Saturday, February 26, 2011

जरूरी नहीं की राहू बुरा फल ही दे

राहु को पौराणिक ग्रंथों में सांप का सिर और केतु को उसका धड़ कहा गया है। राहु और केतु के बीच जब सब ग्रह आ जाते हैं तो कालसर्प नाम का अशुभ योग बनता है। राहु पापी ग्रह के रूप में जाना जाता है। इसकी अपनी कोई राशि नहीं होती है, इसलिए कुंडली में यह जिस राशि और ग्रह के साथ में होता है उसके अनुसार फल देता है। राहु पाप ग्रह होने के कारण हमेशा बुरा फल दे यह जरूरी नही है। कुंडली में धन प्राप्त हाने के योग भी राहु के द्वारा बन सकते हैं
अष्टलक्ष्मी योग- जब किसी कुंडली में राहु छठे भाव में होता है और 1, 4, 7, 10वें भाव में गुरू होता है तब यह अष्टलक्ष्मी योग बनता है। पापी ग्रह राहु, गुरु के समान अच्छा फल देता है। यह योग जिसकी कुण्डली में होता है वह व्यक्ति धार्मिक, आस्तिक एवं शान्त स्वभाव वाला होता है और यश व सम्मान के साथ-साथ धनवान हो जाता है।
लग्न कारक योग- अगर किसी का लग्र मेष, वृष या कर्क लग्न है तभी यह योग बनता है। कुण्डली में राहु दुसरे, 9वें या दसवें भाव में नहीं है तो उनकी कुंडली में ये योग होता है। कुंडली की इस स्थिति से राहु का अशुभ प्रभाव नही होता क्योंकि उपर बताए गए लग्र वालों के लिए राहु शुभ फल देने वाला होता है। ऐसे लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी रहती है।
राहुकोप मुक्त योग- राहु पहले भाव में हो या तीसरे, छठे या ग्यारहवें भाव में होता है और उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो यह योग बनता है। ऐसे में व्यक्ति पर राहु के अशुभ प्रभाव नही पड़ते। ऐसे व्यक्तियों के सभी काम आसानी से होते हैं और उनके जीवन में कभी पैसों की कमी नही होती।
राहु की महादशा लगने पर मानते हैं कि जैसे सब कुछ खत्म हो गया। लेकिन ऐसा नहीं है। राहु और उसकी महादशा हर समय नुकसानदायक नहीं होती। राहु रंक को भी राजा बनाने की क्षमता रखता है। राहु की महादशा में विदेश जाने से बहुत लाभ होता है। विदेश का मतलब है वर्तमान निवास से दूर जाकर कार्य करने से सफलता मिलती है। अगर कुंडली में राहु , चौथे, दसवें, ग्यारहवें या नवें स्थान में अपने मित्र ग्रहों की राशि यानी शनि और शुक्र की राशि (मकर, कुंभ, वृषभ या तुला) में स्थित होता है तो बहुत सफलता दिलाता है।वहीं राहु यदि मिथुन राशि में हो तो कई ज्योतिष विद्वानों द्वारा उच्च का माना जाता है। राहु एक छाया ग्रह है। यह किसी भी राशि का स्वामी नही है। लेकिन यह जिसके अनुकुल हो जाता है उसे जीवन मे बहुत मान सम्मान प्रतिष्ठा और पद प्राप्त होता है। राजनितिज्ञों के लिए तो राहु का अनूकुल होना अत्यधिक फायदेमंद होता है। राहु के अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए शनिवार के दिन अपना उपयोग किया हुआ कंबल किसी गरीब को दान करें। काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। अमावस्या को पीपल पर रात में 12 बजे दीपक जलाएं। शनिवार को उड़द के बड़े बनाकर खाएं। -शिवजी पर जल, धतुरा के बीज, चढ़ाएं और सोमवार का व्रत करें।

Friday, February 25, 2011

लिंगाष्टक : बाधा दूर करने वाला

शिवलिंग पूजा सभी सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति करने वाली मानी गई है, जो शिवलिंग पर मात्र जल और बिल्वपत्र चढ़ाने मात्र से भी पूरी हो जाती हैं। महाशिवरात्रि शिवलिंग के प्रागट्य का ही शुभ दिन है। इसलिए इस दिन शिव उपासना में लिंगाष्टक का पाठ बहुत ही शुभ फल देने वाला होता है। जिससे कामना सिद्धि के साथ भाग्य या संतान बाधा दूर करने वाला भी माना गया है। शिव की महिमा का यह अद्भुत पाठ इस प्रकार है :
ब्रह्ममुरारिसुरार्चित लिगं निर्मलभाषितशोभित लिंग,
जन्मजदुःखविनाशक लिंग तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं
देवमुनिप्रवरार्चित लिंगं, कामदहं करुणाकर लिंगं,
रावणदर्पविनाशन लिंगं तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं
सर्वसुगंन्धिसुलेपित लिंगं, बुद्धिविवर्धनकारण लिंगं
सिद्धसुरासुरवन्दित लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं
कनकमहामणिभूषित लिंगं, फणिपतिवेष्टितशोभित लिंगं,
दक्षसुयज्ञविनाशन लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं
कुंकुमचंदनलेपित लिंगं, पंकजहारसुशोभित लिंगं,
संञ्चितपापविनाशिन लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं
देवगणार्चितसेवित लिंग, भवैर्भक्तिभिरेवच लिंगं,
दिनकरकोटिप्रभाकर लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं
अष्टदलोपरिवेष्टित लिंगं, सर्वसमुद्भवकारण लिंगं,
अष्टदरिद्रविनाशित लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं
सुरगुरूसुरवरपूजित लिंगं, सुरवनपुष्पसदार्चित लिंगं,
परात्परं परमात्मक लिंगं, ततप्रणमामि सदाशिव लिंगं

सड़क दुर्घटना का खतरा

लापरवाही जीवन के खतरनाक होती है। कुछ लोगों पूरी सावधानी के साथ चलते हैं फिर भी दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली में कुछ ग्रह दुर्घटना से संबंधित बताए गए हैं। ज्योतिष शास्त्र से जाना जा सकता है यदि किसी के साथ वाहन दुर्घटना या अन्य कोई एक्सीडेंट से नुकसान होने के योग हों। मंगल, शनि, राहु या सूर्य इनमें से कोई एक ग्रह अष्टम स्थान मे हो तथा इन पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तब दुर्घटना के योग बनाते हैं। इन चारों ग्रहों में से कोई एक ग्रह भी पाप ग्रह के साथ हो तो सड़क दुर्घटना का भय रहता है। पितृ दोष का विचार भी अष्टम भाव से किया जाता है, पितृदोष भी दुर्घटना का कारण होता हैं। स्त्री की पत्रिका में उसके पति की आयु का विचार अष्टम भाव से होता है। नवांश कुंडली मे सूर्य-मंगल यदि एक दूसरे पर दृष्टि रखते हों तो भी सड़क दुर्घटना का खतरा बनता है। राहु की महादशा हो तथा सूर्य या चंद्र अष्टम स्थित हो, तो भी यह खतरा बना रहता है। द्वितीय भाव दूषित होने पर भी यह खतरा मंडराता है। दुर्घटना के योग बचने के लिए अष्टम भाव में स्थित अशुभ ग्रह का उपचार कराएं। श्री हनुमानजी का पूजन करें। शिवजी का अभिषेक करें। वाहन चलाते समय पूरी सावधानी रखें और यातायात के नियमों का पालन करें।

Wednesday, February 23, 2011

सात दिनों की प्रकृति और स्वभाव

सप्ताह के सात दिनों की प्रकृति और स्वभाव बताए गए हैं। इन की प्रकृति और स्वभाव के अनुसार कार्यों को करें तो आपको निश्चत ही हर काम में सफलता मिलेगी। सोचे हुए कार्य पूरे नही होते या उनका काई परिणाम नही मिलता तो उन कार्यों को पुराणों, मुहूर्त ग्रंथों और फलति ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार बताए गए वार को करें। जरूर सफल होंगे।
रविवार- यह सूर्य देव का वार माना गया है। इस दिन नवीन गृह प्रवेश और सरकारी कार्य करना चाहिए। सोने के आभूषण और तांबे की वस्तुओं का क्रय विक्रय करना चाहिए या इन धातुओं के आभूषण पहनना चाहिए।
सोमवार- सरकारी नौकरी वालों के लिए पद ग्रहण करने के लिए यह दिन बहुत महत्वपूर्ण है। गृह शुभारम्भ, कृषि, लेखन कार्य और दूध, घी व तरल पदार्थों का क्रय विक्रय करना इस दिन फायदेमंद हो सकता है।
मंगलवार- मंगल देव के इस दिन विवाद एवं मुकद्दमे से संबंधित कार्य करने चाहिए। शस्त्र अभ्यास, शौर्य और पराक्रम के कार्य इस दिन करने से उस कार्य में सफलता मिलती है। मेडिकल से संबंधित कार्य और ऑपरेशन इस दिन करने से सफलता मिलती है। बिजली और अग्नि से संबधित कार्य इस दिन करें तो अवश्य ही लाभ मिलेगा। सभी प्रकार की धातुओं का क्रय विक्रय करना चाहिए।
बुधवार- इस दिन यात्रा करना, मध्यस्थता करना, योजना बनाना आदि कार्य करने चाहिए। लेखन, शेयर मार्केट का कार्य, व्यापारिक लेखा-जोखा आदि का कार्य करना चाहिए।
गुरुवार- बृहस्पति देव के इस दिन यात्रा, धार्मिक कार्य, विद्याध्ययन और बैंक से संबंधित कार्र्य करना चाहिए। इस दिन वस्त्र आभूषण खरीदना, धारण करना और प्रशासनिक कार्य करना शुभ माना गया है।
शुक्रवार- शुक्रवार के दिन गृह प्रवेश, कलात्मक कार्य, कन्या दान, करने का महत्व है। शुक्र देव भौतिक सुखों के स्वामी है। इसलिए इस दिन सुख भोगने के साधनों का उपयोग करें। सौंदर्य प्रसाधन, सुगन्धित पदार्थ, वस्त्र, आभूषण, वाहन आदि खरीदना लाभ दायक होता है।
शनिवार- मकान बनाना , टेक्रीकल कार्य, गृह प्रवेश, ऑपरेशन आदि काम करने चाहिए। प्लास्टिक , लकड़ी , सीमेंट, तेल, पेट्रोल खरीदना और वाद-विवाद के लिए जाना इस दिन सफलता देने वाला होता है।

Sunday, February 20, 2011

धन-धान्य की कमी न हो

हर व्यक्ति चाहता है कि वह सुख-शांतिपूर्ण तरीके से जीवन जीए। कभी धन-धान्य की कमी न हो। इसके लिए वह दिन-रात मेहनत भी करता है। लेकिन इतना सब करने के बाद भी ऐसा नहीं हो पाता जैसा वह चाहता है। कुछ साधारण तांत्रिक उपाय करने पर जीवन को सुखी व शांतिपूर्ण बनाया जा सकता है।
- प्रतिदिन सुबह एक लौटे में पानी लेकर उसमें फूल, कुंकुम व चावल डालकर बरगद के पेड़ की जड़ में डालें तथा गाय को गुड़ व रोटी खिलाएं। ऐसा करने से आपके जीवन में सुख-शांति बनी रहेगी।
- सूर्यास्त के समय रोज आधा किलो कच्चे दूध में 9 बूंदें शहद मिलाकर घर के सभी कमरों में छींटे और फिर चौराहे पर जाकर वह दूध रखकर लौट आएं। लौटते समय पीछे पलटकर न देंखे। 21 दिन तक यह टोटका करने से घर में जितनी भी नकारात्मक शक्तियां होती हैं स्वत: ही दूर चली जाती हैं और शांति का अनुभव होता है।
- प्रतिदिन सुबह नहाकर घर के प्रत्येक सदस्य के मस्तक पर चंदन का तिलक लगाने से भी परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती हैं तथा धन-वैभव बढ़ता है।
- किसी भी महीने के कृष्ण पक्ष में शनिवार के दिन नाव की कील से बना लॉकेट गले में धारण करने से समस्त प्रकार के दोषों का नाश हो जाता है तथा समृद्धि में वृद्धि होती है।
- शुक्रवार के दिन पीले कपड़े पर हल्दी की 7 साबूत गंाठ, 7 जनेऊ, 7 लग्नमंडप की सुपारी, गुड़ की 7 डली तथा 7 पीले फूल रखें। इसके पश्चात धूप-दीप से पूजा करें तथा इसे बांधकर तिजोरी या जहां आप पैसे रखते हैं, वहां रख दें। निश्चय ही इस टोटके से धन-धान्य में वृद्धि होगी।

Saturday, February 19, 2011

संतान गोपाल मन्त्र

संतान के बिना गृहस्थ जीवन की खुशिययां अधूरी हो जाती हैं। धर्म के नजरिए से गृहस्थ जीवन की चार पुरूषार्थ में से एक काम की प्राप्ति में अहम भूमिका है। यही कारण है कि हर दंपत्ति संतान प्राप्ति की कामना करते हैं। आज के दौर में जहां पुत्रियां भी किसी भी क्षेत्र में पुत्रों से कम नहीं है। फिर भी अक्सर परंपराओं और धर्म से जुड़ी मान्यताओं के चलते हर कोई पुत्र कामना करता है। किंतु कभी-कभी यह देखा जाता है कि शारीरिक समस्या या किसी घटना के कारण संतान प्राप्ति में बाधाएं आती है, जो परिवार के माहौल में मायूसी और दु:ख पैदा करते हैं। शास्त्रों में संतान कामना को पूरा करने के ऐसे ही उपाय बताए गए हैं, जिनसे बिना किसी ज्यादा परेशानी या आर्थिक बोझ के मनचाही खुशियां मिलती हैं। यह उपाय है संतान गोपाल मन्त्र का जप। स्वस्थ्य, सुंदर संतान खासतौर पर पुत्र प्राप्ति के लिए यह मंत्र पति-पत्नी दोनों के द्वारा किया जाना बेहतर नतीजे देता है।
पति-पत्नी दोनों सुबह स्नान कर पूरी पवित्रता के साथ इस मंत्र का जप तुलसी की माला से करें। इसके लिए घर के देवालय में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र की चन्दन, अक्षत, फूल, तुलसी दल और माखन का भोग लगाकर घी के दीप व कर्पूर से आरती करें। बालकृष्ण की मूर्ति विशेष रूप से श्रेष्ठ मानी जाती है। भगवान की पूजा के बाद या आरती के पहले इस संतान गोपाल मंत्र का जप करें -
देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:

मंत्र जप के बाद भगवान से समर्पित भाव से निरोग, दीर्घजीवी, अच्छे चरित्रवाला, सेहतमंद पुत्र की कामना करें। यह मंत्र जप पति या पत्नी अकेले भी कर सकते हैं। धार्मिक मान्यताओं में इस मंत्र की 55 माला या यथाशक्ति जप के एक माह में चमत्कारिक फल मिलते हैं।

अचूक शनि मंत्र

शनि दण्ड देने वाले देवता के रूप में पूजनीय है। शनि की टेढ़ी चाल किसी भी व्यक्ति को बेहाल कर सकती है। यही कारण है कि उनकी छबि क्रूर भी मानी जाती है। जिससे शनि की साढ़े साती, महादशा आदि में शनिदेव की उपासना का महत्व है। शनि के बुरे असर से अनेक तरह की पीड़ाएं मिलती है, किंतु इनमें से शारीरिक रोग की बात करें तो शनि दोष से पैरों की बीमारी, गैस की समस्या, लकवा, वात और मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। जिससे व्यक्ति की कमजोरी उसे सुख और आनंद से वंचित कर सकती है। शनि दोष से पैदा हुए ऐसे ही रोगों से छुटकारे और बचाव के लिए यह वैदिक शनि मंत्र अचूक माना गया है। इस मंत्र का जप स्वयं या किसी विद्वान ब्राह्मण से कराना रोगनाश के लिए अचूक माना जाता है।
शनि के इस खास मंत्र और सामान्य पूजा विधि :
शनिवार के दिन सुबह स्नान कर घर या नवग्रह मंदिर में शनिदेव की गंध, अक्षत, काले तिल, उड़द और तिल का तेल चढ़ाकर पूजा करें। पूजा के बाद शनि के इस वैदिक मंत्र का जप कम से कम 108 बारे जरूर करें -
ऊँ शन्नो देवीरभीष्टय, आपो भवन्तु पीतये। शं योरभिस्त्रवन्तु न:।।
मंत्र जप के बाद शनिदेव से पूजा या मंत्र जप में हुई गलती के लिए क्षमा मांग स्वयं या परिजन की बीमारी से मुक्ति के लिए प्रार्थना करें। हिन्दू धर्म में प्रकृति को भी देव रूप मानता है। जिससे कोई भी इंसान चाहे वह धर्म को मानने वाला हो या धर्म विरोधी सीधे ही किसी न किसी रूप में प्रकृति और प्राणियों से प्रेम के द्वारा जुड़कर धर्म पालन कर ही लेता है। कुदरत की देव रूप उपासना का ही अंग हे पीपल पूजा। पीपल को अश्वत्थ भी कहा जाता है। शास्त्रों के मुताबिक पीपल देववृक्ष होकर इसमें त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास माना जाता है। ब्रह्मा का स्थान जड़ में, विष्णु का मध्य भाग या तने और अगले भाग यानि शाखाओं में शिव का स्थान है। इस वृक्ष की टहनियों में त्रिदेव सहित इंद्र और गो, ब्राह्मण, यज्ञ, नदी और समुद्र देव वास भी माना जाता है। इसलिए यह वृक्ष पंचदेव, ऊंकार या कल्पवृक्ष के नाम से भी पूजित है।
पीपल वृक्ष की पूजा से सांसारिक जीवन के अनेक कष्टों का दूर करती है। यहां हम ग्रहदोष खासतौर पर शनि पीड़ा का अंत करने के लिए पीपल पूजा की सरल विधि जानते हैं -
स्नान कर सफेद वस्त्र पहन पीपल के व़ृक्ष के नीचे की जमीन गंगाजल से पवित्र करें। दु:खों को दूर करने के मानसिक संकल्प के साथ स्वस्तिक बनाकर पीपल में सात बार जल चढ़ाएं। सामान्य पूजा सामग्रियों कुंकुम, अक्षत, फूल चढ़ाकर भगवान विष्णु, लक्ष्मी, त्रिदेव, शिव-पार्वती का ध्यान करें। इन देवताओं के सरल मंत्रों का बोलें।
इसके बाद पीपल वृक्ष के आस-पास वस्त्र या सूत लपेट कर परिक्रमा करें। परिक्रमा के समय भी भगवान विष्णु का ध्यान जरूर करते रहें। यथाशक्ति मिठाई का भोग लगाएं। घी या तिल के तेल का दीप जलाकर शिव, विष्णु या त्रिदेव की आरती करें। अंत में शनि पीड़ा दूर करने और अपने दोषों के लिए क्षमा प्रार्थना करें। पीपल वृक्ष की मात्र परिक्रमा से ही शनि पीड़ा का अंत हो जाता है।

Friday, February 18, 2011

यंत्रों से अशुभ ग्रह भी देने लगता है शुभ फल

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य अशुभ हो तो उसे हर कार्य में असफलता ही हाथ लगती है। अधिक मेहनत करने पर भी उसका फल नहीं मिलता। कई बार ऐसी स्थिति भी आ जाती है वह जीवन से पूरी तरह से निराश हो जाता है। ऐसी स्थिति में सूर्य यंत्र का विधि-विधान पूर्वक पूजन करने से सूर्य अशुभ होने पर भी शीघ्र ही शुभ फल प्राप्त होने लगते हैं। सूर्य यंत्र दो प्रकार के होते हैं। पहला नौग्रहों का एक ही यंत्र होता है तथा दूसरा नौग्रहों का अलग-अलग नौयंत्र होता है। प्राय: दोनों यंत्रों के एक जैसे ही कार्य एवं लाभ होते हैं। इस यंत्र को सम्मुख रखकर नौग्रहों की उपासना करने से सफलता तो मिलती ही है साथ स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी स्वत: ही समाप्त हो जाती हैं। व्यापार में लाभ होता है, समाज में यश तथा प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।
यंत्र का उपयोग -कभी-कभी ग्रह अनुकूल होने पर भी अनेक रोग व्याधि से मानव पीडि़त होता है। जहां तक उपाय का प्रश्न है इनमें महामृत्युंजय मंत्र का जप भी लाभप्रद होता है। कभी-कभी राहु की शांति के लिए सरसों और कोयले का दान अत्यन्त लाभकारी होता है। सूर्य आदि ग्रहों की शान्त एक मौलिक नियम यह भी है कि जिस ग्रह पर पाप प्रभाव पड़ रहा हो उसको बलवान किया जाना अभीष्ट है। उससे सम्बन्धित रत्न आदि धारण किया जाए अथवा यंत्र रखकर वैदिक मंत्रों द्वारा अनुष्ठान किया जाए।
यंत्रों का विधिवत पूजन करने से अशुभ ग्रह भी शुभ फल देने लगता हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि आपकी कुंडली में शनि अशुभ है तो आपको हर कार्य में असफलता ही हाथ लगती है या सोचे गए कार्य देर से होते हैं। कभी वाहन दुर्घटना, कभी यात्रा स्थागित तो कभी क्लेश आदि से परेशानी बढ़ती जाती है। ऐसी स्थिति में ग्रह पीड़ा निवारक शनि यंत्र की पूजा प्रतिष्ठा करने से अनेक लाभ मिलते हैं। यदि किसी व्यक्ति पर शनि की ढैय़ा या साढ़ेसाती चल रही है तो शनि यंत्र की पूजा करना बहुत लाभदायक होता है। श्रद्धापूर्वक इस यंत्र की प्रतिष्ठा करके प्रतिदिन यंत्र के सामने सरसों के तेल का दीप जलाएं। नीला या काला पुष्प चढ़ाएं ऐसा करने से लाभ होगा। इसके साथ ही प्रतिदिन शनि स्त्रोत का पाठ करें।मृत्यु, कर्ज, मुकद्दमा, हानि, क्षति, पैर आदि की हड्डी तथा सभी प्रकार के रोग से परेशान लोगों के लिए शनि यंत्र की पूजा फायदेमंद होती है। नौकरी पेशा लोगों को उन्नति भी शनि द्वारा ही मिलती है अत: यह यंत्र बहुत उपयोगी है।

Thursday, February 17, 2011

फूहड़ स्त्री पसंद नहीं लक्ष्मी जी को

स्त्री को शक्ति और लक्ष्मी का रूप मानती है। गृहस्थ जीवन की खुशहाली और बदहाली पुरुष ही नहीं स्त्री के श्रेष्ठ आचरण, व्यवहार और चरित्र पर भी निर्भर है। स्त्री परिवार की जिम्मेदारियों की बागडोर संभाल अपने तन के साथ मन और धन के संतुलन व प्रबंधन से शक्ति बन परिवार में खुशियां बनाए रखती है। हिन्दू धर्म में भी देवी लक्ष्मी ऐश्वर्य, धन और सुख-समृद्धि देने वाली मानी जाती है और वह दरिद्रता पसंद नहीं करती। इसलिए स्त्री को लक्ष्मी रूप मानना सही भी है। सांसारिक नजरिए से लक्ष्मी रूप होने पर भी स्त्री के लिए धन की अहमियत कम नहीं है। चाहे वह विवाहित हो या फिर अविवाहित।
शास्त्रों में साफ बताया गया है कि लक्ष्मी कैसी स्त्रियों से रूठ जाती है? जानते हैं ऐसी स्त्रियों के लक्षण - जो स्त्री हमेशा पति के खिलाफ़ काम करे, पति को कटु बोल बोलती है, पति को तरह-तरह से दु:ख देती है, लज्जाहीन स्त्री, झगड़ालू, गुस्सैल, चिढ़चिढ़ी और निर्मम , पति का घर छोड़कर दूसरे के घर में रहना पसंद करे, बड़ों का अपमान करने वाली , परपुरुष को पसंद करे। , आलसी और अस्वच्छ रहने वाली,वाचाल यानि ज्यादा बोलने वाली, घर का सामान इधर-उधर फेंकने वाली , अधिक सोने वाली, घर को अस्त-व्यस्त रखने वाली, अनजान लोगों से अनावश्यक बात करने वाली

Wednesday, February 16, 2011

सफलता देता गणेश मंत्र

शुभ और मंगल की चाहत तभी पूरी हो सकती है, जब बुद्धि और विवेक के संतुलन से लक्ष्य तक पहुंचा जाए। किंतु लक्ष्य भेदन के लिए भी जरूरी है कि उसके लिए की जाने वाली कोशिशों में आने वाली बाधाओं को ध्यान रख पहले से ही तैयारी रखी जाए। इनके बावजूद भी अनेक अवसरों पर अनजानी-अनचाही मुसीबतों से दो-चार होना पड़ता है। हिन्दू धर्म में भगवान श्री गणेश ऐसे ही देवता के रूप में पूजनीय है, जिनका नाम जप ही कार्य में आने वाली जानी-अनजानी विघ्र, बाधाओं का नाश कर देता है। शास्त्रों में गृहस्थी हो या व्यापार या फिर किसी परीक्षा और प्रतियोगिता में सफलता की चाह रखने वालों के लिए श्री गणेश के इस मंत्र जप का महत्व बताया गया है। जिसमें भगवान श्री गणेश के 12 नामों की स्तुति है। जानते हैं यह श्री गणेश मंत्र - बुधवार या हर रोज इस मंत्र का सुबह श्री गणेश की सामान्य पूजा के साथ जप बेहतर नतीजे देता है। पूजा में दूर्वा चढ़ाना और मोदक का यथाशक्ति भोग लगाना न भूलें।
गणपर्तिविघ्रराजो लम्बतुण्डो गजानन:।
द्वेमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिप:।।
विनायकश्चायकर्ण: पशुपालो भावात्मज:।
द्वाद्वशैतानि नामानि प्रातरूत्थाय य: पठेत्।
विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्रं भवते् कश्चित।

40 प्रतिशत आबादी हमेशा शनि देव की गिरफ्त में

दुनिया की कुल आबादी का 40 प्रतिशत भाग हमेशा क्रूर ग्रह शनि देव की गिरफ्त में रहता है। हर समय 5 राशियों के लोग सीधे-सीधे शनि से प्रभावित रहते हैं। शनि को न्याय का देवता माना जाता है लेकिन शनिदेव अति क्रूर ग्रह है। यदि किसी व्यक्ति से कोई गलत और अधार्मिक कार्य हो गया है तो शनि उसके पाप का बुरा फल जरूर देता है। यह फल शनि साढ़ेसाती और ढैय्या के समय व्यक्ति के जीवन को पूरी तरह प्रभावित करता है। शनि का प्रभाव सभी राशियों पर पड़ता है लेकिन इसका 5 राशियों पर अत्यधिक सीधा प्रभाव होता है। शनि एक मात्र ऐसा ग्रह है जो सीधे-सीधे एक साथ पांच राशियों को पूरी तरह प्रभावित करता है। इन राशियों में तीन राशियों पर शनि की साढ़े साती होती है और दो राशियों पर शनि की ढैय्या। ज्योतिष के अनुसार दुनिया की आबादी 12 राशियों में ही विभाजित है। अत: 12 में से 3 राशियों पर शनि की साढ़ेसाती और 2 राशियों पर शनि ढैय्या हर समय चलती रहती है। साढ़ेसाती और ढैय्या में शनि की सीधी नजर संबंधित राशि पर ही रहती है।
शनि की साढ़ेसाती: शनि की साढ़ेसाती का मतलब यह है किसी राशि को शनि साढ़े सात साल तक प्रभावित करता है। वैसे तो शनि किसी भी राशि में ढाई वर्ष (2 साल 6 माह) ही रुकता है परंतु इसका प्रभाव आगे और पीछे वाली राशियों पर भी पड़ता है। इस तरह प्रति राशि के ढाई वर्ष के अनुसार एक राशि को शनि साढ़े सात वर्ष प्रभावित करता है। शनि की साढ़ेसाती को तीन हिस्सो में विभक्त किया जाता है। एक-एक भाग ढाई-ढाई वर्ष का होता है।
शनि की ढैय्या: शनि की ढैय्या अर्थात् किसी राशि पर शनि का प्रभाव ढाई साल तक रहना। शनि जिस राशि में स्थित है उस राशि से ऊपर की ओर चौथी राशि और नीचे की ओर छठी राशि में भी शनि की ढैय्या रहती है। अभी शनि कन्या राशि में स्थित है और उसकी ढैय्या मिथनु और कुंभ पर भी चल रही है।
किसी व्यक्ति से कोई गलत और अधार्मिक कार्य हो गया है तो शनि उसके पाप का बुरा फल जरूर देते है। यह फल शनि साढ़ेसाती और ढैय्या के समय व्यक्ति के जीवन को पूरी तरह प्रभावित करता है।शनि के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए काले कुत्ते को रोटी दी जाती है। लेकिन शनि के अशुभ फल को दूर करने के लिए काले कुत्ते को ही चपाती क्यों दें? यह जिज्ञासा अक्सर लोगों के मन में होती है और जब उन्हें इसका उचित जवाब नहीं मिलता तो वे इसे अंधविश्वास मान लेते हैं। दरअसल इस उपाय को करने का कारण यह है शनि को श्याम वर्ण माना जाता है अर्थात् शनि देव स्वयं काले रंग के हैं और वे काले रंग के लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। साथ ही वराह संहिता के अनुसार काले कुत्ते को शनि का वाहन माना गया है। शनि को सेवा करने वाले और वफादार लोग पसंद होते हैं और काले कुत्ते में ये दोनों ही गुण होते हैं इसलिए शनि को प्रसन्न करने के लिए काले कुत्ते को तेल से लगी हुई चपाती देने की मान्यता है।

Saturday, February 12, 2011

बजरंग बाण का जप

संकटमोचक हनुमान की उपासना मानवीय जीवन के दु:ख, भय और चिंता को दूर करने के लिए अचूक मानी जाती है। श्री हनुमान साधना की इस कड़ी में बजरंग बाण का जप और पाठ शनिवार या मंगलवार के दिन करने का महत्व है। इस दिन यथाशक्ति श्री हनुमान की प्रसन्नता और शनिकृपा के लिए व्रत भी रख सकते हैं। - सुबह स्नान कर पवित्रता के साथ भगवा या सिंदूरी वस्त्र पहनें। तब मंदिर या घर के ही देवालय में बजरंग बाण का जप किया जा सकता है। इसके लिए तन के साथ मन की पवित्रता और शांत स्थान का जरूर ध्यान रखें।- श्री हनुमान की मूर्ति या तस्वीर के सामने कुश के आसन पर बैठें।- बजरंग बाण के जप प्रयोग की शुरुआत पवित्रीकरण और संकल्प के साथ करें। - संकल्प में मात्र बजरंग बाण के जप का ही न हो, बल्कि इसके साथ यह भी संकल्प करें कि मनोरथ पूर्ति और कष्ट शमन होने पर श्री हनुमान की तन, मन, धन से यथाशक्ति सेवा करेंगे। - शास्त्रों में हनुमान साधना में दीपदान का बहुत महत्व बताया गया है। अत: पंचधानों यानि गेंहू, चावल, मूंग, उड़द और काले तिल के मिश्रित आटे में गंगाजल मिलाकर एक दीपक बनाएं। - इस दीपक में सुगंधित तेल भरें और उसमें एक कच्चे सूत की मोटी बत्ती जो सिंदूरी रंग में रंगी हो, को जलाएं। बजरंग बाण के पाठ और अनुष्ठान पूर्ण होने तक यह दीपक प्रज्जवलित रखें। - श्री हनुमान को गुग्गल की धूप में लगाएं। - इसके बाद श्री राम और श्री हनुमान का ध्यान कर श्री हनुमान की मूर्ति पर ध्यान लगाकर स्थिर मन से बजरंग बाण का जाप शुरु करें। जाप करते समय अशुद्ध उच्चारण से बचें। - पूरे बजरंग बाण का पाठ की एक माला जप करें। एक माला संभव न होने पर 11, 21, 31 इसी तरह की संख्या में जप भी कर सकते हैं। - जप पूरे होने पर गुग्गल धूप, दीप, नैवेद्य अर्पण करें। नैवेद्य में विशेष रुप से गुड़, चने या गुड़ और आटे का मीठा चूरमा, लाल अनार या मौसमी फलों का भोग लगाएं।इस तरह बजरंग बाण का ऐसा पाठ तन, मन और धन से जुड़े सभी कलह और संताप दूर करता है।
आज शनि के लिए यह प्रयोग करें-
-मेष और वृश्चिक राशि वाले बजरंग बाण का पाठ करें।- लाल वस्त्र पहन कर हनुमान चालिसा का पाठ करें।- हनुमान मन्दिर में तेल का दीपक जलाएं।- हनुमान जी को लाल पूष्प अर्पित करें।- किसी जरूरतमंद को काला कंबल दान करें।- गुड़ चने की प्रसाद चढ़ाएं।- हनुमान जी को केवड़े का इत्र लगाएं।

Thursday, February 10, 2011

माँ दुर्गा का रोग नाशक मंत्र

मनुष्य कई बार बीमारियों से ग्रसित होता है। कुछ बीमारियां हैं लंबे समय तक परेशान करती हैं। कुछ बीमारियां ऐसी भी होती हैं जो इंसान को आर्थिक व मनोवैज्ञानिक तरीके से काफी नुकसान पहुंचाती हैं। उपचार के बाद भी यह बीमारियां ठीक नहीं होती। ऐसे समय में मंत्र शक्ति के माध्यम से इन रोगों को ठीक किया जा सकता है। दुर्गा सप्तशती में ऐसे अनेक मंत्रों का वर्णन है जो हमारी समस्याओं के निदान के लिए उपयोगी है। इन मंत्रों के जप से हमारे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है, जो रोग का समूल नाश कर देता है। नीचे ऐसा ही एक मंत्र लिखा है जो रोग नाश के लिए अचूक माना जाता है।मंत्र:
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।

प्रात:काल जल्दी उठकर साफ वस्त्र पहनकर सबसे पहले माता दुर्गा की पूजा करें। इसके बाद एकांत में कुश के आसन पर बैठकर लाल चंदन के मोतियों की माला से इस मंत्र का जप करें। इस मंत्र की प्रतिदिन 5 माला जप करने से असाध्य रोग भी ठीक हो जाते हैं। यदि जप का समय, स्थान, आसन, तथा माला एक ही हो तो यह मंत्र शीघ्र ही सिद्ध हो जाता है।

Wednesday, February 9, 2011

वाक कौशल बुध ग्रह नियत करता है

बुधवार का दिन देव उपासना के लिए श्रेष्ठ माना गया है। यह दिन बुद्धिदाता श्री गणेश के अलावा बुध देव की उपासना का खास दिन भी होता है। बुद्धि और सफलता के लिए श्री गणेश और बुध पूजा प्रभावी होती है। ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक बुध ग्रह का अच्छा प्रभाव नौकरी या बिजनेस में भारी कामयाबी, विद्या, एकाग्रता और अच्छी याददाश्त देने के साथ अनचाहे तनावों से छुटकारा देता है। इसलिए बुधवार के दिन बुध देव की प्रसन्नता के लिए बुध पूजा करने से बुध ग्रह के सभी बुरे प्रभाव दूर हो जाते हैं और मनोवांछित फल मिलते हैं।
- सुबह स्नान कर बुधदेव की यथासंभव सोने की मूर्ति अन्यथा धातु की मूर्ति कांसे के पात्र पर स्थापित करें। - भगवान बुधदेव को दो सफेद वस्त्र अर्पित करें। बुधदेव की पंचोपचार पूजा यानि गंध, अक्षत, फूल अर्पित करें। - भोग में गुड़, दही और भात का भोग लगाएं। - धूप और अगरबत्ती, दीप जलाकर पूजा-आरती करें। - पूजा के दौरान बुध देव का बीज मंत्र -ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम: या ऊँ बुं बुधाय नम: का जप करें। - पूजा के बाद क्षमा प्रार्थना और मंगलकामना करें। - यथासंभव ब्राह्मणों को बुध देव को लगाए भोग के साथ भोजन कराएं। - इस दिन बुध देव की निमित्त कांसा, जौ, हाथीदांत, सोना, कपूर या हरा कपड़ा, घी, मूंग दाल, हरी वस्तुओं का दान करें। - बुधवार के दिन श्री गणेश की भी पूजा करें और पूजा में विशेष रूप से सिंदूर, दुर्वा, गुड़, धनिया अर्पित करें। मोदक का भोग लगाएं। यथाशक्ति ऐसे 7, 17, 21 या 45 बुधवार पर व्रत करें। व्यक्ति का वाक कौशल यानि बोलने की कला या बुद्धिमानी बुध ग्रह नियत करता है। इसलिए बुधवार को बुध पूजा और व्रत के फल से व्यक्ति बुद्धिजीवी, कलाकार, सफल कारोबारी या शिक्षक बनता है। इसलिए बुधवार को बुध के साथ श्री गणेश पूजा के शुभ योग का फायदा हर छात्र, बिजनेसमेन और कलाकार उठाएं।

Tuesday, February 8, 2011

शकुन-अपशकुन

कई प्रकार के शकुन-अपशकुन प्रचलित हैं। पशु-पक्षियों को भी शकुन-अपशकुन की मान्यताओं से जोड़ा गया है। कौए को पितरों की संज्ञा भी दी गई है। कौओं से जुड़ी शकुन-अपशकुन की कई मान्यताएं काफी प्रचलित है। इन्हीं में से कुछ मान्यताएं नीचे उल्लेखित हैं-
1- यदि किसी व्यक्ति के ऊपर कौआ आकर बैठ जाए तो उसेधन व सम्मान की हानि होती है। यदि किसी महिला के सिर पर कौआ बैठता है तो उसके पति को गंभीर संकट का सामना करना पड़ता है। 2- यदि बहुत से कौए किसी नगर या गांव में एकत्रित होकर शौर करें तो उस नगर या गांव पर भारी विपत्ति आती है। 3- किसी के भवन पर कौओं का झुण्ड आकर शौर मचाए तो भवन मालिक पर कई संकट एक साथ आ जाते हैं। 4- कौआ यदि यात्रा करने वाले व्यक्ति के सामने आकर सामान्य स्वर में कांव-कांव करें और चला जाए तो कार्य सिद्धि की सूचना देता है। 5- यदि कौआ पानी से भरे घड़े पर बैठा दिखाई दे तो धन-धान्य की वृद्धि करता है। 6- कौआ मुंह में रोटी, मांस आदि का टुकड़ा लाता दिखाई दे तो उसे अभिष्ट फल की प्राप्ति होती है। 7- पेड़ पर बैठा कौआ यदि शांत स्वर में बोलता है तो स्त्री सुख मिलता है। 8- यदि उड़ता हुआ कौआ किसी के सिर पर बीट करे तो उसे रोग व संताप होता है। और यदि हड्डी का टुकड़ा गिरा दे तो उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। 9- यदि कौआ पंख फडफ़ड़ाता हुआ उग्र स्वर में बोलता है तो यह अशुभ संकेत है। 10- यदि कौआ ऊपर मुंह करके पंखों को फडफ़ड़ाता है और कर्कश स्वर में आवाज करता है तो वह मृत्यु की सूचना देता है।
घरों में आमतौर पर पाई जाने वाली छिपकली भी जीवन में होने वाली कई घटनाओं के बारे में संकेत करती है। 1- अगर छिपकली समागम करती मिले तो किसी पुराने मित्र से मिलन होता है। लड़ती दिखे तो किसी दूसरे से झगड़ा होता है और अलग होती दिखे तो किसी प्रियजन से बिछुडऩे का दु:ख होता है। 2- भोजन करते समय छिपकली का बोलना शुभ फलकारक होता है। 3- नए घर में प्रवेश करते समय गृहस्वामी को छिपकली मरी हुई व मिट्टी लगी हुई दिखाई दे तो उसमें निवास करने वाले लोग रोगी रहेंगे। 4- छिपकली किसी व्यक्ति के सिर अथवा दाहिने हाथ पर गिरे तो सम्मान तो मिलता है किंतु बाएं हाथ पर गिरती है तो धन हानि होती है। 5- यदि छिपकली किसी व्यक्ति के दाई ओर से चढ़कर बाईं ओर उतरती है तो उसे पदोन्नति और धन लाभ मिलता है। 6- यदि छिपकली पेट पर गिरती है तो अनेक प्रकार के उत्पात और छाती पर गिरती है तो सुस्वादु भोजन मिलता है। 7- घुटने पर गिरकर सुख प्राप्ति की सूचना देती है छिपकली। 8- स्त्री की बाईं बांह पर छिपकली गिरे तो सौभाग्य में वृद्धि और दाहिनी बांह पर गिरे तो सौभाग्य की हानि होती है। 9- यदि किसी के दाहिने गाल पर छिपकली गिरे तो उसे भोग-विलास की प्राप्ति होती है। बाएं गाल पर गिरे तो स्वास्थ्य में विकार उत्पन्न होते हैं। 10- यदि छिपकली नाभि पर गिरे तो पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। गुप्त अंगों पर गिरे तो रोग की संभावना व्यक्त करती है।
छींक आना एक सामान्य शारीरीक प्रक्रिया है लेकिन पुरातन समय से ही छींक को शकुन-अपशकुन से जोड़कर देखा जाता है। छींक आना कहीं शुभ माना जाता है कहीं अशुभ। छींक से जुड़ीं कुछ मान्यताएं तथा विश्वास हैं हमारे समाज में प्रचलित हैं जो प्राचीन समय से चले आ रहे हैं। अलग-अलग जाति तथा धर्म में छींक आने को लेकर कई धारणाएं मानी जाती हैं। उनमें से कुछ नीचे दी गई हैं-
1- यदि घर से निकलते समय कोई सामने से छींकता है तो कार्य में बाधा आती है। अगर एक से अधिक बार छींकता है तो कार्य सरलता से संपन्न हो जाता है। 2- किसी मेहमान के जाते समय कोई उसके बाईं ओर छींकता है तो यह अशुभ संकेत है। 3- कोई वस्तु क्रय करते समय यदि छींक आ जाए तो खरीदी गई वस्तु से लाभ होता है। 4- सोने से पूर्व और जागने के तुरंत बाद छींक की ध्वनि सुनना अशुभ माना जाता है। 5- नए मकान में प्रवेश करते समय यदि छींक सुनाई दे तो प्रवेश स्थगित कर देना ही उचित होता है। 6- व्यावसायिक कार्य आरंभ करने से पूर्व छींक आना व्यापार वृद्धि का सूचक होती है। 7- कोई मरीज यदि दवा ले रहा हो और छींक आ जाए तो वह शीघ्र ही ठीक हो जाता है। 8- भोजन से पूर्व छींक की ध्वनि सुनना अशुभ मानी जाती है। 9- यदि कोई व्यक्ति दिन के प्रथम प्रहर में पूर्व दिशा की ओर छींक की ध्वनि सुनता है तो उसे अनेक कष्ट झेलने पड़ते हैं। दूसरे प्रहर में सुनता है तो देह कष्ट, तीसरे प्रहर में सुनता है तो दूसरे के द्वारा स्वादिष्ट भोजन की प्राप्ति और चौथे प्रहर में सुनता है तो किसी मित्र से मिलना होता है। 10- धार्मिक अनुष्ठान या यज्ञादि प्रारंभ करते समय कोई छींकता है तो अनुष्ठान संपूर्ण नहीं होता है।

Monday, February 7, 2011

विश्वविजय सरस्वती कवच

सरस्वती ज्ञान, बुद्धि, कला व संगीत की देवी हैं। इनकी उपासना करने से मुर्ख व्यक्ति भी विद्वान बन सकता है। अनेक प्रकार से देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। उन्हीं में से एक है विश्वविजय सरस्वती कवच। यह बहुत ही अद्भुत है। विद्यार्थियों के लिए यह विशेष फलदाई है। धर्मशास्त्रों के अनुसार भगवती सरस्वती के इन अदुभुत विश्वविजय सरस्वती कवच को धारण करके ही महर्षि वेदव्यास, ऋष्यश्रृंग, भरद्वाज, देवल तथा जैगीषव्य आदि ऋषियों ने सिद्धि पाई थी। इस कवच को सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन में रासोत्सव के समय ब्रह्माजी से कहा था। इसके बाद ब्रह्माजी ने गंदमादन पर्वत पर भृगुमुनि को इसे बताया था।
विश्वविजय सरस्वती कवच
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श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा शिरो मे पातु सर्वत:।
श्रीं वाग्देवतायै स्वाहा भालं मे सर्वदावतु।।
ऊँ सरस्वत्यै स्वाहेति श्रोत्र पातु निरन्तरम्।
ऊँ श्रीं ह्रीं भारत्यै स्वाहा नेत्रयुग्मं सदावतु।।
ऐं ह्रीं वाग्वादिन्यै स्वाहा नासां मे सर्वतोवतु।
ह्रीं विद्याधिष्ठातृदेव्यै स्वाहा ओष्ठं सदावतु।।
ऊँ श्रीं ह्रीं ब्राह्मयै स्वाहेति दन्तपंक्ती: सदावतु।
ऐमित्येकाक्षरो मन्त्रो मम कण्ठं सदावतु।।
ऊँ श्रीं ह्रीं पातु मे ग्रीवां स्कन्धं मे श्रीं सदावतु।
श्रीं विद्याधिष्ठातृदेव्यै स्वाहा वक्ष: सदावतु।।
ऊँ ह्रीं विद्यास्वरुपायै स्वाहा मे पातु नाभिकाम्।
ऊँ ह्रीं ह्रीं वाण्यै स्वाहेति मम पृष्ठं सदावतु।।
ऊँ सर्ववर्णात्मिकायै पादयुग्मं सदावतु।
ऊँ रागधिष्ठातृदेव्यै सर्वांगं मे सदावतु।।
ऊँ सर्वकण्ठवासिन्यै स्वाहा प्राच्यां सदावतु।
ऊँ ह्रीं जिह्वाग्रवासिन्यै स्वाहाग्निदिशि रक्षतु।।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सरस्वत्यै बुधजनन्यै स्वाहा।
सततं मन्त्रराजोऽयं दक्षिणे मां सदावतु।।
ऊँ ह्रीं श्रीं त्र्यक्षरो मन्त्रो नैर्ऋत्यां मे सदावतु।
कविजिह्वाग्रवासिन्यै स्वाहा मां वारुणेऽवतु।।
ऊँ सदाम्बिकायै स्वाहा वायव्ये मां सदावतु।
ऊँ गद्यपद्यवासिन्यै स्वाहा मामुत्तरेवतु।।
ऊँ सर्वशास्त्रवासिन्यै स्वाहैशान्यां सदावतु।
ऊँ ह्रीं सर्वपूजितायै स्वाहा चोध्र्वं सदावतु।।
ऐं ह्रीं पुस्तकवासिन्यै स्वाहाधो मां सदावतु।
ऊँ ग्रन्थबीजरुपायै स्वाहा मां सर्वतोवतु।।

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Saturday, February 5, 2011

मां सरस्वती : हितकारी सुखकारी

वसंत पंचमी पर मां सरस्वती की पूजा विशेष रूप से की जाती है। मां सरस्वती को विद्या, बुद्धि, ज्ञान, संगीत और कला की देवी माना जाता है। व्यावहारिक रूप से विद्या तथा बुद्धि व्यक्तित्व विकास के लिए जरुरी है। शास्त्रों के अनुसार विद्या से विनम्रता, विनम्रता से पात्रता, पात्रता से धन और धन से सुख मिलता है। वसंत पंचमी के दिन यदि विधि-विधान से देवी सरस्वती की पूजा की जाए तो विद्या व बुद्धि के साथ सफलता भी निश्चित मिलती है। वसंत पंचमी पर मां सरस्वती की पूजा इस प्रकार करें-
सुबह स्नान कर पवित्र आचरण, वाणी के संकल्प के साथ सरस्वती की पूजा करें। पूजा में गंध, अक्षत के साथ खासतौर पर सफेद और पीले फूल, सफेद चंदन तथा सफेद वस्त्र देवी सरस्वती को चढ़ाएं। प्रसाद में खीर, दूध, दही, मक्खन, सफेद तिल के लड्डू, घी, नारियल, शक्कर व मौसमी फल चढ़ाएं। इसके बाद माता सरस्वती की इस स्तुति से बुद्धि और कामयाबी की कामना कर घी के दीप जलाकर माता सरस्वती की आरती करें -
आरती :
जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता।
सद्गुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता।। जय सरस्वती...।।
चंद्रवदनि पद्मासिनी, द्युति मंगलकारी।
सोहे शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी।। जय सरस्वती...।।
बाएँ कर में वीणा, दाएं कर माला।
शीश मुकुट मणि सोहे, गल मोतियन माला।। जय सरस्वती...।।
देवि शरण जो आए, उनका उद्धार किया।
पैठि मंथरा दासी, रावण संहार किया।। जय सरस्वती...।।
विद्या ज्ञान प्रदायिनि ज्ञान प्रकाश भरो।
मोह, अज्ञान और तिमिर का, जग से नाश करो।। जय सरस्वती...।।
धूप दीप फल मेवा, मां स्वीकार करो।
ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो।।।। जय सरस्वती...।।
मां सरस्वती जी की आरती, जो कोई नर गावे।
हितकारी सुखकारी, ज्ञान भक्ति पावे।। जय सरस्वती...।।

सफलता दिलाने वाले मंत्र

हर व्यक्ति की तमन्ना होती है कि उसकी जि़दगी सुख और सफलताओं से भरी हो। किंतु कामयाबी की डगर जितनी कठिन होती है, उतना ही पेचीदा होता है उस सफलता को कायम रखना। वैसे तो शिखर पर बने रहने के लिए जरूरी है काबिलियत, जज्बा और लगातार चलते रहने की इच्छा शक्ति। किंतु सुख के साथ दु:ख भी जीवन का हिस्सा है, जो किसी न किसी रूप में जीवन की गति को बाधित करता ही है। इसलिए हर व्यक्ति ऐसे उपाय और तरीके अपनाना चाहता है, जो सरल और एक के बाद एक कामयाबी देने में कारगर हो। हिन्दू धर्म शास्त्रों में ज़िंदगी में आने वाली अनचाही परेशानियों, कष्ट, बाधाओं और संकट को दूर करने के लिए ऐसे देवताओं की उपासना के धार्मिक उपाय बताए हैं, जो न केवल मुश्किल हालात में भरपूर मानसिक शक्ति और शांति देते है, बल्कि उनका अचूक प्रभाव हर भय चिंता से मुक्त कर सफलताओं की बुलंदियों तक ले जाता है। यहां कुछ ऐसे देवताओं के मंत्र बताए जा रहें हैं। जिनको घर, कार्यालय, सफर में मन ही मन बोलना भी संकटमोचक माना गया है। इन मंत्रों को बोलने के अलावा यथासंभव समय निकालकर साथ ही बताई जा रही पूजा सामग्री संबंधित देवता को जरूर चढ़ाएं -
शिव - पंचाक्षर मंत्र - नम: शिवाय, षडाक्षरी मंत्र ऊँ नम: शिवाय
पूजा सामग्री - जल व बिल्वपत्र।

श्री गणेश - ऊँ गं गणपतये नम:
पूजा सामग्री - दूर्वा, सिंदूर

विष्णु - ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय
पूजा सामग्री - पीले फूल या वस्त्र

महामृंत्युजय मंत्र - ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धि पुष्टिवर्द्धनम्‌।
उर्वारुकमिव बन्धानान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌।
पूजा सामग्री - दूध मिला जल, धतूरा।

श्री हनुमान - ऊँ हं हनुमते नम:
पूजा सामग्री - सिंदूर, गुड़-चना
इन मंत्रों के जप के समय सामान्य पवित्रता का ध्यान रखें। जैसे घर में हो तो देवस्थान में बैठकर, कार्यालय में हो तो पैरों से जूते-चप्पल उतारकर इन मंत्र और देवताओं का ध्यान करें। इससे आप मानसिक बल पाएंगे, जो आपकी ऊर्जा को जरूर बढ़ाने वाले साबित होंगे।

Friday, February 4, 2011

लड़की के विवाह के लिए उपाय

माघ मास की गुप्त नवरात्रि के दौरान विशेष साधना तथा पूजन से अपनी सभी मनोकामना पूरी कर सकते हैं। यदि लड़की के विवाह में अड़चनें आ रही हैं तो निम्न उपाय करने पर यह समस्या दूर हो जाएगी। (1) नवरात्रि में पडऩे वाले सोमवार को अपने आस-पास स्थित किसी शिव मंदिर में जाएं। वहां भगवान शिव एवं मां पार्वती पर जल एवं दूध चढ़ाएं और पंचोपचार (चंदन, पुष्प, धूप, दीप एवं नेवैद्य) से उनका पूजन करें। अब मौली से उन दोनों के मध्य गठबंधन करें। अब वहां बैठकर लाल चंदन की माला से निम्नलिखित मंत्र का जाप 108 बार करें-
हे गौरी शंकरार्धांगी। यथा त्वं शंकर प्रिया।
तथा मां कुरु कल्याणी, कान्त कान्तां सुदुर्लभाम्।।

इसके बाद तीन माह तक नित्य इसी मंत्र का जाप शिव मंदिर में अथवा अपने घर के पूजाकक्ष में मां पार्वती के सामने 108 बार जाप करें। घर पर भी आपको पंचोपचार पूजा करनी है। शीघ्र ही पार्वतीजी की कृपा से आपको सुयोग्य वर की प्राप्ति होगी।
(2) शीघ्र विवाह एवं विवाह में आ रही बाधाओं के निवारण के लिए प्रथम नवरात्रि से प्रारंभ करते हुए 40 दिनों तक कात्यायनी देवी की पूजा करें। इसके बाद नित्य निम्नलिखित मंत्र का 3, 5 अथवा 10 माला जाप करें-
कात्यायनि महामाये, महा योगिन्यधीश्वरि।
नन्दगोपस्तुतं देवि, पतिं मे कुरु ते नम:।।

(3) नवरात्रि में शिव-पार्वती का एक चित्र अपने पूजास्थल में रखें और उनकी पूजा-अर्चना करने के पश्चात निम्नलिखित मंत्र का 3, 5 अथवा 10 माला जाप करें। जप के पश्चात भगवान शिव से विवाह में आ रही बाधाओं को दूर करने की प्रार्थना करें-
ऊँ शं शंकराय सकल-जन्मार्जित-पाप-विध्वंसनाय,
पुरुषार्थ-चतुष्टय-लाभाय च पतिं मे देहि कुरु कुरु स्वाहा।।

यह प्रयोग 9 दिनों तक इसी प्रकार से करें। साथ ही प्रतिदिन सुबह केले के पत्ते में जल चढ़ाने के बाद उसकी 11 परिक्रमा भी करें।

अधिक धन प्राप्ति के लिए उपाय

किसी के पास कितना पैसा होगा? यह ज्योतिष शास्त्र से जाना जा सकता है। जन्म पत्रिका का दूसरा भाव धन या पैसों से संबंधित होता है। इसी दूसरे भाव से व्यक्ति को धन, आकर्षण, खजाना, सोना, मोती, चांदी, हीरे, जवाहारात आदि मिलते हैं। साथ ही इसी से व्यक्ति को स्थायी संपत्ति जैसे घर, भवन-भूमि का कारक भी प्राप्त होता है।- किसी की कुंडली में द्वितीय भाव पर शुभ ग्रह या शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो उस व्यक्ति के अमीर बनने में कोई रूकावट नहीं होती है। - यदि कुंडली में द्वितीय भाव में बुध हो तथा उस पर चंद्रमा की दृष्टि हो तो जातक धनहीन होता है वह जीवनभर मेहनत करते रहता हैं परंतु उसे ज्यादा धन की प्राप्ति नहीं होती है। वह गरीब ही रहता है।- यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में द्वितीय भाव पर किसी पाप ग्रह की दृष्टि हो तो वह धनहीन होता है।- यदि कुंडली के द्वितीय भाव में चंद्रमा हो तो अपार धन प्राप्ति का योग बनता है परंतु यदि उस पर नीच के बुध की दृष्टि पड़ जाए तो घर में भरा हुआ धन भी नष्ट हो जाता है।- चंद्रमा यदि अकेला हो तथा कोई भी ग्रह उससे द्वितीय या द्वादश न हो तो व्यक्ति गरीब ही रहता है।- यदि कुंडली में सूर्य, बुध द्वितीय भाव में स्थित हो तो धन स्थिर नहीं होता।

यह उपाय करें:- प्रतिदिन शिवलिंग पर जल, बिलपत्र और अक्षत (चावल) चढ़ाएं।- महालक्ष्मी और श्री विष्णु की पूजा करें।- सोमवार का व्रत करें।- सोमवार को अनामिका उंगली में सोने, चांदी और तांबे से बनी अंगुठी पहनें।- शाम को शिवजी के मंदिर में दीपक लगाएं।- पूर्णिमा को चंद्र का पूजन करें।- श्रीसूक्त का पाठ करें।- श्री लक्ष्मीसूक्त का पाठ करें।- कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें।- किसी की बुराई करने से बचें।- पूर्णत: धार्मिक आचरण बनाएं रखें।- घर में साफ-सफाई बनाएं रखें इससे धन स्थाई रूप से आपके घर में रहेगा।

Thursday, February 3, 2011

अकाल मृत्यु के कारण

मृत्यु एक अटल सत्य है। कोई इसे बदल नहीं सकता। कब, किसी कारण से, किस की मौत होगी, यह कोई भी नहीं कह सकता। कुछ लोगों की अल्पायु में ही किसी कारण से मौत हो जाती है। ऐसी मौत को अकाल मृत्यु कहते हैं। जातक की कुंडली के आधार पर अकाल मृत्यु के संबंध में जाना जा सकता है।
1- यदि जातक की कुंडली के लग्न में मंगल स्थित हो और उस पर सूर्य या शनि की अथवा दोनों की दृष्टि हो तो दुर्घटना में मृत्यु होने की आशंका रहती है। 2- राहु-मंगल की युति अथवा दोनों का समसप्तक होकर एक-दूसरे से दृष्ट होना भी दुर्घटना का कारण हो सकता है। 3- षष्ठ भाव का स्वामी पापग्रह से युक्त होकर षष्ठ अथवा अष्टम भाव में हो तो दुर्घटना होने का भय रहता है। 4- लग्न, द्वितीय भाव तथा बारहवें भाव में क्रूर ग्रह की स्थिति हत्या का कारण बनती है। 5- दशम भाव की नवांश राशि का स्वामी राहु अथवा केतु के साथ स्थित हो तो जातक की मृत्यु अस्वभाविक होती है। 6- लग्नेश तथा मंगल की युति छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तो जातक क शस्त्र से घाव होता है। इसी प्रकार का फल इन भावों में शनि और मंगल के होने से मिलता है। 7- यदि मंगल जन्मपत्रिका में द्वितीय भाव, सप्तम भाव अथवा अष्टम भाव में स्थित हो और उस पर सूर्य की पूर्ण दृष्टि हो तो जातक की मृत्यु आग से होती है।

कौन से क्षेत्र में करियर संवारें

युवाओं के सामने सबसे बड़ी समस्या करियर बनाने की होती है। युवाओं के सामने इतने विकल्प होते हैं कि वह यह समझ ही नहीं पाते कि कौन से क्षेत्र में अपना करियर संवारें। ऐसे में जन्मकुंडली देखकर यह जाना जा सकता है कि कौन सा क्षेत्र उसके करियर के लिए उपयुक्त है। जन्मकुंडली का नवम भाव त्रिकोण स्थान है, जिसके कारक देवगुरु बृहस्पति हैं। यह भाव शिक्षा में महत्वकांक्षा और उच्चशिक्षा को दर्शाता है।
गणित- गणित के कारक ग्रह बुध का संबंध यदि जातक के लग्न, लग्नेश अथवा लग्न नक्षत्र से होता है तो जातक गणित विषय में सफल होता है जैसे- बैंक, अकाउंट्स व सीए आदि।जीवविज्ञान- सूर्य का जलीय तत्व की राशि में स्थित होना, षष्ट और दशम भाव-भावेश के बीच संबंध, सूर्य और मंगल का संबंध आदि चिकित्सा क्षेत्र में पढ़ाई के कारक होते हैं। लग्न-लग्नेश और दशम-दशमेश का संबंध अश्विनी, मघा अथवा मूल नक्षत्र से हो तो चिकित्सा क्षेत्र में सफलता मिलती है।
कला- पंचम-पंचमेश और इस भाव के कारक गुरु का पीडि़त होना कला के क्षेत्र में पढ़ाई में बाधक होता है। इन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पढ़ाई पूरी करवाने में सक्षम होती है। वाणिज्य- कुंडली में लग्न-लग्नेश का संबंध बुध के साथ-साथ गुरु से भी हो तो जातक वाणिज्य विषय की पढ़ाई सफलतापूर्वक करता है। इंजीनियरिंग- जन्म, नवांश अथवा चंद्रलग्न से मंगल चतुर्थ स्थान में हो अथवा चतुर्थेश मंगल की राशि में स्थित हो तो जातक इंजीनियर की पढ़ाई करता है। साथ ही यदि मंगल की चतुर्थ भाव अथवा चतुर्थेश पर दृष्टि हो अथवा चतुर्थेश के साथ युति हो तो भी जातक इसी क्षेत्र में अपना करियर बनाता है।

Wednesday, February 2, 2011

बुद्धि के देवता बुध ग्रह

बुध को बुद्धि का देवता माना जाता है। यदि कुंडली में बुध ग्रह अशुभ होता है तो व्यक्ति की मानसिक स्थिति ठीक नहीं रहती। पढ़ाई, दिमाग से संबंधित कार्यों में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। बुध के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए ये उपाय करें: प्रति बुधवार बुध देवता के संबंधित विशेष अर्चना करें। रोज श्रीगणेश का पूजन करें। बुध विपक्ष में होने पर हरे रंग से दूरी बनाए रखें। अपने आसपास कोई भी हरे रंग की वस्तु ना रखे। पांच बुधवार तक पांच कन्याओं का हरे वस्त्र दान करें।
गरीबों को बुध का दान करें। उपहार आदि में बुध से संबंधित वस्तुएं ना लें। प्रति बुधवार गाय को हरी घास खिलाएं। बुध की वजह से अधिक परेशानी हो या त्वरित राहत के लिए सात मुंगे हरे कपड़े में बांध कर नदी में प्रवाहित करें। प्रति बुधवार हरि इलाइची नदी में बहाएं, इसके बाद एक इलाइची और तुलसी के पत्ते खाएं। बुधवार गरीबों को हरे मूंग का दान करें। प्रति बुधवार व्रत-उपवास करें। ज्योतिषी से सलाह लेकर बुध का रत्न पन्ना धारण करें।

जीवन पर ग्रहों का प्रभाव

हमारा नौ ग्रहों की स्थितियों के पर निर्भर करता है। कुंडली 12 भागों में विभक्त रहती है, इन 12 भागों में नौ ग्रहों की अलग-अलग स्थितियां रहती हैं। सभी ग्रहों के शुभ-अशुभ फल होते हैं। हमारी कुंडली में जो ग्रह अच्छी स्थिति में होता है वह हमें अच्छा और अशुभ स्थिति में बुरा फल देते हैं। सूर्य ग्रह हमें तेज, यश, मान-सम्मान प्रदान करता है। सूर्य शुभ होने पर हमें समाज में प्रसिद्धि मिलती है वहीं सूर्य के अशुभ होने पर अपमान जैसे विपरित प्रभाव होते हैं।

चंद्र: चंद्र का संबंध हमारा मन से बताया गया है। चंद्र अच्छी स्थिति में हो तो व्यक्ति शांत होता है लेकिन अशुभ चंद्र व्यक्ति को पागल तक बना सकता है।
मंगल: मंगल हमारे धैर्य और पराक्रम को नियंत्रित करता है। शुभ मंगल हो तो व्यक्ति कुशल प्रबंधक होता है।
बुध: बुध ग्रह हमारी बुद्धि और बोली को प्रभावित करता है। शुभ बुध होने पर हमारी बुद्धि शुद्ध और पवित्र होती है लेकिन अशुभ होने पर विपरित प्रभाव होते हैं।
गुरु: गुरु ग्रह हमारी धार्मिक भावनाओं को नियंत्रित करता है।
शुक्र: शुक्र से प्रभावित व्यक्ति कलाप्रेमी, सुंदर और ऐश्वर्य प्राप्त करने वाले होता है।
शनि: जिस व्यक्ति की कुंडली शुभ अवस्था में हो वह सभी सुखों को प्राप्त करने वाला, श्याम वर्ण, शक्तिशाली होता है। शनि अशुभ होने पर कई परेशानियां झेलनी पड़ती हैं।
राहु: जिस व्यक्ति की कुंडली राहु बलशाली होता है वह कठोर स्वभाव वाला, प्रखर बुद्धि, श्याम वर्ण होता है। इसके अशुभ होने पर बड़ी-बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
केतु: केतु शुभ हो तो व्यक्ति को कठोर स्वभाव, गरीबों का हित करने वाला, श्याम वर्ण होता है।
यह सभी प्रभाव अन्य ग्रहों की युति और कुंडली में अलग-अलग भावों से बदल भी जाते हैं।

Tuesday, February 1, 2011

कालसर्प और राहू की स्थिति

कालसर्प दोष का नाम सुनते ही मन में भय उत्पन्न हो जाता है। आमतौर पर माना जाता है कि कालसर्प दोष जीवन में बहुत दु:ख देता है और असफलता का कारण भी होता है। लेकिन कई बार कुंडली में विशेष योगों के चलते यह शुभाशुभ फल भी प्रदान करता है।राहु को कालसर्प का मुख माना गया है। यदि राहु के साथ कोई भी ग्रह उसी राशि और नक्षत्र में शामिल है, तो वह ग्रह कालसर्प योग के मुख में स्थित माना जाता है।
यदि जातक की कुंडली में सूर्य कालसर्प के मुख में स्थित है अर्थात राहु के साथ स्थित हो तथा 1, 2, 3, 10 अथवा 12 वें स्थान में हो एवं शुभ राशि और शुभ प्रभाव में हो तो प्रतिष्ठा दिलवाता है। जातक का स्वास्थ्य उत्तम रहता है। वह राजनीतिक और सामाजिक कार्यों में प्रसिद्धि प्राप्त करता है। यदि जातक की कुंडली में कालसर्प के मुख में चंद्रमा शुभ स्थिति और प्रभाव में हो तो जातक को परिपक्व और उच्च विचारधारा वाला बनाता है।यदि जातक की कुंडली में मंगल कालसर्प के मुख में स्थित हो तो इसकी शुभ एवं बली स्थिति जातक को पराक्रमी और साहसी तथा व्यवहार कुशल बनाती है। वह हमेशा कामयाब होता है।बुध यदि कालसर्प के मुख में स्थित हो तथा शुभ स्थिति और प्रभाव में हो तो ऐसे जातक को उच्च शिक्षा मिलती है तथा वह बहुत उन्नति भी करता है।राहु के साथ गुरु की युति गुरु-चांडाल योग बनाती है। ज्योतिष में इसे अशुभ माना जाता है। लेकिन अगर यह योग शुभ स्थिति और शुभ प्रभाव में हो तो जातक को अच्छी प्रगति मिलती है।कालसर्प के मुख में स्थित शुक्र शुभ स्थिति और प्रभाव में होने पर पूर्ण स्त्री सुख प्रदान करता है। दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है।
यदि कालसर्प के मुख में शनि शुभ स्थिति हो तो जातक को परिपक्व और तीक्ष्ण बुद्धि वाला होता है।

बड़े काम का गोमती चक्र

गोमती चक्र पत्थर गोमती नदी में मिलता है। विभिन्न तांत्रिक कार्यों तथा असाध्य रोगों में इसका प्रयोग होता है। इसका तांत्रिक उपयोग बहुत ही सरल होता है। किसी भी प्रकार की समस्या के निदान के लिए यह बहुत ही कारगर उपाय है।
1- यदि घर में भूत-प्रेतों का उपद्रव हो तो दो गोमती चक्र लेकर घर के मुखिया के ऊपर घुमाकर आग में डाल दें तो घर से भूत-प्रेत का उपद्रव समाप्त हो जाता है।
2- यदि घर में बीमारी हो या किसी का रोग शांत नहीं हो रहा हो तो एक गोमती चक्र लेकर उसे चांदी में पिरोकर रोगी के पलंग के पाये पर बांध दें। उसी दिन से रोगी को आराम मिलने लगता है।
3- प्रमोशन नहीं हो रहा हो तो एक गोमती चक्र लेकर शिव मंदिर में शिवलिंग पर चढ़ा दें और सच्चे ह्रदय से प्रार्थना करें। निश्चय ही प्रमोशन के रास्ते खुल जाएंगे।
4- व्यापार वृद्धि के लिए दो गोमती चक्र लेकर उसे बांधकर ऊपर चौखट पर लटका दें और ग्राहक उसके नीचे से निकले तो निश्चय ही व्यापार में वृद्धि होती है।
5- यदि इस गोमती चक्र को लाल सिंदूर के डिब्बी में घर में रखें तो घर में सुख-शांति बनी रहती है।