Sunday, October 10, 2010

Devi

गायत्री के पांच मुखों का रहस्य
धार्मिक पुस्तकों में ऐसे कई प्रसंग या वृतांत पढऩे में आते हैं, जो बहुत ही आश्चर्यजनक हैं। लाखों-करोड़ों देवी-देवता, स्वर्ग-नर्क, आकाश-पाताल, कल्पवृक्ष, कामधेनु गाय, इन्द्रलोक....और भी न जाने क्या-क्या। इन आश्चर्यजनक बातों का यदि हम शाब्दिक अर्थ निकालें तो शायद ही किसी निर्णय पर पहुंच सकते हैं। अधिकांस घटनाओं का वर्णन प्रतीकात्मक शैली में किया गया है। गायत्री के पांच मुखों का आश्चर्यजनक और रहस्यात्मक प्रसंग भी कुछ इसी तरह का है। यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड जल, वायु, पृथ्वी, तेज और आकाश के पांच तत्वों से बना है। संसार में जितने भी प्राणी हैं, उनका शरीर भी इन्हीं पांच तत्वों से बना है। इस पृथ्वी पर प्रत्येक जीव के भीतर गायत्री प्राण-शक्ति के रूप में विद्यमान है। ये पांच तत्व ही गायत्री के पांच मुख हैं। मनुष्य के शरीर में इन्हें पांच कोश कहा गया है। इन पांच कोशों का उचित क्रम इस प्रकार है:-
- अन्नमय कोश - प्राणमय कोश - मनोमय कोश - विज्ञानमय कोश - आनन्दमय कोश
ये पांच कोश यानि कि भंडार, अनंत ऋद्धि-सिद्धियों के अक्षय भंडार हैं। इन्हें पाकर कोई भी इंसान या जीव सर्वसमर्थ हो सकता है। योग साधना से इन्हें जाना जा सकता है, पहचाना जा सकता है। इन्हें सिद्ध करके यानि कि जाग्रत करके जीव संसार के समस्त बंधनों से मुक्त हो जाता है। जन्म-मृत्यु के चक्र से छूट जाता है। जीव का 'शरीर' अन्न से, 'प्राण' तेज से, 'मन' नियंत्रण से, 'ज्ञान' विज्ञान से और कला से 'आनन्द की श्रीवृद्धि होती है। गायत्री के पांच मुख इन्हीं तत्वों के प्रतीक हैं।

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