हिंदू पंचांग के अनुसार पूरे वर्ष में बारह पूर्णिमा आती हैं। इस दिन चंद्रमा अपने पूर्ण आकार में होता है। पूर्णिमा पर चंद्रमा का अनुपम सौंदर्य देखते ही बनता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पूर्ण चंद्रमा के कारण वर्ष में आने वाली सभी 12 पूर्णिमा पर्व के समान ही हैं लेकिन इन सभी में आश्विन मास में आने वाली पूर्णिमा सबसे श्रेष्ठ मानी गई है। यह पूर्णिमा शरद ऋतु में आती है इसलिए इसे शरद पूर्णिमा भी कहते हैं। शरद ऋतु की इस पूर्णिमा को पूर्ण चंद्र अश्विनी नक्षत्र से संयोग करता है। अश्विनी जो नक्षत्र क्रम में पहला है और जिसके स्वामी अश्विनीकुमार है।
कथा है च्यवन ऋषि को आरोग्य का पाठ और औषधि का ज्ञान अश्विनीकुमारों ने ही दिया था। यही ज्ञान आज हजारों वर्ष बाद भी परंपरा से हमारे पास धरोहर के रूप में संचित है। अश्विनीकुमार आरोग्य के दाता हैं और पूर्ण चंद्रमा अमृत का स्रोत। यही कारण है कि ऐसा माना जाता है कि इस पूर्णिमा को आसमान से अमृत की वर्षा होती है। शरद पूर्णिमा की रात्रि को घरों की छतों पर खीर आदि भोज्य पदार्थ रखने की प्रचलन भी है। जिसका सेवन बाद में किया जाता है। मान्यता यह है कि ऐसा करने से चंद्रमा की अमृत की बूंदें भोजन में आ जाती हैं जिसका सेवन करने से सभी प्रकार की बीमारियां आदि दूर हो जाती हैं।
Tuesday, October 19, 2010
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ज्ञान वर्धक लेख है|
ReplyDeleteशानदार प्रयास बधाई और शुभकामनाएँ।
ReplyDelete-लेखक (डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश') : समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध 1993 में स्थापित एवं 1994 से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान- (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। जिसमें 05 अक्टूबर, 2010 तक, 4542 रजिस्टर्ड आजीवन कार्यकर्ता राजस्थान के सभी जिलों एवं दिल्ली सहित देश के 17 राज्यों में सेवारत हैं। फोन नं. 0141-2222225 (सायं 7 से 8 बजे), मो. नं. 098285-02666.
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