूरे कर जीवन वैभव और ऐश्वर्य से भर दे।

Friday, October 29, 2010

धनदायक है नागकेसर

नागकेसर को तंत्र के अनुसार एक बहुत ही शुभ वनस्पति माना गया है। काली मिर्च के समान गोल या कबाब चीनी की भांति दाने में डंडी लगी हुई गेरू के रंग का यह गोल फूल होता है। इसकी गिनती पूजा- पाठ के लिए पवित्र पदार्थो में की जाती है।तंत्र के अनुसार नागकेसर एक धनदायक वस्तु है। नीचे लिखे इस धन प्राप्ति के प्रयोग को अपनाकर आप भी धनवान बन सकते हैं।
- किसी पूर्णिमा को सोमवार हो उस दिन यह प्रयोग करें।- किसी भी मन्दिर में शिवलिंग पर पांच बिल्वपत्रों के साथ यह फूल भी चढ़ा दीजिए। इससे पूर्व शिवलिंग को कच्चे दूध, दही, शक्कर, घी, गंगाजल, आदि से धोकर पवित्र करें। - पांच बिल्व पत्र और नागकेशर के फूल की संख्या हर बार एक ही रखना चाहिए।- अगली पूर्णिमा तक निरंतर चढ़ाते रहे।- आखिरी दिन चढ़ाये गये फूल तथा बिल्व पत्रों में से एक अपने घर ले आए। धन सम्पदा अर्जित करवाने में नागकेशर फूल चमत्कारी प्रभाव दिखाते हैं।

बुरी आत्माओं से रक्षा करता है ये डाग
कुत्ते बहादुरी और वफादारी का प्रतीक माने जाते हैं। चीन में भी बहादुर कुत्ते मतलब फूडाग का प्रचलन है। इसके प्रतीकों का जोड़ा घर के बाहर रखा जाता है। जिससे नकारात्मक उर्जा घर से आने से रोका जा सकता है।
फूडाग का प्रतीक बुरी नजर से भी बचाव कर देता है। फूडाग को खरीदते समय ध्यान रखना चाहिए। बच्चे के साथ मादा और नर को दरवाजे के दोनों तरफ लगाते हैं। यह जोड़ा लगाते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि नर फूडाग को दांयी ओर तथा मादा फूडाग को बाईं ओर रखना चाहिए। इन कुत्तो का स्वरूप शेर से मिलता- जुलता लगता है। ये डाग बुरी आत्माओं से भी घर की रक्षा करता है।

पूजा के दीपक

देवी-देवताओं की पूजा में आरती सबसे महत्वपूर्ण कर्म है। आरती के साथ ही पूजा-अर्चना पूर्ण होती है। पूजा में आरती के महत्व को देखते हुए दीपक तैयार करते समय कई सावधानियां रखनी अनिवार्य है। विधि-विधान से तैयार किए गए दीपक से देवी-देवताओं की कृपा जल्दी ही
- देवताओं को घी का दीपक अपनी बायीं ओर तथा तेल का दीपक दायीं ओर लगाना चाहिए।- देवी-देवताओं को लगाया गया दीपक पूजन कार्य के बीच बुझना नहीं चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखें।- दीपक हमेशा भगवान के सामने ही लगाएं।- घी के दीपक के लिए सफेद रुई की बत्ती लगाएं।- तेल के दीपक के लिए लाल बत्ती का उपयोग किया जाना चाहिए।- दीपक कहीं से खंडित या टूटा नहीं होना चाहिए।

Thursday, October 28, 2010

कामयाबी के लिए करें गुरु पूजा

गुरुवार का दिन बृहस्पति या गुरु की उपासना को समर्पित है। बृहस्पति देवगुरु माने जाते हैं। गुरु शुभ ग्रह माना जाता है। यह व्यक्ति के जीवन में विद्या, ज्ञान, संतान सुख को भी नियत करता है। मीन और धनु राशि के स्वामी गुरु है। गुरु मकर राशि में बुरे फल देता है। इसके विपरीत कर्क राशि में होने पर यह शुभ प्रभाव देते हैं।
स्त्री और पुरुष के खुशहाल दाम्पत्य में गुरु की भूमिका अहम होती है। गुरु पुरुष तत्व का कारक है। इसलिए पुरुष के साथ ही खासतौर पर स्त्री के विवाह आ रही रुकावटों को गुरु की प्रसन्नता से दूर करने के लिए गुरुवार का व्रत श्रेष्ठ माना जाता है।
ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार कुण्डली में गुरु ग्रह के शुभ प्रभाव से व्यक्ति सरल, शांत, धार्मिक, आध्यात्मिक और खुबसूरत व्यक्तित्व का होता है। गुरु के अच्छा-बुरा असर ही व्यक्ति की तकदीर का फैसला करता है। कुण्डली में बुरे योग से शरीर में रोग जैसे मधुमेह, लीवर या वात रोग पैदा होते हैं। बुरी घटना भी हो सकती है। वहीं बिजनेस, पढ़ाई और अदालती मामलों में कामयाबी या नाकामी गुरु के अच्छे-बुरे असर से निश्चित होती है।
गुरुवार के दिन गुरु की उपासना और व्रत कर गुरु के शुभ प्रभाव से वैवाहिक, कारोबारी, मानसिक और व्यावहारिक परेशानियों से छुटकारा मिल सकता है। इसलिए यहां बताई जा रही गुरुवार व्रत और पूजा की सरल विधि -
- गुरुवार के दिन सबेरे स्नान करें। यथासंभव पीले वस्त्र पहनें।- एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर गुरु बृहस्पति की प्रतिमा को किसी पात्र में रखकर स्थापित करें। - अगर कोई पुरुष जनेऊधारी है तो गुरु की पूजा के समय जनेऊ जरुर पहनें।
- गुरुदेव की गंध, अक्षत, पीले वस्त्र, पीले फूल, चमेली के फूलों से पूजा-अर्चना करें।- पीली वस्तुओं जैसे चने की दाल से बने पकवान, चने, गुड़ या पीले फलों का भोग लगाएं।- गुरुवार व्रत कथा करें। बृहस्पति आरती करें। क्षमा प्रार्थना कर मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करें।- इस दिन किसी पात्र ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए या उनके निमित्त भोजन सामग्री दान देनी चाहिए। - पीले रंग की सामग्री और दक्षिणा देनी चाहिए। - समर्थ हो तो सोने का दान बहुत शुभ फल देता है। सोने की धातु के स्वामी गुरु को ही है। - ब्राह्मण के भोजन या दान के बाद ही व्रती भोजन करें। ऐसे सात गुरुवार लगातार व्रत करें।
धार्मिक दृष्टि से गुरुवार के व्रत, पूजा-उपासना से कुण्डली में बनी गुरु ग्रह दोष शांति होती है। सुख-समृद्धि के साथ विशेष तौर पर कारोबार में फायदे, अच्छी शिक्षा, योग्य वर या वधू पाने के सपने पूरे होते हैं।

शाम का समय देवताओं की आराधना का

कई लोग समय की कमी के कारण शाम के वक्त आराम करते हैं। यहां आराम करने से हमारा मतलब है-सोने से। शाम को सोना शास्त्रों की दृष्टि से अनुचित माना जाता है।
वैसे देखा जाए तो सोने के रात्रि को ही श्रेष्ठ माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार तो दिन भी नहीं सोना चाहिए। दिन में सोने से आयु घटती है, शरीर पर अनावश्यक चर्बी बढ़ती है, आलस्य बढ़ता है आदि। दिन में सोना प्रतिबन्धित है। सिर्फ वृद्ध, बालक एवं रोगियों के मामले में यहां स्वीकृति है।जब शास्त्रों में दिन में सोने पर पाबंदी है तो शाम का समय तो वैसे भी संध्या-आचमन का होता है। शाम का समय देवताओं की आराधना एवं संध्या का होता है।
इस समय सोने से शरीर में शिथिलता आती है और नकारात्मक विचारों का आगमन होता है। इस समय तो पूरे भक्तिभाव से भगवान की पूजा-अर्चना एवं संध्या करनी चाहिए।
शाम को सोने के साथ ही खाना खाना, पढ़ाई करना एवं मैथुन कर्म करना भी वर्जित है। कहते हैं इन कर्मों को शाम को करने से आयु तो घटती ही है, साथ ही यश, लक्ष्मी, विद्या आदि सभी का नाश हो जाता है। इसलिए शाम को सोना शास्त्रोक्त विधान के अनुसार अनुचित माना गया है।

रिश्ते को प्रभावित करने वाले ग्रह

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली से व्यक्ति के सभी पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों पर विचार किया जाता है। कुंडली के ग्रहों की स्थिति से मालूम किया जा सकता है कि उस व्यक्ति के अपने परिवार के लोगों से कैसे रिश्ते हैं और भविष्य में कैसे रहेंगे? मित्र कैसे हैं? इसी तरह अन्य सभी रिश्तों पर विचार किया जा सकता है।
हर रिश्ते को अलग-अलग ग्रह प्रभावित करते हैं-
रिश्ता- रिश्ते को प्रभावित करने वाला ग्रह
राज्य- सूर्य
भाई, मित्र- मंगल
गुरु, पिता, दादा- गुरु
चाचा, ताऊ- शनि
पुत्र- केतु
माता, दादी- चंद्र
पुत्री, बहन, बुआ- बुध
पत्नी या पति- शुक्र
ससुराल, ननिहाल- राहु
हर रिश्ता कैसा रहेगा यह कुंडली में स्थित ग्रहों के शुभ-अशुभ होने पर निर्भर करता है।
- यदि आपको राज्य या समाज में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो आप सूर्य की आराधना करें। प्रतिदिन सूर्य को जल चढ़ाएं, इससे समाज में यश, मान-सम्मान मिलेगा।- भाई या मित्र से संबंध ठीक नहीं रहते तो मंगलदेव की आराधना करें। प्रति मंगलवार शिवलिंग पर लाल फूल चढ़ाएं।- यदि पिता, दादा या गुरु से रिश्ता ठीक नहीं है तो गुरु अथवा ब्रहस्पति की पूजा कराएं। प्रतिदिन शिवजी को पीले फूल अर्पित करें।- यदि चाचा या ताऊजी से संबंधों खटास है तो शनिवार को शनिदेव के निमित्त तेल का दान करें।- यदि पुत्र आपकी नहीं सुनता, तो केतु का उपचार करें। केतु संबंधी वस्तुओं का दान दें।
- चंद्र की आराधना से माता और दादी से रिश्तों में सुधार आएगा।- पुत्री, बहन या बुआ से रिश्तों में कड़वाहट आ गई है तो बुध ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान करें। बुधवार को श्रीगणेश को दूर्वा अर्पित करें।
- यदि पति-पत्नी के रिश्तों में किसी तरह की परेशानियां आ रही हैं तो शुक्रदेव को मनाएं। शुक्रवार को शुक्र ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान करें।- ससुराल या ननिहाल वालों को मनाने के लिए राहु जप कराएं।

Wednesday, October 27, 2010

धनियां करता है धन का आवाह्न

आपने बड़े-बूढ़ों को यह कहते हुए सुना होगा कि जिस घर में नमक बंधा हो, तो वहां बरकत रहती है। लक्ष्मी को कमल पर आसीन माना गया है।हल्दी की गाठों में साक्षात गणेश का रूप माना गया है और धनियां को इसलिए इस नाम से पुकारा जाता है क्योंकि वह धन का आवाह्न करता है। कारण चाहे जो भी हो लेकिन यह बिल्कुल सही है। जिस घर में नमक, खड़ा धना, हल्दी की गांठे और कमल गट्टों को भले ही कम मात्रा में ही सही लेकिन कु छ मात्रा में संजोकर रखा जाए तो निश्चय ही उस घर में बरकत होती है। वहां शांति बनी रहती है।साबुत नमक को पर्याप्त मात्रा में ईशान्य यानी उत्तर-पूर्व में रखने पर किसी भी विपरीत दिशा में शौचालय में रखने से उनका दोष कम हो जाता है।
समय किसी का गुलाम नहीं होता। व्यक्ति के जीवन में समय की कमी हमेशा बनी रहती है। इसलिए आज हर कोई चाहता है कि कम से कम समय में अधिक से अधिक समृद्धि प्राप्त हो जाए। फेंगशुई के उपायों में समृद्धि और शांति के रूप में कछुए को माना जाता है। कछुए का इतिहास पांच हजार वर्ष पुराना है। कछुए के अन्दर ईश्वर का निवास होता है।
चीन में प्रचलित एक किवदंती के अनुसार लगभग पांच हजार वर्ष पहले जब शिया काव नामक व्यक्ति अपने सहयोगियों के साथ खेत में सिंचाई के लिए खुदाई का काम कर रहा था। तब नीचे से एक बहुत बड़ा कछुआ निकला। तभी से चीनी मान्यता है कि इसके अन्दर भगवान का वास होता है। इसलिए उसका इस तरह अचानक प्रकट होना बहुत शुभ व समृद्धिदायक माना गया है।
अक्सर घर में जीवित कछुए को रखना संभव नहीं होता। इसलिए फेंगशुई के अनुसार शीशे या धातु से बने कछुए को रखना शुभ माना जाता है। इसे भी पानी से भरे छोटे कटोरे में रखना चाहिए। घर के उत्तर दिशा में रखा कछुआ बहुत लाभदायक होता है। यदि शयन कक्ष या ड्राइंगरूम में रखना हो तो इसकी पीठ दीवार की तरफ होनी चाहिए। इससे घर में समृद्धि के साथ ही शांति का स्थाई निवास होता है।

पर्स में रहेगी बरकत

घर का वास्तु, ऑफिस का वास्तु, आपकी कार का वास्तु, हर चीज में जब आप वास्तु का ध्यान रखते आएं हैं तो पर्स में वास्तु का ख्याल क्यों नहीं रखा जा सकता? जिस तरह हमारे आसपास का वातावरण हमें प्रभावित करता है। उसी प्रकार हमारा बैग या पर्स भी हमें प्रभावित करता है।तो आइये जानते हैं कि कैसे अपने बैग को वास्तु के अनुसार रखकर उसमें धन की बरकत बड़ा सकते हैं।
- अपने पर्स में एक लाल रंग का लिफाफा रखें। इसमें आप अपनी कोई भी मनोकामना एक कागज में लिख कर रखें। वह शीघ्र पूरी होगी।- बैग में लाल रेशमी धागे से एक गांठ बांध कर रखें।-बैग में शीशा और छोटा चाकु अवश्य रखें।- बैग में रुपये पैसे जहां रखते हों वहां पर कौड़ी या गोमती चक्र अवश्य रखें।- चाबी को छल्ले में डाल कर रखें। यदि इस छल्ले में लाफिंग बुद्धा या अन्य कोई फेंगशुई का प्रतीक अच्छा रहता है।- पर्स में किसी भी प्रकार का पिरामिड रखें। यह आपके लिए लाभदायक होगा।

Tuesday, October 26, 2010

देवी-देवताओं की परिक्रमा

शास्त्रों के अनुसार पूजा के समय सभी देवी-देवताओं की परिक्रमा करने की परंपरा है। सभी देवी-देवताओं की परिक्रमा की संख्या अलग-अलग बताई गई है जैसे-
- श्री गणेश की तीन परिक्रमा ही करनी चाहिए। जिससे श्री गणेश भक्त को रिद्ध-सिद्धि सहित समृद्धि का वर देते हैं।- शिवजी की आधी परिक्रमा करने का विधान है। शिवजी बड़े दयालु हैं वे बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते हैं और भक्त पर सब कुछ न्यौछावर कर देते हैं।- माताजी की एक परिक्रमा की जाती है। माता अपने भक्तों को शक्ति प्रदान करती है।- भगवान नारायण अर्थात् विष्णु की चार परिक्रमा करने पर अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।- एक मात्र प्रत्यक्ष देवता सूर्य की सात परिक्रमा करने पर सारी मनोकामनाएं जल्द ही पूरी हो जाती है।

सामान्यत: पूजा हम सभी करते हैं परंतु कुछ छोटी-छोटी बातें जिन्हें ध्यान रखना और उनका पालन करना अतिआवश्यक है। इन छोटी-छोटी बातें के पालन से भगवान जल्द ही प्रसन्न होते हैं और मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। यह बातें इस प्रकार हैं-
- सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव, विष्णु- यह पंचदेव कहे गए हैं, इनकी पूजा सभी कार्यों में करनी चाहिए।- भगवान की केवल एक मूर्ति की पूजा नहीं करना चाहिए, अनेक मूर्तियों की पूजा से कल्याण की कामना जल्द पूर्ण होती है। - मूर्ति लकड़ी, पत्थर या धातु की स्थापित की जाना चाहिए।- गंगाजी में, शालिग्रामशिला में तथा शिवलिंग में सभी देवताओं का पूजन बिना आवाहन-विसर्जन किया जा सकता है।- घर में मूर्तियों की चल प्रतिष्ठा करनी चाहिए और मंदिर में अचल प्रतिष्ठा।- तुलसी का एक-एक पत्ता कभी नहीं तोड़ें, उसका अग्रभाग तोड़ें। मंजरी को भी पत्रों सहित तोड़ें।- देवताओं पर बासी फूल और जल कभी नहीं चढ़ाएं।- फूल चढ़ाते समय का पुष्प का मुख ऊपर की ओर रखना चाहिए।

Monday, October 25, 2010

क्या प्रभाव देती हैं सूर्य-शनिकी युति

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य और शनि एक ही भाव में स्थित हो तो अधिकांशत: इसके बुरे प्रभाव ही झेलने पड़ते हैं।
- यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य और शनि लग्न में स्थित है तो वह व्यक्ति दुराचारी, बुरी आदतों वाला, मंदबुद्धि और पापी प्रवृत्ति का होता है।- यदि शनि और सूर्य चतुर्थ भाव में है तो व्यक्ति नीच, दरिद्र और भाइयों तथा समाज में अपमानित होने वाला होता है। यदि सूर्य और शनि सप्तम भाव में स्थित है तो व्यक्ति आलसी, भाग्यहीन, स्त्री और धन से रहित, शिकार खेलने वाला और महामूर्ख होता है।- यदि दशम भाव में यह दोनों ग्रह स्थित हो तो व्यक्ति विदेश में नौकरी करने वाला होता है। यदि इन्हें अपार धन की प्राप्ति भी हो जाए तो वह चोरी हो जाता है।
इन बुरे प्रभावों से बचने के उपाय
- प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में सूर्य हो जल चढ़ाएं और सात परिक्रमा करें।- प्रति मंगलवार और शनिवार को हनुमानजी को सिंदूर और चमेली का तेल चढ़ाएं। शनि और सूर्य से संबंधित वस्तुएं दान करें तथा ऐसी वस्तुएं कभी दान या उपहार में स्वीकार न करें।- गरीबों को मदद करें।- महिलाओं का सम्मान करें और पूर्णत: धार्मिक आचरण रखें।- प्रतिदिन पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाएं और सात परिक्रमा करें।- शिवलिंग पर प्रतिदिन जल चढ़ाकर विधि विधान से पूजा करें।- हनुमान चालिसा का पाठ प्रतिदिन करें।

जादुई लकड़ी इन्द्रजाल

इन्द्रजाल एक अमूल्य वस्तु है, इसे प्राप्त करना दुर्लभ है। यह एक समुद्री पौधा है जिसमें पत्ती नहीं होती। इन्द्रजाल की महिमा डामरतंत्र, विश्वसार , रावणसंहिता, आदि ग्रंथों में पाई जाती है। इसे विधिपूर्वक प्रतिष्ठा करके साफ कपड़े में लपेटकर पूजा घर में रखने से अनेक प्रकार के लाभ होते हैं। इसमें चमत्कारी गुण होते हैं।
जिस घर में इन्द्रजाल होता है। वहां भूत-प्रेत, जादू - टोने का प्रभाव नहीं पड़ता और इसकी पूजा व उपासना करने से घर में हमेशा शान्ति बनी रहती है। घर में बरकत और लक्ष्मी की बचत होती है। इसे रोज पुष्प, अक्षत, आदि चढ़ाने से इसकी देवशक्ति में वृद्धि होती है।इन्द्रजाल का नित्य पंचोपचार पूजा और दर्शन करने से मानसिक और शारीरिक शान्ति मिलती है। इसके पूजा स्थल पर होने से घर में किसी तरह की बुरी नजर का प्रभाव नहीं पड़ता है। इसकी लकड़ी भूत-प्रेत से बाधित लोगों पर से उनका प्रभाव हट जाता है। इसकी लकड़ी को गले में पहनने से हर तरह की गुप्तशक्तियां स्वप्र में साक्षात्कार करती हैं। इन्द्रजाल के दर्शन मात्र से अनेक बाधाएं दूर होती हैं और हर मनोकामना पूरी होती है।

Sunday, October 24, 2010

कौन सा फूल चढ़ाएं शिव को

भगवान शंकर के पूजन में विभिन्न फूलों का भी विशेष महत्व है। विभिन्न फूलों से विधि-विधानपूर्वक भगवान शंकर का पूजन करने पर मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। शिवपुराण की रुद्रसंहिता में इस संदर्भ में विस्तृत वर्णन मिलता है जो इस प्रकार है-
लाल व सफेद आंकड़े के फूल से शिव का पूजन करने पर भोग व मोक्ष की प्राप्ति होती है। चमेली के फूल से पूजन करने पर वाहन सुख मिलता है। अलसी के फूलों से शिव का पूजन करने से मनुष्य भगवान विष्णु को प्रिय होता है। शमी पत्रों से पूजन करने पर मोक्ष प्राप्त होता है। बेला के फूल से पूजन करने पर शुभ लक्षणों से युक्त पत्नी मिलती है।
जूही के फूल से शिव का पूजन करें तो घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती। कनेर के फूलों से शिव का पूजन करने से नवीन वस्त्रों की प्राप्ति होती है। हरसिंगार के पुष्पों से पूजन करने पर सुख-सम्पत्ति में वृद्धि होती है। धतूरे के पुष्प के पूजन करने पर भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशन करता है। लाल डंठलवाला धतूरा पूजन में शुभ माना गया है।
दुर्वा से पूजन करने पर आयु बढ़ती है। तुलसीदल से पूजन करने पर शिव भोग व मोक्ष प्रदान करते हैं। इन फूलों को एक-एक लाख की संख्या में शिव के ऊपर चढ़ाया जाए तो भगवान शिव प्रचुर फल प्रदान करते हैं। चम्पा व केवड़े के फूल छोड़कर शेष सभी फूल शिव पूजन में चढ़ाए जा सकते हैं।

नहीं चढ़ाते शिव को केतकी पुष्प

शिव की पूजा उत्तम फूलों से पूजा करने के मनोवांछित फल मिलते हैं। शिव की पूजा में सिर्फ केतकी का ही पुष्प क्यों चढ़ाया जाता इसके बारे में एक कथा है- एक बार ब्रह्माजी व विष्णुजी में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। ब्रह्माजी सृष्टि के रचयिता होने के कारण श्रेष्ठ होने का दावा कर रहे थे और भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के पालन कर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ कह रहे थे। तभी वहां एक विराट ज्योतिर्मय लिंग प्रकट हुआ। दोनों देवताओं ने सर्वानुमति से यह निश्चय किया गया कि जो इस लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा। अत: दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग की छोर ढूढंने निकले। छोर ने मिलने के कारण विष्णुजी लौट आए। ब्रह्मा जी भी सफल नहीं हुए परंतु उन्होंने आकर विष्णुजी से कहा कि वे छोर तक पहुँच गए थे। उन्होंने केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बताया। ब्रह्मा जी के असत्य कहने पर स्वयं शिव वहाँ प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्मा जी की आलोचना की। दोनों देवताओं ने महादेव की स्तुति की तब शिव जी बोले कि मैं ही सृष्टि का कारण, उत्पत्तिकर्ता और स्वामी हूँ। मैंने ही तुम दोनों को उत्पन्न किया है। शिव ने केतकी पुष्प को झूठी साक्षी देने के लिए दंडित करते हुए कहा कि यह पुष्प मेरी पूजा में प्रयुक्त नहीं किया जा सकेगा। इसीलिए शिव के पूजन में कभी केतकी का पुष्प नहीं चढ़ाया जाता।

रुद्राक्ष की उत्पत्ति

रुद्राक्ष की उत्पत्ति शिव के आंसुओं से मानी जाती है। इस बारे में पुराण में एक कथा प्रचलित है। कहते हैं एक बार भगवान शिव ने अपने मन को वश में कर दुनिया के कल्याण के लिए सैकड़ों सालों तक तप किया। एक दिन अचानक ही उनका मन दु:खी हो गया। जब उन्होंने अपनी आंखें खोलीं तो उनमें से कुछ आंसू की बूंदे गिर गई। इन्हीं आंसू की बूदों से रुद्राक्ष नामक वृक्ष उत्पन्न हुआ। शिव भगवान हमेशा ही अपने भक्तों पर कृपा करते हैं। उनकी लीला से ही उनके आंसू ठोस आकार लेकर स्थिर(जड़) हो गए। जनधारणा है कि यदि शिव-पार्वती को प्रसन्न करना हो तो रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
रुद्राक्ष की श्रेणी
रुद्राक्ष को आकार के हिसाब से तीन भागों में बांटा गया है-
1- उत्तम श्रेणी- जो रुद्राक्ष आकार में आंवले के फल के बराबर हो वह सबसे उत्तम माना गया है।
2- मध्यम श्रेणी- जिस रुद्राक्ष का आकार बेर के फल के समान हो वह मध्यम श्रेणी में आता है।
3- निम्न श्रेणी- चने के बराबर आकार वाले रुद्राक्ष को निम्न श्रेणी में गिना जाता है।
जिस रुद्राक्ष को कीड़ों ने खराब कर दिया हो या टूटा-फूटा हो, या पूरा गोल न हो। जिसमें उभरे हुए दाने न हों। ऐसा रुद्राक्ष नहीं पहनना चाहिए।वहीं जिस रुद्राक्ष में अपने आप डोरा पिरोने के लिए छेद हो गया हो, वह उत्तम होता है।

भगवान शंकर को रुद्राक्ष अतिप्रिय है। भगवान शंकर के उपासक इन्हें माला के रूप में पहनते हैं। रुद्राक्ष के 14 प्रकार हैं तथा सभी का अलग-अलग महत्व है। रुद्राक्ष के संदर्भ में शिवमहापुराण के विद्येश्वरसंहिता में वर्णन मिलता है।
उसके अनुसार एक मुख वाला रुद्राक्ष साक्षात शिव का स्वरूप है। वह भोग और मोक्ष प्रदान करता है। जहां इस रूद्राक्ष की पूजा होता है वहां से लक्ष्मी दूर नहीं जाती। दो मुख वाला रुद्राक्ष देवदेवेश्वर कहा गया है। यह संपूर्ण कामनाओं और मनोवांछित फल देने वाला है। तीन मुख वाला रुद्राक्ष सदा साक्षात साधन का फल देने वाला है उसके प्रभाव से सारी विद्याएं प्रतिष्ठित होती हैं।
चार मुख वाला रुद्राक्ष ब्रह्मा का स्वरूप है। उसके दर्शन तथा स्पर्श से धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति होती है। पांच मुख वाला रुद्राक्ष कालाग्निरुद्ररूप है। वह सब कुछ करने में समर्थ है। सबको मुक्ति देने वाला तथा संपूर्ण मनोवांछित फल प्रदान करने वाला है। छ: मुख वाला रुद्राक्ष कार्तिकेय का स्वरूप है। इसे धारण करने वाला ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो जाता है।
सात मुख वाला रुद्राक्ष अनंगस्वरूप और अनंग नाम से प्रसिद्ध है। इसे धारण करने वाला दरिद्र भी राजा बन जाता है। आठ मुख वाला रुद्राक्ष अष्टमूर्ति भैरवस्वरूप है। इसे धारण करने वाला मनुष्य पूर्णायु होता है। नौ मुख वाले रुद्राक्ष को भैरव तथा कपिल-मुनि का प्रतीक माना गया है। दस मुख वाला रुद्राक्ष भगवान विष्णु का रूप है। इसे धारण करने वाले मनुष्य की संपूर्ण कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
ग्यारह मुखवाला रुद्राक्ष रुद्ररूप है इसे धारण करने वाला सर्वत्र विजयी होता है। बारह मुखवाले रुद्राक्ष को धारण करने पर मानो मस्तक पर बारहों आदित्य विराजमान हो जाते हैं। तेरह मुख वाला रुद्राक्ष विश्वदेवों का रूप है। इसे धारण कर मनुष्य सौभाग्य और मंगल लाभ करता है। चौदह मुख वाला रुद्राक्ष परम शिवरूप है। इसे धारण करने पर समस्त पापों का नाश हो जाता है।

यह है हनुमानजी की स्तुति

सनातन धर्म में श्री रामचरित मानस न केवल धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि इसके चरित्र और पात्र आदर्श व्यावहारिक जीवन के सूत्रों और संदेशों को भी उजागर करते हैं। इन पात्रों में रामभक्त श्री हनुमान के चरित्र में भी कर्म, समर्पण, पराक्रम, प्रेम, परोपकार, मित्रता, वफादारी जैसे अनेक आदर्शों के दर्शन होते हैं।
श्री हनुमान के दिव्य और संकटमोचक चरित्र के दर्शन श्री रामचरित मानस के सुन्दरकाण्ड में होता है। इसलिए सुन्दरकाण्ड का पाठ व्यावहारिक जीवन में आने वाली संकट, विपत्तियों और परेशानियों को दूर करने में बहुत प्रभावी माना जाता है। किंतु अगर समयाभाव से पूरा पाठ संभव न हो तो सुन्दरकाण्ड में दी गई श्री हनुमान की छोटी सी स्तुति का नियमित पाठ आपकी दु:ख व कष्टों से रक्षा करने के साथ हर मनोरथ पूरे कर देता है। यह स्तुति शनि पीड़ा के बुरे प्रभाव से भी बचाती है।
इच्छापूर्ति और शनि पीड़ा से रक्षा के लिए श्री हनुमान उपासना के विशेष दिन शनिवार और मंगलवार को इस हनुमान स्तुति का पाठ अवश्य करें।
- शनिवार या मंगलवार को सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। इस दिन बोल, विचार और व्यवहार को पवित्र रखें।
- घर या मंदिर में जाकर श्री हनुमान को गंध, सुगंधित तेल व सिंदूर, लाल फूल, अक्षत चढ़ाएं।
- गुग्गल अगरबत्ती या धूप बत्ती और घी के दीप जलाकर पूजा करें। केले, गुड़ या चने का भोग लगाएं।
- इसके बाद सुन्दरकाण्ड की इस छोटी-सी स्तुति का श्रद्धा और आस्था से पाठ करें -

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।

श्री हनुमान की इस स्तुति का नित्य पाठ दैनिक जीवन के कामों में आने वाली बाधा और परेशानियों को भी दूर कर व्यर्थ चिंता और तनाव से बचाती है या यूं कहें कि यह छोटी सी हनुमान स्तुति हर मुश्किलों और मुसीबतों से लडऩे का फौलादी जज्बा देती है।

शिव के श्रेष्ठ अवतार हैं हनुमानSource:

भगवान शंकर का हनुमान अवतार सभी अवतारों में श्रेष्ठ है। इस अवतार में भगवान शंकर ने एक वानर का रूप धरा था। शिव का यह अवतार बल, बुद्धि विद्या, भक्ति व पराक्रम का श्रेष्ठ उदाहरण है। इस अवतार से हमें यह सीख लेनी चाहिए कि यदि आप अपनी क्षमता को पहचाने तो सब कुछ संभव है। जिस तरह हनुमान ने अपनी क्षमता को जानकर समुद्र पार किया था उसी तरह हमारे लिए भी कुछ भी असंभव नहीं है। धर्म के पथ पर चलते हुए राम का हनुमान ने साथ दिया था उसी तरह यदि हम धर्म के मार्ग पर चलें तो भगवान हमारी सहायता भी अवश्य करेंगे।
ऐसे हुआ हनुमान का जन्म
विष्णुजी के मोहिनी रूप को देखकर लीलावश शिवजी ने कामातुर होकर अपना वीर्यपात कर दिया। सप्तऋषियों ने उस वीर्य को कुछ पत्तों में संग्रहित कर गौतम की पुत्री अंजनी के गर्भ में प्रवेश कराया जिससे अत्यंत तेजस्वी एवं प्रबल पराक्रमी श्री हनुमानजी उत्पन्न हुए। हनुमान जी सब विद्याओं का अध्ययन कर वे पत्नी वियोग से व्याकुल रहने वाले सुग्रीव के मंत्री बन गए। उन्होंने पत्नीहरण से खिन्न व भटकते रामचंद्र जी की सुग्रीव से मित्रता कराई। सीता की खोज में समुद्र को पार कर लंका गए और वहां उन्होंने अद्भुत पराक्रम दिखाए। हनुमान जी ने राम-रावण युद्ध ने भी अपना पराक्रम दिखाया और संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण के प्राण बचाए। अहिरावण को मारकर लक्ष्मण व राम को बंधन से मुक्त कराया। इस प्रकार हनुमान अवतार लेकर भगवान शिव ने अपने परम भक्त श्रीराम की सहायता की।

कलाएं जिनसे लक्ष्मी स्थाई हो जाती हैं

क्या आप पैसों के अभाव से परेशान हैं? आप चाहते हैं कि आपको इस परेशानी से छुटकारा मिल जाए। आपके घर में कभी लक्ष्मी की कमी नहीं हो तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं, लक्ष्मी की उन नौ कलाओं के बारे मे जिनके होने पर जीवन हर सुख से पूर्ण हो जाता है। जिस किसी व्यक्ति में लक्ष्मी की इन नौ कलाओ का विकास हो जाता है,लक्ष्मी वहां स्थाई रूप से निवास करने लगती है।

विभूति- सांसारिक कर्तव्य को निभाते हुए दान रूपी कर्तव्य जो निभाता है मतलब शिक्षा, दान, रोगी सेवा, जलदान आदि कर्तव्य लक्ष्मी की विभूति हैं ये सभी लक्ष्मी की पहली शक्ति है।
नम्रता- दूसरी शक्ति नम्रता होती है और ये दोनों क लाएं जिसमें आ जाती है तो लक्ष्मी उसे उतना ही ऊंचा उठाती है।
कान्ति- जब ऊपर लिखी दोनों कलाएं आ जाती है तो वह लक्ष्मी की तीसरी कला कांति का पात्र हो जाता है।
तुष्टि- इन तीनों कलाओं के एक हो जाने पर चौथी कला का आगमन अपने आप हो जाता है। वाणी सिद्धि, व्यवहार, नए कार्य, पुत्र प्राप्ति जैसे शुभ कार्य होने लगते है।
कीर्ति- यह लक्ष्मी की पांचवी कला है, इसकी उपासना से व्यक्ति का जीवन धन्य हो जाता है, संसार में उसकी कीर्ति फैलने लगती है।
सन्नति- कीर्ति मिलने पर लक्ष्मी की छटी कला सन्नति मुग्ध होकर विराजमान होती है।
पुष्टी- इस कला द्वारा साधक अपने जीवन में संतुष्टी का अनुभव करता है। उसे अपने जीवन का सार मालुम पड़ता है।
उत्कृष्टि- इस कला से जीवन में सुख की वृद्धि होती जाती है।
ऋद्धि - यह सबसे महत्वपूर्ण कला है जो बाकी सात कलाओं के होने पर खुद ही व्यक्ति के जीवन में समाहित हो जाती है।

Saturday, October 23, 2010

त्वचा रोगों का उपचार

प्रदूषण के इस दौर में त्वचा रोग सर्वाधिक पाया जाने वाला रोग है। यह रोग शहर में ज्यादा होता है। खासतौर पर युवा पीढ़ी इससे सबसे ज्यादा प्रभावित है। ज्योतिष में इसका कारक ग्रह बुध है तथा कुण्डली का षष्ठ भाव इसमें प्रमुख होता है। इसके अलावा शनि, राहु, मंगल के अशुभ होने पर तथा सूर्य, चंद्र के क्षीण होने पर त्वचा रोग होते हैं।
सप्तम स्थान पर केतु भी त्वचा रोग का कारण बन सकता है। बुध यदि बलवान है तो यह रोग पूरा असर नहीं दिखाता, वहीं बुध के कमजोर रहने पर यह कष्टकारी हो सकता है।
लक्षण::- पानी, मवाद से भरी फुंसी व मुंहासे चंद्र के कारण होती है- मंगल के कारण रक्त विकार वाली फुंसी व मुंहासे होती है।- राहु के प्रभाव से कड़ी दर्द वाली फुंसी होती है।
उपाय::- षष्ठ स्थान पर स्थित अशुभ ग्रह का उपचार कराएं।- सूर्य मंत्रों या आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।- शनिवार को कुत्ते को तेल चुपड़ी रोटी खिलाएं।- सरस्वती स्तोत्र का पाठ करें।- पारद शिवलिंग का पूजन करें।

फालतू सामान हटाएं तनाव भगाएं

हमारी प्रवृति होती है कि सामान को इकट्ठा करते जाते हैं। उसमें बहुत सा ऐसा होता है जिसे कि आपने यह सोचकर रख लिया था कि कभी काम आएगा। मगर कभी आप ध्यान से विचार करें तो पाएंगे कि साल बीत गया परन्तु वह सामान कभी काम नहीं आया। ऐसे ही कुछ सामानों की हम बात कर रहे हैं शायद इन में से कुछ सामान ऐसा होगा जो आपने भी संभाल रखा होगा और अनजाने में ही ऐसे सामान आपके घर में वास्तुदोष उत्पन्न कर रहे हों। ऐसे सामान हमारे घर मे नकारात्मक उर्जा पैदा करते हैं साथ ही सौभाग्य के लिए अच्छे नहीं होते हैं।
यदि नीचे लिखी वस्तुओं में से कोई वस्तु आपने भी रखी हुई हो तो उन्हें हटाइये हो सकता है वो सामान आपके घर में समस्याओं, बिमारियों व मानसिक अशांति को जन्म दे रहा हो।
- पुराने वस्त्र जो कि इस उम्मीद में रखे गए हों कि शायद पुराना फैशन वापस आ जाए।- पुरानी पत्रिकाएं , किताबें इत्यादि आपने संभालकर रखी हो कि आप इन्हे दुबारा पढ़ेंगे।- टूटे हुए खिलौने या शो पीस।- ताले बिना चाबियां या चाबियां बिना ताले की। दस साल पुराने रिकार्ड या बहीखाते।- बंद घडिय़ां।- जुते, गर्म कपड़े, पुराना फर्नीचर,।- इलेक्ट्रिकल सामान जैसे मिक्सी,रेडियो,टी.वी. जो कि बरसों से उपयोग में ना आ रहे हों।

शनि, राहु, हनुमान दे इन पांच सुखों का आनंद

हर व्यक्ति जीवन में अनेक रुपों में सुख भोगता है। कभी अपने तो कभी परिवार के सुख की लालसा जन्म से लेकर मृत्यु तक साथ चलती है। धर्म में आस्था रखने वाला व्यक्ति इन सुखों को पाने या कमी न होने के लिए देवकृपा की हमेशा आस रखता है। हर गृहस्थ या अविवाहित जीवन में बुद्धि, ज्ञान, संतान, भवन, वाहन इन पांच सुखों की कामना जरूर करता है।
यहां इन सुखों का खासतौर पर जिक्र इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि ज्योतिष विज्ञान के अनुसार जब किसी व्यक्ति की जन्मकुण्डली में शनि-राहु की युति बन जाती है, तब इन पांच सुखों को जरूर प्रभावित करती है। जन्म कुण्डली में यह पांच सुख चौथे और पांचवे भाव नियत करते हैं। खासतौर पर जब जन्मकुण्डली में शनि-राहु की युति चौथे भाव में बन रही हो। तब वह पांचवे भाव पर भी असर करती है। हालांकि दूसरे ग्रहों के योग और दृष्टि अच्छे और बुरे फल दे सकती है। लेकिन यहां मात्र शनि-राहु की युति के असर और उसकी शांति के उपाय पर गौर किया जा रहा है।
हिन्दू पंचांग में शनिवार का दिन न्याय के देवता शनि की उपासना कर पीड़ा और कष्टों से मुक्ति का माना जाता है। यह दिन शनि की पीड़ा, साढ़े साती या ढैय्या से होने वाले बुरे प्रभावों की शांति के लिए भी जरुरी है। किंतु शनिवार का दिन एक ओर क्रूर ग्रह राहु दोष की शांति के लिए भी अहम माना जाता है। राहु के बुरे प्रभाव से भयंकर मानसिक पीड़ा और अशांति हो सकती है। यह दिन रामभक्त हनुमान की उपासना से संकट, बाधाओं से मुक्त होकर ताकत, अक्ल और हुनर पाने का माना जाता है। यही नहीं श्री हनुमान की उपासना करने वाले व्यक्ति को शनि पीड़ा कभी नहीं सताती है। ऐसा शास्त्रों में स्वयं शनिदेव की वाणी है। इसी तरह राहु का कोप भी हनुमान उपासना करने वालों को हानि नहीं पहुंचाता।
अगर आप इन पांच सुखों को पाने में परेशानी महसूस कर रहे हो या कुण्डली में बनी शनि-राहु की युति से प्रभावित हो, तो यहां जानते हैं सुखों का आनंद लेने के लिए हनुमान भक्ति और शनि-राहु युति की दोष शांति के सरल उपाय -
- शनिवार की सुबह यथासंभव जितना जल्दी हो सके उठकर स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- एक शुद्ध जल या उसमें गंगाजल मिलाकर घर के समीप या मंदिर में स्थित पीपल के पेड़ में जाकर चढ़ाएं। पीपल की सात परिक्रमा करें। अगरबत्ती, तिल के तेल का दीपक लगाएं। समय होने पर गजेन्दमोक्ष स्तवन का पाठ करें। इस बारे में किसी विद्वान ब्राह्मण से जानकारी ले सकते हैं।- इसी तरह किसी मंदिर के बाहर बैठे भिक्षुक को तेल में बनी वस्तुओं जैसे कचोरी, समोसे, सेव, पकोड़ी यथाशक्ति खिलाएं या उस निमित्त धन दें।- श्री हनुमान की प्रतिमा के सामने एक नारियल पर स्वस्तिक बनाकर अर्पित कर दें। समयाभाव होने पर यह तीन उपाय न केवल आपकी मुसीबतों को कम करते हैं,बल्कि जीवन को सुखी और शांति से भर देते हैं।
- किंतु समय होने पर शनिवार के दिन शनिदेव, श्री हनुमान और राहू पूजा की पंचोपचार पूजा और विशेष सामग्रियों को अर्पित करें।- शनि मंत्र ऊँ शं शनिश्चराये नम: और राहू मंत्र ऊँ रां राहुवे नम: का जप करें। हनुमान चालीसा का पाठ भी बहुत प्रभावी होता है।- शनि मंदिर में जाकर लोहे की वस्तु चढाएं या दान करें, तिल का तेल का दीप जलाएं। तेल से बने पकवानों का भोग लगाएं।- श्री हनुमान को गुड़, चना या चूरमें का भोग लगाएं। सिंदूर का चोला चढाएं।- राहु की प्रसन्नता के लिए तिल्ली की मिठाईयां और तेल का दीप लगाएं।

Friday, October 22, 2010

तुलसी पूजा से धन

हिंदू मान्यताओं के अनुसार हर घर के बाहर तुलसी का पौधा होना अनिवार्य बताया गया है। प्रतिदिन तुलसी की पूजा करना और पौधे में जल अर्पित करना प्राचीनकालीन परंपरा है।
तुलसी की पूजा से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है, धन की कोई कमी नहीं होती। इसके पीछे धार्मिक कारण है। तुलसी में हमारे सभी पापों का नाश करने की शक्ति होती है, इसकी पूजा से आत्म शांति प्राप्त होती है। तुलसी को लक्ष्मी का ही स्वरूप माना गया है। विधि-विधान से इसकी पूजा करने से महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और इनकी कृपा स्वरूप हमारे घर पर कभी धन की कमी नहीं होती।
तुलसी पूजा की विधि :तुलसी पूजा के लिए घी दीपक, धूप, सिंदूर, चंदन, नैवद्य और पुष्प अर्पित किए जाते हैं।
तुलसी के आठ नाम :धर्मशास्त्रों के अनुसार तुलसी के आठ नाम बताए गए हैं- वृंदा, वृंदावनि, विश्व पूजिता, विश्व पावनी, पुष्पसारा, नन्दिनी, तुलसी और कृष्ण जीवनी।
तुलसी एक औषधि :ऐसा माना जाता है कि तुलसी पूजा से हमारे घर पर दैवीय कृपा बनी रहती है। तुलसी एक औषधि भी है। जिस घर में तुलसी होती है वहां बीमारियां फैलाने वाले कई कीटाणु स्वत: ही नष्ट हो जाते हैं। तुलसी घर के सदस्यों की बीमारियों से रक्षा करती है और इसके नियमित सेवन से हमारे शरीर के कई रोग दूर होते हैं।

पूजा जाता है अशोक का पेड़

अशोक के पेड़ को पवित्र माना जाता है। शोक-दु:ख को दूर करने के कारण ही संभवत: इसे अशोक नाम की उपमा दी गई है। भगवान राम ने खुद ही इसे शोक दूर करने वाले पेड़ की उपमा दी थी। कामदेव के पंच पुष्प बाणों में एक अशोक भी है। कवियों ने भी इसकी महत्ता के बारे में खूब लिखा है। रावण ने सीता हरण के बाद उन्हें अशोक-वाटिका में ही रखा था। चूंकि यहां अशोक के पेड़ अधिक संख्या में थे, इसलिए इसे अशोक-वाटिका कहा गया है। यहीं अशोक के पेड़ पर बैठकर हनुमान जी ने सीता माता के दर्शन किये थे। श्रद्धा, विश्वास, पवित्रता, शोक-निवारण आदि के परिपेक्ष्य में अशोक का गुणगान प्राचीन साहित्य में भरपूर किया गया है।तांत्रिक रूप से अशोक आवास की उत्तर दिशा में लगाना विशेष मंगलकारी माना जाता है तथा अशोक के पत्ते घर में रखने से शांति रहती है।बौद्ध धर्म और साहित्य में भी अशोक के पेड़ को बड़ा पवित्र माना जाता है। कहते हैं कि अशोक के पेड़ के नीचे कई वर्षों तक गौतम बुद्ध ने तपस्या की थी।अशोक का पेड़ शीतलता प्रदान करता है, इसी कारण आयुर्वेद में भी इसका उपयोग किया जाता है।अपनी इन्हीं विशेषताओं और धार्मिक महत्व को कारण अशोक के पेड़ को पवित्र मानकर पूजा जाता है।

संतान सुख

विवाह होने के बाद दंपत्ति अपने परिवार को बढ़ाने के सपने देखने लगते हैं। सभी दंपत्तियों की मनोकामना होती है उन्हें कोई मम्मी-पापा कहने वाला हो।
वैसे तो अधिकांश लोगों को संतान के संबंध कोई खास परेशानियों नहीं होती परंतु कुछ लोगों को विवाह के लंबे समय के बाद भी संतान का सुख प्राप्त नहीं हो पाता या कुछ दंपत्ति को आजीवन ही संतान के सुख से वंचित रहना पड़ता है। कई बार स्त्री का गर्भ ठहरने के बाद किसी वजह से गर्भपात हो जाता है या ऐसी ही कोई अन्य समस्या उत्पन्न हो जाती है।
शास्त्रों के अनुसार संतान पैदा नहीं होने के संबंध में दस कारण बताए गए हैं। इन दस कारणों में नौ कारणों के अतिरिक्त दसवां कारण ज्योतिष समस्या से संबंधित है।
ग्रह दोष की वजह से भी कई बार दंपत्तियों को संतान उत्पन्न होने में विलंब होता है या संतान उत्पन्न नहीं हो पाती। पांचवा भाव यदि राहु, गुरु, शनि से ग्रस्त हो तथा इन पर किसी भी शुभ ग्रह की दृष्टि भी न हो तो संतान उत्पत्ति में परेशानी होती है या गर्भपात हो जाते हैं। ऐसे परिस्थिति में संबंधित ग्रहों के उपचार से संतान उत्पत्ति आसान हो सकती है।
पंचम भाव में यदि गुरु स्थित हो तो संतान में देरी होती है। साथ ही यदि पति या पत्नी में से किसी को गुरु की महादशा भी हो तो संतान विवाह के सोलह वर्षों के बाद होने की संभावना होती है। पंचम भाव में यदि गुरु की दृष्टि हो तो संतान विवाह के 8-10 वर्षों के बाद उत्पन्न होती है। राहु या शनि से युक्त पंचम स्थान बार-बार गर्भस्राव या हिनता का कारक होता है।
संतान सुख प्राप्ति के लिए यह उपाय करें-
-संतान में देरी हो तो पुत्रदा एकादशी व्रत करें।-हरिवंश पुराण का पाठ करें।-कार्तिक चैत्र, माद्य माह में प्रतिपदा से नवमी (शुक्लपक्ष) रामायण का नवाह्नपरायण करें।- यदि पति या पत्नी की कुंडली में पंचम भाव में गुरु हो तो उसका उपचार कराएं।- यदि कुंडली में छठे भाव में नीच का शनि हो तो उसकी शांति हेतु शनि की विशेष पूजा कराएं।- शिवरात्री पर शिव-पार्वती का रातभर अभिषेक कराएं।- अनाथालय में दान दें और गरीब बच्चों को खाना खिलाएं।- वात, पित्त, कफ की बीमारी हो तो उसका इलाज कराएं।

संतान ; ज्योतिषीय उपाय

-आचार्य सोमेश परसाई
यह मुख्य विषय प्रारब्ध एवं भाग्य संबंधी होता है। किंतु ठीक उपाए कर लिए जाएं तो संतान की प्राप्ती निश्चित होती है।
पहला उपाए- संतान गोपाल मंत्र के सवा लाख जप शुभ मुहूर्त में शुरू करें। साथ ही बालमुकुंद (लड्डूगोपाल जी) भगवान की पूजन करें। उनको माखन-मिश्री का भोग लगाएं। गणपति का स्मरण करके शुद्ध घी का दीपक प्रज्जवलित करके निम्न मंत्र का जप करें।
मंत्र
ऊं क्लीं देवकी सूत गोविंदो वासुदेव जगतपते देहि मे,
तनयं कृष्ण त्वामहम् शरणंगता: क्लीं ऊं।।
दूसरा उपाए- सपत्नीक कदली (केले) वृक्ष के नीचे बालमुकुंद भगवान की पूजन करें। कदली वृक्ष की पूजन करें, गुड़, चने का भोग लगाएं। 21 गुरुवार करने से संतान की प्राप्ती होती है।
तीसरा उपाए- 1 प्रदोष का व्रत करें, प्रत्येक प्रदोष को भगवान शंकर का रुद्राभिषेक करने से संतान की प्राप्त होती है।
चौथा उपाए- गरीब बालक, बालिकाओं को गोद लें, उन्हें पढ़ाएं, लिखाएं, वस्त्र, कापी, पुस्तक, खाने पीने का खर्चा दो वर्ष तक उठाने से संतान की प्राप्त होती है।
पांचवां उपाए- आम, बील, आंवले, नीम, पीपल के पांच पौधे लगाने से संतान की प्राप्ति होती है।

लक्ष्मी और इंद्र पूजन : पाएं सुखों का अमृत

हर माह की पूर्णिमा पर चन्द्रमा पर पूर्ण कलाओं के साथ उदय होता है। इसी कड़ी में हिन्दू पंचांग के आश्विन माह की पूर्णिमा पर शरद पूर्णिमा का उत्सव लोक परंपराओं में प्रसिद्ध है। शरद ऋतु की पूर्णिमा होने से भी इसे शारदीय पूनम भी कहा जाता है। इस पूर्णिमा पर कोजागर व्रत का खास महत्व है। इस व्रत में रात में जागरण कर महालक्ष्मी और इंद्रदेव के साथ विष्णु रुप श्री सत्यनारायण की पूजा जाती है। इनकी पूजा से धन, ऐश्वर्य और भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यताओं में इस दिन महालक्ष्मी रात के समय घूमती हैं और व्रत और जागरण करने वाले व्रती को धन और वैभव का अशीर्वाद देती है। कोजागर का शाब्दिक अर्थ यह बताया जाता है कि माता लक्ष्मी के को-जाग्रति यानि कौन जाग रहा है, ऐसा कहने के कारण ही इस व्रत का नाम कोजागर व्रत प्रसिद्ध हुआ।
धर्मावलंबी दु:ख, दरिद्रता, परेशानियों से मुक्त होकर सुख-संपन्नता की कामना करते हैं। वह शरद पूर्णिमा पर महालक्ष्मी पूजा, इंद्र पूजा, श्री सत्यनारायण और चंद्रपूजा करें।
- सुबह स्नान कर ऐरावत पर बैठे इंद्र, महालक्ष्मी के साथ सत्यनारायण भगवान की मूर्तियों की पूजा कर उपवास करें।
- इंद्रदेव का पूजन गंध, अक्षत, फूल, अबीर, चंदन से करें। इंद्र पूजा से इंद्रिय संयम और भौतिक सुख प्राप्त होते हैं।
- इंद्र पूजा के बाद आनंद और सुख पाने के लिए ब्राह्मणों को घी-शक्करयुक्त खीर का प्रसाद भी खिलाएं।
- इंद्रदेव के साथ महालक्ष्मी पूजा करें। जिसमें लाल फूल, लाल चंदन, लाल वस्त्रों, हल्दी की गांठ, सुहाग की सामग्री को विशेष रुप से चढ़ाएं। भोग में लाल अनार का भोग लगाएं। घी के दीप लगाकर लक्ष्मी पूजा करें। - भगवान सत्यनारायण की पूजा में पीले फूल, पीले वस्त्र चढ़ाएं। केले, हलवे या पीले पकवानों का भोग लगाएं। सत्यनारायण कथा करें। सच्चा व्यवहार और बोल का संकल्प लें। - सुबह और रात्रि के समय श्रीसूक्त या लक्ष्मीस्तोत्र के पाठ के साथ जागरण करें। - यथाशक्ति दक्षिणा या वस्त्र ब्राहृण को या देवालय में भेंट करें।- रात्रि के समय घी के कम से कम 101 दीपों की गंध आदि से पूजा कर उन्हें प्रज्वलित करें और देव-मंदिरों, उद्यानों, तुलसी या पीपल के वृक्ष के नीचे रखें।
इस रात को चंद्रमा की रोशनी में दूध या खीर रखने की परंपरा है। मान्यता है कि चंद्र की शीतल और पवित्र किरणें दूध या खीर के पौष्टिक गुणों को बढ़ाते हैं, जो शरीर के लिए अमृत के समान होते हैं। आधीरात को भगवान को इसी खीर का भोग लगाया जाता है तथा आरती आदि के बाद इसी खीर का प्रसाद सभी को वितरित किया जाता है। चंद्रमा के प्रकाश में सूई में धागा पिरोने की प्रथा भी है। मान्यता है कि ऐसा करने से नेत्रज्योति बढ़ती है।

चांद क्यों है इतना खूबसूरत?

हिन्दू धर्म में शरद पूर्णिमा पर चंद्र दर्शन का बहुत महत्व है। मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा से अमृत बरसता है। इसी अमृत पान की कामना से चंद्रमा की रोशनी में दूध या खीर रखने के बाद ग्रहण किया जाता है।
इस प्रथा के पीछे जीवन के गहरे संदेश छुपे हैं। किंतु अक्सर व्यावहारिक जीवन में धर्मावलंबी इन संदशों की समझ से बहुत दूर देखे जाते हैं। इससे मात्र यह धार्मिक विधान बनकर रह जाता है। इसलिए यहां जानते है पूर्णिमा के चांद की खूबसूरती से जुड़े व्यावहारिक पहलू को -
दरअसल वर्षा ऋतु के बाद शरद ऋतु आती है। बारिश के मौसम में बादलों के पीछे छुपा चांद पहली बार शरद पूर्णिमा पर पूरी चमक और शरद ऋतु की शीतलता के साथ उदय होता है। इसे जीवन के धरातल पर रखकर विचार करें तो चंद्रमा की चमक, उसकी शीतलता और चंद्रदर्शन कर खीर या दूध पीना संकेत है कि अगर जीवन में काबिलियत और व्यक्तित्व की चमक बिखेरना चाहते हैं तो नजर और नजरिया साफ होने के साथ ही मीठी वाणी और संयम भी होना जरूरी है। तभी आप भी दूसरों से अच्छा व्यवहार पाने के साथ ही मीठे बोल भी सुन पाएंगे। कहते भी है ना जैसा बोलोगे वैसा सुनोगे। ऐसा होने पर ही आपका जीवन सुख और आनंद से बीतेगा। शरद पूर्णिमा पर चंद्रदर्शन कर नेत्रज्योति बढऩे और फिर खीर पीने यानि मीठा ग्रहण कर अमृ़तपान करने के पीछे यही संदेश है।पूर्णिमा पर पूर्ण कलाओं और ठंडक के साथ दिखाई देने वाला चांद यह भी कहता है कि जीवन में अपने लक्ष्य को पाने या बुरे समय से बाहर आने की कोशिशों में निरंतरता रखें और आगे बढ़ते रहें। अर्थ यह है कि ऐसे अनमने और आधे-अधूरे प्रयास न करें, जिससे आपको विफलता मिले। जैसे शुक्ल पक्ष के 15 दिनों में चांद बढ़ता है और कृष्ण पक्ष के 15 दिनों में घटकर अमावस्या के दिन दिखाई नहीं देता। सार यही है कि सिर्फ पूर्णिमा के चांद की तरह चमकने की आरजू ही सार्थक होती है। तभी आप बारिश के मौसम के गर्दिश रुपी बादलों में छुपे चांद की तरह बाहर आकर अपनी प्रतिभा और पहचान की चमक बिखेर पाएंगे।

तनाव और बेचैनी दूर करे चंद्र पूजा

शरद पूर्णिमा पर चंद्रदर्शन और पूजा का विशेष महत्व है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार मन का स्वामी चंद्र है। इसलिए चन्द्र हमारे विचार और व्यवहार को नियत करता है। व्यक्ति की जन्मकुण्डली में चन्द्र कमजोर होने पर मन में बेचैनी, उतावलापन, अकारण गुस्सा करना, बिना कारण कलह और कुविचार पैदा होते हैं। मन के साथ यह तन स्वास्थ और सौंदर्य भी चंद्र के बली या नीच होने पर निर्भर है।
व्यावहारिक जीवन पर भी चंदमा का असर व्यापार, नौकरी पर होता है। इसलिए खासतौर पर शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की पूजा शुभ फलदायी होती है। इसलिए मन और जीवन को स्थिर करने के लिए जानते है चंद्र पूजा की सरल विधि -
- सबेरे स्नान कर सफेद वस्त्र पहनें। चन्द्रमा को सफेद वस्तुएं बहुत प्रिय है। इसलिए चन्द्र की चांदी की मूर्ति, सफेद चावलों का अष्टदल कमल बनाकर उस पर स्थापित करें। - उस मूर्ति को गंगाजल से स्नान कराने के बाद सफेद रंग के वस्त्र अर्पित करें और सफेद चन्दन का तिलक लगाएं।- चांदी के पात्र में घी का दीपक जलाकर रखें और नैवेद्य के रुप में मावे की मिठाइयां, खीर जैसे सफेद वस्तुओं का प्रयोग करें।-चंद्र की सोलह पूजन सामग्रियों सफेद फूल, गंध, अक्षत, धूप, दीप आदि से पूजा करें। पूजा के बाद यथाशक्ति दान और दक्षिणा दें।- रात में छत या ऐसे खुले स्थान पर जाएं, जहां चंद्रमा की अच्छी रोशनी आ रही हो। - चंद्रदर्शन होने पर अगरबत्ती-दीपक लगाकर पूजा करें और सफेद सामग्री या दूध से बने व्यंजन या मिठाई जैसे खीर, रबड़ी आदि का भोग लगाएं। दीपक को भोग के पास ही रख दें। शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की ऐसी पूजा से शरीर और मन के विकार का दूर होते हैं। साथ ही व्यापारी वर्ग, नौकरीपेशा और बेरोजगार लोगों को शीघ्र धन लाभ और पदोन्नति मिलती है।

Thursday, October 21, 2010

धन क्यों नहीं मिलता?

सामान्यत: सभी की सोच होती है कि पूजा-अर्चना से लक्ष्मी प्रसन्न हो जाती हैं परंतु महालक्ष्मी की कृपा के लिए पूजा के साथ-साथ कई अन्य विधान भी बताए गए हैं। इन विधानों के अभाव में लक्ष्मी पूजा भी निष्फल हो जाती है और भक्त को धन, यश, मान-सम्मान प्राप्त नहीं हो पाता। शास्त्रों के अनुसार कुछ ऐसे कार्य वर्जित किए गए हैं जो महालक्ष्मी की कृपा प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करते हैं।
- यदि कोई व्यक्ति आलसी हैं, जो ईश्वर में विश्वास नहीं करता। वह लक्ष्मी की कैसी भी पूजा करें उसके पास हमेशा धन अभाव ही रहता है।- कपटी, चोर, बुरे चरित्र वाले व्यक्तियों के पास देवी लक्ष्मी कभी नहीं जाती।- गुरु के प्रति अनादर का भाव रखने वाले, गुरु की पत्नी पर बुरी नजर रखने वाले व्यक्ति से महालक्ष्मी अति क्रोधित होती है और पुराना धन भी समाप्त कर देती है।- जो व्यक्ति भगवान पर बासी पुष्प अर्पित करता हो, उससे लक्ष्मी दूर रहती है।- जो व्यक्ति शास्त्रों द्वारा वर्जित दिनों में या सायंकाल में स्त्री के साथ सहवास करता हो, दिन में सोता हो उसके घर लक्ष्मी नहीं जातीं।- जो व्यक्ति घर के सदस्यों में भेद-भाव करता हो, उसे धन प्राप्त नहीं होता।- महालक्ष्मी उसे त्याग देती है जो सफाई से नहीं रहता, हमेशा गंदे, दुर्गंधयुक्त कपड़े पहनता हो।- पराए धन और पराई स्त्री पर बुरी नजर रखने वाले को महालक्ष्मी की कृपा कभी प्राप्त नहीं हो सकती।- जो स्त्रियां बुरे स्वभाव वाली हैं, बड़ों का अनादर करती हैं, पर पुरुषों में मन लगाती हैं, अधार्मिक कार्य करती हैं, उनसे मां लक्ष्मी कभी प्रसन्न नहीं होती।

लक्ष्मी मंत्र, सालभर मिलेगा धन

यदि आप महालक्ष्मी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो यहां एक अचूक मंत्र दिया जा रहा है, जो कि देवी लक्ष्मी को अति प्रिय है।
धन प्राप्ति के लिए लक्ष्मी कृपा प्राप्त करना अति आवश्यक है। महालक्ष्मी की प्रसन्नता के बिना कोई भी पैसा प्राप्त नहीं कर सकता। दीपावली पर इस मंत्र का जप करें, वर्षभर आपको धन की कोई कमी नहीं होगी।
महालक्ष्मी मंत्र: ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्मी, महासरस्वती ममगृहे आगच्छ-आगच्छ ह्रीं नम:।
मंत्र जप की विधि: इस मंत्र को दीपावली की रात को कुमकुम या अष्टगंध से थाली पर लिखें। महालक्ष्मी की विधिवत पूजा करने के बाद इस मंत्र के 1800 या यथेष्ट जप करें।
इसके प्रभाव से वर्षभर भक्त को अपार धन-दौलत प्राप्त होगी। ध्यान रहे मंत्र दीपावली के दौरान पूर्णत: धार्मिक आचरण रखें। मंत्र के संबंध में कोई शंका मन में ना लाएं अन्यथा मंत्र निष्फल हो जाएगा।

Wednesday, October 20, 2010

पिता की मृत्यु पानी में होती है यदि....

हर व्यक्ति के लिए पिता सबकुछ होते हैं। पिता हाथ सिर पर हो तो कैसी भी समस्या हो, पुत्र सहज ही उसका हल निकाल लेता है। पिता अपनी संतान को हर कष्ट से दूर रखता है। ऐसे में यदि किसी ग्रह योग की वजह से पिता का हाथ सिर से उठ जाए तो किसी भी संतान के लिए वह समय सबसे अधिक पीड़ा देने वाला होता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली का अध्ययन करने पर ऐसे योगों का पता लगाया जा सकता है जिससे पिता की मृत्यु यदि जल में होने की संभावना हो। ऐसे योग की जानकारी होने के बाद संतान द्वारा आवश्यक उपाय कर ऐसे बुरे योगों का टाला जा सकता है।
पिता की मृत्यु जल में होने की संभावना बताते है ये योग
- रावण संहिता के अनुसार यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में अष्टम स्थान पर मीन राशि में सूर्य और चंद्र एक साथ स्थित हो और इनपर किसी पापग्रह (शनि, राहु, केतु और कभी-कभी मंगल भी पापग्रह की श्रेणी में आता है।) की ग्रह की दृष्टि हो, तो इस योग के प्रभाव से उस व्यक्ति के पिता को पानी से दूर रहना चाहिए।
- यदि किसी की कुंडली में मंगल और राहु से युक्त शनि हो या चतुर्थ भाव में शनि स्थित हो, तो उस व्यक्ति के पिता को जल से भय होता है।
इस योग का प्रभाव खत्म करने के उपाय
- प्रतिदिन शिवलिंग पर जल चढ़ाएं, फिर अक्षत और बिल्वपत्र चढ़ाएं। इस दौरान महामृत्युंजय मंत्र का जप करते रहें।- महाकाललेश्वर मृत्यु के भय को दूर करने वाले हैं, अत: प्रतिदिन इनकी आराधना इस मंत्र से करें: ऊँ महाकालेश्वरराय विद्महे, महादेवाय धीमही, तन्नौ रुद्र: प्रचोदयात्।- काल को जीतने वाले महादेव के रुद्राष्टक का पाठ करें।- कुंडली के दूषित ग्रह का सही उपचार कराएं।- पिता को जल अर्थात् गहरे पानी, नदी, तालाब, कुएं आदि से दूर रखें।

Tuesday, October 19, 2010

एस्ट्रो- शरद पूर्णिमा पर अमृत बरसता है

हिंदू पंचांग के अनुसार पूरे वर्ष में बारह पूर्णिमा आती हैं। इस दिन चंद्रमा अपने पूर्ण आकार में होता है। पूर्णिमा पर चंद्रमा का अनुपम सौंदर्य देखते ही बनता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पूर्ण चंद्रमा के कारण वर्ष में आने वाली सभी 12 पूर्णिमा पर्व के समान ही हैं लेकिन इन सभी में आश्विन मास में आने वाली पूर्णिमा सबसे श्रेष्ठ मानी गई है। यह पूर्णिमा शरद ऋतु में आती है इसलिए इसे शरद पूर्णिमा भी कहते हैं। शरद ऋतु की इस पूर्णिमा को पूर्ण चंद्र अश्विनी नक्षत्र से संयोग करता है। अश्विनी जो नक्षत्र क्रम में पहला है और जिसके स्वामी अश्विनीकुमार है।
कथा है च्यवन ऋषि को आरोग्य का पाठ और औषधि का ज्ञान अश्विनीकुमारों ने ही दिया था। यही ज्ञान आज हजारों वर्ष बाद भी परंपरा से हमारे पास धरोहर के रूप में संचित है। अश्विनीकुमार आरोग्य के दाता हैं और पूर्ण चंद्रमा अमृत का स्रोत। यही कारण है कि ऐसा माना जाता है कि इस पूर्णिमा को आसमान से अमृत की वर्षा होती है। शरद पूर्णिमा की रात्रि को घरों की छतों पर खीर आदि भोज्य पदार्थ रखने की प्रचलन भी है। जिसका सेवन बाद में किया जाता है। मान्यता यह है कि ऐसा करने से चंद्रमा की अमृत की बूंदें भोजन में आ जाती हैं जिसका सेवन करने से सभी प्रकार की बीमारियां आदि दूर हो जाती हैं।

एस्ट्रो -साढ़ेसाती के संकट से बचने का सरल उपाय

सभी शुभ कार्यों में नारियल का प्रयोग होता है। ये तो सभी जानते हैं कि नारियल शुद्धता का प्रतीक होता है, लेकिन लघु नारियल के बारे में कम ही लोग जानते है क्योंकि यह दुर्लभ और चमत्कारी होता है। जब कोई प्राकृतिक वस्तु अद्भुत और मुश्किल से मिलने वाली हो तो वह तंत्रोक्त वस्तु बन जाती है, क्योंकि उसमें कुछ विशेष गुण होते हैं। ऐसी विशेष प्राकृतिक तांत्रोक्त वस्तुओं के द्वारा जिन्दगी से कई समस्याएं दूर कर सकती है। ऐसी ही एक समस्या है जन्मकुंडली में अशुभ ग्रहों के प्रभाव की।
कुछ ग्रहों का अशुभ प्रभाव ऐसा होता है जिनके कारण उनके प्रभाव से पीडि़त व्यक्ति को जीवन में बहुत अधिक संघर्ष करना पड़ता है। ग्रहों में यदि किसी ग्रह का अशुभ प्रभाव सबसे ज्यादा संकट देने वाला होता है तो वह प्रभाव होता है शनि का।
यदि आप भी शनि की साढ़ेसाती या अशुभ प्रभाव से परेशान हैं तो किसी भी शनिवार को एक बर्तन तेल भरकर उसमें यह तंत्रोक्त नारियल डाल दे, उस तेल में अपना मुंह देखकर शनिश्चर का दान लेने वाले को दान कर दें। ऐसा ग्यारह शनिवार करें तो शनि का प्रभाव बहुत कम हो जाएगा।

एस्ट्रो- करें मंगल दोष शांति

ज्योतिष विज्ञान के अनुसार मंगल ग्रह दोष से मिलने वाली रोग, पीड़ा और बाधा दूर करने के लिए मंगलवार का व्रत बहुत ही प्रभावकारी माना जाता है। किं तु दैनिक जीवन की आपाधापी में चाहकर भी अनेक लोग धार्मिक उपायों को अपनाने में असमर्थ हो जाते हैं। इसलिए यहां मंगलवार के लिए ऐसे उपाय बताए जा रहे हैं, जिनको आप दिनचर्या के दौरान अपनाकर मंगल दोष शांति कर सकते हैं -
- अगर आपकी कुण्डली में मंगल उच्च का और शुभ हो तो मंगलवार के दिन हनुमान मंदिर में बताशे चढ़ाएं और बहते जल या नदी में बहा दें। मंगल दोष के बुरे असर से बचाव होगा।- घर से काम पर निकलते समय भिखारियों को मीठी रोटी दे दें।
- बड़ या बरगद की जड़ और मिट्टी में मीठा दूध मिलाकर मस्तक पर तिलक लगाएं। इससे मंगल ग्रह की पीड़ा से हुई पेट की बीमारियों से निजात मिलती है। - रेवड़ी, तिल और शक्कर बहते जल में डालने से मंगल दोष से बने अशुभ और मारक योग से बच सकते हैं।- कुंडली के चौथे भाव में मंगल बैठे होने के साथ मंगल दोष मां, सास और दादी को रोगी बना देता है। परिवार में अशांति, दरिद्रता के साथ संतान विवाह में बाधा डालता है। इस दोष निवारण का सरल उपाय है- परिवार के सभी सदस्य कुंए के जल से दातुन करें।- मंगल पीड़ा अग्रि भय पैदा करती है। इसका उपाय है देशी शक्कर छत पर बिखेर दें, आग का भय दूर होता है। - तंत्र उपायों में श्मशान घाट में शहद से भरी एक कटोरी रखकर आने से मंगल ग्रह दोष से पत्नी और संतान पर आए जीवन का संकट टलता है और लंबी उम्र मिलती है।

Monday, October 18, 2010

एस्ट्रो-मंगल के अमंगल प्रभाव कैसे हो दूर?

मंगलदेव ज्योतिष के नौ ग्रहों के सेनापति हैं। मंगल ग्रह हमारे जीवन और शरीर को काफी प्रभावित करता है। हमारे शरीर में मंगल का निवास रक्त में होता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में मंगल अशुभ प्रभाव देने वाला है तो उसे रक्त संबंधी किसी बीमारी का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही मंगल विवाह में देरी का कारण बनता है।
अशुभ मंगल होने पर व्यक्ति कुरुप, झूठा, झगड़ालु, व्यभिचारी, कपटी, गरीब जैसी अनेक बुराइयों वाला होता है। इन बुराइयों से बचने के लिए मंगल को शांत करने करने के लिए ज्योतिषीय उपाय करने होते हैं। जिससे मंगलदेव के अमंगल प्रभावों को रोका जा सकता है। यह उपाय अपनाने से अच्छा समय शुरू हो सकता है।
- हनुमानजी एवं मंगल की आराधना करें।- सूर्य एवं चंद्रमा की वस्तुओं का दान करें।- गुरु एवं शुक्र का उपाय करें।- कभी भी झूठ ना बोलें।- कोई भी चीज मुफ्त में ना ले।- भाई और साले की सेवा करें, उनका ध्यान रखें।- रेवडिय़ां और बताशे नदी में प्रवाहित करें।- बिजली के व्यवसाय से दूर रहे, हानि हो सकती है।- रोज नाश्ते में कुछ मीठा अवश्य खाएं।- भाई और मित्रों की सहायता करें।- घर में असली हाथी दांत रखें।- चांदी की अंगूठी बाएं हाथ की सबसे छोटी उंगली में धारण करें।
- सफेद रंग की कोई वस्तु हमेशा साथ रखें। जैसे रुमाल।- सोना, चांदी, तांबा तीनों मिलाकर अंगूठी पहनें।- विधवा स्त्रियों को धन का दान करें।- चावल को दूध में धोएं और 7 मंगलवार तक नदी में बहाएं।- अपनी माता की सेवा करें। साधु-संतों तथा बंदरों को खाना खिलाएं।- रात को सोते समय सिर के पास पानी का बर्तन भरकर रखें और सुबह पेड़-पौधों में वह पानी डाल दें।- अधार्मिक कार्यों से बचें।- दूध तथा दूध से बनें खाद्य पदार्थ दान करें।- बच्चों को सोना नहीं पहनाएं।- शनिदेव की विशेष पूजा अर्चना करें।- हनुमानजी को सिंदूर-तेल चढ़ाएं।- कन्याओं को दूध, चांदी का दान दें।- अमावस्या को धर्म स्थान में खीर व मीठा भोजन दान करें।

Astro -लक्ष्मी प्राप्ति के अचूक टोटके

लक्ष्मी:अचूक टोटके

सभी चाहते हैं कि उनके घर पर लक्ष्मी की कृपा हो जाए। उनके पास जो लक्ष्मी आए वो उन्हें कभी छोड़कर ना जाए और घर हमेशा धनधान्य से पूर्ण हो, यदि आप भी यही चाहते हैं तो नीचे लिखे इन लक्ष्मी प्राप्ति के इन अचूक टोटकों को अपनाकर आप भी मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
- हर पूर्णिमा को सुबह पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाएं।- तुलसी के पौधे पर गुरुवार को पानी में थोड़ा दूध डालकर चढ़ाएं।- यदि आपको बरगद के पेड़ के नीचे कोई छोटा पौधा उगा हुआ नजर आ जाए तो उसे उखाड़कर अपने घर में लगा दें।- गूलर की जड़ को कपड़े में बांधकर उसे ताबीज में डालकर बाजु पर बांधे।- पीपल के वृक्ष की छाया में खड़े होकर लोहे के पात्र में पानी लेकर उसमें दूध मिलाकर उसे पीपल की जड़ में डालने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और घर में लक्ष्मी का स्थाई निवास होता है।

Saturday, October 16, 2010

Astro-राजयोग नाकामी क्यों

राजयोग नाकामी क्यों

राजयोग, एक ऐसा योग है जो राजा बना देता है। यदि आम इंसान की कुंडली में यह योग बनता है वह रातोंरात धनवान हो जाता है, उसे सभी सुख प्राप्त होने लगते हैं। राजयोग से जीवन में किसी भी चीज की कमी नहीं रहती। ऐसे लोग प्रसिद्ध होते हैं। उन्हें अपने जीवन में बहुत दौलत और शोहरत मिलती है।कुछ लोगों की कुंडली में राजयोग तो होता है फिर भी उनके पास धन नहीं होता, वे भाग्यहीन ही होते हैं और उन्हें हर जगह असफलता प्राप्त होती है। इसके पीछे कई ज्योतिषीय कारण हैं।

कैसे बनता है राजयोग
कुंडली में राजयोग कई प्रकार से बनता है। जन्म कुंडली मे राजयोग कई ग्रहों से मिल कर बनता है। कुंडली में उन ग्रहों के अच्छे एवं बुरे प्रभाव को गंभीरता से जानना बहुत जरूरी होता है क्योंकि ये ग्रह कुंडली में राजयोग तो बनाते है लेकिन अपने शत्रु ग्रह की राशि में होने से इनका शुभ फल नहीं मिल पाता। बहुत सी ऐसी स्थितियां होती है जिनमें राजयोग का फल नहीं मिलता।

- किसी व्यक्ति की कुंडली में यदि गुरु और चंद्र से बनने वाला गजकेसरी योग बनता है परंतु यह योग कुंडली के 1, 4, 7, 10 भाव में न होकर 3, 6, 8, 12 भाव में बनता है, तो इस राजयोग का फल नहीं मिलता।- यदि गुरु और चंद्र की युति मकर राशि में हो, तो भी राजयोग निष्फल हो जाता है।- राजयोग बनाने वाले ग्रह मंगल, गुरु, शनि, चंद्र यदि सूर्य से अस्त हो जाए यानि किसी भी भाव में सूर्य के साथ हो, तो राजयोग प्रभावहीन हो जाता है।- यदि गुरु और शनि एक साथ हो, तो राजयोग नहीं रहता।

दोष दूर करने के उपाय-
- यदि गुरु का अशुभ प्रभाव हो, तो हल्दी और केसर का दान दें।- चंद्र के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए शिवलिंग पर कच्चा दूध चढ़ाएं।- मंगल, सूर्य से अस्त हो जाए तो लाल गाय को गुड़ खिलाएं।

Friday, October 15, 2010

Astro -शंख

क्या रहस्य है शंख बजाने का

मंदिर में आरती के समय शंख बजते सभी ने सुना होगा परंतु शंख क्यों बजाते हैं? इसके पीछे क्या कारण है यह बहुत कम ही लोग जानते हैं। शंख बजाने के पीछे धार्मिक कारण तो है साथ ही इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है और शंख बजाने वाले व्यक्ति को स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है।शंख की उत्पत्ति कैसे हुई? इस संबंध में हमारे धर्म ग्रंथ कहते हैं सृष्टी आत्मा से, आत्मा आकाश से, आकाश वायु से, वायु अग्रि से, आग जल से और जल पृथ्वी से उत्पन्न हुआ है और इन सभी तत्व से मिलकर शंख की उत्पत्ति मानी जाती है। शंख की पवित्रता और महत्व को देखते हुए हमारे यहां सुबह और शाम शंख बजाने की प्रथा शुरू की गई है।
शंख बजाने का स्वास्थ्य लाभ यह है कि यदि कोई बोलने में असमर्थ है या उसे हकलेपन का दोष है तो शंख बजाने से ये दोष दूर होते हैं। शंख बजाने से कई तरह के फेफड़ों के रोग दूर होते हैं जैसे दमा, कास प्लीहा यकृत और इन्फ्लून्जा आदि रोगों में शंख ध्वनि फायदा पहुंचाती है।शंख के जल से शालीग्राम को स्नान कराएं और फिर उस जल को यदि गर्भवती स्त्री को पिलाया जाए तो पैदा होने वाला शिशु पूरी तरह स्वस्थ होता है। साथ ही बच्चा कभी मूक या हकला नहीं होता।यदि शंखों में भी विशेष शंख जिसे दक्षिणावर्ती शंख कहते हैं इस शंख में दूध भरकर शालीग्राम का अभिषेक करें। फिर इस दूध को नि:संतान महिला को पिलाएं। इससे उसे शीघ्र ही संतान का सुख मिलता है।

Astro- महूर्त

शुभ कार्य के लिए हर दिन का श्रेष्ठ मुहूर्त

सामान्यत: किसी भी मांगलिक कार्य या शुभ कार्य से पहले शुभ मुहूर्त देखा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुभ मुहूर्त में कार्य करने से निश्चित ही सफलता प्राप्त होती है। शुभ मुहूर्त के समय सभी ग्रह-नक्षत्र ऐसी स्थिति में होते हैं कि उनसे हमारे कार्य पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता और बिना किसी विलंब या रुकावट कार्य पूर्ण हो जाता है।दिन में कई शुभ-अशुभ मुहूर्त होते हैं। जिनकी जानकारी ज्योतिष शास्त्र से प्राप्त होती है। हर मुहूर्त का अलग समय होता है परंतु दिन में एक मुहूर्त ऐसा है जिसमें कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है। यह मुहूर्त प्रतिदिन एक निश्चित समय पर रहता है। इसे अभिजीत मुहूर्त कहा जाता है।
30 मुहूर्त होते हैं एक दिन में: ज्योतिष शास्त्र में दिन और रात के कुल 30 मुहूर्त बताए गए हैं। 15 मुहूर्त दिन में और 15 ही रात में होते हैं। ज्योतिषीय गणित दिनमान के अनुसार दिन को बराबर 15 भागों में बांटने पर 1 मुहूर्त का समय निकलता है। एक मुहूर्त 48 मिनट 24 सेकंड का होता है। परन्तु ज्योतिष विद्वानों ने अभिजीत मुहूर्त का समय 39 मिनट माना है। कुछ विद्वानों ने इस अभिजीत मुहूर्त को विजय मुहूर्त भी कहा है। यह दिन का आठवां मुहूर्त होता है।
कब बनता है अभिजित मुहूर्त: नारद पुराण के अनुसार सूर्य जब ठीक सिर पर हो मतबल दिन के समय 11:36 बजे से 12:15 बजे तक के समय को अभिजीत मुहूर्त या विजय मुहूर्त कहा जाता है। कुछ जानकारों ने सूर्योदय के बाद चतुर्थ लग्र को अभिजीत मुहूर्त या अभिजीत लग्र माना है। इस मुहूर्त में किए गए कार्य हमेशा सफल होते है। चाहे कितने भी दोष क्यों न हो, यह सारे दोषों को खत्म कर देता है।

Astro- नोवाँ स्थान

आपकी कुंडली में कैसा है भाग्य स्थान?

अपने जीवन पर भाग्य या किस्मत का प्रभाव सभी मानते हैं। कहते हैं कर्म से ही भाग्य बनता है लेकिन कई बार पूरी मेहनत से अच्छे कार्य करने के बाद भी संतोषजनक फल प्राप्त नहीं होता। ऐसे में यही बात सामने आती है कि हमारे भाग्य में यह परिणाम ही निर्धारित किया गया होगा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कड़ी मेहनत के बाद भाग्य की कितनी मदद मिलेगी यह भी मालूम किया जा सकता है।
- ज्योतिष में जन्म कुण्डली का नवम भाव भाग्य का होता है। यह स्थान यदि दूषित अथवा अशुभ फल देने वाला हो तो व्यक्ति सदैव भाग्यहीन रहता है।- यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में भाग्य के नवम स्थान पर यदि चंद्र हो या उसकी दृष्टि हो तो वह भाग्यशाली होता है।- यदि भाग्य का स्थान नवम भाव में राहु, मंगल, शनि यदि शत्रु राशि युक्त या नीच के हो तो व्यक्ति भाग्यहीनता से परेशान हो जाता है। उसे छोटे-छोटे कार्यों में भी बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
Sun, शुक्र, बुध भाग्य स्थान पर सौभाग्यवती नारी दिलाते हैं। जो व्यक्ति के भाग्य को उच्च शिखर तक ले जाती है।- भाग्य स्थान पर गुरु मान-सम्मान और वैभव दिलाता है। ऐसे व्यक्ति को हमेशा भाग्य का साथ मिलता है और वह कई सफलताएं प्राप्त करता है। - भाग्य स्थान पर केतु सामान्य फल देने वाला होता है।
यदि आपको भाग्य का साथ नहीं मिल रहा है तो किस्मत बदलने में केवल ईश्वर ही सक्षम है। अत: अपने इष्टदेव की प्रतिदिन पूजन, अर्चन, अराधना करें। कुंडली के अशुभ ग्रह का ज्योतिषीय उपचार करें।

हनुमान भक्ति

हनुमान भक्ति देती है हौंसला और कामयाबी

नवरात्रि की नौ रातों में शक्ति के साथ भगवान श्रीराम की भक्ति और उपासना की जाती है। वहीं मातृशक्ति के विशेष काल में आदिशक्ति और भगवान श्रीराम के सेवक और अतुलनीय बल के स्वामी श्री हनुमान की आराधना संकट और पीड़ा को हरने वाली मानी जाती है।

धार्मिक दृष्टि से श्री हनुमान रुद्र अवतार माने जाते हैं। इसलिए रुद्र अंश होने के कारण उनकी भक्ति से शक्ति और श्रीराम की प्रसन्नता भी प्राप्त हो जाती है। व्यावहारिक दृष्टि से श्री हनुमान, शक्ति और श्रीराम की उपासना से हर कामना ही पूरी नहीं होती, बल्कि जीवन की हर परेशानियों और मुसीबतों से छुटकारा मिल जाता है।
नवरात्रि के अलावा भी मंगलवार और शनिवार का दिन भी श्री हनुमान उपासना के विशेष दिन होते हैं। श्री हनुमान की उपासना बल, बुद्धि और विद्या के साथ सुख-समृद्धि, शासकीय पद, सम्मान और पुत्र कामना भी पूरी करता है। सामान्यत: श्री हनुमान पूजा और व्रत हिन्दू माह के शुक्ल पक्ष से शुरु करना श्रेष्ठ होते हैं। व्रत संख्या कम से कम २१ होती है।
यहां जानते हैं श्री हनुमान की पूजा और व्रत की सरल विधि -
- सुबह यथासंभव सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें। - गंगाजल के पवित्र जल से घर और देवालय को पवित्र करें। - नवरात्रि या मंगलवार को हनुमान उपासना के लिए व्रत जरुर रखें। - व्रत में बिना नमक का आहार ही ग्रहण करें।
- श्री हनुमान की पूजा के लिए व्रती को लाल वस्त्र पहनना चाहिए। - घर या किसी देवालय में श्री हनुमानजी की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर लाल गंध, लाल फूल, लाल वस्त्र और अक्षत आदि से विधिवत हनुमानजी की पूजा करें।- श्री हनुमान को गुड़, चने, गुड़ और आटे से बना चूरमा, अनार का भोग लगाएं।- चार बत्तियों का दीपक जलाकर श्री हनुमान की आरती करें।- हनुमान चालीसा व सुन्दरकाण्ड का पाठ भी यथासंभव करें। प्रसाद बांटे।- रात्रि में एक बार भोजन कर सकते हैं।
- लोक मान्यताओं में नवरात्रि में श्री हनुमान पूजा से ग्रह पीड़ा, भूत-प्रेत बाधा भी दूर हो जाती है।

अगर आप जीवन में बहुत ज्यादा परेशानियो के कारण तनाव और चिंताओं से जूझ रहे हैं, तब ऐसी हनुमान भक्ति आपका हौंसला बढ़ाकर सारी मुसीबतों से छुटकारा दिलाने में जरुर कामयाबी देगी।

Astro - गुरु सरस्वती पूजा

पाएं दिमागी तंदुरस्ती और हमसफर

नवरात्रि में पूरी भक्ति और श्रद्धा से शक्ति उपासना के धार्मिक माहौल में हर भक्त शक्ति, बल संचय के भाव से सुख और सफलता की आस लगाता है। वैसे बल कैसा भी हो वह मान, प्रतिष्ठा और कामयाबी जरुर देता है। सरल शब्दों में कहे तो बल से आप कहीं भी धाक जमा जा सकते हैं।
व्यावहारिक जीवन में झांके तो बल को प्रमुख रुप से तन, मन और धन के पैमाने पर परखा जाता है। जीवन के लिये तीनों ही अहम है। किंतु इनमें से मनोबल ही ऐसा है, जो खुशहाली में नहीं बल्कि बदहाली में भी आपका उमंग, उत्साह और ताकत बनाए रखता है। जबकि तन या धन बल में उतार-चढ़ाव संभव है। किंतु तीनों को पाने के लिए मेहनत और समर्पण जरुरी है। खासतौर पर मनोबल या मन की शक्ति के लिए ज्ञान, विद्या बहुत जरुरी है।
धर्म में विश्वास रखने वाला सबल बनने और बाधा को टालने के लिए ईश्वर को भी स्मरण करता है। इसलिए हिन्दू धर्म में जब भी ज्ञान, विद्या और बुद्धि बल की कामना की जाती है, तो देवगुरु बृहस्पति और माता सरस्वती का ध्यान और स्मरण श्रेष्ठ माना जाता है।
14 अक्टूबर को गुरुवार के दिन देवगुरु बृहस्पति के साथ-साथ सरस्वती पूजा का शुभ योग है। नवरात्रि में दुर्गा रुप की पूजा परंपरा के साथ ही गुरु बृहस्पति पूजा से विद्या, ज्ञान प्राप्ति के साथ भाग्य बाधा खत्म हो जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बृहस्पति पूजा से योग्य जीवनसाथी मिलता है। इस समय गुरु अपनी ही राशि मीन में बैठें हैं। इसलिए इस राशि के साथ अन्य राशि के व्यक्ति भी शुभ फल पा सकते हैं।
इस दिन गुरु के साथ माता सरस्वती की पूजा बुद्धि, ज्ञान बढ़ाने वाली होगी। कला और संगीत क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति इस दिन माता सरस्वती की पूजा जरुर करें। इसलिए यहां बताई जा रही है गुरु बृहस्पति और माता सरस्वती की पूजा की सरल विधि और उपाय -

- इस सुबह स्नान कर घर या देवालय में स्वच्छ, पील या सफेद वस्त्र पहनें। - माता सरस्वती और गुरु बृहस्पति की चार भुजाधारी मूर्ति का पंचामृत स्नान यानि दही, दुध, शहद, घी, शक्कर कराएं। - इसके बाद पंचोपचार पूजा करें यानि गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजा करें। - गुरु बृहस्पति और माता सरस्वती की पूजा में कुछ विशेष सामग्री जरुर अर्पित करें। - गुरु बृहस्पति को पीले रंग के पदार्थ जैसे चने की दाल, हल्दी, बूंदी के लड्डु, पीला वस्त्र, पीले फूल चढ़ाएं। सक्षम होने पर सोना भी चढ़ा सकते हैं। - माता सरस्वती को आम के पत्ते, सफेद या पीले फूल चढ़ाए। प्रसाद में खीर, दूध, दही, मक्खन, सफेद तिल के लड्डू, सफेद चंदन, वस्त्र व मौसमी फल चढ़ाएं। - घी के पांच बत्ती के दीप जलाकर आरती करें।
- आरती के बाद बृहस्पति मंत्र, स्त्रोत, कथा, सरस्वती कवच और मंत्र का पाठ करें या कराएं। - अंत में पूजा में हुई त्रुटि के लिए क्षमा मांगकर अपनी कामनापूर्ति की प्रार्थना करें।

ऐसी गुरु और माता सरस्वती पूजा से आपको ज्ञान, सुख, स्वास्थ्य, धन और व्यवसाय, अध्ययन में सफलता, पाएंगे। ज्योतिष की नजरिए से गुरु का शुभ प्रभाव आपको विनम्रता, सौंदर्य और शांति देगा। साथ ही धर्म और अध्यात्म में रुचि बढेगी। मनचाहा जीवनसाथी भी प्राप्त होगा। इस तरह गुरु और देवी की यह शुभ पूजा आपको तन, मन और धन से तंदुरस्ती देगी।

Wednesday, October 13, 2010

बजरंग बाण -2

पीड़ा हरण का अकाट्य उपाय - बजरंग बाण
हिन्दू धर्म में भगवान शिव के रुद्रावतार श्री हनुमान संकटमोचक देवता माने जाते हैं। धर्मग्रंथों में भी बताया गया है कि इनकी साधना और उपासना से दु:ख और ग्रह पीड़ाएं भी दूर हो जाती है।
श्री हनुमान, बजरंगबली के नाम से भी प्रसिद्ध है। इनकी साधना के लिए अनेक मंत्र, स्त्रोत, चालीसा, स्तवन हैं। इनमें से ही एक है बजरंग बाण। जिसका पाठ अद्भूत प्रभावकारी माना जाता है।
बजरंग बाण के पाठ से न केवल भयंकर देह पीड़ा और कष्ट, भय, दरिद्रता, भूत-प्रेत बाधाओं से छुटकारा मिल जाता है, बल्कि व्यक्ति की हर सांसारिक कामनाओं की पूर्ति और मनोरथ सिद्ध होते हैं। व्यक्ति भयरहित और विश्वास से भर जाता है।
श्री हनुमान की साधना और भक्ति के लिए शनिवार और मंगलवार के दिन श्रेष्ठ माने जाते हैं। इसलिए अपने कष्ट निवारण और कामनापूर्ति के लिए इन २ दिनों में बजरंग बाण का जप शुरु करें।
अगर कार्य की व्यस्तता के कारण किसी व्यक्ति के पास समय का अभाव हो तब वह यह जप सप्ताह में एक दिन मंगलवार को करे। नियमित पाठ से इस के अदृश्य सकारात्मक प्रभाव पाएंगे।

पूजा बजरंग बाण

बजरंग बाण

दोहा-
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥

चौपाई-
जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥१।।
जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥२।।
जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥३।।
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥४।।
जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥५।।
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥६।।
अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥७।।
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥८।।
अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥९।।
जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥१०।।
जै हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥११।।
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥१२।।
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥१३।।
जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥१४।।
बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥१५।।
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥१६।।
इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥१७।।
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥१८।।
जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥१९।।
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥२०।।
बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥२१।।
जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥२२।।
जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥२३।।
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥२४।।
उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥२५।।
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥२६।।
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥२७।।
अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥२८।।
यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥२९।।
पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥३०।।
यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥३१।।
धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥३२।।
दोहा
उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥

Tuesday, October 12, 2010

Astro

<strong>शनि की वजह से लंबे समय तक चलते हैंमुकदमे

किसी व्यक्ति की जन्म पत्रिका में न्याय, विवाद एवं कानून से संबंधित मामलों के बारे में जानना हो तो शनि की स्थिति देखकर पता किया जा सकता है। शनि की शुभ-अशुभ स्थिति ही कुंडली में कोर्ट, कानून, वाद-विवाद को उत्पन्न करती है। शनि की ढैय्या में इंसान कानूनी विवाद में फंस ही जाता है। यदि कुंडली में शनि की स्थिति अशुभ फल देने वाली है या शनि वक्री है या साढ़ेसाती चल रही है, तो व्यक्ति को अपने कर्मों के अनुसार फल भोगना पड़ता है।
- यदि शनि किसी कुंडली में सूर्य, मंगल, बुध के साथ अष्टम भाव में हो, तो वह व्यक्ति कानूनी विवादों में उलझा रहता है।
- यदि शनि अपनी शत्रु राशि सिंह, मेष, कर्क, वृश्चिक मेंअष्टम या द्वादश भाव में हो, तो कोर्ट कचहरी के मामलें लम्बे समय तक चलते है।- जिस जातक की पत्रिका में कर्क राशि में स्थित मंगल का दृष्टि संबंध मेष राशि के शनि से होता है, उसे भी कानूनी विवादों का सामना करना पड़ता है।
शनि की अच्छी स्थिति इंसान को उच्च स्तर का न्याय दिलाती है। न्याय में शनि देव का प्रभाव धीरे-धीरे होता है परन्तु लंबे समय के लिए होता है।कोर्ट-कचहरी से जुड़े मामलों पर शनि का प्रभाव देखने को मिलता है। आपने देखा होगा कि वकील एवं जज काले रंग के कोट पहनते हैं। ज्योतिष के अनुसार काला रंग शनि देव का होता है। शनि देव के स्वभाव के अनुसार ही हमारी न्यायपालिका में मुकदमे धीरे-धीरे एवं वर्षों तक चलते है। शनि देव को ज्योतिष में न्याय दंडाधिकारी की संज्ञा दी गई है क्योंकि न्याय प्रिय होना शनि देव का स्वभाव है। इसलिए न्याय से संबंधित क्षेत्रों पर शनि का विशेष प्रभाव होता है।

मुकदमों में विजय पाने के उपाय-
- 43 दिन तक कौओं को रोटी दें।- हर शनिवार शनि देव को तेल चढ़ाएं।- भैरव जी के दर्शन कर के कोर्ट जाएं।- तेल, उड़द और काले कपड़े का दान दें।


Astro

आप भी गायब हो सकते हैं

हर आदमी जीवन में एक बार तो यह कल्पना करता ही है कि काश वह गायब हो सकता या हवा में उड़ सकता। सोचने में यह बात भले ही बच्चों जैसी लगे लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह संभव है। कुछ ऐसी तंत्र सिद्धियां होती हैं जिससे हम आसानी से हवा में उड़ भी सकते हैं, जब इच्छा हो तब गायब भी हो सकते हैं। हालांकि ये सिद्धि पाना इतना आसान नहीं है लेकिन अगर मेहनत की जाए तो इसे पाया भी जा सकता है।
:- मंत्र विधि
इस सिद्धि के लिए मंत्र साधना सिर्फ शमशान में बुझी हुई चिता पर आसन लगाकर की जाती है। शमशान में जाने से पहले यह भी जरुरी है कि साधक नदी में स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद साधक साधना आरंभ कर सकता है। इसकी मंत्रोक्त साधना बहुत कठिन होती है। यह साधना 120 दिनों तक पूर्ण विधि-विधान के साथ रोज लगभग छ: घंटों तक निम्र मंत्र के माध्यम से की जाती है।
मंत्र- ऊं क्षं क्षं क्षं आकाशचारी शून्य शृंग पूर्णत्व क्षं क्षं क्षं फट् स्वाहा
साधना के पश्चात घर जाने से पूर्व भी साधक को स्नान करना अनिवार्य है। ऐसा माना जाता है कि पूरे विधि से इस साधना को संपन्न करने के बाद आकाश से एक पारद गुटिका प्राप्त होती है और उस गुटिका को दाहिनी भुजा पर बांधकर साधक अपनी इच्छा से गायब हो सकेगा और मनचाहे स्थानों पर विचरण कर सकेगा।

धर्मं-Sanskar

16 संस्कारों में लाइफ मैनेजमेंट के सूत्र
हिंदू धर्म में किए जाने वाले 16 संस्कार केवल कर्मकांड या रस्में नहीं हैं। इनमें जीवन प्रबंधन के कई सूत्र छुपे हैं। आज के भागदौड़ भरे जीवन में ये सूत्र हमें जीवन के भौतिक और आध्यात्मिक दोनों विकास को आगे बढ़ाते हैं। हमें इन संस्कारों में खुद के वैवाहिक, विद्यार्थी और व्यवसायिक जीवन के सूत्र तो मिलते ही हैं साथ ही अपनी संतान को कैसे संस्कारवान बनाएं इसके तरीके भी मिलते हैं।
पुंसवन संस्कार : इस संस्कार के अंतर्गत भावी माता-पिता को यह समझाया जाता है कि शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक दृष्टि से परिपक्व यानि पूर्ण समर्थ हो जाने के बाद, समाज को श्रेष्ठ, तेजस्वी नई पीढ़ी देने के संकल्प के साथ ही संतान उत्पन्न करें।
नामकरण संस्कार: बालक का नाम सिर्फ उसकी पहचान के लिए ही नहीं रखा जाता। मनोविज्ञान एवं अक्षर-विज्ञान के जानकारों का मत है कि नाम का प्रभाव व्यक्ति के स्थूल-सूक्ष्म व्यक्तित्व पर गहराई से पड़ता रहता है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर नामकरण संस्कार किया जाता है।
चूड़ाकर्म संस्कार: (मुण्डन, शिखा स्थापना) सामान्य अर्थ में, माता के गर्भ से सिर पर आए वालों को हटाकर खोपड़ी की सफाई करना आवश्यक होता है। किन्तु सूक्ष्म दृष्टि से नवजात शिशु के व्यवस्थित बौद्धिक विकास, कुविचारों के परिस्कार के लिये भी यह संस्कार बहुत आवश्यक है।
अन्नप्राशसन संस्कार: जब शिशु के दांत उगने लगें, तो मानना चाहिए कि प्रकृति ने उसे ठोस आहार, अन्नाहार करने की स्वीकृति प्रदान कर दी है। स्थूल (अन्नमयकोष) के विकास के लिए तो अन्न के विज्ञान सम्मत उपयोग को ध्यान में रखकर शिशु के भोजन का निर्धारण किया जाता है। इन्हीं तमाम बातों को ध्यान में रखकर यह महत्वपूर्ण संस्कार संपन्न किया जाता है।
विद्यारंभ संस्कार: जब बालक/ बालिका की उम्र शिक्षा ग्रहण करने लायक हो जाय, तब उसका विद्यारंभ संस्कार कराया जाता है । इसमें समारोह के माध्यम से जहां एक ओर बालक में अध्ययन का उत्साह पैदा किया जाता है, वहीं ज्ञान के मार्ग का साधक बनाकर अंत में आत्मज्ञान की और प्रेरित किया जाता है।
यज्ञोपवीत संस्कार : जब बालक/ बालिका का शारीरिक-मानसिक विकास इस योग्य हो जाए कि वह अपने विकास के लिए आत्मनिर्भर होकर संकल्प एवं प्रयास करने लगे, तब उसे श्रेष्ठ आध्यात्मिक एवं सामाजिक अनुशासनों का पालन करने की जिम्मेदारी सोंपी जाती है।
विवाह संस्कार : सफल गृहस्थ की, परिवार निर्माण की जिम्मेदारी उठाने के योग्य शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक सामथ्र्य आ जाने पर युवक-युवतियों का विवाह संस्कार कराया जाता है। यह संस्कार जीवन का बहुत महत्वपूर्ण संस्कार है जो एक श्रेष्ठ समाज के निर्माण में अहम भूमिका निभाता है।
वानप्रस्थ संस्कार : गृहस्थ की जिम्मेदारियां यथा शीघ्र संपन्न करके, उत्तराधिकारियों को अपने कार्य सौंपकर अपने व्यक्तित्व को धीरे-धीरे सामाजिक, उत्तरदायित्व, पारमार्थिक कार्यों में पूरी तरह लगा देना ही इस संस्कार का उद्देश्य है।
अन्येष्टि संस्कार : मृत्यु जीवन का एक अटल सत्य है । इसे जरा-जीर्ण को नवीन-स्फूर्तिवान जीवन में रूपान्तरित करने वाला महान देवता भी कह सकते हैं ।
मरणोत्तर (श्राद्ध संस्कार): मरणोत्तर (श्राद्ध संस्कार) जीवन का एक अबाध प्रवाह है । शरीर की समाप्ति के बाद भी जीवन की यात्रा रुकती नहीं है । आगे का क्रम भी अच्छी तरह सही दिशा में चलता रहे, इस हेतु मरणोत्तर संस्कार किया जाता है।
जन्म दिवस संस्कार : मनुष्य को अन्यान्य प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है । जन्मदिन वह पावन पर्व है, जिस दिन ईश्वर ने हमें श्रेष्ठतम मनुष्य जीवन में भेजा। श्रेष्ठ जीवन प्रदान करने के लिये ईश्वर का धन्यवाद एवं जीवन का सदुपयोग करने का संकल्प ही इस संस्कार का मूल उद्देश्य है।
विवाह दिवस संस्कार : जैसे जीवन का प्रांरभ जन्म से होता है, वैसे ही परिवार का प्रारंभ विवाह से होता है। श्रेष्ठ परिवार और उस माध्यम से श्रेष्ठ समाज बनाने का शुभ प्रयोग विवाह संस्कार से प्रारंभ होता है।

Monday, October 11, 2010

Astro

सही रुद्राक्ष पहनकर करें कालसर्प दोष निवारण

कालर्सप योग पर अनेक शोध हुए है। ज्योतिष इसके प्रभाव कम करने के लिए अनेक उपाय बताते है। कुंडली में मुख्य रूप से बारह तरह के कालसर्प योग बताए गए हैं। आपने काल सर्प दोष शांति के लिए अनेक तरह के उपायों के बारे में सुना होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि केवल सही रुद्राक्ष धारण करके भी कालसर्प योग के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
- प्रथम भाव में बनने वाले कालसर्प योग के लिए एकमुखी, आठमुखी और नौ मुखी रुद्राक्ष काले धागे में डालकर गले में धारण करें।
- दूसरे भाव में बनने वाले कालसर्प योग के लिए पांचमुखी, आठमुखी और नौमुखी रुद्राक्ष गुरुवार के दिन काले धागे में डालकर गले में पहनें।
- यदि कालसर्प योग तीसरे भाव में बन रहा हो तो तीनमुखी, आठमुखी और नौ मुखी रुद्राक्ष लाल धागे में मंगलवार को धारण करें।
- चतुर्थ भाव में यदि कालसर्प योग हो तो दोमुखी, आठमुखी, नौमुखी रुद्राक्ष सफेद धागे में डालकर सोमवार को रात्रि के समय धारण करें।
- पंचम भाव में बनने वाला कालसर्पयोग हो तो पांचमुखी, आठमुखी, नौमुखी रुद्राक्ष पीले धागे में गुरुवार के दिन धारण करें।
छटे भाव के कालसर्प योग के लिए मंगलवार के दिन तीनमुखी आठमुखी और नौमुखी रुद्राक्ष एक लाल धागे में पहनें।
- सप्तम भाव में कालसर्प योग हो तो छहमुखी, आठमुखी और नौमुखी रुद्राक्ष एक चमकीले या सफेद धागे में रात्रि के समय पहनना चाहिए।
- अष्टम भाव में कालसर्प योग बन रहा हो तो नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करें।
- नवम् भाव में कालसर्प योग हो तो गुरुवार के दिन दोपहर में पीले धागे में पांचमुखी आठमुखी और नौमुखी रुद्राक्ष पहनना चाहिए।
- दशम भाव में कालसर्प योग हो तो बुधवार के दिन संध्या के समय चारमुखी, आठमुखी और नौमुखी रुद्राक्ष हरे रंग के धागे में डालकर धारण करें।
- एकादश भाव में यदि कालसर्प योग हो तो एक पीले धागे में दशमुखी, तीनमुखी, चारमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
- यदि द्वादश भाव में कालसर्प योग हो तो शनिवार के दिन शाम को सातमुखी, आठमुखी, और नौमुखी रुद्राक्ष काले धागे में डालकर गले में धारण करे
उसके बाद कालसर्प दोष शांति की पूजा के बाद ये रुद्राक्ष धारण करने से कालसर्प योग वाले के जीवन से कालसर्प योग का प्रभाव कम हो जाएगा। इस दोष वाले जातक अद्भुत मानसिक शांति एवं सुख का अनुभव करेंगे।

Puja

भगवान की पूजा में ध्यान रखने योग बातें
सामान्यत: पूजा हम सभी करते हैं परंतु कुछ छोटी-छोटी बातें जिन्हें ध्यान रखना और उनका पालन करना अतिआवश्यक है। इन छोटी-छोटी बातें के पालन से भगवान जल्द ही प्रसन्न होते हैं और मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। यह बातें इस प्रकार हैं-
- सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव, विष्णु- यह पंचदेव कहे गए हैं, इनकी पूजा सभी कार्यों में करनी चाहिए।- भगवान की केवल एक मूर्ति की पूजा नहीं करना चाहिए, अनेक मूर्तियों की पूजा से कल्याण की कामना जल्द पूर्ण होती है। - मूर्ति लकड़ी, पत्थर या धातु की स्थापित की जाना चाहिए।- गंगाजी में, शालिग्रामशिला में तथा शिवलिंग में सभी देवताओं का पूजन बिना आवाहन-विसर्जन किया जा सकता है।- घर में मूर्तियों की चल प्रतिष्ठा करनी चाहिए और मंदिर में अचल प्रतिष्ठा।- तुलसी का एक-एक पत्ता कभी नहीं तोड़ें, उसका अग्रभाग तोड़ें। मंजरी को भी पत्रों सहित तोड़ें।- देवताओं पर बासी फूल और जल कभी नहीं चढ़ाएं।- फूल चढ़ाते समय का पुष्प का मुख ऊपर की ओर रखना चाहिए।

Devi

यह शक्ति मंत्र पूरी करे हर आरजू़
जीवन में इच्छाओं का अंत नहीं होता। एक पूरी होते ही दूसरी इच्छा पैदा हो जाती है। इसी कवायद में उम्र बढ़ती है और समय बीतता जाता है। इस दौरान कुछ इच्छाएं पूरी होती भी है, किंतु जो अधूरी रह जाती है। उसके मलाल में इंसान परेशान या बैचेन रहता है। सलिए इच्छाओं पर नियंत्रण के लिए धर्म के रास्ते अनेक उपाय बताए गए है।
इन उपायों में जप, पूजा, हवन आदि प्रमुख है। इसी कड़ी में शक्ति आराधना के विशेष काल में मातृशक्ति के आवाहन और जप का एक ऐसा उपाय है। जिससे जीवन से जुड़ी हर इच्छा जैसे धन, संपत्ति, स्वास्थ्य, योग्य जीवनसाथी आदि पूरी करने में आने वाली बाधा एक ही मंत्र द्वारा दूर की जा सकती है। जानते है नवरात्रि के विशेष समय में किया जाने वाला यह उपाय -
- नवरात्रि के किसी भी दिन दुर्गा पूजा के समय पूर्व दिशा में मुख करके बैठ जाएं।- नवरात्रि के दिन अनुसार दुर्गा रुप की यथाविधि पूजा कर 21 नारियल लाल कपड़े पर रखकर लाल चंदन, अक्षत से पूजा करें। - इसके बाद अपनी कामनापूर्ति का संकल्प लेकर 21 माला नीचे लिखे मंत्र का जप करें - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै। - मंत्र जप रुद्राक्ष की माला से ही करें। - मंत्र जप पूरे होने पर 21 नारियल लाल कपड़े में बांधकर बहते जल में प्रवाहित करें या किसी योग्य ब्राह्मण को दान करें।- श्रद्धा और आस्था से किया गया यह उपाय मनोरथ पूर्ति में बहुत प्रभावी माना गया है।

Sunday, October 10, 2010

Astro

मालामाल बनाती है श्रीयंत्र पूजा

दौलतमंद बनाती है ऐसी लक्ष्मी पूजा
धन या पैसा जीवन की अहम जरुरतों में एक है। आज तेज रफ्तार के जीवन में कईं अवसरों पर यह देखा जाता है कि युवा पीढ़ी चकाचौंध से भरी जीवनशैली को देखकर प्रभावित होती है और बहुत कम समय में ज्यादा कमाने की सोच में गलत तरीकें अपनाती है। जबकि धन का वास्तविक सुख और शांति मेहनत, परिश्रम की कमाई में ही है। ऐसा कमाया धन न केवल आत्मविश्वास के साथ दूसरों का भरोसा भी देता है, बल्कि रुतबा और साख भी बनाता है।
धर्म में आस्था रखने वाला व्यक्ति ऐसे ही तरीकों में विश्वास रखता है। इसलिए मातृशक्ति की आराधना के इस काल में यहां बताया जा रहा है, एक ऐसा ही उपाय जिसको अपनाकर जीवन में किसी भी सुख से वंचित नहीं रहेंगे और धन का अभाव कभी नहीं सताएगा। यह उपाय है श्रीयंत्र पूजा।
धार्मिक दृष्टि से लक्ष्मी कृपा के लिए की जाने वाली श्रीयंत्र साधना संयम और नियम की दृष्टि से कठिन होती है। इसलिए यहां बताई जा रही है श्रीयंत्र पूजा की सरल विधि जिसे कोई भी साधारण भक्त अपनाकर सुख और वैभव पा सकता है। सरल शब्दों में यह पूजा मालामाल बना देती है। श्रीयंत्र पूजा की आसान विधि कोई भी भक्त नवरात्रि या उसके बाद भी शुक्रवार या प्रतिदिन कर सकता है।
श्रीयंत्र पूजा के पहले कुछ सामान्य नियमों का जरुर पालन करें -
- ब्रह्मचर्य का पालन करें और ऐसा करने का प्रचार न करें। - स्वच्छ वस्त्र पहनें।- सुगंधित तेल, परफ्यूम, इत्र न लगाएं।- बिना नमक का आहार लें। - प्राण-प्रतिष्ठित श्रीयंत्र की ही पूजा करें। यह किसी भी मंदिर, योग्य और सिद्ध ब्राह्मण, ज्योतिष या तंत्र विशेषज्ञ से प्राप्त करें। - यह पूजा लोभ के भाव से न कर सुख और शांति के भाव से करें। इसके बाद श्रीयंत्र पूजा की इस विधि से करें। इसे किसी योग्य ब्राह्मण से भी करा सकते हैं - नवरात्रि या किसी भी दिन सुबह स्नान कर एक थाली में श्रीयंत्र स्थापित करें। - इस श्रीयंत्र को लाल कपड़े पर रखें। - श्रीयंत्र का पंचामृत यानि दुध, दही, शहद, घी और शक्कर को मिलाकर स्नान कराएं। गंगाजल से पवित्र स्नान कराएं।- इसके बाद श्रीयंत्र की पूजा लाल चंदन, लाल फूल, अबीर, मेंहदी, रोली, अक्षत, लाल दुपट्टा चढ़ाएं। मिठाई का भोग लगाएं।- धूप, दीप, कर्पूर से आरती करें। - श्रीयंत्र के सामने लक्ष्मी मंत्र, श्रीसूक्त, दुर्गा सप्तशती या जो भी श्लोक आपको आसान लगे, का पाठ करें। किंतु लालच, लालसा से दूर होकर श्रद्धा और पूरी आस्था के साथ करें।- अंत में पूजा में जाने-अनजाने हुई गलती के लिए क्षमा मांगे और माता लक्ष्मी का स्मरण कर सुख, सौभाग्य और समृद्धि की कामना करें। श्रीयंत्र पूजा की यह आसान विधि नवरात्रि में बहुत ही शुभ फलदायी मानी जाती है। इससे नौकरीपेशा से लेकर बिजनेसमेन तक धन का अभाव नहीं देखते। इसे प्रति शुक्रवार या नियमित करने पर जीवन में आर्थिक कष्टों का सामना नहीं करना पड़ता।

Devi

गायत्री के पांच मुखों का रहस्य
धार्मिक पुस्तकों में ऐसे कई प्रसंग या वृतांत पढऩे में आते हैं, जो बहुत ही आश्चर्यजनक हैं। लाखों-करोड़ों देवी-देवता, स्वर्ग-नर्क, आकाश-पाताल, कल्पवृक्ष, कामधेनु गाय, इन्द्रलोक....और भी न जाने क्या-क्या। इन आश्चर्यजनक बातों का यदि हम शाब्दिक अर्थ निकालें तो शायद ही किसी निर्णय पर पहुंच सकते हैं। अधिकांस घटनाओं का वर्णन प्रतीकात्मक शैली में किया गया है। गायत्री के पांच मुखों का आश्चर्यजनक और रहस्यात्मक प्रसंग भी कुछ इसी तरह का है। यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड जल, वायु, पृथ्वी, तेज और आकाश के पांच तत्वों से बना है। संसार में जितने भी प्राणी हैं, उनका शरीर भी इन्हीं पांच तत्वों से बना है। इस पृथ्वी पर प्रत्येक जीव के भीतर गायत्री प्राण-शक्ति के रूप में विद्यमान है। ये पांच तत्व ही गायत्री के पांच मुख हैं। मनुष्य के शरीर में इन्हें पांच कोश कहा गया है। इन पांच कोशों का उचित क्रम इस प्रकार है:-
- अन्नमय कोश - प्राणमय कोश - मनोमय कोश - विज्ञानमय कोश - आनन्दमय कोश
ये पांच कोश यानि कि भंडार, अनंत ऋद्धि-सिद्धियों के अक्षय भंडार हैं। इन्हें पाकर कोई भी इंसान या जीव सर्वसमर्थ हो सकता है। योग साधना से इन्हें जाना जा सकता है, पहचाना जा सकता है। इन्हें सिद्ध करके यानि कि जाग्रत करके जीव संसार के समस्त बंधनों से मुक्त हो जाता है। जन्म-मृत्यु के चक्र से छूट जाता है। जीव का 'शरीर' अन्न से, 'प्राण' तेज से, 'मन' नियंत्रण से, 'ज्ञान' विज्ञान से और कला से 'आनन्द की श्रीवृद्धि होती है। गायत्री के पांच मुख इन्हीं तत्वों के प्रतीक हैं।

Devi

गायत्री की दस भुजाओं का रहस्य
वैज्ञानिक तरीके से शोध-अनुसंधान करने के बाद ही देवी-देवता सम्बंधी मान्यता की स्थापना हुई है। आज के तथाकथित पढ़े लिखे लोग देवी-देवता सम्बंधी बातों को अंधविश्वास या अंध श्रृद्धा कहते हैं, किन्तु उनका ऐसा सोचना, उनके आधे-अधूरे ज्ञान की पहचान है। चित्रों और मूर्तियों में देवी-देवताओं को एक से अधिक हाथ और कई मुखों वाला दिखाया जाता है। इन बातों के वास्तविक अर्थ क्या है? इस तरह के सारे प्रश्रों और जिज्ञासाओं का समाधान हम लगातार करते रहेंगे। इसी कड़ी में आज यह जानेगे कि गायत्री की दश भुजाओं का क्या अर्थ है:-
इंसान के जीवन में दस शूल यानि कि कष्ट हैं। ये दस कष्ट है—दोषयुक्त दृष्टि, परावलंबन ( दूसरों पर निर्भर होना) , भय, क्षुद्रता, असावधानी, क्रोध, स्वार्थपरता, अविवेक, आलस्य और तृष्णा। गायत्री की दस भुजाएं इन दस कष्टों को नष्ट करने वाली हैं। इसके अतिरिक्त गायत्री की दाहिनी पांच भुजाएं मनुष्य के जीवन में पांच आत्मिक लाभ—आत्मज्ञान, आत्मदर्शन, आत्म-अनुभव, आत्म-लाभ और आत्म-कल्याण देने वाली हैं तथा गायत्री की बाईं पांच भुजाएं पांच सांसारिक लाभ—स्वास्थ्य, धन, विद्या, चातुर्य और दूसरों का सहयोग देने वाली हैं।
दस भुजी गायत्री का चित्रण इसी आधार पर किया गया है। ये सभी जीवन विकास की दस दिशाएं हैं। माता के ये दस हाथ, साधक को उन दसों दिशाओं में सुख और समृद्धि प्रदान करते हैं। गायत्री के सहस्रो नेत्र, सहस्रों कर्ण, सहस्रों चरण भी कहे गए हैं। उसकी गति सर्वत्र है।

Devi

कौन हैं लक्ष्मी, काली और सरस्वती ?
सेकड़ों देवी-देवताओं वाले हिन्दू धर्म को अज्ञानतावश कुछ लोग अंधश्रृद्धा वाला धर्म कह देते हैं, किन्तु संसार में सर्वाधिक वैज्ञानिक धर्म कोई है तो वह सनातन हिन्दू धर्म ही है। सामान्य इंसान भी धर्म के मर्म यानि गहराई को समझ सके, यह सौच कर ही ऋषि-मुनियों ने विश्व की विभिन्न सूक्ष्म शक्तियों को देवी-देवताओं के रूप में चित्रित किया है। ईश्वर या परमात्मा अपने तीन कर्तव्यों को पूरा करने के लिए तीन रूपों में प्रकट हुआ- ब्रह्म, विष्णु और महेश। ब्रह्म को रचनाकार, विष्णु को पालनहार और महेश को संहार का देवता कहा गया है। इस त्रिमूर्ति की तीन शक्तियां हैं- ब्रह्म की महासरस्वती, विष्णु की महालक्ष्मी और महेश की महाकाली।इस तरह परमात्मा अपनी शक्ति से संसार का संचालन करता है।
हम किसी भी वस्तु के बारे में उसका इतिहास इसी क्रम से जानते हैं- उसका निर्माण, उसकी अवस्था और उसका अंत। इसी क्रम में ब्रह्म-विष्णु-महेश का क्रम भी त्रिमूर्ति में कहा गया है। किंतु जब जीवन में शक्ति की उपासना होती है तो यह क्रम उलटा हो जाता है - महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती।
संहार- हम उन बुराइयों का संहार करें, जो बीमारी की तरह हमारे समूचे जीवन को नष्ट कर देती है। बीमारी को जड़ से काट कर जीवन को बचाएं। पोषण- जब बीमारी कट जाए तो शरीर की ताकत बढ़ाने वाला आहार लेना चाहिए। बुराइयां हटाकर जीवन में सद्गुणों का रोपण करें, जिससे आत्मविश्वास मजबूत हो।
रचना- जब जीवन बुराइयों से मुक्त होकर सद्गुणों को अपनाता है तो हमारे आदर्श व्यक्तित्व का निर्माण शुरू होता है। संसार संचालन के लिए परमात्मा को अतुलनीय शक्ति, पर्याप्त धन और निर्मल विद्या की आवश्यकता होती है, इसीलिए उसकी शक्ति महाकाली का रंग काला, महालक्ष्मी का रंग पीला (स्वर्ण) और सरस्वती का रंग सफेद (शुद्धता) है। हमें जीवन में यही मार्ग अपनाना चाहिए अर्थात समाज से बुराइयों का नाश और सदाचार का पोषण करें, तभी आदर्श समाज का नवनिर्माण होगा। यह हम तब ही कर सकते हैं जब हमारे पास वीरता, धन और शिक्षा जैसी शक्तियां हों।

Saturday, October 9, 2010

भगवान् से विनती

प्रार्थना अर्थात् भगवान से विनती
जब भी हम किसी भी परेशानी में फंस जाते हैं, जिसका हल हमारे पास नहीं होता या भगवान से हमें कोई मनोकामना पूर्ण कराना हो तो ऐसी परिस्थिति में हम भगवान से जो विनती करते हैं उसे प्रार्थना कहते हैं। प्रार्थना कई प्रकार से की जाती है, जैसे:
- इच्छापूर्ति के लिए प्रार्थना- किसी मनोकामना की पूर्ति के लिए भगवान से जो विनती की जाती है उसे इच्छापूर्ति की प्रार्थना कहते हैं।- सामान्य प्रार्थना- कई बार बिना किसी कामना या समस्या के श्रद्धा और भक्ति से भगवान की प्रार्थना की जाती है, वह सामान्य प्रार्थना कहलाती है।- बुराइयों से मुक्ति के लिए प्रार्थना- अपनी कमजोरी व बुराइयों को दूर करने या उनसे लडऩे की शक्ति प्राप्त करने के लिए भगवान से प्रार्थना की जाती है। स्वीकारने की प्रार्थना- कुछ लोग ईश्वर की महिमा, सत्ता, प्रभुता को समझकर उसे स्वीकार कर या मानकर भी प्रार्थना करते हैं।- धन्यवाद की प्रार्थना- मनोकामना की पूर्ति हो जाने पर या जीवन सुखमय होने पर भगवान की कृपा का धन्यवाद देने के लिए भी प्रार्थना की जाती है।- मौन प्रार्थना- पूर्ण समर्पण भावना से मौन होकर प्रार्थनाशील हो जाना।
कैसे करें प्रार्थना
- सरल, हृदय से।- सबके कल्याण को ध्यान में रखकर। - हर पल हर समय प्रार्थनामय बनें (कामनामय नहीं)।- यदि इच्छा भी करें तो उसे पूर्ण करने की आजादी ईश्वर को दें।- जीवन और अस्तित्व के प्रति श्रद्धावान बनें।

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क्या है भद्रा?
जब कोई मांगलिक, शुभ कर्म या व्रत-उत्सव की घड़ी आती है, तो पंचक की तरह ही भद्रा योग को भी देखा जाता है। क्योंकि भद्रा काल में मंगल और उत्सव की शुरुआत या समाप्ति अशुभ मानी जाती है। हालांकि हर धार्मिक व्यक्ति भद्रा के विषय में पूरी जानकारी नहीं रखता, किंतु परंपराओं में चली आ रही भद्रा काल की अशुभता को मानकर शुभ कार्य नहीं करता। इसलिए जानते हैं कि आखिर क्या होती है - भद्रा।
पुराण अनुसार भद्रा भगवान सूर्य देव की पुत्री और शनिदेव की बहन है। शनि की तरह ही इसका स्वभाव भी क्रूर बताया गया है। इस उग्र स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उसे कालगणना या पंचाग के एक प्रमुख अंग करण में स्थान दिया। जहां उसका नाम विष्टी करण रखा गया। भद्रा की स्थिति में कुछ शुभ कार्यों, यात्रा और उत्पादन आदि कार्यों को निषेध माना गया। किंतु भद्रा काल में तंत्र कार्य, अदालती और राजनैतिक चुनाव कार्यों सुफल देने वाले माने गए हैं। अब जानते हैं पंचांग की दृष्टि भद्रा का महत्व।
हिन्दू पंचांग के पांच प्रमुख अंग होते हैं। यह है - तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण। इनमें करण एक महत्वपूर्ण अंग होता है। यह तिथि का आधा भाग होता है। करण की संख्या ग्यारह होती है। यह चर और अचर में बांटे गए हैं। चर या गतिशील करण में बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि गिने जाते हैं। अचर या अचलित करण में शकुनि, चतुष्पद, नाग और किस्तुघ्न होते हैं। इन ग्यारह करणों में सातवां करण विष्टि का नाम ही भद्रा है। यह सदैव गतिशील होती है। पंचाग शुद्धि में भद्रा का खास महत्व होता है।
भद्रा का शाब्दिक अर्थ कल्याण करने वाली होता है। किंतु इस अर्थ के विपरीत भद्रा या विष्टी करण में शुभ कार्य निषेध बताए गए हैं। धर्मग्रंथो और ज्योतिष विज्ञान के अनुसार अलग-अलग राशियों के अनुसार भद्रा तीनों लोकों में घूमती है। इसी दौरान जब यह पृथ्वी या मृत्युलोक में होती है, तो सभी शुभ कार्यों में बाधक या या उनका नाश करने वाली मानी गई है। लेकिन अब यह जानना भी जरुरी है कि कैसे मालूम हो कि भद्रा पृथ्वी पर विचरण कर रही है, तो शास्त्रों में यह जानकारी भी स्पष्ट है। जिसके अनुसार -
जब चंन्द्रमा, कर्क, सिंह, कुंभ व मीन राशि में विचरण करता है और भद्रा विष्टी करण का योग होता है, तब भद्रा पृथ्वीलोक में रहती है। इस समय सभी कार्य शुभ कार्य वर्जित होते है। इसके दोष निवारण के लिए भद्रा व्रत का विधान भी धर्मग्रंथों में बताया गया है।
भद्रा का वर्णन हिन्दू धर्म के पुराणों में भी मिलता है। भद्रा कौन है, उसका स्वरुप क्या है, वह कि सकी पुत्री है। इस बारे में विस्तार से जाने इसी वेबसाईट के भद्रा संबंधित अन्य आर्टिकल में।

Friday, October 8, 2010

Devi

दौलतमंद बनाती है ऐसी लक्ष्मी पूजा

शारदीय नवरात्रि में शक्ति पूजा का महत्व है। शक्ति के अलग-अलग रुपों में महालक्ष्मी की धन-वैभव, महासरस्वती की ज्ञान और विद्या और महादुर्गा की बल और शक्ति प्राप्ति के लिए उपासना का महत्व है। दुनिया में ताकत का पैमाना धन भी होता ह
इस बार नवरात्रि का आरंभ शुक्रवार से हो रहा है। इस दिन देवी की पूजा महत्व है। शुक्रवार के दिन विशेष रुप से महालक्ष्मी पूजा बहुत ही धन-वैभव देने वाली और दरिद्रता का अंत करने वाली मानी जाती है। पुराणों में भी माता लक्ष्मी को धन, सुख, सफलता और समृद्धि देने वाली बताया गया है।
नवरात्रि में देवी पूजा के विशेष काल में हर भक्त देवी के अनेक रुपों की उपासना के अलावा महालक्ष्मी की पूजा कर अपने व्यवसाय से अधिक धनलाभ, नौकरी में तरक्की और परिवार में आर्थिक समृद्धि की कामना पूरी कर सकता है। जो भक्त नौकरी या व्यवसाय के कारण अधिक समय न दे पाएं उनके लिए यहां बताई जा रही है लक्ष्मी के धनलक्ष्मी रुप की पूजा की सरल विधि। इस विधि से लक्ष्मी पूजा नवरात्रि के नौ रातों के अलावा हर शुक्रवार को कर धन की कामना पूरी कर सकते हैं -
- आलस्य छोड़कर सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। क्योंकि माना जाता है कि लक्ष्मी कर्म से प्रसन्न होती है, आलस्य से रुठ जाती है। - घर के देवालय में चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर चावल या अन्न रखकर उस पर जल से भरा मिट्टी का कलश रखें। यह कलश सोने, चांदी, तांबा, पीतल का होने पर भी शुभ होता है। - इस कलश में एक सिक्का, फूल, अक्षत यानि चावल के दाने, पान के पत्ते और सुपारी डालें।- कलश को आम के पत्तों के साथ चावल के दाने से भरा एक मिट्टी का दीपक रखकर ढांक दें। जल से भरा कलश विघ्रविनाशक गणेश का आवाहन होता है। क्योंकि वह जल के देवता भी माने जाते हैं। - चौकी पर कलश के पास हल्दी का कमल बनाकर उस पर माता लक्ष्मी की मूर्ति और उनकी दायीं ओर भगवान गणेश की प्रतिमा बैठाएं। - पूजा में कलश बांई ओर और दीपक दाईं ओर रखना चाहिए।- माता लक्ष्मी की मूर्ति के सामने श्रीयंत्र भी रखें। - इसके अलावा सोने-चांदी के सिक्के, मिठाई, फल भी रखें। - इसके बाद माता लक्ष्मी की पंचोपचार यानि धूप, दीप, गंध, फूल से पूजा कर नैवेद्य या भोग लगाएं।- आरती के समय घी के पांच दीपक लगाएं। इसके बाद पूरे परिवार के सदस्यों के साथ पूरी श्रद्धा भक्ति के साथ माता लक्ष्मी की आरती करें।- आरती के बाद जानकारी होने पर श्रीसूक्त का पाठ भी करें।
- अंत में पूजा में हुई किसी भी गलती के लिए माता लक्ष्मी से क्षमा मांगे और उनसे परिवार से हर कलह और दरिद्रता को दूर कर सुख-समृद्धि और खुशहाली की कामना करें।- आरती के बाद अपने घर के द्वार और आस-पास पूरी नवरात्रि या हर शुक्रवार को दीप जलाएं।

देवी

आपकी राशि के लिए किस देवी की पूजा?
पंचोपचार
नवरात्रि आराधना का श्रेष्ठ फल पाने का अवसर होता है। हर राशि के लोगों के लिए नवरात्रि में अलग-अलग देवी की उपासना बताई गई है। जिससे वे अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए सही पूजा पाठ कर सकें। हर राशि के ग्रह और नक्षत्रों के आधार पर उनकी अलग-अलग देवियां मानी गई हैं। दश महाविद्या के मुताबिक हर राशि के लिए एक अलग महाविद्या की उपासना करने से, उनके बीज मंत्रों के जप से किसी भी काम में आसानी से सफलता पाई जा सकती है।
मेष- मेष राशि के जातक शक्ति उपासना के लिए द्वितीय महाविद्या तारा की साधना करें। ज्योतिष के अनुसार इस महाविद्या का स्वभाव मंगल की तरह उग्र है। मेष राशि वाले महाविद्या की साधना के लिए इस मंत्र का जप करें।
मंत्र- ह्रीं स्त्रीं हूं फट्
वृषभ- वृषभ राशि वाले धन और सिद्धि प्राप्त करने के लिए श्री विद्या यानि षोडषी देवी की साधना करें और इस मंत्र का जप करें।
मंत्र- ऐं क्लीं सौ:
मिथुन- अपना गृहस्थ जीवन सुखी बनाने के लिए मिथुन राशि वाले भुवनेश्वरी देवी की साधना करें। साधना मंत्र इस प्रकार है।
मंत्र- ऐं ह्रीं
कर्क- इस नवरात्रि पर कर्क राशि वाले कमला देवी का पूजन करें। इनकी पूजा से धन व सुख मिलता है। नीचे लिखे मंत्र का जप करें।
मंत्र- ऊं श्रीं
सिंह - ज्योतिष के अनुसार सिंह राशि वालों को मां बगलामुखी की आराधना करना चाहिए। जिससे शत्रुओं पर विजय मिलती है।
मंत्र- ऊं हृी बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय
जिहृं कीलय कीलय बुद्धिं विनाशाय हृी ऊं स्वाहा
कन्या- आप चतुर्थ महाविद्या भुवनेश्वरी देवी की साधना करें आपको निश्चित ही सफलता मिलेगी।
मंत्र- ऐं ह्रीं ऐं
तुला- तुला राशि वालों को सुख व ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए षोडषी देवी की साधना करनी चाहिए।
मंत्र- ऐं क्लीं सौ:
वृश्चिक- वृश्चिक राशि वाले तारा देवी की साधना करें। इससे आपको शासकीय कार्यों में सफलता मिलेगी।
मंत्र- श्रीं ह्रीं स्त्रीं हूं फट्
धनु - धन और यश पाने के लिए धनु राशि वाले कमला देवी के इस मंत्र का जप करें।
मंत्र- श्रीं
मकर- मकर राशि के जातक अपनी राशि के अनुसार मां काली की उपासना करें।
मंत्र- क्रीं कालीकाये नम:
कुंभ- कुंभ राशि वाले भी काली की उपासना करें इससे उनके शत्रुओं का नाश होगा।
मंत्र- क्रीं कालीकाये नम:
मीन- इस राशि के जातक सुख समृद्धि के लिए कमला देवी की उपासना करें।
मंत्र- श्री कमलाये नम:

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Thursday, October 7, 2010

पितरों को नहीं भूलें

अंतिम मौका है, न भूलें पितरों की खुशी के ऐसे उपाय

हिन्दू पंचांग के आश्विन माह के कृष्णपक्ष यानि श्राद्धपक्ष में पितरों की प्रसन्नता के लिए अंतिम अवसर सर्वपितृ अमावस्या माना जाता है। यह तिथि इस बार (7 अक्टूबर) को आएगी। कोई श्राद्ध का अधिकारी पितृपक्ष की सभी तिथियों पर पितरों का श्राद्ध या तर्पण चूक जाएं या पितरों की तिथि याद न हो तब इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं। इसलिए यह पितृमोक्ष अमावस्या या सर्वपितृ अमावस्या के नाम से प्रसिद्ध है।

जिन दंपत्तियों के यहां ३ पुत्रियों के बाद एक पुत्र जन्म लेता है या जुड़वां संतान पैदा होती है। उनको सर्वपितृ अमावस्या का श्राद्ध जरुर करना चाहिए।

सर्वपित् अमावस्या को पितरों के श्राद्ध से सौभाग्य और स्वास्थ्य प्राप्त होता है। धार्मिक मान्यता है कि इस तिथि पर पितृ आत्मा अपने परिजनों के पास वायु रुप में ब्राह्मणों के साथ आते हैं। उनकी संतुष्टि पर पितर भी प्रसन्न होते हैं। परिजनों के श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने से वह तृप्त और प्रसन्न होकर आशीर्वाद देकर जाते हैं, किंतु उनकी उपेक्षा से दु:खी होने पर श्राद्धकर्ता का जीवन भी कष्टों से बाधित होता है।

सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों की तृप्ति से परिवार में खुशियां लाने का श्राद्धपक्ष का अंतिम अवसर न चूक जाएं। इसलिए यहां बताए जा रहे हैं कुछ उपाय जिनका अपनाने से भी आप पितरों की तृप्ति कर सकते हैं -

- सर्वपितृ अमावस्या को पीपल के पेड़ के नीचे पुड़ी, आलू व इमरती या काला गुलाब जामुन रखें।
- पेड़ के नीचे धूप-दीप जलाएं व अपने कष्टों को दूर करने की प्रार्थना करें। पितरों का ध्यान कर नमस्कार करें। ऐसा करने पर आप जीवन में खुशियां व अनपेक्षित बदलाव जरुर देखेंगे।
- घर के मुख्य प्रवेश द्वार सफेद फूल से सजाएं।
- इस दिन पांच फल गाय को खिलाएं।
- पितरों के निमित्त धूप देकर इस दिन तैयार भोजन में से पांच ग्रास गाय, कुत्ता, कौवा, देवता और चींटी या मछली के लिए जरुर निकालें और खिलाएं।
- यथाशक्ति ब्राह्मण को भोजन कराएं। वस्त्र, दक्षिणा दें। जब ब्राह्मण जाने लगे तो उनके चरण छुएं, आशीर्वाद लें और उनके पीछे आठ कदम चलें।
- ब्राह्मण के भोजन के लिए आने से पहले धूपबत्ती अवश्य जलाएं।

इस तरह सर्वपितृ अमावस्या को श्रद्धा से पूर्वजों का ध्यान, पूजा-पाठ, तर्पण कर पितृदोष के कारण आने वाले कष्ट और दुर्भाग्य को दूर करें। इस दिन को पितरों की प्रसन्नता से वरदान बनाकर मंगलमय जीवन व्यतीत किया जा सकता है।