Friday, December 31, 2010

तो जल्दी ही स्वस्थ्य हो जाएंगे

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रहों की शुभ अशुभ स्थिति के कारण ही कोई बीमारी होती है यदि आप अपनी राशि के अनुसार कोई उपचार या उपाय करें तो जल्दी ही स्वस्थ्य हो जाएंगे। इन उपायों में अपने राशि स्वामी के अनुसार दान और पूजा कर सकते हैं।
मेष राशि- आपकी राशि का स्वामी मंगल है इसलिए आप अपने राशि स्वामी मंगल के उपाय करें तों बड़ी बीमारीयों से बच जाऐंगे। यदि आप मसूर की दाल लाल कपड़े में रख कर दान दें तो आपको लाभ होगा।
वृषभ राशि- सफेद गाय को घास खिलाएं और शुक्र्र देव से संबंधित दान करें।
मिथुन राशि- 10 वर्ष से कम उम्र की कन्या को भोजन कराएं और भेंट दें तो आपकी बीमारीयां खत्म हो जाएगी।
कर्क राशि- अपनी राशि के अनुसार आप चिंटीयों को आटा डालें तो बीमारीयों से बच जाएंगे।
सिंह राशि- रोज सुबह सूर्योदय के साथ सूर्य को तांबे के बर्तन से जल चढ़ाए। सावधानी रखें की जल चढ़ाते समय चढ़ा हुआ जल किसी बर्तन में इकट्ठा कर के उस जल से किसी पौधें को सींच दें।
कन्या राशि- राशि स्वामी बुध के अनुसार आप किन्नरों को हरी चूड़ियाँ दान दें।
तुला राशि- आपको अपनी राशि के अनुसार गाय का घी, दही और रूई किसी मंदिर में दान दें।
वृश्चिक राशि- बीमारीयों से नीजात पाने के लिए आप गाय को गुड़ खिलाएं।
धनु राशि- पीली गाय की सेवा करने से आपके सारे रोग दूर हो जाएंगे।
मकर राशि- आपकी राशि शनि की राशि होने के कारण आप काले कुत्ते को रोटी दें।
कुम्भ राशि- किसी गरीब को काला कंबल दान दे तो आप नीरोगी रहेंगे।
मीन राशि- पीपल के पेड़ में जल सींचने से आपको कोई रोग परेशान नही करेगा।

शुक्र गायत्री मंत्र का जप

सरल शब्दों में कहें तो इस मंत्र का जप व्यक्ति को तन, मन से जोशीला और जवां बनाए रखता है। जिससे हर कोई भौतिक सुखों को प्राप्त करने में सक्षम बन सकता है।
असल में ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक शुक्र का शुभ प्रभाव ही सांसारिक सुखों को नियत करता है। जैसे घर, वाहन, सुविधा। यह सहूलियत ही किसी भी व्यक्ति को मनचाहे लक्ष्य पाने में मदद करती है। वह उमंग और उत्साह से भरा होता है। इसी तरह शुक्र ग्रह यौन अंगों, रज और वीर्य का कारक भी है। जिससे वह किसी व्यक्ति में सुंदरता और शारीरिक सुख की ओर खिंचाव पैदा करता है। धर्म की भाषा में कहें तो शुक्र का शुभ होना चार पुरुषार्थ में एक काम को पाने में अहम भूमिका निभाता है। यही कारण है कि कुण्डली में शुक्र के बली होने से व्यक्ति यौन सुख पाता है। वहीं कमजोर होने पर रज और वीर्य विकार से व्यक्ति का चेहरा तेजहीन और शरीर दुर्बल हो जाता है। शुक्रवार के दिन शुक्र ग्रह को शुभ और बली बनाने के लिए इस शुक्र मंत्र के जप का विधान बताया गया है -
- शुक्रवार के दिन किसी नवग्रह मंदिर या घर के देवालय में यथासंभव शुक्रदेव की सोने से बनी मूर्ति या लिंग रूप प्रतिमा की यथाविधि पूजा करें। - पूजा में दो सफेद वस्त्र, सफेद फूल, गंध और अक्षत चढ़ाएं। - पूजा के बाद शुक्रदेव को खीर या घी से बने सफेद पकवान का भोग लगाएं। - पूजा के बाद इस शुक्र गायत्री मंत्र का यथाशक्ति जप कर अंत में अगरबत्ती या घी के दीप जलाकर आरती करें। कम से कम 108 बार इस मंत्र का जप करना श्रेष्ठ होता है
- ऊँ भृगुवंशजाताय विद्यमहे।
श्वेतवाहनाय धीमहि।
तन्न: कवि: प्रचोदयात॥
इस मंत्र से शुक्र ग्रह का देव रूप स्मरण शारीरिक, मानसिक रुप से जोश, उमंग बनाए रख तमाम सुखों को देने वाला होता है।

Thursday, December 30, 2010

बुध ग्रह बुद्धिमत्ता और वाकपटुता का निर्धारक

सनातन धर्म की खासियत है कि वह इंसान का धर्म के माध्यम से प्रकृति के साथ गहरा संबंध बनाती है। इसी परंपरा में ब्रह्मांड में स्थित सभी ग्रह, नक्षत्रों को ईश्वर मानकर उनकी पूजा और उपासना के विधान शास्त्रों में बताए गए। इन उपायों से इंसान को सुखों की कामना पूर्ति के साथ पीड़ाओं और कष्टों से मुक्ति की राह भी मिली।
इसी कड़ी में बुधवार के दिन बुध ग्रह की देव रुप में उपासना का महत्व है। पौराणिक और ज्योतिष विज्ञान में बुध का महत्व बताया गया है। पुराणों में बुध ग्रह, चंद्र देव और तारा की संतान है। लिंग पुराण के अनुसार बुध चंद्रमा और रोहिणी की संतान माने जाते हैं। जबकि विष्णु पुराण बुध चंद्रमा और बृहस्पति की पत्नी तारा की संतान है। बुध देव चार भुजाओं वाले हैं और उनका वाहन सिंह है।ज्योतिष विज्ञान के अनुसार बुध ग्रह बुद्धिमत्ता और वाकपटुता का निर्धारक है। बुध के शुभ प्रभाव से किसी भी व्यक्ति को विद्वान, शिक्षक, कलाकार और सफल व्यवसायी बना सकता है।कड़ी प्रतियोगिता के दौर में आज का युवाओं के लिए भी मजबूत मानसिक क्षमताओं का होना बहुत जरूरी है। क्योंकि अच्छे कॅरियर बनाने के लिए शिक्षा व ज्ञान बहुत अहम है। अगर आप भी तेज दिमाग, मानसिक शक्ति, एकाग्रता चाहें तो बुधवार के दिन बुध देव की प्रसन्नता के यह मंत्र जप जरूर करें -
- सुबह स्नान कर किसी नवग्रह मंदिर या घर के देवालय में बुधदेव की मूर्ति की पंचोपचार पूजा करें। - पूजा में खासतौर पर हरी पूजा सामग्री भी चढ़ाएं। गंध, अक्षत, फूल के अलावा हरे वस्त्र अर्पित करें। गुड़, दही और भात का भोग लगाएं।- धूप और अगरबत्ती, दीप जलाकर पूजा-आरती करें।- पूजा या आरती के बाद बुध देव का बीज मंत्र ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम: या ऊँ बुं बुधाय नम: का यथाशक्ति मंत्र जप करें। - कम से कम 108 बार मंत्र जप अवश्य करें।

बिजनेस में निश्चित सफलता प्राप्त करें

कारोबार में असफलता का सामना करना पड़ रहा है? कर्ज में डूब रहे हैं। बिजनेस में सिर्फ नुकसान हो रहा हो तो। आप हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं पर कोई फायदा नहीं हो रहा हो तो नीचे लिखे टोटकों को अपनाकर आप बिजनेस में निश्चित सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
- कार्यस्थल पर अधिक से अधिक पीले रंग का प्रयोग करें। पूजाघर में हल्दी की माला लटकाएं। भगवान लक्ष्मी नारायण के मंदिर में लड्डुओं का भोग लगाएं।- शनिवार के दिन रक्तगुंजा के इक्कीस दाने बांधकर तिजोरी में रख दें। हर रोज दीप अवश्य लगाएं।- महीने के प्रथम गुरूवार से इस प्रयोग को शुरू करें नियमित रूप से186 दिन तक इस प्रयोग को करें। रोज पीपल या बरगद के नीचे चौ मुखी दीपक लगाएं। एक पाठ विष्णुसहस्त्रनाम रोज करें।- हर शाम गोधुली बेला में लक्ष्मी जी की तस्वीर के समक्ष गाय के घी का दीपक लगाएं। दीपक जलाने के बाद उसके अंदर अपने इष्ट देव का ध्यान करके एक इलायची डाल दें। इस प्रयोग को नियमित रूप से 186 दिन तक दोहराएं।- मिट्टी के पांच पात्र लेकर उसमें हर पात्र में सवा किलो जौ, सवा किलो उड़द, सवा किलो साबुत मुंग, सवा किलो सफेद तिल, सवा किलो पीली सरसों इन सभी को पांच पात्रों में भरकर पात्र के मुंह को लाल कपड़े से बांध दे। व्यवसायिक स्थल पर इन पांचों कलश को रख दें। एक साल बाद इन सभी पात्रों को अपने ऊपर से उतारकर नदी में प्रवाहित करें।

Sunday, December 26, 2010

इष्टसिद्धि में गायत्री मंत्र

इष्टसिद्धि से शक्ति, कामयाबी और इच्छापूर्ति का महत्व बताया गया है। इष्टसिद्धि को सरल शब्दों में समझना चाहें तो इसका मतलब होता है कि व्यक्ति जिस देव शक्ति के लिए श्रद्धा और आस्था मन में बना लेता है, तब उसी के मुताबिक उस देवता से जुड़ी सभी शक्तियां, प्रभाव और वस्तुएं संबंधित को मिलने लगती है। साथ ही वह देव उपासना का वास्तविक लाभ पाता है। इष्टसिद्धि की कड़ी में गायत्री का ध्यान भी बहुत अहम माना जाता है। खासतौर पर तंत्र शास्त्रों में गायत्री साधना में गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों से 24 देव शक्तियों को पाने का फल बताया गया है।
असल में गायत्री मंत्र के हर अक्षर का एक देवता है यानि हर अक्षर देव शक्ति बीज है। इस तरह गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों में 24 देव शक्तियों का आवाहन हो जाता है। इष्टसिद्धि के नजरिए से मात्र एक मंत्र से ही 24 देवताओं का इष्ट और उनसे जुड़ी शक्ति प्राप्त होना बहुत महत्व रखती है। ऐसी इष्टसिद्धि से जिंदगी में किसी भी तरह की भय, परेशानी, बाधा या संकटों का सामना नहीं करना पड़ता।
जानते हैं ऐसे महाशक्तिशाली मंत्र के 24 अक्षरों के 24 देवताओं के नाम -
- श्री गणेश - नृसिंह- विष्णु- शिव -कृष्ण - राधा- लक्ष्मी- अग्रि- इन्द्र - सरस्वती- दुर्गा- हनुमान -पृथ्वी- सूर्य - राम - सीता - चन्द्रमा - यम - ब्रह्मा- वरुण- नारायण- हयग्रीव - हंस- तुलसी
धार्मिक दृष्टि से देव शक्तियां जाग्रत होती है। इसलिए इष्ट रूप में गायत्री और गायत्री मंत्र के स्मरण से ही इन 24 देवताओं के अधीन शक्तियां और पदार्थ भी उपासक को प्राप्त होते हैं। जिससे वह सांसारिक और भौतिक शक्तियों से पूर्ण हो जाता है।

Wednesday, December 22, 2010

केन्द्र स्थान जीवन पर बहुत प्रभाव डालते है

जन्मकुंडली में चार केंद्र स्थान होते हैं। कुंडली में केन्द्र स्थान किसी भी व्यक्ति के जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव डालते है . कुंडली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम एवं दशम भाव को केन्द्र भाव माना गया है। पहले भाव को स्वयं के तन का, चौथे भाव को सुख का, सप्तम भाव को वैवाहिक जीवन का और दसवें भाव को कुंडली में कर्मभाव माना गया है।यदि इन चारों भाव में कोई शुभ ग्रह हो तो जातक धनवान होता है। वहीं केंद्र में उच्च के पाप ग्रह बैठे हो तो जातक राजा तो होता ही है पर वह धन से हीन होता है।
- बुध के केंद्र में होने से अध्यापक तथा गुरु के केंद्र में होने से विज्ञानी।
- शुक्र के केंद्र में होने पर धनवान तथा विद्यावान होता है।
- शनि के केंद्र में होने से नीच जनों की सेवा करने वाला होता है।
- यदि केन्द्र में उच्च का सूर्य यदि उच्च हो तथा गुरु केंद्र में चतुर्थ स्थान पर बैठा हो तो जातक आधुनिक केंद्र या राज्य में मंत्री पद को प्राप्त करता है।
- सूर्य के केंद्र में होने से जातक राजा का सेवक, चंद्रमा केंद्र में हो तो व्यापारी, मंगल केंद्र में हो तो व्यक्ति सेना में कार्य करता है।
अगर केन्द्र में कोई ग्रह ना बैठे हों तो ऐसी कुंडली को शुभ नहीं माना जाता है। ऐसा व्यक्ति जीवन में कर्ज से हमेशा परेशान रहता है। इसके लिए नीचे लिखे उपाय करना जातक के लिए फायदेमंद रहता है।
- शिवजी की उपासना करें।- सोमवार का व्रत करें।
- भगवान शिव पर चांदी का नाग अर्पण करें।
- बिल्व पत्रों से 108 आहूतियां दें।

Sunday, December 19, 2010

श्री हनुमान के एक चमत्कारिक रूप

पंचमुखी हनुमान के स्वरुप
श्री हनुमान रूद्र के अवतार माने जाते हैं। आशुतोष यानि भगवान शिव का अवतार होने से उनके समान ही श्री हनुमान थोड़ी ही भक्ति से जल्दी ही हर कलह, दु:ख व पीड़ा को दूर कर मनोवांछित फल देने वाले माने जाते हैं। श्री हनुमान चरित्र गुण, शील, शक्ति, बुद्धि कर्म, समर्पण, भक्ति, निष्ठा, कर्तव्य जैसे आदर्शों से भरा है। इन गुणों के कारण ही भक्तों के ह्रदय में उनके प्रति गहरी धार्मिक आस्था जुड़ी है, जो श्री हनुमान को सबसे अधिक लोकप्रिय देवता बनाती है।
श्री हनुमान के अनेक रूपों में साधना की जाती है। लोक परंपराओं में बाल हनुमान, भक्त हनुमान, वीर हनुमान, दास हनुमान, योगी हनुमान आदि प्रसिद्ध है। किंतु शास्त्रों में श्री हनुमान के एक चमत्कारिक रूप और चरित्र के बारे में लिखा गया है। वह है पंचमुखी हनुमान।
धर्मग्रंथों में अनेक देवी-देवता एक से अधिक मुख वाले बताए गए हैं। किंतु पांच मुख वाले हनुमान की भक्ति न केवल लौकिक मान्यताओं में बल्कि धार्मिक और तंत्र शास्त्रों में भी बहुत ही चमत्कारिक फलदायी मानी गई है। जानते हैं पंचमुखी हनुमान के स्वरुप और उनसे मिलने वाले शुभ फलों को -
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार पांच मुंह वाले दैत्य ने तप कर ब्रह्मदेव से यह वर पा लिया कि उसे अपने जैसे ही रूप वाले से मृत्यु प्राप्त हो। उसने जगत को भयंकर पीड़ा पहुंचाना शुरु किया। तब देवताओं की विनती पर श्री हनुमान से पांच मुखों वाले रूप में अवतार लेकर उस दैत्य का अंत कर दिया।
श्री हनुमान के पांच मुख पांच दिशाओं में हैं। हर रूप एक मुख वाला, त्रिनेत्रधारी यानि तीन आंखों और दो भुजाओं वाला है। यह पांच मुख नरसिंह, गरुड, अश्व, वानर और वराह रूप है।
पंचमुखी हनुमान का पूर्व दिशा में वानर मुख है, जो बहुत तेजस्वी है। जिसकी उपासना से विरोधी या दुश्मनों को हार मिलती है।
पंचमुखी हनुमान का पश्चिमी मुख गरूड का है, जिसके दर्शन और भक्ति संकट और बाधाओं का नाश करती है।
पंचमुखी हनुमान का उत्तर दिशा का मुख वराह रूप होता है, जिसकी सेवा-साधना अपार धन, दौलत, ऐश्वर्य, यश, लंबी आयु, स्वास्थ्य देती है।
पंचमुखी हनुमान का दक्षिण दिशा का मुख भगवान नृसिंह का है। इस रूप की भक्ति से जिंदग़ी से हर चिंता, परेशानी और डर दूर हो जाता है। पंचमुखी हनुमान का पांचवा मुख आकाश की ओर दृष्टि वाला होता है। यह रूप अश्व यानि घोड़े के समान होता है। श्री हनुमान का यह करुणामय रूप होता है, जो हर मुसीबत में रक्षा करने वाला माना जाता है।
पंचमुख हनुमान की साधना से जाने-अनजाने हुए सभी बुरे कर्म और विचारों के दोषों से छुटकारा मिलता है। वही धार्मिक रूप से ब्रह्मा, विष्णु और महेश त्रिदेवों की कृपा भी प्राप्त होती है। इस तरह श्री हनुमान का यह अद्भुत रूप शारीरिक, मानसिक, वैचारिक और आध्यात्मिक आनंद और सुख देने वाला माना गया है।

श्री हनुमान बल, बुद्धि और ज्ञान देने वाले देवता माने जाते हैं। श्री हनुमान की भक्ति और दर्शन कर्तव्य, समर्पण, ईश्वरीय प्रेम, स्नेह, परोपकार, वफादारी और पुरुषार्थ के लिए प्रेरित करते हैं। उनके विराट और पावन चरित्र के कारण ही उन्हें शास्त्रों में सकलगुणनिधान शब्द से पुकारा गया है।गोस्वामी तुलसीदास ने अपनी रचना हनुमान चालीसा में श्री हनुमान को माता सीता की कृपा से आठ सिद्धियों और नवनिधि प्राप्त करने और उसको भक्तों को देने का बल प्राप्त होने के बारे में लिखा है। यही कारण है कि हनुमान की भक्ति भक्त की सभी बुराईयों और दोषों को दूर कर गुण और बल देने वाली मानी गई है।
जहां गुण और गुणी व्यक्ति होते हैं, वहां संकट भी दूर रहते हैं। ऐसा व्यक्ति व्यावहारिक रूप से हनुमान की तरह ही संकटमोचक माना जाता है। इसलिए जानते हैं कि आखिर माता सीता की कृपा से श्री हनुमान ने किन नौ निधि को पाया, जो हनुमान उपासना से भक्तों को भी मिलती है। यह निधियाँ वास्तव में शक्तियों का ही रूप है।
पद्म निधि- इससे परिवार में सुख-समृद्धि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को प्राप्त होती रहती है।
महापद्म निधि - इसके असर से खुशहाली सात पीढियो तक बनी रहती है।
नील निधि - यह सफल कारोबार बनाती है।
मुकुंद निधि - यह भौतिक सुखों को देती है।
नन्द निधि- इसके प्रभाव से लम्बी उम्र और कामयाबी मिलती है।
मकर निधि -यह निधि शस्त्र और युद्धकला में दक्ष बनाती है।
कच्छप निधि-इस निधि के प्रभाव से दौलत और संपत्ति बनी रहती है।
शंख निधि - इससे व्यक्ति अपार धनलाभ पाता है।
खर्व निधि -इससे व्यक्ति को विरोधियों और कठिन समय पर विजय पाने की ताकत और दक्षता मिलती है।
श्री हनुमान शिव के अवतार माने गए हैं। शास्त्रों के मुताबिक श्री हनुमान सर्वगुण, सिद्धि और बल के अधिपति देवता हैं। यही कारण है कि वह संकटमोचक कहलाते हैं। हर हिन्दू धर्मावलंबी विपत्तियों से रक्षा के लिए श्री हनुमान का स्मरण और उपासना जरूर करता है।
श्री हनुमान की भक्ति और प्रसन्नता के लिए सबसे लोकप्रिय स्तुति गोस्वामी तुलसीदास द्वारा बनाई गई श्री हनुमान चालीसा है। इसी चालीसा में एक चौपाई आती है। जिसमें श्री हनुमान को आठ सिद्धियों को स्वामी बताया गया है।
यह चौपाई है -
अष्टसिद्धि नव निधि के दाता।
अस बर दीन्ह जानकी माता।।
अक्सर हर हनुमान भक्त चालीसा पाठ के समय इस चौपाई का भी आस्था से पाठ करता है। लेकिन इसमें बताई गई अष्टसिद्धियों के बारे में बहुत कम ही श्रद्धालु जानकारी रखते हैं। इस चौपाई के अनुसार यह अष्टसिद्धि माता सीता के आशीर्वाद से श्री हनुमान को प्राप्त हुई और साथ ही उनको इन सिद्धियों को अपने भक्तों को देने का भी बल प्राप्त हुआ। जानते हैं इन आठ सिद्धियों के नाम और सरल अर्थ -
अणिमा - इससे बहुत ही छोटा रूप बनाया जा सकता है।
लघिमा - इस सिद्धि से छोटा और हल्का बना जा सकता है।
महिमा - बड़ा रूप लेकर कठिन और दुष्कर कार्यों को आसानी से पूरा करने की सिद्धि।
गरिमा - शरीर का वजन बढ़ा लेने की सिद्धि। अध्यात्म की भाषा में अहंकारमुक्त होने का बल।
प्राप्ति - इच्छाशक्ति से मनोवांछित फल प्राप्त करने की सिद्धि।
प्राकाम्य - कामनाओं की पूर्ति और लक्ष्य पाने की दक्षता।
वशित्व - वश में करने की सिद्धि।
ईशित्व - ईष्टसिद्धि और ऐश्वर्य सिद्धि।

Saturday, December 18, 2010

परेशानियों से बचाता है गोमती चक्र

गोमती चक्र सीप जैसे होते हैं। ये भी सीप के समान समुद्र में मिलती है। इनके आधार पर गोल घुमावदार आकृति बनी होती हैं ,यदि आपके घर में एक के बाद एक परेशानियां आ रही हो। व्यक्ति एक के बाद एक नई समस्याओं में उलझता जा रहा हो उसकी परेशानियों के निवारण के लिए है। गोमती चक्र हो किसी भी अमावस्या की रात्रि में या ग्रहण कल में सिद्ध करना चाहिए। एक बार सिद्ध होने पर गोमती चक्र तिन वर्षों तक प्रभावशाली रहता है।
- यदि घर में भूत-प्रेतों का उपद्रव हो तो दो गोमती चक्र लेकर घर के मुखिया के ऊपर घुमाकर आग में डाल दें तो घर से भूत -प्रेत का उपद्रव समाप्त हो जाता है।-घर में बीमारी हो या किसी का रोग शांत नहीं हो रहा हो तो एक गोमती चक्र लेकर उसे चांदी हो तो एक गोमती चक्र लेकरउसे चांदी में पिरोकर रोगी के पलंग के पायै पर बांध दें तो उसी दिन से रोगी का रोग समाप्त होने लगती है।- प्रमोशन नहीं हो रहा हो तो एक गोमती चक लेकर शिव मंदिर में शिवलिंग पर चढ़ा दें।- यदि गोमती चक्र को लाल सिंदूर की डिब्बी में घर में रखें तो घर में सुख शांति बनी रहती है।- पति-पत्नी मे मतभेद हो तो तीन गोमती चक्र लेकर उसे घर के दक्षिण दिशा में दोनों पर से घुमाकर फेंक दें।- यदि बार - बार गर्भ गिर रहा हो तो दो गोमती चक्र लाल कपड़े में बांधकर कमर में बांध दें तो गर्भ गिरना बंद हो जाता है।- कचहरी जाते समय घर के बाहर गोमती चक्र रखकर उस पर दाहिना पांव रखकर जावे तो उस दिन कोर्ट कचहरी में सफलता प्राप्त करता है।

Friday, December 17, 2010

राहु शुभ या अशुभ

किसी भी ग्रह के शुभ या अशुभ होने का निर्धारण कुंडली देखकर ही किया जाता है। राहु और केतु जिन्हे पाप ग्रह माना गया है। यदि वे कुंडली में दोष में हो तो जिन्दगी में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। राहु का शुभ या अशुभ होने का निर्धारण जन्मपत्रिका के आधार पर किया जाता है, लेकिन जिनकी जन्मपत्रिका ही नहीं बनी होती है। यदि बनी हुई भी है तो कभी किसी ज्योतिष को दिखाई नहीं है।ऐसी स्थिति में नीचे बताए गए लक्षणों को देखकर यह जानना चाहिए कि राहु अशुभ है या नहीं।
- यदि मानसिक स्थिति अच्छी नहीं है मानसिक भय हमेशा महसूस होता हो।- सांप, बिच्छु आदि जहरीले जानवर बार-बार काटते हों या इनके कारण कई बार खतरे में पड़ चुके हों।- बिना किसी बीमारी के हाथों के नाखून खराब हो जाएं या झड़ जाएं।- अचानक ऐसा लगे कि खराब समय आ गया है और एक के बाद एक कई सारी परेशानियां आपके सामने आ जाएं। जातक का भूरे रंग का कुत्ता खो जाए या मर जाए।- ऊंचाई वाले स्थान से आपको डर लगता हो या आप ऊंचे स्थान से एक दो बार गिर चुके हों।- बुखार अधिक होता हो और लम्बे समय तक चलता हो।-विवाह के पश्चात ससुराल में धनहानि हो या ससुराल से कोई आर्थिक लाभ नहीं हो।- हाथ पैरों में अक्सर सुजन रहती हो।
जन्म कुंडली राहु-केतु को छाया ग्रह माना जाता है परंतु फिर भी यह दोनों ग्रह व्यक्ति की जीवन दिशा बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। राहु की महादशा में गरीब भी किसी राजा के समान सुख प्राप्त करने लगता है और राहु विपरित होने पर रातोरात एक राजा भी रोड पर आ जाता है। यदि आपकी कुंडली में राहु अशुभ है और इसकी वजह से आपके सारे काम बिगड़ जाते हैं तो यह उपाय करें:
- प्रति सोमवार भगवान शिव का जलाभिषेक या रुद्राभिषेक अवश्य करें।- लोहे के बर्तन में खाना खाएं।- गरीबों को कंबल, खाना, अनाज आदि उनके जरूरत की वस्तुएं दान करें।- राहु से संबंधी वस्तुएं दान में स्वीकार ना करें।- सोमवार या शनिवार का उपवास रखें।- शिवलिंग की नित्य नियम से पूजा करें, बिल्व पत्र, धतुरा आदि शिव को प्रिय वस्तुएं अर्पित करें।- राहु को काला रंग अतिप्रिय है, काले रंग से वह और अधिक सक्रीय हो जाता है। अत: अपने आसपास से काले रंग को पूर्णतया दूर कर दें।- मछलियों को आटे की छोटी-छोटी गोलियां बनाकर खिलाएं।- अपने विश्वासपात्र ज्योतिषी से परामर्श लें।

Wednesday, December 15, 2010

शिव के पांचवे अवतार भैरव

भगवान शिव के पांचवे अवतार भैरव माने गए हैं। शिव पुराण के अनुसार अष्टमी तिथि को भगवान शिव ने भैरव रुप में अवतार लिया। भैरव चरित्र पराक्रम और साहस का प्रतीक है। धार्मिक मान्यताओं में भैरव को काशी का कोतवाल यानि रक्षा करने वाले देवता कहा गया है। इस तरह भैरव की उपासना से जीवन में शत्रु, चिंता, कष्ट, परेशानियों से जुड़े हर भय का दमन हो जाता है। इसके साथ ही भैरव पूजा धन, संतान और निरोगी शरीर देकर व्यक्ति और कुटुंब को खुशहाल और कलह मुक्त करती है। यही कारण है कि लोक जीवन में भैरव अनेक रुप और नामों से पूजनीय है।
भगवान शिव तंत्र के देवता है। उनका ही अवतार होने से भैरव की भी तंत्र साधना बहुत असरदार मानी गई है। वहीं ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक भैरव साधना से मंगल दोष से होने वाली खून की बीमारियों या घटनाओं से रक्षा होती है।
यही कारण है कि मंगलवार और अष्टमी तिथि के शुभ योग में भैरव पूजा अति शुभ फल देने वाली मानी गई है। गृहस्थ जीवन के लिए रुद्रावतार भैरव के सात्विक रूप की उपासना का महत्व बताया गया है। इसलिए इस दिन भैरव की सामान्य पूजा के साथ नीचे लिखे भैरव मंत्र को भय और कष्ट दूर करने लिए अकाट्य मंत्र माना गया है -

- मंगलवार या अष्टमी के दिन दोपहर या शाम को पवित्र होकर भैरव की प्रतिमा की सामान्य पंचोपचार पूजा करें। जिसमें सिंदूर, कुंकूम, अक्षत, लाल फूल, गुड़-चने का भोग लगाकर पूजा करें। - पूजा के बाद भैरव गायत्री के प्रभावी मंत्र का जप करें। कम से कम एक माला कुश या ऊन के आसन पर बैठकर करें। मंत्र है -
ऊँ शिवगणाय विद्महे।
गौरीसुताय धीमहि।
तन्नो भैरव प्रचोदयात।
- यह मंत्र भी संभव न हो तो मन ही मन ऊँ भैरवाय नम: मंत्र का जप मंगलवार और अष्टमी पर भय व विघ्रनाशक माना जाता है।- जप के बाद गुग्गल धूप और घी का दीप जलाकर भैरव आरती करें।

Saturday, December 11, 2010

शुक्र देव को प्रसन्न करें

ज्योतिष में शुक्र को स्त्री ग्रह माना गया है। शुक्र ग्रह से प्रभावित व्यक्ति सौम्य एवं अत्यंत सुंदर होते है। यदि किसी की कुंडली में शुक्र शुभ प्रभाव देता है तो वह जातक आकर्षक, सुंदर और मनमोहक होता है। शुक्र के विशेष प्रभाव से वह जीवनभर सुखी रहता है।
शुक्र को पति-पत्नि, प्रेम संबंध, ऐश्वर्य, आनंद आदि का भी कारक ग्रह माना गया है। यदि आपकी कुंडली में शुक्र की स्थिति अच्छी है तो आपका पूरा जीवन भोग,आनंद और ऐश्वर्य के साथ बितता है। साथ ही दाम्पत्य जीवन सुख और प्रेम से भर जाता है।
शुक्र अपने प्रभाव से व्यक्ति को मकान और वाहन आदि का भी सुख देता है। यदि आप चाहते है कि आपका भी दाम्पत्य जीवन प्रेम, आंनद और सुख से बीते तो, शुक्र के शुभफल देने वाले उपाय करें...
शुक्र देव को प्रसन्न करने के उपाय-
- काली चींटियों को चीनी खिलानी चाहिए।- शुक्रवार के दिन सफेद गाय को आटा खिलाना चाहिए।- किसी काने व्यक्ति को सफेद वस्त्र एवं सफेद मिष्ठान्न का दान करना चाहिए।- 10 वर्ष से कम आयु की कन्या को भोजन कराए और चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लें।- अपने घर में सफेद पत्थर लगवाना चाहिए।- किसी कन्या के विवाह में कन्यादान का अवसर मिले तो अवश्य स्वीकारना चाहिए।- शुक्रवार के दिन गाय के दुध से स्नान करना चाहिए।- किसी मन्दिर में गाय का घी दान दें।- जरूरतमंद व्यक्ति को भोजन कराएं।
शुक्र के शुभ प्रभाव के लिए किए जा रहे उपाय शुक्रवार के दिन करे तो ज्यादा प्रभावशाली होते है या जिस दिन शुक्र का कोई नक्षत्र (भरणी, पूर्वा-फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा) आ रहा हो उस दिन करें।

Saturday, December 4, 2010

किस ग्रह के लिए कौन सी जड़?

- यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य अशुभ प्रभाव दे रहा हो और सूर्य के लिए माणिक रत्न एफोर्ड नहीं कर सकते हैं तो, विकल्प के रूप में सूर्य को बल देने के लिए बेलपत्र की जड़ लाल या गुलाबी धागे में रविवार को धारण करें।
- चंद्र के शुभ प्रभाव के लिए सोमवार को सफेद वस्त्र में खिरनी की जड़ सफेद धागे के साथ धारण करें।
- मंगल को बलवान बनाने के लिए अनंत मूल या खेर की जड़ को लाल वस्त्र के साथ लाल धागे में मंगलवार को धारण करें।
- बुधवार के दिन हरे वस्त्र के साथ विधारा (आंधीझाड़ा) की जड़ को हरे धागे में पहनने से बुध देव प्रसन्न होते है।
- गुरु को बल देने के लिए केले की जड़ गुरुवार को पीले धागे में धारण करें।
- गुलर की जड़ को सफेद वस्त्र में लपेट कर शुक्रवार को सफेद धागे के साथ गले में धारण करने से शुक्र देव प्रसन्न होते हैं।
-शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शमी पेड़ की जड़ को शनिवार के दिन नीले वस्त्र में धारण करना चाहिए।
-राहु को बल देने के लिए सफेद चंदन का टुकड़ा नीले धागे में बुधवार के दिन धारण करें।
- केतु के शुभ प्रभाव के लिए अश्वगंधा की जड़ नीले धागे में गुरुवार के दिन धारण करें।

Thursday, December 2, 2010

पुत्र प्राप्ति की कामना

रामचरित मानस का पाठ भगवान श्रीराम के साथ-साथ अनेक देव शक्तियों की उपासना और साधना है। इसलिए इसकी हर चौपाई बहुत ही शुभ और मंगलकारी मानी गई है। धार्मिक महत्व की दृष्टि से मानस की इन चौपाईयों के स्मरण और पाठ से ही अनेक व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और समस्त सांसारिक सुखों और कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। सांसारिक सुखों की बात करें तो संतान सुख अहम माना जाता है। खासतौर पर पुत्र प्राप्ति हर दंपत्ति की कामना होती है। रामचरित मानस में विशेष कामनापूर्ति के लिए भी अलग-अलग चौपाईयों के जप का महत्व है। इसी कड़ी में पुत्र प्राप्ति की कामना से इस चौपाई का यथाविधि पाठ बहुत ही प्रभावी माना गया है। जानते हैं यह चौपाई और इसके पाठ की आसान विधि -
चौपाई -
प्रेम मगन कौसल्या निसि दिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बाल चरित कर गान॥
- इस चौपाई का जप करने के लिए भगवान राम और माता सीता की मूर्ति या राम दरबार की तस्वीर सामनें रखें। - मूर्ति या तस्वीर पर गंध, अक्षत, सुगंधित फूल चढाएं। - मन ही मन पुत्र प्राप्ति की कामना का संकल्प करें। - घी का दीप और धूप या अगरबत्ती जलाकर तुलसी की माला से 108 बार इस चौपाई का जप करें। - जप के बाद फल या मिठाई का भोग लगाएं। श्रीराम की आरती श्रद्धा और विश्वास के साथ करें। - धार्मिक मान्यता है कि इस चौपाई का जप अन्य धार्मिक उपायों या मंत्र की तरह ही प्रभावी होकर मनोरथ पूर्ति करता है।- समय होने पर रामचरित मानस का पाठ भी मनोकामना पूर्ति के लिए श्रेष्ठ होता है।

Saturday, November 27, 2010

पंचक में कुछ कार्यों को करना अशुभ

जब चन्द्रमा कुंभ और मीन राशि पर रहता हैं, तब उस समय को पंचक कहते है। यानि घनिष्ठा से रेवती तक जो पांच नक्षत्र (धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उतरा भाद्रपद एवं रेवती) होते है उन्हे पंचक कहा जाता है। कुछ विद्वानों ने इन नक्षत्रों को अशुभ माना है। इन नक्षत्रों के स्वभाव के अनुसार कोई भी किया हुआ कार्य पांच बार होता है। इसलिए पंचक में कुछ कार्यों को करना अशुभ माना गया है।
नक्षत्रों का प्रभाव-
धनिष्ठा नक्षत्र में अग्नि का भय रहता है।
शतभिषा नक्षत्र में कलह होने के योग बनते है।
पूर्वाभाद्रपद रोग कारक नक्षत्र होता है।
उतराभाद्रपद में धन के रूप में दण्ड होता है।
रेवती नक्षत्र में धन हानि की संभावना होती है।
पंचक में न करने वाले पांच कार्य-
1-घनिष्ठा नक्षत्र में घास लकड़ी आदि ईंधन इकट्ठा नही करना चाहिए इससे अग्रि का भय रहता है।
2- दक्षिण दिशा में यात्रा नही करनी चाहिए क्योंकि दक्षिण दिशा, यम की दिशा मानी गई है इन नक्षत्रों में दक्षिण दिशा की यात्रा करना हानि कारक माना गया है।
3- रेवती नक्षत्र में घर की छत डालना धन हानि और क्लेश कराने वाला होता है।
4- चारपाई नही बनवाना चाहिए।
5- पंचक में शव का अन्तिम संस्कार नही करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि पंचक में शव का अन्तिम संस्कार करने से उस कुंटुंब में पांच मृत्यु और हो जाती है।
यदि परिस्थितीवश किसी व्यक्ति की मृत्यु पंचक अवधि में हो जाती है तो शव के साथ पांच अन्य पुतले आटे या कुशा से बनाकर अर्थी पर रखें और इन पांचों का भी शव की तरह पूर्ण विधि-विधान से अन्तिम संस्कार करें तो परिवार में बाद में और म़त्यु नही होती एवं पंचक दोष समाप्त हो जाता है।

कौन सा पार्टनर बिजनेस में सफलता दिलाएगा

यदि आप अपने व्यापार में कोई साझेदार रखने का मन बना रहे है तो जान लें किस लग्र या राशि का साझेदार आपको बिजनेस में सफलता दिलाएगा और किस लग्र के साझेदार से आपके बिजनेस में हानि हो सकती है?
कुंडली में स्थित लग्र यानि पहले भाव से जानें-यदि आप जिससे मित्रता का हाथ मिलाने जा रहे हैं अगर उसके लग्न में स्थित राशि आपके लग्न में स्थित राशि से दूसरी हो तो, इस स्थिति में आपको लाभ होगा लेकिन आपके साझेदार को नुकसान होगा, यानी इस रिश्ते में परस्पर मित्रता वाली बात नहीं रहेगी।
साझेदार की कुंडली मे आपकी राशि से तीसरी राशि स्थित है तो वह व्यक्ति बुरे वक्त में काम नहीं आता है यानी जब आप पर कठिन समय आएगा तो वह मदद के लिए आगे नहीं आएगा।
जिस लग्न में आपका जन्म हुआ है उस लग्न से चौथी राशि वाले से आप साझेदारी करते हैं तो सुख के समय दोनों के बीच अच्छा प्यार रहेगा लेकिन जब दु:ख का समय आएगा तो साझेदार मुंह फेर लेगा।
आपकी लग्न राशि से पांचवी राशि के लग्र वालों के बीच होने वाली साझेदारी उत्तम मानी गई है।
आपकी लग्र राशि से छठी राशि वालों से की गई साझेदारी अच्छी नहीं होती है, इस साझेदारी से व्यापार में जरूर हानि होती है।
आपका साझेदार आपकी लग्न राशि से सातवीं राशि का है तो यह दोनों के लिए शुभ है। इस स्थिति में दोनों के अच्छे सम्बन्ध रहते है। साझेदार के भाग्य से आपकी उन्नति होगी।
स्वयं की लग्र राशि से अष्टम राशि वालों की साझेदारी भी दोषपूर्ण मानी गई है।
नौवीं राशि वालों से मित्रगत सम्बन्ध लाभदायक होते है। आपको अपने साथी से सुख एवं अनुकूल सहयोग मिलता है।
दसवीं राशि वाले साथी बहुत अधिक मधुर संबंध नहीं रखते है। आप इनसे जैसा व्यवहार करेंगे यह आपसे उसी प्रकार प्रस्तुत होंगे।
आपके लग्र से एकादश राशि वाला व्यक्ति साझोदारी के लिए बहुत ही अच्छा होता इससे दोनो मित्रों को लाभ मिलता है।
जबकि लग्र से बारहवीं राशि वालों के बीच मित्रता, साझेदारी एवं सम्बन्ध रखना परेशानी और कष्टदायक होता है।

Friday, November 26, 2010

दुश्मन चाहते हुए भी आपका विरोध ना कर पाए

कभी सुख तो कभी दुख, कभी फायदा तो कभी नुकसान। जिंदगी एक जैसी कभी नहीं रहती। परिवर्तन जिंदगी का नियम है। उतार-चढ़ाव जिंदगी में आते जाते रहते हैं। कई बार हमें बिना किसी कारण के ही नुकसान और अपमान का सामना करना पड़ता है कई बार ना चाहते हुए भी कई लोग अनजाने में या किसी गलतफहमी के कारण भी हमारे दुश्मन बन जाते हैं। किसी भी दुश्मन से निपटने के लिए लड़ाई- झगड़ा करने से अच्छा है कि आपका दुश्मन चाहते हुए भी आपका विरोध ना कर पाए इसके लिए बगलामुखी साधना सबसे सरल उपाय है। इस दुर्लभ बगलामुखी साधना की संक्षिप्त विधि इस प्रकार है।आधी रात के समय दक्षिणाभिमुख होकर बैठें। साधना प्रारंभ करने से पूर्व गणपति, इष्ट देवता और गुरु को नमन स्मरण कर प्रार्थना करें। साधक पद्मासन में बैठकर मां बगलामुखी के समक्ष वस्त्र, गंध, फल, तांबूल, धूप, दीप, नैवेध समर्पित करें। इसके बाद नीचे दिए मंत्र का पूर्ण विधि-विधान से 11 माला जप करें। मंत्र:
ओम् ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानाम वाचं, मुखं करं पदं स्तंभेय जिव्हाम कीलय कीलय बुद्धिय नाशय ह्रीं ओम्।

पूर्ण नियम कायदों और शास्त्रीय तरीके से करने पर यह साधना जरूर सफल होती है।

गाड़ी नंबर और रंग

यदि आप अपनी गाड़ी का नंबर और रंग, अंक ज्योतिष के अनुसार रखें तो भविष्य में होने वाली दुर्घटनाएं टल जाती है। जानिए अंक ज्यातिष के अनुसार कैसा होना चाहिए आपका गाड़ी नंबर और रंग..
अंक- 1 आपको अपने वाहन के नंबर का कुल योग 1, 2, 4 या 7 रखना चाहिये। पीले, सुनहरे, अथवा हल्के रंग के वाहन खरीदना चाहिए। आप 6 या 8 नंबर वाला वाहन न रखें साथ ही नीले, भूरे, बैंगनी या काले रंग के वाहन न खरीदें।
अंक- 2 आपके लिए वो वाहन अनुकूल है जिनका कुल योग 1, 2, 4 या 7 हो। 9 नंबर वाले वाहन ना रखें। आप सफेद अथवा हल्के रंग का वाहन खरीदें। लाल अथवा गुलाबी रंग की वाहन न लें।
अंक-3 आपकी गाड़ी नंबर का कुल योग 3,6, या 9 होना चाहिये। 5 या 8 नंबर वाला वाहन आपके लिए अच्छा नही रहेगा। पीले, बैंगनी, या गुलाबी रंग का वाहन खरीदें। हल्के हरे, सफेद ,भुरे रंग के वाहनों से बचें।
अंक-4 इस अंक वालों की गाड़ी नंबर का कुल योग 1, 2, 4 या 7 होना चाहिये। इनको 9, 6 या 8 नंबर वाले वाहन से हानि हो सकती है। नीले या भूरे रंग के वाहन खरीदें और गुलाबी या काले रंग की वाहन न खरीदें।
अंक-5 अगर आपका मूलांक 5 है तो आपको गाड़ी नंबर का कुल योग 5 रखना चाहिये। 3, 9 या 8 नंबर वाला वाहन ना रखें। हल्के हरे, सफेद अथवा भुरे रंग का वाहन खरीदें। पीले, गुलाबी या काले रंग की वाहन से हानि हो सकती है।
अंक-6 मूलांक 6 वालों को गाड़ी नंबर का कुल योग 3, 6, या 9 रखना चाहिये। 4 या 8 नंबर से बचें। आपको हल्के नीले, गुलाबी, अथवा पीले रंग का वाहन खरीदना चाहिए। काले रंग का वाहन क्रय करने से बचें।
अंक -7 आपकी गाड़ी नंबर का कुल योग 1, 2, 4 या 7 होना चाहिए। 9 या 8 नंबर वाला वाहन नही होना चाहिए। नीले, या सफेद रंग का वाहन खरीदें।
अंक-8 इस अंक वालों को अपना गाड़ी नंबर का कुल योग 8 रखना चाहिये। 1 या 4 नंबर वाला वाहन ना रखें तो बेहतर होगा. आपका अंक शनि का अंक है। इसलिए आप काले, नीले, अथवा बैगनी रंग के वाहन खरीदें।
अंक-9 मूलांक 9 वाले लोग आपनी गाड़ी नंबर का कुल योग 9, 3, या 6 रखे तो उन्हे अच्छा लाभ मिलता है। 5 या 7 नंबर वाले वाहन से नुकसान हो सकता है। बेहतर होगा आप लाल, या गुलाबी रंग का वाहन खरीदें।
यदि आपने कोई नया वाहन खरीदा हैं और आपके मन में हमेशा यही डर बना रहता है कि आपके या आपके परिवार के किसी भी सदस्य की थोड़ी सी भी लापरवाही से कहीं आपकी नए वाहन का एक्सीडेंट न हो जाए। कई बार हमारे साथ ऐसा होता है कि नए वाहन खरीदने के कुछ दिनों के भीतर ही कोई एक्सीडेंट हो जाता है। वाहन में खराबी आ जाती है। आपको भी चोट लगती है। आपकी अशुभ ग्रहों की दशा या अंतरदशा चल रही हैं या अनजाने में आपने अशुभ मुहूर्त में वाहन खरीद लिया हैं, तो घबराए नहीं नीचे लिखे उपाय को अपनाकर आप किसी भी तरह की वाहन दुर्घटना को टाल सकते हैं।- शनिवार को काले रंग की एक पोटली में काले तिल, सुपारी और सिन्दूर रखकर उसे अपने वाहन पर आगे की ओर बांध दें। इस उपाय को अपनाकर आप अपने वाहन को किसी भी तरह की दुर्घटना से बचा सकते हैं।

Thursday, November 25, 2010

संतान गोद लेने के सही मुहूर्त

विवाह के बाद हर पति-पत्नी को संतान प्राप्त करने की इच्छा होती है। वैसे तो अधिकांश लोगों की संतान सुख प्राप्त करने की कामना तो पूर्ण हो जाती है परंतु कुछ कारणों से कई दंपत्ति इस सुख को प्राप्त नहीं कर पाते। ऐसे में वे किसी अन्य के व्यक्ति के या अनाथालय से बच्चे को गोद लेते हैं। गोद लिए बच्चे भी अपने बच्चे की ही तरह माता-पिता का जीवनभर ध्यान रखें इसके लिए जरूरी है कि सही मुहूर्त में अनाथ बच्चे को अपनाया जाए-संतान गोद लेना बहुत ही पुण्य का काम है। इस पुण्य कार्य को शुभ मुहुर्त में करें तो उत्तम फल प्राप्त होता है। यदि आप शुभ मुहुर्त में संतान गोद लेते हैं तो गोद ली हुई संतान से सुख, आदर एवं सम्मान मिलेगा। शुभ मुहूर्त में गोद ली गई संतान जीवनभर आपकी सेवा करती है साथ ही आपकी मृत्यु के बाद के सभी आवश्यक संस्कार करती है।
दिन या वार का विचार- नक्षत्र और तिथि का विचार करने के बाद वार देख लें क्योंकि इस संदर्भ में वार का भी बहुत महत्व है। ज्योतिष सिद्धान्त के अनुसार संतान गोद लेने के लिए रविवार, मंगलवार, गुरुवार एवं शुक्रवार काफी शुभ माने गये हैं।
नक्षत्र- वार का विचार करने के बाद ये देख लें कि इस शुभ कार्य के दिन कौन सा नक्षत्र आ रहा है? संतान को गोद लेने के लिए कुछ नक्षत्रों को शुभ माना गया है। उनमें से 3 नक्षत्र, पुष्य, अनुराधा और पूर्वाफाल्गुनी को बहुत उत्तम माना गया है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ऊपर बताए गए वार को ये नक्षत्र हो उस दिन संतान गोद ले सकते है।तिथि- ज्योतिषशास्त्र के अनुसार संतान गोद लेने के लिए शुभ तिथियों का चयन करना चाहिए। जिस दिन प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी और त्रयोदशी में से कोई तिथि के साथ ऊपर बताए गए वार एवं नक्षत्रों का योग बन रहा हो, उस दिन यह शुभ कार्य करें। शास्त्रों में ये तिथियां कार्य सिद्धि करने वाली, धन देने वाली और शुभ कार्य को करने के लिए बताइ गई हैं।

बालक रोया या नहीं
जन्म लेते ही बालक रोना शुरू कर देता है। अगर वह नही रोया तो घबराने की आवश्यकता नहीं है। राशिगत स्वभाव के कारण भी यह होता है। अपनी राशि के अनुसार ही बालक रोते हंै। मेष, वृषभ, मिथुन, सिंह, मीन यह राशि शब्द वाली है। इन राशियों में जन्म लेने वाला जातक जन्म लेते ही रोना शुरू कर देता है।कन्या तथा कुम्भ यह दोनों राशि अद्र्ध शब्द वाली है। इन राशियों में जन्म लेना वाला बालक थोड़ा रोकर चुप हो जाता है, फिर बड़े जोर से रोता है।कर्क, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर राशियां निशब्द होती है। इनमें जन्म लेने वाला बालक जन्म लेते समय रोते नहीं बहुत देरी के बाद रोता है।चंद्रमा का बल भी इसमे कारक होता है।जिसका ज्यादा चंद्र बली होता है। वह उतना कम रोने वाला होता है।

Tuesday, November 23, 2010

शुक्र और चन्द्र सुन्दरता के प्रतीक

कहते हैं सुन्दरता अपने आप में एक खजाना है। जिसको भगवान ये खजाना देता है वह लोगों को सहज ही अपनी तरफ आकर्षित कर लेता है। इसलिए हर इंसान चाहता है कि वह सुन्दर दिखाई दें लेकिन हर व्यक्ति सुन्दर नहीं दिख सकता है क्योंकि ज्योतिष के अनुसार सुन्दरता जन्मकुंडली में बैठे ग्रहों के अनुसार होती है। शुक्र और चन्द्र दोनों ग्रह ज्योतिष में सुन्दरता के प्रतीक माने जाते हैं। जिसकी जन्मकुंडली में ये ग्रह शुभ स्थिति में बैठे होते हैं उन लोगों का व्यक्तित्व सभी को अपनी तरफ आकर्षित करता है। यदि कोई व्यक्ति शुक्र ग्रह से प्रभावित होता है तो उसके नयन नक्श सुन्दर होते हैं। ऐसे ही यदि किसी की कुंडली में चन्द्र उच्च का हो या शुभ प्रभाव देने वाला हो तो यह ग्रह सुन्दरता के साथ ही कामनीयता भी प्रदान करता है। ये दोनों ग्रह जिनकी कुण्डली में शुभ एवं मजबूत स्थित में हों उन्हें ये दोनों ग्रह रूप, सौन्दर्य एवं कोमलता प्रदान करते हैं।
- यदि कुंडली में शुक्र एवं चन्द्र की युति हो तो सुन्दरता मिलती है लेकिन, इनमें ध्यान देने वाली बात यह होती है कि इन दोनों ग्रहों की युति किस भाव एवं राशि में हो रही है। ग्रहों की दृष्टि तथा अन्य ग्रहों का इनपर प्रभाव भी काफी मायने रखता है।
- चन्द्र ,शुक्र की युति और सौन्दर्य चन्द्र एवं शुक्र की युति किसी भाव में होने पर आमतौर पर यह माना जाता है कि व्यक्ति सुन्दर एवं आकर्षक होगा. परंतु, ज्योतिषशास्त्र के अनुसार चन्द्र शुक्र की युति किस राशि में हो रही है यह सौन्दर्य में विचारणीय होता है।
- शुक्र की राशि में शुक्र चन्द्र की युति वृष एवं तुला शुुक्र की राशि होती है. शुक्र जब अपनी राशि में होता है तो शुक्र की स्थिति मजबूत होती है. शुक्र चमकीला ग्रह है इसके साथ चन्द्र की युति होने से व्यक्ति का रंग गोरा एवं निखरा होता है. इनकी त्वचा दुधिया गोरापन लिये होती है. व्यक्ति बहुत ही आकर्षक होता है.
- चन्द्र कर्क राशि का स्वामी है। चन्द्रमा यदि शुक्र के साथ अपने घर में बैठा हो तो उसी प्रकार का फल देता है जैसे तुला एवं वृष राशि में शुक्र चन्द्र की युति का फल होता है अर्थात व्यक्ति बहुत ही गोरा एवं आकर्षक दिखता है।ये कोमल एवं मासूम नजऱ आते हैं।
- बुध की राशि में शुक्र चन्द्र की युति मिथुन एवं कन्या राशि बुध की राशि होती है। बुध को भी त्वचा का कारक माना जाता है। बुध की राशि में शुक्र एवं चन्द्र की युति होने पर व्यक्ति सुन्दर तथा मोहक होता है।. इनका कद कुछ लम्बा होता है। नयन नक्श सुन्दर होते हैं परंतु कुछ सांवले दिखाई देते हैं।
- धनु एवं मीन राशि का स्वामी गुरू होता है। गुरू की इन राशियों में शुक्र एवं चन्द्र की युति सौन्दर्य की दृष्टि से बहुत ही अच्छी मानी जाती है। इस राशि में इन दोनों ग्रहों की युति होने से व्यक्ति बहुत ही सुन्दर होता है। शुक्र चन्द्र की युति से शारीरिक बनावट आकर्षक होती है। गुरू के प्रभाव के कारण इनका रंग निखरा होता है। इनकी त्वचा में पीली आभा झलकती है जो इनके सौन्दर्य को बहुत ही मोहक बनाती है।
- मंगल की राशि में शुक्र चन्द्र की युति मंगल की राशि में शुक्र चन्द्र की युति होने पर व्यक्ति खूबसूरत होता है। मंगल का प्रभाव भी व्यक्ति पर दिखता है इसलिए इनका रंग गेहुंआ तथा लालिमा लिये होता है।
- शनि की राशि में शुक्र चन्द्र की युति शनि की राशि मकर एवं कुम्भ है इन शुक्र चन्द्र की युति होने पर व्यक्ति लम्बा होता है। इनका रंग सांवला होता है परंतु इनकी त्वचा में चमक होती है।शरीर थोड़ा रूखा एवं कठोर भी प्रतीत होता है लेकिन, शुक्र चन्द्र की युति के कारण ये सांवले सलोने लगते हैं।
- सिंह राशि का स्वामी सूर्य है।सिंह राशि में चन्द्र एवं शुक्र की युति होने पर व्यक्ति लम्बा होता है।मस्तिष्क उन्नत तथा तेज से परिपूर्ण होता है जिससे यह आकर्षक लगते हैं इनका रंग लालिमा लिए होता है।त्वचा की देख-रेख में कमी करने पर ये सांवले दिख सकते हैं।

Saturday, November 20, 2010

जीवन साथी कहां मिलेगा ?

शादी के लिए माता-पिता को लड़की या लड़के की तलाश करते समय काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अगर यह पता हो कि विवाह किस दिशा और कितनी दूर होना है तो वर या वधू की तलाश करना माता-पिता के लिए आसान हो जाता है. सप्तम स्थान यानि सातवें भाव को विवाह, पति-पत्नी और दाम्पत्य जीवन के लिए देखा जाता है।
सप्तम भाव में ग्रह और राशि की स्थिति से जानिए, कहां होगी आपकी शादी?
कहां होगी शादी- अगर सप्तम भाव यानि कुंडली में सातवें स्थान में वृष (2 नंबर लिखा हो तो), कुंभ(11) या फिर वृश्चिक राशि(8) है तो यह समझना चाहिए कि व्यक्ति का जीवनसाथी माता-पिता के घर से लगभग 70-75 किलोमीटर दूर है।
मिथुन(3), कन्या(6), धनु(9) या फिर मीन(12) राशि सप्तम भाव में है तो जीवनसाथी की तलाश के लिए लगभग 125 किलोमीटर तक जाना पड़ सकता है। सप्तम भाव में मेष(1), कर्क (4), तुला(7) या मकर(10) राशि होने पर जीवनसाथी 200 किलोमीटर या उससे और अधिक दूर होता है।

किस दिशा में होगी शादी:-यदि सप्तम भाव में मेष राशि के साथ सूर्य हो तो पूर्व दिशा में शादी होने के योग बनते हैं।- शुक्र यदि तुला राशि के साथ हो तो पश्चिम दिशा में शादी होती है। - मीन राशि उत्तर दिशा में उदय होती है यदि यह राशि अपने स्वामी गुरु के साथ सातवें भाव में हो तो उत्तर दिशा विवाह के लिए उचित रहती है।- सप्तम भाव में कन्या राशि के साथ बुध का होना दक्षिण दिशा में विवाह होने का संकेत देता है।

पढ़ाई में मन नहीं लगता ?

अधिकतर विद्यार्थियों की समस्या है उनका पढ़ाई में मन नहीं लगता। यदि आपके साथ भी यही समस्या हो तो नीचे लिखे टोटकों को जरुर अपनाएं।
-शुक्ल पक्ष के पहले बृहस्पतिवार (गुरुवार) को सूर्यास्त से ठीक आधा घंटा पहले बड़ के पत्ते पर पांच अलग-अलग प्रकार की मिठाइयां तथा दो छोटी इलायची पीपल के वृक्ष के नीचे श्रद्धा भाव से रखें और अच्छी शिक्षा के लिए कामना करें। फिर सीधे अपने घर आ जाएं, पीछे मुड़कर न देखें। इस प्रकार बिना क्रम टूटे यह क्रिया तीन गुरुवार करें। यह उपाय माता-पिता भी अपने बच्चे के लिये कर सकते हैं।
- कमरे में हरे रंग के परदे लगाएं।- नियमित रूप से पढ़ाई से पहले नीचे लिखे मंत्र का जप करें।
मंत्र- ऐं .- रोज सुबह उसे नियमित रूप से नाश्ते के साथ अंकुरित हरे मूंग भी खिलाएं। - सूर्य को नित्य रक्त पुष्प डाल कर अर्ध्य दें।- जब भी परिक्षा देने जाएं तो लाल रंग का रूमाल साथ में लेकर जाएं।- पढ़ाई करने से पहले तुलसी के पांच पत्ते मुंह में लेकर बैठें।

Friday, November 19, 2010

ग्रहों के कारण हो सकता है त्वचा रोग

प्रदूषण के इस दौर में त्वचा रोग सर्वाधिक पाया जाने वाला रोग है। यह रोग शहर में ज्यादा होता है। खासतौर पर युवा पीढ़ी इससे सबसे ज्यादा प्रभावित है। ज्योतिष में इसका कारक ग्रह बुध है तथा कुण्डली का षष्ठ भाव इसमें प्रमुख होता है। इसके अलावा शनि, राहु, मंगल के अशुभ होने पर तथा सूर्य, चंद्र के क्षीण होने पर त्वचा रोग होते हैं।सप्तम स्थान पर केतु भी त्वचा रोग का कारण बन सकता है। बुध यदि बलवान है तो यह रोग पूरा असर नहीं दिखाता, वहीं बुध के कमजोर रहने पर यह कष्टकारी हो सकता है।
लक्षण
- पानी, मवाद से भरी फुंसी व मुंहासे चंद्र के कारण होती है
- मंगल के कारण रक्त विकार वाली फुंसी व मुंहासे होती है।
- राहु के प्रभाव से कड़ी दर्द वाली फुंसी होती है।
उपाय
- षष्ठ स्थान पर स्थित अशुभ ग्रह का उपचार कराएं।
- सूर्य मंत्रों या आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।
- शनिवार को कुत्ते को तेल चुपड़ी रोटी खिलाएं।
- सरस्वती स्तोत्र का पाठ करें।
- पारद शिवलिंग का पूजन करें।

बड़े काम का मोर पंख

मोर पंख को सम्मोहन का प्रतीक माना गया है। घर में मोर पंख रखना प्राचीनकाल से ही बहुत शुभ माना जाता है। वास्तु के अनुसार भी मोर पंख घर से अनेक प्रकार के वास्तुदोष दूर करता है। मोर पंख सकारात्मक उर्जा को अपनी तरफ खीचता है। मोर पंख को वास्तु के अनुसार बहुत उपयोगी माना गया है।
- मोर का एक पंख लेकर उसे दक्षिणामुखी राधा कृष्ण की मूर्ति के मुकुट में लगाएं। मूर्ति में मोर पंख चालीस दिन के लिए स्थापित कर दें और राधा कृष्ण को रोज भोग लगाएं। इकतालिसवे दिन उस मोर पंख को घर लाकर अपनी तिजोरी में रखें।- घर के दक्षिण-पूर्वी कोने में मोर का पंख लगाने से भी घर में बरकत बढ़ती है। - यदि घर की उत्तर- पश्चिमी कोने में रखें तो जहरीले जानवरों का भय नहीं रहता है।- अपनी जेब या डायरी में मोर पंख रखने पर राहु दोष कभी प्रभावित नहीं करता है।- नवजात बालक के सिर की तरफ चांदी की एक डिब्बी में भरकर उसके सिरहाने रखने से नजर नहीं लगती है।इसे पुस्तको में रखना भी बहुत शुभ माना जाता है।

Wednesday, November 17, 2010

पैसा बरसेगा तांत्रिक टोटका

यह तांत्रिक टोटका बहुत प्रभावकारी है। इस टोटके को करने से ना केवल धन की वृद्धि होती है बल्कि हर तरह के सुख प्राप्त होते हैं। यदि आपके घर में धन की आवक तो है पर धन रूकता ना हो यानी बरकत न होती हो तो एक मोती शंख एवं तीन हकीक पत्थर चार गोमती चक्र एवं एक तांबे का सिक्का लाल कपड़े में साथ बांधकर व्यापारिक प्रतिष्ठान में पूजा स्थान पर रख दें। इस क्रिया को करते समय लक्ष्मी का ध्यान करते रहें।नीचे लिखे इस मंत्र का जप करें।
मंत्र-ऊं श्रीं
रोज सुबह इसे अगरबत्ती और धूप दें।एक साल बाद नदी, तालाब, आदि में विसर्जित कर दें।
आज की इस बढ़ती महंगाई के जमाने में क्या आप भी धन की कमी से जूझ रहे हैं। आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया हो गया हैं। आप धन की कमी के कारण परेशान हैं और चाहते हैं कि आपके आपके घर में भी लक्ष्मी का आगमन हो। इसके लिए आप भी सावन के महीने में शिव पूजन के निम्न छोटे प्रयोग को अपना सकते हैं।
प्रयोग विधि -: - अशोक के वृक्ष नीचे सावन के महीने के पहले दिन शिव प्रतिमा स्थापित करें प्रतिदिन प्रात:काल उस पर जल चढ़ाएं। - धूप दीप दिखाकर पूजन अर्चन करें । उसके बाद ऊं नम:शिवाय मंत्र का जाप करें।- सायंकाल भी प्रतिमा की धूप-दीप से पूजा करनी चाहिए। इस प्रयोग से शीघ्र ही धन से जुड़ी सारी समस्याएं हल होने लगती हैं।

क्या आप बदहजमी से परेशान हैं
कभी-कभी खाने-पीने की गड़बड़ी से गैस, अपच जैसे रोग हो जाते है। पेट की तकलीफ बहुत सी बीमारियों को जन्म देती है। यदि जल्द ही इसका उपचार न करवाया जाए तो यह शरीर में बहुत सी दूसरी बीमारियों को पैदा कर सकती हैं। लेकिन कई बार इलाज करवाने के बाद भी आप के साथ खाना न पचने की समस्या बनी रहती है। ऐसे में आप नीचे लिखे उपाय को अपनाकर इस समस्या से निजात पा सकते हैं।-इस प्रयोग को प्रतिदिन भोजन के बाद करें। दोनो बार भोजन के बाद पेट पर हाथ फेरते हुए नीचे लिखे मंत्र को तीन बार पढ़ें।
मंत्र- अगस्त्यं कुम्भकर्णं च शनि च बड़वालनम्।
भोजनं पचानार्थाय स्मरेत भीमं च पंचकनम्।।

इस प्रयोग को करने से अपच से जुड़ी समस्या से शीघ्र ही मुक्ति मिलती है।

Tuesday, November 16, 2010

कब करें शादी:पत्नीअतिप्रिय होगी यदि...

शास्त्रों में शादी के लिए चार माह शुभ बताए गए हैं। जिसमें विवाह करने से अलग-अलग लाभ हैं। आइए जानें किस माह में विवाह करने से क्या लाभ हैं?
माघे धनवती कन्या, फाल्गुने शुभगा भवेत,
वैशाखे तथा ज्येष्ठे पतिउत्यन्तवल्लभा।
मार्गशिर्ष मपिच्छती, अन्यये मासाश्च वर्जिता।।
यानि जिस स्त्री का विवाह माघ मास में होता है, वह धनवान होती है, फाल्गुन में विवाह होने पर वह सौभाग्यवती होती है। वैशाख तथा ज्येष्ठ में विवाह होने पर पति को प्यारी होती है। अकस्मात बहुत आवश्यक होने पर ही मार्गशिर्ष मास में भी विवाह कर सकते है। बाकी सभी माह विवाह हेतु वर्जित है।
वर्तमान में वैशाख मास चल रहा है।इसके अलावा सूर्य जब गुरुकी राशि धनु एवं मीन में होने पर, गुरु-शुक्र तारा अस्त होने पर, मलमास या अधिमास होने पर विवाह निषेध होता है।भारतीय सामाजिक व्यवस्था में विवाह को पवित्र बंधन माना जाता है। हमारे शास्त्रों में तलाक जैसा कोई शब्द ही नहीं है।

Monday, November 15, 2010

मनोरथ पूर्ति के लिए शिव को चढ़ाएं अन्न

भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए व्रत, उपवास, जप, मंत्र, अभिषेक- इन पूजा कर्मों के दौरान छोटी-छोटी धार्मिक बातों को जानकारी के अभाव में अनेक मौकों पर नजरअंदाज कर दिया जाता है।ऐसी ही बातों में मनोरथ पूर्ति के लिए शिव पूजा में तरह-तरह के अन्न चढ़ाने का महत्व शास्त्रों में बताया गया है। इसलिए श्रद्धा और आस्था के साथ इन उपायों का भी ध्यान रखें। जानते हैं किस अन्न के चढ़ावे से कैसी कामना पूरी होती है -- शिव पूजा में गेंहू से बने व्यंजन चढ़ाने पर कुंटुब की वृद्धि होती है।- मूंग से शिव पूजा करने पर हर सुख और ऐश्वर्य मिलता है।- चने की दाल अर्पित करने पर श्रेष्ठ जीवन साथी मिलता है। - कच्चे चावल अर्पित करने पर कलह से मुक्ति और शांति मिलती है। - तिलों से शिवजी पूजा और हवन में एक लाख आहुतियां करने से हर पाप का अंत हो जाता है। - उड़द चढ़ाने से ग्रहदोष और खासतौर पर शनि पीड़ा शांति होती है।

कैसा है आपका स्वाभाव?

ज्योतिष शास्त्र के माध्यम से व्यक्ति के भूत, भविष्य और वर्तमान की सटिक जानकारी प्राप्त की जा सकती है। कुंडली में 12 भाव अर्थात 12 घर होते हैं। सभी का अपना अलग महत्व होता है परंतु लग्न भाव (प्रथम भाव) के अध्ययन से व्यक्ति के स्वभाव को जाना जा सकता है। लग्न स्थान व्यक्ति के सम्पूर्ण स्वभाव का परिचय करा देता है।

प्रथम भाव भी कहते है। लग्न में यदि सूर्य अच्छा हो तो वह व्यक्ति मिलनसार, कमजोर आंखो वाला परंतु दिलेर होता है। वहीं सूर्य कमजोर होने पर कम बोलने वाला, चिड़चिड़े स्वभाव का होता है।
यदि चंद्र भाव में चंद्र हो तो वह व्यक्ति सुन्दर होता है।
मंगल लग्न भाव में हो तो व्यक्ति गुस्सैल, क्रोधी, होता है। मंगली भी होता है।
कुंडली के प्रभम भाव में बुध स्थित हो तो व्यक्ति बुद्धिमान होता है।
गुरु प्रथम भाव में होने से व्यक्ति धार्मिक तथा बलवान होता है।
शुक्र लग्न में हो तो व्यक्ति कामी, होशियार तथा तेज स्वभाव का होता है।
यदि शनि प्रथम भाव तो वह व्यक्ति पिता के जैसी शक्ल वाला तथा समझदार होता है।
राहु लग्र में होने से व्यक्ति कडवा बोलने वाला विकृत मानसिकता का होता है।
केतु लग्र में स्थित हो तो सम प्रकृति का वह व्यक्ति होता है।
इसके लिए अन्य ग्रहों की लग्र पर कैसी दृष्टि पड रही है, यह भी विचार करना भी आवश्यक है।

Saturday, November 13, 2010

दाम्पत्य जीवन, संतान सुख

यदि आपका वैवाहिक जीवन फीका है, जीवनसाथी से नही बनती या झगड़े होते हो, तो समझ लीजिए आपका वैवाहिक जीवन शनि से प्रभावित हो रहा है और आपकी कुंडली में शनि की स्थिति अच्छी नही है।
कुंडली में शनि का सप्तम भाव या लग्र भाव में स्थित होना प्राय: अशुभ माना जाता है। शनि की इसी स्थिति से ही गृहस्थ जीवन में सुख नही मिल पाता, जीवन साथी से विचार नही मिलते या जीवन साथी किसी न किसी बीमारी से पीडि़त रहता है।ज्योतिष में शनि को पाप ग्रह माना गया है। शनि का स्वभाव कठोर होता है। यह एक रूखा ग्रह है एवं इसे स्त्री नपुंसक ग्रह भी माना गया है। शनि के इसी स्वभाव का प्रभाव जातक पर पड़ता है। जिससे जातक अपने जीवन साथी के साथ कठोर व्यवहार करता है। सप्तम भाव में शनि होने के कारण जातक जीवनसाथी की भावनाओं को नहीं समझ पाता है। ऐसा व्यक्ति अकेला रहना पसंद करता है एवं यथार्थ में जीने वाला होता है।

दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाने के उपाय :
-काली गाय को चारा खिलाएं।-किसी साधु को तवा या अंगीठी का दान दें।-बरगद के पेड़ पर दूध चढ़ा कर गिली मिट्टी का तिलक करें।-काले कपड़े में उड़द रख कर दान दें।- परिवार की खुशहाली और स्वास्थ्य के लिए पूरे परिवार का फोटो लकड़ी के फ्रेम में जड़वाकर घर की पूर्वी दीवार पर लटकाएं।
कैसे मिले संतान सुख?

दंपत्ति अपने परिवार को बढ़ाने के सपने देखने लगते हैं। सभी दंपत्तियों की मनोकामना होती है उन्हें कोई मम्मी-पापा कहने वाला हो।वैसे तो अधिकांश लोगों को संतान के संबंध कोई खास परेशानियों नहीं होती परंतु कुछ लोगों को विवाह के लंबे समय के बाद भी संतान का सुख प्राप्त नहीं हो पाता या कुछ दंपत्ति को आजीवन ही संतान के सुख से वंचित रहना पड़ता है। कई बार स्त्री का गर्भ ठहरने के बाद किसी वजह से गर्भपात हो जाता है या ऐसी ही कोई अन्य समस्या उत्पन्न हो जाती है।
शास्त्रों के अनुसार संतान पैदा नहीं होने के संबंध में दस कारण बताए गए हैं। इन दस कारणों में नौ कारणों के अतिरिक्त दसवां कारण ज्योतिष समस्या से संबंधित है।ग्रह दोष की वजह से भी कई बार दंपत्तियों को संतान उत्पन्न होने में विलंब होता है या संतान उत्पन्न नहीं हो पाती। पांचवा भाव यदि राहु, गुरु, शनि से ग्रस्त हो तथा इन पर किसी भी शुभ ग्रह की दृष्टि भी न हो तो संतान उत्पत्ति में परेशानी होती है या गर्भपात हो जाते हैं। ऐसे परिस्थिति में संबंधित ग्रहों के उपचार से संतान उत्पत्ति आसान हो सकती है।
पंचम भाव में यदि गुरु स्थित हो तो संतान में देरी होती है। साथ ही यदि पति या पत्नी में से किसी को गुरु की महादशा भी हो तो संतान विवाह के सोलह वर्षों के बाद होने की संभावना होती है। पंचम भाव में यदि गुरु की दृष्टि हो तो संतान विवाह के 8-10 वर्षों के बाद उत्पन्न होती है। राहु या शनि से युक्त पंचम स्थान बार-बार गर्भस्राव या हिनता का कारक होता है।
संतान सुख प्राप्ति के लिए यह उपाय करें-
-संतान में देरी हो तो पुत्रदा एकादशी व्रत करें।-हरिवंश पुराण का पाठ करें।-कार्तिक चैत्र, माद्य माह में प्रतिपदा से नवमी (शुक्लपक्ष) रामायण का नवाह्नपरायण करें।- यदि पति या पत्नी की कुंडली में पंचम भाव में गुरु हो तो उसका उपचार कराएं।
- यदि कुंडली में छठे भाव में नीच का शनि हो तो उसकी शांति हेतु शनि की विशेष पूजा कराएं।- शिवरात्री पर शिव-पार्वती का रातभर अभिषेक कराएं।- अनाथालय में दान दें और गरीब बच्चों को खाना खिलाएं।- वात, पित्त, कफ की बीमारी हो तो उसका इलाज कराएं।

चार प्रकार के होते हैं पुत्र

राजा चित्रकेतु को वैराग्य का उपदेश देते नारदजी ने बताया था कि पुत्र चार प्रकार के होते हैं- शत्रु पुत्र, ऋणानुबंध पुत्र, उदासीन और सेवा पुत्र।
शत्रु पुत्र: जो पुत्र माता-पिता को कष्ट देते हैं, कटु वचन बोलते हैं और उन्हें रुलाते हैं, शत्रुओं सा कार्य करते हैं वे शत्रु पुत्र कहलाते हैं।
ऋणानुबंध पुत्र: पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार शेष रह गए अपने ऋण आदि को पूर्ण करने के लिए जो पुत्र जन्म लेता है वे ऋणानुबंध पुत्र कहलाते हैं।
उदासीन पुत्र: जो पुत्र माता-पिता से किसी प्रकार के लेन-देन की अपेक्षा न रखते विवाह के बाद उनसे विमुख हो जाए, उनका ध्यान ना रखे, वे उदासीन पुत्र कहलाते हैं।
सेवा पुत्र: जो पुत्र माता-पिता की सेवा करता है, माता-पिता का ध्यान रखते हैं, उन्हें किसी प्रकार की कोई कमी नहीं होने देते, ऐसे पुत्र सेवा पुत्र अर्थात् धर्म पुत्र कहलाते हैं।
मनुष्य का वास्तविक संबंध किसी से नहीं होता। इसलिए आत्मचिंतन में रमना ही उसका परम कर्तव्य है।

Thursday, November 11, 2010

संपन्नता: धन ज्ञान बाहु की हो

भौतिक संपन्नता का क्षेत्र हो या आध्यात्मिक उन्नति का कामयाबी उसे ही मिलती है जिसमें उसे पाने की योग्यता और क्षमता होती है। बल या शक्ति उस समग्र और सम्मिलित क्षमता को कहते हैं जिसमें तीनों बल यानि धन, ज्ञान और बाहु बल शामिल हो। दुनिया में सर्वाधिक शक्तिशाली वही है जो जिसके पास तीनों बलों का पर्याप्त संचय यानि कि संग्रह हो। प्राचीन दुर्लभ शास्त्रों में कुछ ऐसे विलक्षण मंत्र दिये गए हैं जिनको सिद्ध करके आप जिंदगी के हर क्षेत्र में भरपूर कामयाबी प्राप्त कर सकते हैं। ये मंत्र पूरी तरह से ध्वनि विज्ञान के आधार पर कार्य करते हैं:
- धन बल के लिए: कमलासने विद्महे, विष्णु प्रयाये धीमही, तन्नौ लक्ष्मी प्रचोदयात्।
- ज्ञान बल के लिए: हंसवाहिनी विद्महे, ज्ञान प्रदानाय धीमही, तन्नौ सरस्वती प्रचोदयात्।
- बाहु बल के लिए: नृसिंहाय विद्महे, वज्रनखाय धीमही, तन्नौ नृसिंह प्रचोदयात्।
जप के नियम: ऊपर वर्णित अचूक मंत्रों का जप प्रारंभ करने से पूर्व कुछ सरल किंतु अनिवार्य नियमों पर एक नजर-
- ध्यान रहे की मंत्र जप की सारी सफलता एकाग्रता और श्रद्धा पर निर्भर होती है।- पूर्व या उत्तर दिशा में मुख करके पद्मासन में कमर सीधी रख कर बैठें।- तीनों, कोई दो या आवश्यकता के अनुसार मात्र एक मंत्र का जप करने से पूर्व भी अनिवार्यरूप से तिगुनी मात्रा में गायत्री जप अवश्य करें।- यदि ज्ञान बल वृद्धि के मंत्र का एक माला जप करना हो तो उससे पूर्व तीन माला गायत्री मंत्र की माला करना चाहिए। यानि 1:3 का ही हो।- मंत्र जप पूर्व बाहरी एवं आंतरिक पवित्रता के बाद प्रारंभ करें।
- ध्यान रहे मंत्र जप सूर्योदय से पूर्व ही समाप्त हो जाना चाहिए।

Wednesday, November 10, 2010

बुधवार: श्री गणेश और बुध देव की उपासना का दिन

सफलता के लिए बल और ज्ञान ही नहीं, इनके साथ बुद्धि का संतुलन भी जरूरी है। इन तीन उपायों से सफलता पाने के लिए देवकृपा का भी महत्व माना जाता है। बुद्धि और सफलता के लिए शास्त्रों में बुधवार का दिन देव उपासना के लिए श्रेष्ठ माना गया है। यह दिन बुद्धिदाता श्री गणेश के अलावा बुध देव की उपासना का विशेष दिन माना गया है। धार्मिक दृष्टि से बुध देव बुद्धि और समृद्धि देने वाले माने गए है। बुध ग्रह का शुभ प्रभाव कारोबार में सफलता, विद्या, एकाग्रता और अच्छी याददाश्त देने के साथ अनावश्यक तनावों से छुटकारा देता है। बुधवार के दिन बुध देव की प्रसन्नता के लिए उपाय करने से बुध ग्रह के सभी बुरे प्रभाव नष्ट हो जाते हैं और मनोवांछित फल मिलते हैं।
- सुबह स्नान कर बुधदेव की यथासंभव सोने की मूर्ति अन्यथा धातु की मूर्ति कांसे के पात्र पर स्थापित करें।- भगवान बुधदेव को दो सफेद वस्त्र अर्पित करें। - बुधदेव की पंचोपचार पूजा यानि गंध, अक्षत, फूल अर्पित करें। - भोग में गुड़, दही और भात का भोग लगाएं।- धूप और अगरबत्ती, दीप जलाकर पूजा-आरती करें।- पूजा के दौरान बुध देव का बीज मंत्र ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम: या ऊँ बुं बुधाय नम: का जप करें। - पूजा के बाद क्षमा प्रार्थना और मंगलकामना करें।- यथासंभव ब्राह्मणों को बुध देव को लगाए भोग के साथ भोजन कराएं।- इस दिन बुध देव की निमित्त कांसा, जौ, हाथीदांत, सोना, कपूर या हरा कपड़ा, घी, मूंग दाल, हरी वस्तुओं का दान करें। - बुधवार के दिन श्री गणेश की भी पूजा करें और पूजा में विशेष रूप से सिंदूर, दुर्वा, गुड़, धनिया अर्पित करें। मोदक का भोग लगाएं। - यथाशक्ति ऐसे ७, १७, २१ या ४५ बुधवार पर व्रत करें।
व्यक्ति का वाक कौशल यानि बोलने की कला या बुद्धिमानी बुध ग्रह नियत करता है। इसलिए बुधवार को बुध पूजा और व्रत के फल से व्यक्ति बुद्धिजीवी, कलाकार, सफल कारोबारी या शिक्षक बनता है। इसलिए बुधवार को बुध के साथ श्री गणेश पूजा का शुभ अवसर का हर छात्र, कारोबारी और कलाकार विशेष लाभ उठाएं।

Monday, November 8, 2010

केंद्र में शुभ ग्रह लखपति बनता

कुंडली में चार स्थान- प्रथम, चतुर्थ, सप्तम एवं दशम भाव केंद्र होते हैं जो तन, सुख, दांपत्य एवं कर्म के कारक होते हैं।
केंद्र में शुभ ग्रह हो तो जातक लक्ष्मीपति होता है। वहीं केंद्र में उच्च के पाप ग्रह बैठे हो तो जातक राजा तो होता ही है पर वह धन से हीन होता है।सूर्य यदि उच्च को हो तथा गुरु केंद्र में चतुर्थ स्थान पर बैठा हो तो जातक आधुनिक केंद्र या राज्य में मंत्री पद को प्राप्त करता है। सूर्य के केंद्र में होने से जातक राजा का सेवक, चंद्रमा केंद्र में हो तो व्यापारी, मंगल केंद्र में हो तो व्यक्ति सेना में कार्य करता है।बुध के केंद्र में होने से अध्यापक तथा गुरु के केंद्र में होने से विज्ञानी, शुक्र के केंद्र में होने पर धनवान तथा विद्यावान होता है। शनि के केंद्र में होने से नीच जनों की सेवा करने वाला होता है।यदि केंद्र में कोई भी ग्रह नहीं हो तो जातक समस्या ग्रस्त परेशान रहता है। कोई भी ग्रह केंद्र में न हो तथा आप, ऋण, रोग, दरिद्रता से परेशान हो तो निम्न उपाय करें।
- शिवजी की उपासना करें- सोमवार का व्रत करें।- भगवान शिव पर चांदी का नाग अर्पण करें।- बिल्व पत्रों से 108 आहूतियां दें। घी, कच्चा, दूध, शहद, मिश्री का हवन करें।

शिव की पंचामृत पूजा है फलदायी

कामनाओं की पूर्ति के लिए भगवान शिव की उपासना बहुत ही फलदायी मानी गई है। भगवान शिव की प्रसन्नता के इन खास दिनों में सोमवार का दिन बहुत महत्व रखता है।शास्त्रों में अलग-अलग कामनाओं की पूर्ति के लिए शिव की अलग-अलग तरह की पूजा बताई गई है। किंतु सोमवार के दिन शिव की पंचामृत पूजा हर मनौती को पूरा करने वाली मानी गई है। इस पूजा में खासतौर पर शिव को दूध, दही, घी, शक्कर और शहद से स्नान कराया जाता है। पंचामृत स्नान व पूजा न केवल मनौतियां पूरी करती है, बल्कि वैभव भी देती है। साथ ही अनेक परेशानियों और पीड़ा का अंत होता है। भगवान शिव की पंचामृत स्नान और पूजन का तरीका -
- सुबह जल्दी उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहन घर या देवालय में शिवलिंग के सामने बैठें।- सबसे पहले शिवलिंग पर जल और उसके बाद क्रम से दूध, दही, घी, शहद और शक्कर चढ़ाएं। हर सामग्री के बाद शिवलिंग का जल से स्नान कराएं। पूजा के दौरान पंचाक्षरी या षडाक्षरी मंत्र ऊँ नम: शिवाय बोलते रहें। - आखि़र में पांच सामग्रियों को मिलाकर शिव को स्नान कराएं। - पंचामृत स्नान के बाद गंगाजल या शुद्धजल से स्नान कराएं।- पंचामृत पूजन के साथ रुद्राभिषेक पूजा शीघ्र मनोवांछित फलदायक मानी जाती है। यह पूजन किसी विद्वान ब्राह्मण से कराया जाना श्रेष्ठ होता है। - पंचामृत स्नान और पूजा के बाद पंचोपचार पूजा करें। गंध, चंदन, अक्षत, सफेद फूल और बिल्वपत्र चढ़ाएं। नैवेद्य अर्पित करें।- शिव की धूप या अगरबत्ती और दीप से आरती करें। - शिव रुद्राष्टक, शिवमहिम्र स्त्रोत, पंचाक्षरी मंत्र का पाठ और जप करें या कराएं।
- आरती के बाद पूजा में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगे और मनौती करें।- शिव की पंचामृत पूजा ब्राह्मण से कराने पर पूर्ण फल तभी मिलता है जब दान-दक्षिणा भेंट की जाए। इसलिए ऐसा करना न भूलें।

Sunday, November 7, 2010

५६ पंखुडिय़ों वाले कमल पर विराजते हैं विष्णु

गोवर्धन पूजा पर भगवान श्रीकृष्ण को 56 भोग का अन्नकूट भी लगाया जाता है। वैष्णव जन इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। सवाल यह उठता है कि भगवान को 56 व्यंजनों का ही भोग क्यों लगता है? क्यों भगवान इससे कम या ज्यादा का भोग स्वीकार नहीं करते? 56 भोगों पर काफी कुछ लिखा गया है और लोग भी बड़ी श्रद्धा से इस परंपरा को निबाह रहे हैं। 56 भोग के पीछे सारे कारण बहुत ही दार्शनिक है। कुछ विद्वान यह मानते हैं कि यह संभव है कि जिस समय यह परंपरा शुरू हुई तो उस समय इतने ही पकवान बनते हों, इससे ज्यादा व्यंजन हो ही नहीं। लेकिन 56 के आंकड़े में कुछ खास बातें हैं। कहते हैं जिस कमल पर भगवान विष्णु विराजित हैं उसकी पंखुडिय़ों की संख्या 56 है, यह तीन चरणों में है, पहले में आठ, दूसरे में 16 और तीसरे में 32 पंखुडिय़ां होती हैं। इसी लिए भगवान को 56 भोग लगाए जाते हैं। एक कारण ओर है। एक प्राणी की 84 लाख योनियां बताई गई हैं, जिसमें से श्रेष्ठ है मनुष्य योनि। अगर मनुष्य योनि को अलग कर दिया जाए तो 83,99,999 संख्या होती है। ये सारी योनियां पशु-पक्षी की होती है। इन सबको जोड़ दिया जाए तो (8+3+9+9+9+9+9=56) 56 ही योग आता है। विद्वानों का मानना है कि मनुष्य जन्म को छोड़कर शेष जन्मों से मुक्ति पाने के लिए ही हम 56 भोग का प्रसाद भगवान को लगाते हैं। यह मानकर कि हमने अपने शेष 83,99,999 जन्म भगवान को अर्पित कर दिए हैं।

वास्तु दोष से करवाता है नुकसान

घर में दरवाजा गलत दिशा में बना है? कोई द्वार दोष है? ऐसा दोष आपको कर्ज में डुबो सकता है। नीचे लिखे वास्तु उपायों को अपनाकर आप भी अपने घर के दरवाजे से वास्तु दोष को कम कर सकते हैं।
उत्तर का दरवाजा हमेशा लाभकारी होता है।यदि द्वार दोष उत्पन्न होता है, तो भगवान विष्णु की आराधना करें। पीले फूलों की माला दरवाजे पर लगाएं। लाभ होगा।पूर्व दिशा में घर का दरवाजा है तो वो व्यक्ति को ऋणी बना देता है, तो सोमवार को रूद्राक्ष घर के दरवाजे के मध्य लटका दें और पहले सोमवार को रूद्राक्ष व शिव की आराधना करने से आपके समस्त कार्य सफल होंगे।दक्षिण दिशा में घर का प्रमुख द्वार दोष उत्पन्न होता है, तो भगवान विष्णु की आराधना करें। पीले फूलों की माला दरवाजे पर लगाएं। लाभ होगा।
पश्चिम दिशा में द्वार दोष उत्पन्न होने पर रविवार को सूर्योदय से पूर्व दरवाजे के सम्मुख नारियल के साथ कुछ सिक्के रखकर दबा दें। किसी लाल कपड़े में बांध कर लटका दें। सूर्य के मंत्र से हवन करें। द्वार दोष दूर होगा।
भूखंडों की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं,अपार्टमेंट में घर लेना काफी सुविधाजनक हो गया है। वास्तु सभी अपार्टमेंट को एक स्वतंत्र इकाई मानता है इसलिए अपार्टमेंट में आप ऊपर रहें या नीचे, दिशा निर्धारण का वही सिद्धांत लागू होता है। अगर अपार्टमेंट बहुत ऊंचाई पर है, तब भी बेहतर यह है कि पूरा ब्लॉक वर्गाकार या आयताकार हो ताकि पृथ्वी से उसका नाता जुड़ा रहे। वास्तु के अनुसार वर्गाकार भवन पुरुषोचित होते हैं जबकि आयताकार इमारतें स्त्रियोचित(नारी-जातीय) और कोमल।
यदि आप अपार्टमेंट ब्लॉक में रहने जा रहे हैं तो उसकी ऊपरी मंजिल चुनिए ताकि भूतल स्तर के नुकसानदायक प्रभावों से बचा जा सके। अपार्टमेंट के लिए सबसे अच्छी जगह ब्लॉक की उत्तर-पूर्व या पूर्व दिशा है, जो प्रात:कालीन प्रकाश के अनुकूल गुणों को ग्रहण करती है। उत्तर-पूर्व दिशा वाला अपार्टमेंट यह सुनिश्चित करेगा कि अन्य अपार्टमेंट दक्षिण-पश्चिम में बाधाएं पैदा कर नकारात्मक शक्तियों के प्रवेश को रोकेंगे। ब्लॉक पर्याप्त दूरी पर हों ताकि कमरों में रोशनी व हवा आ सके।
वास्तु शास्त्रों का यह भी मानना है कि घर बनाने में प्रयुक्त किए गए सभी पदार्थों में जैविक ऊर्जा होती है। बलुआ तथा संगमरमर जैसे पत्थर घर में रहने वाले लोगों पर शुभ प्रभाव डालते हैं जबकि ग्रेनाइट तथा स्फटिक जैसे पत्थर नसों में खून के प्रवाह में अवरोध उत्पन्न करते हैं तथा स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां भी खड़ी करते हैं। आदर्श अपार्टमेंट वह ब्लॉक है जो ईंटों या पत्थर से निर्मित हो न कि शीशे या पथरीली कांक्रीट से।
वर्तमान में आधुनिक भवनों में पथरीली क्रंकीट, इस्पात, शीशे या सिंथेटिक सामग्री के उपयोग किया जाने लगा है। यह इमारत को मजबूत तो बनाती हैं लेकिन सेहत पर बुरा प्रभाव भी डालती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार कंक्रीट मृत सामग्री है जो नकारात्मक ऊर्जा उत्सर्जित करती है जिसके कारण बीमारी व अन्य परेशानियां उत्पन्न होती है।

Saturday, November 6, 2010

शनि को प्रसन्न कीजिये

शनि के प्रकोप से बचने के लिए शनिश्चरी अमावस्या के दिन शनिदेव को प्रसन्न करने निम्न कर्म करें-
- लोहे की दो गोलियां लेकर आएं, एक गोली नदी में प्रवाहित करें और एक अन्य सदैव अपने साथ रखें।- काले घोड़े की नाल से बना छल्ला या अंगूठी सीधे हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें। यह प्रयोग बहुत कारगर सिद्ध होता है।- किसी बर्तन में तेल भरकर अपना चेहरा उसमें देखें और फिर उस तेल को दान कर दें।- राहु-केतु की लोहे या शीशे की मूर्तियों की विधि-विधान से पूजा करें।- पूजा में काले चावल, काले कपड़े, काले फूल व काले चंदन का प्रयोग करें।- यह पूजा पीपल के पेड़ के नीचे करेंगे तो जल्दी ही शुभ फल प्राप्त होगा।- पूजा के बाद पीपल की सात परिक्रमा करें।- परिक्रमा करने के बाद कच्चा धागा पीपल पर लपेटे।- अब शनि देव से प्रार्थना करें कि हमारे कष्टों और दुखों से हमें मुक्ति दिलाएं।
- लोहे के कटोरे में तेल भरकर, काले तिल या काली चीजों का दान करें।- काला कपड़ा, काली गाय, काली बकरी या काले लोहे के बर्तन दान करें। शनि देव प्रसन्न होंगे। इन उपायों के अतिरिक्त प्रतिदिन हनुमान चालिसा का पाठ करें।
- प्रतिदिन पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाएं और सात परिक्रमा अवश्य करें।- यदि शनि की वजह अत्यधिक कष्ट हैं तो 43 दिनों तक लगातार कौओं को दही रोटी खिलाएं। ऐसा करने से शनि बहुत जल्द ही आपके पक्ष में फल देना शुरू कर देगा।- कम से कम 9 शनिवार गरीबों को भोजन कराएं, भोजन में शनिदेव के प्रिय भोज्य सामग्री रखें।- प्रति शनिवार शनि के निमित्त व्रत-उपवास करें।- शुभ मुहूर्त देखकर शनि कवच धारण करें।- सात मुखी रुद्राक्ष धारण करें।- आज आपके खाने तिल से बनी सामग्री अवश्य खाएं।- शनि संबंधी दान या उपहार बिल्कुल ग्रहण ना करें।- प्रतिदिन या हर शनिवार इष्टदेवता को काले या नीले रंग के फूल अवश्य चढ़ाएं।- पुरुष परस्त्री और स्त्री परपुरुष का साथ तुरंत छोड़ दें अन्यथा शनि और क्रूर हो जाएगा और आपको उसके बहुत बुरे फल प्राप्त होंगे।- कम से कम सात शनिवार एक-एक नारियल नदी में प्रवाहित करें।- घर में पुरानी लकड़ी और कोयला हो तो उसे तुंरत बाहर कर दें।- शनिवार को जमीन में काजल की डिबिया गाढ़ दें।- किसी सूखे कुएं में प्रति शनिवार दूध डालें।

Thursday, November 4, 2010

क्या जीवन साथी से नहीं बनती है?

लाइफ पार्टनर से बनती है? जीवन साथी आपके रिश्ते को लेकर उदासीन है? छोटी सी बात अनबन का कारण बन गई? घर का वास्तु सीधा संबंधो को प्रभावित करता है। जानते हैं कुछ ऐसे ही वास्तुदोष जिनके होने पर पति-पत्नी के सबंधों को प्रभावित करते हैं। घर का वातावरण ऐसा होना चाहिए कि ऋणात्मक शक्तियां कम तथा सकारात्मक शक्तियां अधिक क्रियाशील हों। यह सब वास्तु के द्वारा ही संभव हो सकता है।
घर के ईशान कोण का बहुत ही महत्व है। यदि पति-पत्नी साथ बैठकर पूजा करें तो उनका आपस का अहंकार खत्म होकर संबंधों में मधुरता बढ़ेगी। गृहलक्ष्मी द्वारा संध्या के समय तुलसी में दीपक जलाने से नकारात्मक शक्तियों को कम किया जा सकता है। घर के हर कमरे के ईशान कोण को साफ रखें. शयनकक्ष के।पति-पत्नी में आपस में वैमनस्यता का एक कारण सही दिशा में शयनकक्ष का न होना भी है। अगर दक्षिण-पश्चिम दिशाओं में स्थित कोने में बने कमरों में आपकी आवास व्यवस्था नहीं है तो प्रेम संबंध अच्छे के बजाए, कटुता भरे हो जाते हैं।शयनकक्ष के लिए दक्षिण दिशा निर्धारित करने का कारण यह है कि इस दिशा का स्वामी यम, शक्ति एवं विश्रामदायक है। घर में आराम से सोने के लिए दक्षिण एवं नैऋत्य कोण उपयुक्त है। शयनकक्ष में पति-पत्नी का सामान्य फोटो होने के बजाए हंसता हुआ हो, तो वास्तु के अनुसार उचित रहता है।घर के अंदर उत्तर-पूर्व दिशाओं के कोने के कक्ष में अगर शौचालय है तो पति-पत्नी का जीवन बड़ा अशांत रहता है। आर्थिक संकट व संतान सुख में कमी आती है। इसलिए शौचालय हटा देना ही उचित है। अगर हटाना संभव न हो तो शीशे के एक बर्तन में समुद्री नमक रखें। यह अगर सील जाए तो बदल दें। अगर यह संभव न हो तो मिट्टी के एक बर्तन में सेंधा नमक डालकर रखें।
घर के अंदर यदि रसोई सही दिशा में नहीं है तो ऐसी अवस्था में पति-पत्नी के विचार कभी नहीं मिलेंगे। रिश्तों में कड़वाहट दिनों-दिन बढ़ेगी। कारण अग्नि का कहीं ओर जलना। रसोई घर की सही दिशा है आग्नेय कोण। अगर आग्नेय दिशा में संभव नहीं है तो अन्य वैकल्पिक दिशाएं हैं। आग्नेय एवं दक्षिण के बीच, आग्नेय एवं पूर्व के बीच, वायव्य एवं उत्तर के बीच।यदि हम अपने वैवाहिक जीवन को सुखद एवं समृद्ध बनाना चाहते हैं और अपेक्षा करते हैं कि जीवन के सुंदर स्वप्न को साकार कर सकें।

नरक चतुर्दशी : मन के सारे पाप दूर हो जाते

कार्तिक मास के कृष्ण चतुर्दशी के दिन यमराज की पूजा व व्रत का विधान है। इसे रूप चतुर्दशी और छोटी दीपावली भी कहते हैं। इस दिन नदी में दीप दान का विशेष महत्व है। नदी में स्नान सुबह और दीपदान के लिए शाम का समय श्रेष्ठ है।
यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को रखा जाता है। इस दिन शरीर पर तिल के तेल की मालिश करके सूर्योदय के पूर्व स्नान करने का विधान है। स्नान के दौरान अपामार्ग (एक प्रकार का पौधा) को शरीर पर स्पर्श करना चाहिए। अपामार्ग को निम्न मंत्र पढ़कर मस्तक पर घुमाना चाहिए-
सितालोष्ठसमायुक्तं सकण्टकदलान्वितम्।
हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाण: पुन: पुन:।।

स्नान करने के बाद शुद्ध वस्त्र पहनकर, तिलक लगाकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके निम्न मंत्रों से प्रत्येक नाम से तिलयुक्त तीन-तीन जलांजलि देनी चाहिए। यह यम-तर्पण कहलाता है। इससे वर्ष भर के पाप नष्ट हो जाते हैं-
ऊँ यमाय नम:, ऊँ धर्मराजाय नम:, ऊँ मृत्यवे नम:, ऊँ अन्तकाय नम:, ऊँ वैवस्वताय नम:, ऊँ कालाय नम:,
ऊँ सर्वभूतक्षयाय नम:, ऊँ औदुम्बराय नम:, ऊँ दध्राय नम:, ऊँ नीलाय नम:, ऊँ परमेष्ठिने नम:, ऊँ वृकोदराय नम:, ऊँ चित्राय नम:, ऊँ चित्रगुप्ताय नम:
तर्पण कर्म सभी पुरुषों को करना चाहिए, चाहे उनके माता-पिता गुजर चुके हों या जीवित हों। फिर देवताओं का पूजन करके सायंकाल यमराज को दीपदान करने का विधान है।दीपक जलाने का कार्य त्रयोदशी से शुरू करके अमावस्या तक करना चाहिए। रूप चतुर्दशी पर भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करने का भी विधान बताया गया है . इसी दिन उन्होंने नरकासुर का वध किया था। जो भी व्यक्ति विधिपूर्वक भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करता है, उसके मन के सारे पाप दूर हो जाते हैं और अंत में उसे बैकुंठ में जगह मिलती है।

Wednesday, November 3, 2010

समुद्र मंथन के समय निकले थे धनवंतरि

पूजन सामग्री- गंध, अबीर, गुलाल पुष्प, रोली, नैवेद्य के लिए चांदी का पात्र, प्रसाद के लिए खीरए पान, लौंग, सुपारी, वस्त्र (मौली) शंखपुष्पी, तुलसी, ब्राह्मी आदि पूजनीय औषधियां।
पूजन विधि
धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरि की पूजा इस तरह करें। सबसे पहले नहाकर साफ कपड़े पहनें। भगवान धनवंतरि की मूर्ति या चित्र साफ स्थान पर स्थापित करें तथा पूर्व की ओर मुखकर बैठ जाएं। उसके बाद भगवान धनवंतरि का आह्वान निम्न मंत्र से करें-
सत्यं च येन निरतं रोगं विधूतं,अन्वेषित च सविधिं आरोग्यमस्य।
गूढं निगूढं औषध्यरूपं, धनवंतरिं च सततं प्रणमामि नित्यं।।
इसके बाद पूजन स्थल पर आसन देने की भावना से चावल चढ़ाएं। इसके बाद आचमन के लिए जल छोड़े। भगवान धनवंतरि के चित्र पर गंध, अबीर, गुलाल पुष्प, रोली, आदि चढ़ाएं। चांदी के पात्र में खीर का नैवेद्य लगाएं। (अगर चांदी का पात्र उपलब्ध न हो तो अन्य पात्र में भी नैवेद्य लगा सकते हैं।) पुन: आचमन के लिए जल छोड़े। मुख शुद्धि के लिए पान, लौंग, सुपारी चढ़ाएं। भगवान धन्वन्तरि को वस्त्र (मौली) अर्पण करें। शंखपुष्पी, तुलसी, ब्राह्मी आदि पूजनीय औषधियां भी भगवान धन्वन्तरि को अर्पित करें। रोगनाश की कामना के लिए इस मंत्र का जाप करें-
ऊँ रं रूद्र रोगनाशाय धन्वन्तर्ये फट्।।
इसके बाद भगवान धनवंतरि को श्रीफल व दक्षिणा चढ़ाएं। पूजन के अंत में कर्पूर आरती करें।
क्यों खरीदे जाते हैं बर्तन
धनतेरस पर बर्तन खरीदने का महत्व है। ऐसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के समय धनवंतरि हाथ में अमृत का कलश लेकर निकले थे। इस कलश के लिए देवताओं और दानवों में भारी युद्ध भी हुआ था। इस कलश में अमृत था और इसी से देवताओं को अमरत्व प्राप्त हुआ। तभी से धनतेरस पर प्रतीक स्वरूप बर्तन खरीदने की परंपरा है। इस बर्तन की भी पूजा की जाती है और खुद व परिवार की बेहतर सेहत के लिए प्रार्थना की जाती है।

Tuesday, November 2, 2010

धनत्रयोदशी पर करें शंख की पूजा

शंख का बड़ा महत्व है। विष्णु के चार आयुधो में शंख को भी एक स्थान मिला है। आरती के समय शंखध्वनि का विधान है। पुजा में शंख का महत्व है। शंख की किसी भी शुभ मूहूर्त में पूजा की जा सकती है, यदि धनत्रयोदशी के दिन इसकी पूजा की जाए तो दरिद्रता निवारण, आर्थिक उन्नति, व्यापारिक वृद्धि और भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए तंत्र के अनुसार यह सबसे सरल प्रयोग है।यह दक्षिणावर्ती शंख जिसके घर में रहता है, वहां लक्ष्मी का स्थाई निवास होता है। घर में स्थिर लक्ष्मी का निवास हो तो ये प्रयोग जरुर करें

ऊं श्रीं क्लीं ब्लूं सुदक्षिणावर्त शंखाय नम:

मंत्र का पाठ कर लाल कपड़े पर चांदी या सोने के आधार पर शंख को रख दें। आधार रखने के पूर्व चावल और गुलाब के फूल रखे। यदि आधार न हो तो चावल और गुलाब पुष्पों (लाल रंग) के ऊपर ही शंख स्थापित कर दें। तत्पश्चात निम्न मंत्र का 108 बार जप करें-

मंत्र - ऊं श्रीं

10 से 12 बजे के बीच उपरोक्त प्रकार से सवा माह पूजन करने से-लक्ष्मी प्राप्ति। 12 बजे से 3 बजे के बीच सवा माह पूजन करने से यश कीर्ति प्राप्ति, वृद्धि। 3 से 6 बजे के बीच सवा माह पूजन करने से-संतान प्राप्ति
इसके अन्य प्रयोग निम्न है
सवा महा पूजन के बाद इसी रंग की गाय के दूध से स्नान कराओ तो बन्ध्या स्त्री भी पुत्रवती हो जाती है। पूजा के पश्चात शंख को लाल रंग के वस्त्र मं लपेटकर तिजोरी में रख दो तो खुशहाली आती है।
शंख को लाल वस्त्र से ढककर व्यापारिक संस्थान में रख दो तो दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि और लाभ होता है।

धनतेरस पर राशि के अनुसार बताई गई वस्तुएं खरीदें। वर्षभर शुभ फल देने वाली रहेगी:
मेष- मेष राशि वाले लोग इस धन तेरस तांबे के बर्तन से खरीददारी शुरू करें। इस शुभ पर्व पर आपके लिए भूमि, भवन की खरीददारी लाभ दायक रहेगी।वृष- चांदी के बर्तन और मूर्तियों की खरीददारी करना आपके लिए शुभ होगा। इसके अलावा आपकी राशि के लिए चावल की खरीददारी भी विशेष फलदायक रहेगी।मिथुन- सुखी जीवन के लिए आप कांसे की गणेश मूर्ति खरीदें और अपनी राशि के अनुसार घर सजाने के लिए हंस का जोड़ा अवश्य खरीदें। इससे घर के सदस्यों में प्रेम बना रहेगा।कर्क- धन तेरस पर धन प्राप्ति के लिए आप सर्वश्रेष्ठ स्फटिक श्री यंत्र खरीदें इस पर्व पर स्फटिक खरीदना आपके लिए अत्यंत शुभ और विशेष फल देने वाला रहेगा।सिंह- इस शुभ पर्व पर सिंह राशि वालों कों तांबे का सूर्य खरीदना चाहिए। अगर आप अपनी राशि के अनुसार लक्ष्मीजी की अत्यंत प्रिय धातु स्वर्ण से बनें आभूषण खरीदें, इससे मां लक्ष्मी की विशेष कृपा होगी।कन्या- इस राशि के लोगों को कांसे के दीपक खरीदना चाहिए और मां लक्ष्मी के स्वागत के लिए आप हाथीदांत से बनी हुई वस्तुओं से घर साजाएं।तुला- शुक्र की राशि होने के कारण आप अपनी राशि के अनुसार चांदी का श्री यंत्र और सिक्का खरीदें।वृश्चिक- इस पर्व पर आप तांबा और पंचधातु की खरीददारी की शुरूआत करें। वृश्चिक राशि वालों को तांबे या पंचधातु से बना श्री यंत्र और स्वस्तिक खरीदना चाहिए।धनु- धन तेरस के पर्व पर आप भगवान विष्णु और लक्ष्मीजी की स्वर्ण प्रतिमा खरीदें। इस मूर्ति के रूप में भगवान विष्णु-लक्ष्मी आपके घर हमेशा निवास करेंगे।मकर- मकर राशि वाले जातक राशि के अनुसार वाहन खरीदें। घर की सजावट के सामान में परदे, कुशन आदि खरीदें।कुंभ- अपने राशि स्वामी के अनुसार आप शनि का रत्न नीलम खरीदें। फ्रीज, एसी, पलंग और शनि से संबंधित वस्तुएं भी खरीद सकते है। मीन- आप अपनी राशि के अनुसार इस पर्व पर एक्वेरियम, कालीन, बेड शीट की खरीददारी करें।

कैसे कुबेर देव की कृपा प्राप्त हो

कुबेर देव को धन का देवता माना जाता है। वे देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं, इनकी कृपा से किसी को भी धन प्राप्ति के योग बन जाते हैं। इन्हें प्रसन्न करने के लिए एक सटिक मंत्र है, जिसके जप से कुबेर देव की कृपा प्राप्त हो जाती है।
कुबेर देव का मंत्र: ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय, धन धन्याधिपतये धन धान्य समृद्धि मे देहित दापय स्वाहा।
यह देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर देव का अमोघ मंत्र है। इस मंत्र का तीन माह तक रोज 108 बार जप करें। जप करते समय अपने सामने एक कौड़ी (धनलक्ष्मी कौड़ी) रखें। तीन माह के बाद प्रयोग पूरा होने पर इस कौड़ी को अपनी तिजोरी या लॉकर में रख दें। ऐसा करने पर कुबेर देव की कृपा से आपका लॉकर कभी खाली नहीं होगा। हमेशा उसमें धन भरा रहेगा।

वंदनवार, स्वास्तिक,रंगोली

दीपावली-पूजन में प्रयुक्त होने वाली वस्तुएं एवं मांगलिक लक्ष्मी चिह्नï सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य, शांति और उल्लास लाने वाले माने जाते हैं इनमें प्रमुख इस प्रकार हैं-
वंदनवार- आम या पीपल के नए कोमल पत्तों की माला को वंदनवार कहा जाता है। इसे दीपावली के दिन पूर्वीद्वार पर बांधा जाता है। यह इस बात का प्रतीक है कि देवगण इन पत्तों की भीनी-भीनी सुगंध से आकर्षित होकर घर में प्रवेश करते हैं। ऐसी मान्यता है कि दीपावली की वंदनवार पूरे 31 दिनों तक बंधी रखने से घर-परिवार में एकता व शांति बनी रहती हैं।
स्वास्तिक- लोक जीवन में प्रत्येक अनुष्ठान के पूर्व दीवार पर स्वास्तिक का चिह्नï बनाया जाता है। उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम इन चारों दिशाओं को दर्शाती स्वास्तिक की चार भुजाएं, ब्रह्मïचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास आश्रमों का प्रतीक मानी गई हैं। यह चिह्नï केसर, हल्दी, या सिंदूर से बनाया जाता है।
कौड़ी- लक्ष्मी पूजन की सजी थाली में कौड़ी रखने की प्राचीन परंपरा है, क्योंकि यह धन और श्री का पर्याय है। कौड़ी को तिजौरी में रखने से लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है।
लच्छा- यह मांगलिक चिह्नï संगठन की शक्ति का प्रतीक है, जिसे पूजा के समय कलाई पर बांधा जाता है।
तिलक- पूजन के समय तिलक लगाया जाता है ताकि मस्तिष्क में बुद्धि, ज्ञान और शांति का प्रसार हो।
पान-चावल- ये भी दीप पर्व के शुभ-मांगलिक चिह्नï हैं। पान घर की शुद्धि करता है तथा चावल घर में कोई काला दाग नहीं लगने देता।
बताशे या गुड़- ये भी ज्योति पर्व के मांगलिक चिह्नï हैं। लक्ष्मी-पूजन के बाद गुड़- बताशे का दान करने से धन में वृद्धि होती है।
ईख- लक्ष्मी के ऐरावत हाथी की प्रिय खाद्य-सामग्री ईख है। दीपावली के दिन पूजन में ईख शामिल करने से ऐरावत प्रसन्न रहते हैं और उनकी शक्ति व वाणी की मिठास घर में बनी रहती है।
ज्वार का पोखरा- दीपावली के दिन ज्वार का पोखरा घर में रखने से धन में वृद्धि होती है तथा वर्ष भर किसी भी तरह के अनाज की कमी नहीं आती। लक्ष्मी के पूजन के समय ज्वार के पोखरे की पूजा करने से घर में हीरे-मोती का आगमन होता है।
रंगोली- लक्ष्मी पूजन के स्थान तथा प्रवेश द्वार व आंगन में रंगों के संयोजन के द्वारा धार्मिक चिह्नï कमल, स्वास्तिक कलश, फूलपत्ती आदि अंकित कर रंगोली बनाई जाती है। कहते हैं कि लक्ष्मीजी रंगोली की ओर जल्दी आकर्षित होती है।

रानी सुनीति ने किया था गोवत्सद्वादशी व्रत

कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की द्वादशी गोवत्वद्वादशी के नाम से जानी जाती है। इस व्रत में गोमाता का पूजन किया जाता है।
सतयुग में महर्षि भृगु के आश्रम में भगवान शंकर के दर्शन की अभिलाषा से करोड़ों मुनिगण तपस्या कर रहे थे। एक दिन उन तपस्यारत मुनियों को दर्शन देने के लिए भगवान शंकर एक बूढ़े ब्राह्मण का वेष बनाकर आए। उनके साथ सवत्सा गौ के रूप में माता पार्वतीजी भी थीं। वृद्ध ब्राह्मण बने भगवान शंकर महर्षि भृगु के पास जाकर बोले- हे मुने। मैं यहां स्नानकर जम्बूक्षेत्र में जाऊंगा और दो दिन बात लौटूंगा, तब तक आप इस गाय की रक्षा करें।
मुनियों द्वारा इस बात की प्रतिज्ञा करने पर ब्राह्मण रूपधारी भगवान शंकर अंतध्र्यान हो गए और फिर थोड़ी देर में बाघ के रूप में प्रकट होकर बछड़े सहित गौ को डराने लगे। ऋषिगण भी बाघ से भयभीत हो गए तब उन्होंने गाय की रक्षा के लिए ब्रह्मा से प्राप्त भयंकर शब्द करने वाले घंटे को बजाना प्रारंभ किया। जिसे सुनकर भगवान शंकर अपने वास्तविक स्वरूप में आ गए और माता पार्वती भी अपने मूल स्वरूप में लौट आईं। भगवान की लीला देख सभी मुनियों ने उनका विधि पूर्वक पूजन किया। उस दिन कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की द्वादशी थी इसलिए यह व्रत गोवत्सद्वादशी के रूप में प्रारंभ हुआ।
एक अन्य कथा :राजा उत्तानपाद की रानी सुनीति इस व्रत को किया करती थी, जिसके प्रभाव से उन्हें ध्रुव जैसा पुत्र प्राप्त हुआ। आज भी माताएं पुत्ररक्षा व संतान सुख के लिए इस व्रत को करती हैं।

Monday, November 1, 2010

सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्।

सिंदूर गहरे नारंगी या भगवा रंग का होता है। पूजा में न केवल सिंदूर चढ़ाया जाता है बल्कि देवताओं की मूर्तियों पर सिंदूर का चोला भी चढ़ाया जाता है। हनुमान की मूर्ति पर सिंदूर का चोला चढ़ाया जाता है। पूजा में सिंदूर को चढ़ाने का अपना महत्व है। पूजा में इस मंत्र उच्चारण होता है-

सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्।
शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यïताम्॥
अर्थात- लाल रंग का सिंदूर शोभा, सौभाग्य और सुख बढ़ाने वाला है। शुभ और सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। हे देव! आप स्वीकार करें।

इसी प्रकार देवी-देवताओं के लिए यह मंत्र उच्चारित करें-
सिन्दूरमरुणाभासं जपाकुसुमसनिभम्।
अर्पितं ते मया भक्त्या प्रसीद परमेश्वरि॥
अर्थात- प्रात:कालीन सूर्य की आभा तथा जवाकुसुम की तरह सिंदूर आपको हम अर्पित करते हैं। हे मां! आप प्रसन्न हों।
सिंदूर का महत्व

सिंदूर का उपयोग महिलाओं द्वारा विवाह के पश्चात मांग भरने में भी किया जाता रहा है। आजकल सिंदूर से मांग भरने का चलन कम हो गया है। सिंदूर से मांग भरने से महिला के शरीर में स्थित वैद्युतिक उत्तेजना नियंत्रित होती है। सिंदूर में पारा होता है। इससे महिलाओं के सिर में होने वाली, जंू, लीख (डेन्ड्रफ) भी नष्ट होती है।
सिंदूर का विज्ञान
सिंदूर आरोग्य, बुद्धि, त्याग और दैवी महात्वाकांक्षा का प्रतीक है। साधु-संन्यासियों के वस्त्र का रंग भी ऐसा ही होता है। सिंदूर चढ़ाने का अभिप्राय यही है कि हमारा जीवन त्यागमय हो और लक्ष्य भगवान की प्राप्ति। सिंदूर में पारा होता है जो हमारे शरीर के लिए लाभकारी है। मूर्ति पर सिंदूर का चोला चढ़ाने से उसका संरक्षण होता है।

Sunday, October 31, 2010

पैसों की परेशानी से निजात पायें

पैसों की बरकत नहीं रहती? पर्स अक्सर खाली रहने लगा है। जीवन में मुश्किलों से जुझ रहे हैं, तो नीचे लिखे इस टोटके को अपनाकर कोई भी पैसों की परेशानी से निजात पा सकता हैं।
- लक्ष्मी का स्वरूप माना जाने वाला एकाक्षरी बीज मंत्र ह्रीं बहुत प्रभावशाली और चमत्कारी है। - किसी भी शनिवार के दिन सुबह स्नान आदि से निपट कर शनि की होरा में एक साबुत पीपल का पत्ता तोड़कर ले आएं। - मन में ऊं नमो: नारायण मंत्र का जप करते रहे। - फिर उस पत्ते को गंगाजल या किसी तीर्थ स्थल के जल से धोकर उस पर अष्टगंध की स्याही से अपने हाथ की अनामिका अंगुली से ह्रीं लिख लें। - उसके बाद धूप-दीप करने के बाद उक्त पत्ते को नये पत्ते से बदल लें। - पुराने पत्ते को किसी बहते जल में प्रवाहित कर दें। नये पत्ते को आप अपनी दुकान आदि में पैसे रखने के स्थान पर या जेब में पर्स भी रख सकते हैं।- विशेष ध्यान यह रहे कि पत्ता नीचे रखें।

भक्त महालक्ष्मी का प्रिय हो जाता

जीवन धन अभाव में परेशानियों और दुखों से भरा है, उसके लिए एक अचूक लक्ष्मी मंत्र है। इस मंत्र के प्रभाव से बहुत गरीब लोगों को भी अच्छा धन प्राप्त होने के योग बन जाते हैं।मंत्र सिद्ध होने के बाद साधक को कभी भी धन की कमी नहीं होती। इस मंत्र जप से भक्त महालक्ष्मी का प्रिय हो जाता है और देवी लक्ष्मी उस पर सदैव अपनी कृपा बरसाती रहती हैं।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं दरिद्रय विनाशके जगत्प्रसूत्यै नम:

इस मंत्र को सिद्ध करने के लिए दीपावली के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें, सभी आवश्यक कार्यों से निवृत्त हो जाएं। फिर घर में किसी पवित्र स्थान पर महालक्ष्मी का चित्र स्थापित करें। चित्र के समक्ष घी का दीपक, अगरबत्ती आदि लगाएं। मां लक्ष्मी के सामने बैठकर उक्त मंत्र की 11 मालाएं जपें। माला कमलगट्टे की होनी चाहिए। मंत्र जप के समय दीपक जलता रहना चाहिए।
दीपावली के दिन 11 मालाएं जप करने के बाद प्रतिदिन अपने सामथ्र्य के अनुसार इस मंत्र का जप करें। 12 लाख मंत्र जप के बाद यह सिद्ध हो जाता है और देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद साधक को प्राप्त हो जाता है। इसका शुभ प्रभाव कुछ दिनों में दिखाई देने लगेगा। इस दौरान किसी भी प्रकार का अधार्मिक कृत्य ना करें। अन्यथा मंत्र लाभदायक नहीं होगा।

Saturday, October 30, 2010

लक्ष्मी स्तवन का पाठ

महालक्ष्मी की पूजा-उपासना लोक पंरपराओं में प्राय: धन-दौलत की परेशानियों को दूर करने का एक धार्मिक उपाय अधिक दिखाई देता है। माता लक्ष्मी प्रकाश की ही प्रतीक है और प्रकाश ज्ञान का यानि मां लक्ष्मी जागरण का संदेश देती है। दीपावली पर की जाने वाली रोशनी भी जागकर उठ खड़े होने को ही प्रेरित करती है। सरल शब्दों में जब आप विचार, व्यवहार, दृष्टि की मलीनता दूर कर सद्गुणों को अपनाने की शुरुआत करते हैं, तब खुशहाली के दरवाजे खुल जाते हैं। जिंदगी खुशियों की रोशनी से जगमगा जाती है। धार्मिक आस्था भी यही है कि खुले दरवाजों में माता लक्ष्मी प्रवेश करती है।
माता लक्ष्मी के आवाहन, ध्यान और प्रसन्नता के लिए धर्म शास्त्रों में तरह-तरह के सूक्त, स्त्रोत और मंत्र बताए गए हैं। इनमें से ही एक है लक्ष्मी स्तवन। इस लक्ष्मी स्तवन का पाठ हर लक्ष्मी पूजा, शुक्रवार को वैभव लक्ष्मी पूजा, दीपावली, धनतेरस या अन्य किसी भी विशेष लक्ष्मी पूजा की आरंभ में करने पर वैभव, ऐश्वर्य के साथ मनोरथ पूर्ति करता है। संस्कृत भाषा या व्याकरण की जानकारी के अभाव में आप इसकी हिन्दी अर्थ का भी पाठ कर लक्ष्मी की प्रसन्नता से दरिद्रता दूर कर सकते हैं।
लक्ष्मी स्तवन -
या रक्ताम्बुजवासिनी विलासिनी चण्डांशु तेजस्विनी ।
या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी ॥
या रत्नाकरमन्थनात्प्रगटिता विष्णोस्वया गेहिनी ।
सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती ॥

इस लक्ष्मी स्तवन का सरल अर्थ है - लाल कमल पर रहने वाली, अद्भुत आभा और कांतिवाली, असह्य तेजवाली, रक्त की भाति लाल रंग वस्त्र धारण करने वाली, मन को आनंदित करने वाली, समुद्रमंथन से प्रकट हुईं विष्णु भगवान की पत्नी, भगवान विष्णु को अति प्रिय, कमल से जन्मी है और अतिशय पूज्य मां लक्ष्मी आप मेरी रक्षा करें और मनोरथ पूरे कर जीवन वैभव और ऐश्वर्य से भर दे।

Friday, October 29, 2010

धनदायक है नागकेसर

नागकेसर को तंत्र के अनुसार एक बहुत ही शुभ वनस्पति माना गया है। काली मिर्च के समान गोल या कबाब चीनी की भांति दाने में डंडी लगी हुई गेरू के रंग का यह गोल फूल होता है। इसकी गिनती पूजा- पाठ के लिए पवित्र पदार्थो में की जाती है।तंत्र के अनुसार नागकेसर एक धनदायक वस्तु है। नीचे लिखे इस धन प्राप्ति के प्रयोग को अपनाकर आप भी धनवान बन सकते हैं।
- किसी पूर्णिमा को सोमवार हो उस दिन यह प्रयोग करें।- किसी भी मन्दिर में शिवलिंग पर पांच बिल्वपत्रों के साथ यह फूल भी चढ़ा दीजिए। इससे पूर्व शिवलिंग को कच्चे दूध, दही, शक्कर, घी, गंगाजल, आदि से धोकर पवित्र करें। - पांच बिल्व पत्र और नागकेशर के फूल की संख्या हर बार एक ही रखना चाहिए।- अगली पूर्णिमा तक निरंतर चढ़ाते रहे।- आखिरी दिन चढ़ाये गये फूल तथा बिल्व पत्रों में से एक अपने घर ले आए। धन सम्पदा अर्जित करवाने में नागकेशर फूल चमत्कारी प्रभाव दिखाते हैं।

बुरी आत्माओं से रक्षा करता है ये डाग
कुत्ते बहादुरी और वफादारी का प्रतीक माने जाते हैं। चीन में भी बहादुर कुत्ते मतलब फूडाग का प्रचलन है। इसके प्रतीकों का जोड़ा घर के बाहर रखा जाता है। जिससे नकारात्मक उर्जा घर से आने से रोका जा सकता है।
फूडाग का प्रतीक बुरी नजर से भी बचाव कर देता है। फूडाग को खरीदते समय ध्यान रखना चाहिए। बच्चे के साथ मादा और नर को दरवाजे के दोनों तरफ लगाते हैं। यह जोड़ा लगाते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि नर फूडाग को दांयी ओर तथा मादा फूडाग को बाईं ओर रखना चाहिए। इन कुत्तो का स्वरूप शेर से मिलता- जुलता लगता है। ये डाग बुरी आत्माओं से भी घर की रक्षा करता है।

पूजा के दीपक

देवी-देवताओं की पूजा में आरती सबसे महत्वपूर्ण कर्म है। आरती के साथ ही पूजा-अर्चना पूर्ण होती है। पूजा में आरती के महत्व को देखते हुए दीपक तैयार करते समय कई सावधानियां रखनी अनिवार्य है। विधि-विधान से तैयार किए गए दीपक से देवी-देवताओं की कृपा जल्दी ही
- देवताओं को घी का दीपक अपनी बायीं ओर तथा तेल का दीपक दायीं ओर लगाना चाहिए।- देवी-देवताओं को लगाया गया दीपक पूजन कार्य के बीच बुझना नहीं चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखें।- दीपक हमेशा भगवान के सामने ही लगाएं।- घी के दीपक के लिए सफेद रुई की बत्ती लगाएं।- तेल के दीपक के लिए लाल बत्ती का उपयोग किया जाना चाहिए।- दीपक कहीं से खंडित या टूटा नहीं होना चाहिए।

Thursday, October 28, 2010

कामयाबी के लिए करें गुरु पूजा

गुरुवार का दिन बृहस्पति या गुरु की उपासना को समर्पित है। बृहस्पति देवगुरु माने जाते हैं। गुरु शुभ ग्रह माना जाता है। यह व्यक्ति के जीवन में विद्या, ज्ञान, संतान सुख को भी नियत करता है। मीन और धनु राशि के स्वामी गुरु है। गुरु मकर राशि में बुरे फल देता है। इसके विपरीत कर्क राशि में होने पर यह शुभ प्रभाव देते हैं।
स्त्री और पुरुष के खुशहाल दाम्पत्य में गुरु की भूमिका अहम होती है। गुरु पुरुष तत्व का कारक है। इसलिए पुरुष के साथ ही खासतौर पर स्त्री के विवाह आ रही रुकावटों को गुरु की प्रसन्नता से दूर करने के लिए गुरुवार का व्रत श्रेष्ठ माना जाता है।
ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार कुण्डली में गुरु ग्रह के शुभ प्रभाव से व्यक्ति सरल, शांत, धार्मिक, आध्यात्मिक और खुबसूरत व्यक्तित्व का होता है। गुरु के अच्छा-बुरा असर ही व्यक्ति की तकदीर का फैसला करता है। कुण्डली में बुरे योग से शरीर में रोग जैसे मधुमेह, लीवर या वात रोग पैदा होते हैं। बुरी घटना भी हो सकती है। वहीं बिजनेस, पढ़ाई और अदालती मामलों में कामयाबी या नाकामी गुरु के अच्छे-बुरे असर से निश्चित होती है।
गुरुवार के दिन गुरु की उपासना और व्रत कर गुरु के शुभ प्रभाव से वैवाहिक, कारोबारी, मानसिक और व्यावहारिक परेशानियों से छुटकारा मिल सकता है। इसलिए यहां बताई जा रही गुरुवार व्रत और पूजा की सरल विधि -
- गुरुवार के दिन सबेरे स्नान करें। यथासंभव पीले वस्त्र पहनें।- एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर गुरु बृहस्पति की प्रतिमा को किसी पात्र में रखकर स्थापित करें। - अगर कोई पुरुष जनेऊधारी है तो गुरु की पूजा के समय जनेऊ जरुर पहनें।
- गुरुदेव की गंध, अक्षत, पीले वस्त्र, पीले फूल, चमेली के फूलों से पूजा-अर्चना करें।- पीली वस्तुओं जैसे चने की दाल से बने पकवान, चने, गुड़ या पीले फलों का भोग लगाएं।- गुरुवार व्रत कथा करें। बृहस्पति आरती करें। क्षमा प्रार्थना कर मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करें।- इस दिन किसी पात्र ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए या उनके निमित्त भोजन सामग्री दान देनी चाहिए। - पीले रंग की सामग्री और दक्षिणा देनी चाहिए। - समर्थ हो तो सोने का दान बहुत शुभ फल देता है। सोने की धातु के स्वामी गुरु को ही है। - ब्राह्मण के भोजन या दान के बाद ही व्रती भोजन करें। ऐसे सात गुरुवार लगातार व्रत करें।
धार्मिक दृष्टि से गुरुवार के व्रत, पूजा-उपासना से कुण्डली में बनी गुरु ग्रह दोष शांति होती है। सुख-समृद्धि के साथ विशेष तौर पर कारोबार में फायदे, अच्छी शिक्षा, योग्य वर या वधू पाने के सपने पूरे होते हैं।

शाम का समय देवताओं की आराधना का

कई लोग समय की कमी के कारण शाम के वक्त आराम करते हैं। यहां आराम करने से हमारा मतलब है-सोने से। शाम को सोना शास्त्रों की दृष्टि से अनुचित माना जाता है।
वैसे देखा जाए तो सोने के रात्रि को ही श्रेष्ठ माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार तो दिन भी नहीं सोना चाहिए। दिन में सोने से आयु घटती है, शरीर पर अनावश्यक चर्बी बढ़ती है, आलस्य बढ़ता है आदि। दिन में सोना प्रतिबन्धित है। सिर्फ वृद्ध, बालक एवं रोगियों के मामले में यहां स्वीकृति है।जब शास्त्रों में दिन में सोने पर पाबंदी है तो शाम का समय तो वैसे भी संध्या-आचमन का होता है। शाम का समय देवताओं की आराधना एवं संध्या का होता है।
इस समय सोने से शरीर में शिथिलता आती है और नकारात्मक विचारों का आगमन होता है। इस समय तो पूरे भक्तिभाव से भगवान की पूजा-अर्चना एवं संध्या करनी चाहिए।
शाम को सोने के साथ ही खाना खाना, पढ़ाई करना एवं मैथुन कर्म करना भी वर्जित है। कहते हैं इन कर्मों को शाम को करने से आयु तो घटती ही है, साथ ही यश, लक्ष्मी, विद्या आदि सभी का नाश हो जाता है। इसलिए शाम को सोना शास्त्रोक्त विधान के अनुसार अनुचित माना गया है।

रिश्ते को प्रभावित करने वाले ग्रह

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली से व्यक्ति के सभी पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों पर विचार किया जाता है। कुंडली के ग्रहों की स्थिति से मालूम किया जा सकता है कि उस व्यक्ति के अपने परिवार के लोगों से कैसे रिश्ते हैं और भविष्य में कैसे रहेंगे? मित्र कैसे हैं? इसी तरह अन्य सभी रिश्तों पर विचार किया जा सकता है।
हर रिश्ते को अलग-अलग ग्रह प्रभावित करते हैं-
रिश्ता- रिश्ते को प्रभावित करने वाला ग्रह
राज्य- सूर्य
भाई, मित्र- मंगल
गुरु, पिता, दादा- गुरु
चाचा, ताऊ- शनि
पुत्र- केतु
माता, दादी- चंद्र
पुत्री, बहन, बुआ- बुध
पत्नी या पति- शुक्र
ससुराल, ननिहाल- राहु
हर रिश्ता कैसा रहेगा यह कुंडली में स्थित ग्रहों के शुभ-अशुभ होने पर निर्भर करता है।
- यदि आपको राज्य या समाज में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो आप सूर्य की आराधना करें। प्रतिदिन सूर्य को जल चढ़ाएं, इससे समाज में यश, मान-सम्मान मिलेगा।- भाई या मित्र से संबंध ठीक नहीं रहते तो मंगलदेव की आराधना करें। प्रति मंगलवार शिवलिंग पर लाल फूल चढ़ाएं।- यदि पिता, दादा या गुरु से रिश्ता ठीक नहीं है तो गुरु अथवा ब्रहस्पति की पूजा कराएं। प्रतिदिन शिवजी को पीले फूल अर्पित करें।- यदि चाचा या ताऊजी से संबंधों खटास है तो शनिवार को शनिदेव के निमित्त तेल का दान करें।- यदि पुत्र आपकी नहीं सुनता, तो केतु का उपचार करें। केतु संबंधी वस्तुओं का दान दें।
- चंद्र की आराधना से माता और दादी से रिश्तों में सुधार आएगा।- पुत्री, बहन या बुआ से रिश्तों में कड़वाहट आ गई है तो बुध ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान करें। बुधवार को श्रीगणेश को दूर्वा अर्पित करें।
- यदि पति-पत्नी के रिश्तों में किसी तरह की परेशानियां आ रही हैं तो शुक्रदेव को मनाएं। शुक्रवार को शुक्र ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान करें।- ससुराल या ननिहाल वालों को मनाने के लिए राहु जप कराएं।

Wednesday, October 27, 2010

धनियां करता है धन का आवाह्न

आपने बड़े-बूढ़ों को यह कहते हुए सुना होगा कि जिस घर में नमक बंधा हो, तो वहां बरकत रहती है। लक्ष्मी को कमल पर आसीन माना गया है।हल्दी की गाठों में साक्षात गणेश का रूप माना गया है और धनियां को इसलिए इस नाम से पुकारा जाता है क्योंकि वह धन का आवाह्न करता है। कारण चाहे जो भी हो लेकिन यह बिल्कुल सही है। जिस घर में नमक, खड़ा धना, हल्दी की गांठे और कमल गट्टों को भले ही कम मात्रा में ही सही लेकिन कु छ मात्रा में संजोकर रखा जाए तो निश्चय ही उस घर में बरकत होती है। वहां शांति बनी रहती है।साबुत नमक को पर्याप्त मात्रा में ईशान्य यानी उत्तर-पूर्व में रखने पर किसी भी विपरीत दिशा में शौचालय में रखने से उनका दोष कम हो जाता है।
समय किसी का गुलाम नहीं होता। व्यक्ति के जीवन में समय की कमी हमेशा बनी रहती है। इसलिए आज हर कोई चाहता है कि कम से कम समय में अधिक से अधिक समृद्धि प्राप्त हो जाए। फेंगशुई के उपायों में समृद्धि और शांति के रूप में कछुए को माना जाता है। कछुए का इतिहास पांच हजार वर्ष पुराना है। कछुए के अन्दर ईश्वर का निवास होता है।
चीन में प्रचलित एक किवदंती के अनुसार लगभग पांच हजार वर्ष पहले जब शिया काव नामक व्यक्ति अपने सहयोगियों के साथ खेत में सिंचाई के लिए खुदाई का काम कर रहा था। तब नीचे से एक बहुत बड़ा कछुआ निकला। तभी से चीनी मान्यता है कि इसके अन्दर भगवान का वास होता है। इसलिए उसका इस तरह अचानक प्रकट होना बहुत शुभ व समृद्धिदायक माना गया है।
अक्सर घर में जीवित कछुए को रखना संभव नहीं होता। इसलिए फेंगशुई के अनुसार शीशे या धातु से बने कछुए को रखना शुभ माना जाता है। इसे भी पानी से भरे छोटे कटोरे में रखना चाहिए। घर के उत्तर दिशा में रखा कछुआ बहुत लाभदायक होता है। यदि शयन कक्ष या ड्राइंगरूम में रखना हो तो इसकी पीठ दीवार की तरफ होनी चाहिए। इससे घर में समृद्धि के साथ ही शांति का स्थाई निवास होता है।

पर्स में रहेगी बरकत

घर का वास्तु, ऑफिस का वास्तु, आपकी कार का वास्तु, हर चीज में जब आप वास्तु का ध्यान रखते आएं हैं तो पर्स में वास्तु का ख्याल क्यों नहीं रखा जा सकता? जिस तरह हमारे आसपास का वातावरण हमें प्रभावित करता है। उसी प्रकार हमारा बैग या पर्स भी हमें प्रभावित करता है।तो आइये जानते हैं कि कैसे अपने बैग को वास्तु के अनुसार रखकर उसमें धन की बरकत बड़ा सकते हैं।
- अपने पर्स में एक लाल रंग का लिफाफा रखें। इसमें आप अपनी कोई भी मनोकामना एक कागज में लिख कर रखें। वह शीघ्र पूरी होगी।- बैग में लाल रेशमी धागे से एक गांठ बांध कर रखें।-बैग में शीशा और छोटा चाकु अवश्य रखें।- बैग में रुपये पैसे जहां रखते हों वहां पर कौड़ी या गोमती चक्र अवश्य रखें।- चाबी को छल्ले में डाल कर रखें। यदि इस छल्ले में लाफिंग बुद्धा या अन्य कोई फेंगशुई का प्रतीक अच्छा रहता है।- पर्स में किसी भी प्रकार का पिरामिड रखें। यह आपके लिए लाभदायक होगा।

Tuesday, October 26, 2010

देवी-देवताओं की परिक्रमा

शास्त्रों के अनुसार पूजा के समय सभी देवी-देवताओं की परिक्रमा करने की परंपरा है। सभी देवी-देवताओं की परिक्रमा की संख्या अलग-अलग बताई गई है जैसे-
- श्री गणेश की तीन परिक्रमा ही करनी चाहिए। जिससे श्री गणेश भक्त को रिद्ध-सिद्धि सहित समृद्धि का वर देते हैं।- शिवजी की आधी परिक्रमा करने का विधान है। शिवजी बड़े दयालु हैं वे बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते हैं और भक्त पर सब कुछ न्यौछावर कर देते हैं।- माताजी की एक परिक्रमा की जाती है। माता अपने भक्तों को शक्ति प्रदान करती है।- भगवान नारायण अर्थात् विष्णु की चार परिक्रमा करने पर अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।- एक मात्र प्रत्यक्ष देवता सूर्य की सात परिक्रमा करने पर सारी मनोकामनाएं जल्द ही पूरी हो जाती है।

सामान्यत: पूजा हम सभी करते हैं परंतु कुछ छोटी-छोटी बातें जिन्हें ध्यान रखना और उनका पालन करना अतिआवश्यक है। इन छोटी-छोटी बातें के पालन से भगवान जल्द ही प्रसन्न होते हैं और मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। यह बातें इस प्रकार हैं-
- सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव, विष्णु- यह पंचदेव कहे गए हैं, इनकी पूजा सभी कार्यों में करनी चाहिए।- भगवान की केवल एक मूर्ति की पूजा नहीं करना चाहिए, अनेक मूर्तियों की पूजा से कल्याण की कामना जल्द पूर्ण होती है। - मूर्ति लकड़ी, पत्थर या धातु की स्थापित की जाना चाहिए।- गंगाजी में, शालिग्रामशिला में तथा शिवलिंग में सभी देवताओं का पूजन बिना आवाहन-विसर्जन किया जा सकता है।- घर में मूर्तियों की चल प्रतिष्ठा करनी चाहिए और मंदिर में अचल प्रतिष्ठा।- तुलसी का एक-एक पत्ता कभी नहीं तोड़ें, उसका अग्रभाग तोड़ें। मंजरी को भी पत्रों सहित तोड़ें।- देवताओं पर बासी फूल और जल कभी नहीं चढ़ाएं।- फूल चढ़ाते समय का पुष्प का मुख ऊपर की ओर रखना चाहिए।

Monday, October 25, 2010

क्या प्रभाव देती हैं सूर्य-शनिकी युति

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य और शनि एक ही भाव में स्थित हो तो अधिकांशत: इसके बुरे प्रभाव ही झेलने पड़ते हैं।
- यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य और शनि लग्न में स्थित है तो वह व्यक्ति दुराचारी, बुरी आदतों वाला, मंदबुद्धि और पापी प्रवृत्ति का होता है।- यदि शनि और सूर्य चतुर्थ भाव में है तो व्यक्ति नीच, दरिद्र और भाइयों तथा समाज में अपमानित होने वाला होता है। यदि सूर्य और शनि सप्तम भाव में स्थित है तो व्यक्ति आलसी, भाग्यहीन, स्त्री और धन से रहित, शिकार खेलने वाला और महामूर्ख होता है।- यदि दशम भाव में यह दोनों ग्रह स्थित हो तो व्यक्ति विदेश में नौकरी करने वाला होता है। यदि इन्हें अपार धन की प्राप्ति भी हो जाए तो वह चोरी हो जाता है।
इन बुरे प्रभावों से बचने के उपाय
- प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में सूर्य हो जल चढ़ाएं और सात परिक्रमा करें।- प्रति मंगलवार और शनिवार को हनुमानजी को सिंदूर और चमेली का तेल चढ़ाएं। शनि और सूर्य से संबंधित वस्तुएं दान करें तथा ऐसी वस्तुएं कभी दान या उपहार में स्वीकार न करें।- गरीबों को मदद करें।- महिलाओं का सम्मान करें और पूर्णत: धार्मिक आचरण रखें।- प्रतिदिन पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाएं और सात परिक्रमा करें।- शिवलिंग पर प्रतिदिन जल चढ़ाकर विधि विधान से पूजा करें।- हनुमान चालिसा का पाठ प्रतिदिन करें।

जादुई लकड़ी इन्द्रजाल

इन्द्रजाल एक अमूल्य वस्तु है, इसे प्राप्त करना दुर्लभ है। यह एक समुद्री पौधा है जिसमें पत्ती नहीं होती। इन्द्रजाल की महिमा डामरतंत्र, विश्वसार , रावणसंहिता, आदि ग्रंथों में पाई जाती है। इसे विधिपूर्वक प्रतिष्ठा करके साफ कपड़े में लपेटकर पूजा घर में रखने से अनेक प्रकार के लाभ होते हैं। इसमें चमत्कारी गुण होते हैं।
जिस घर में इन्द्रजाल होता है। वहां भूत-प्रेत, जादू - टोने का प्रभाव नहीं पड़ता और इसकी पूजा व उपासना करने से घर में हमेशा शान्ति बनी रहती है। घर में बरकत और लक्ष्मी की बचत होती है। इसे रोज पुष्प, अक्षत, आदि चढ़ाने से इसकी देवशक्ति में वृद्धि होती है।इन्द्रजाल का नित्य पंचोपचार पूजा और दर्शन करने से मानसिक और शारीरिक शान्ति मिलती है। इसके पूजा स्थल पर होने से घर में किसी तरह की बुरी नजर का प्रभाव नहीं पड़ता है। इसकी लकड़ी भूत-प्रेत से बाधित लोगों पर से उनका प्रभाव हट जाता है। इसकी लकड़ी को गले में पहनने से हर तरह की गुप्तशक्तियां स्वप्र में साक्षात्कार करती हैं। इन्द्रजाल के दर्शन मात्र से अनेक बाधाएं दूर होती हैं और हर मनोकामना पूरी होती है।

Sunday, October 24, 2010

कौन सा फूल चढ़ाएं शिव को

भगवान शंकर के पूजन में विभिन्न फूलों का भी विशेष महत्व है। विभिन्न फूलों से विधि-विधानपूर्वक भगवान शंकर का पूजन करने पर मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। शिवपुराण की रुद्रसंहिता में इस संदर्भ में विस्तृत वर्णन मिलता है जो इस प्रकार है-
लाल व सफेद आंकड़े के फूल से शिव का पूजन करने पर भोग व मोक्ष की प्राप्ति होती है। चमेली के फूल से पूजन करने पर वाहन सुख मिलता है। अलसी के फूलों से शिव का पूजन करने से मनुष्य भगवान विष्णु को प्रिय होता है। शमी पत्रों से पूजन करने पर मोक्ष प्राप्त होता है। बेला के फूल से पूजन करने पर शुभ लक्षणों से युक्त पत्नी मिलती है।
जूही के फूल से शिव का पूजन करें तो घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती। कनेर के फूलों से शिव का पूजन करने से नवीन वस्त्रों की प्राप्ति होती है। हरसिंगार के पुष्पों से पूजन करने पर सुख-सम्पत्ति में वृद्धि होती है। धतूरे के पुष्प के पूजन करने पर भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशन करता है। लाल डंठलवाला धतूरा पूजन में शुभ माना गया है।
दुर्वा से पूजन करने पर आयु बढ़ती है। तुलसीदल से पूजन करने पर शिव भोग व मोक्ष प्रदान करते हैं। इन फूलों को एक-एक लाख की संख्या में शिव के ऊपर चढ़ाया जाए तो भगवान शिव प्रचुर फल प्रदान करते हैं। चम्पा व केवड़े के फूल छोड़कर शेष सभी फूल शिव पूजन में चढ़ाए जा सकते हैं।

नहीं चढ़ाते शिव को केतकी पुष्प

शिव की पूजा उत्तम फूलों से पूजा करने के मनोवांछित फल मिलते हैं। शिव की पूजा में सिर्फ केतकी का ही पुष्प क्यों चढ़ाया जाता इसके बारे में एक कथा है- एक बार ब्रह्माजी व विष्णुजी में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। ब्रह्माजी सृष्टि के रचयिता होने के कारण श्रेष्ठ होने का दावा कर रहे थे और भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के पालन कर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ कह रहे थे। तभी वहां एक विराट ज्योतिर्मय लिंग प्रकट हुआ। दोनों देवताओं ने सर्वानुमति से यह निश्चय किया गया कि जो इस लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा। अत: दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग की छोर ढूढंने निकले। छोर ने मिलने के कारण विष्णुजी लौट आए। ब्रह्मा जी भी सफल नहीं हुए परंतु उन्होंने आकर विष्णुजी से कहा कि वे छोर तक पहुँच गए थे। उन्होंने केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बताया। ब्रह्मा जी के असत्य कहने पर स्वयं शिव वहाँ प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्मा जी की आलोचना की। दोनों देवताओं ने महादेव की स्तुति की तब शिव जी बोले कि मैं ही सृष्टि का कारण, उत्पत्तिकर्ता और स्वामी हूँ। मैंने ही तुम दोनों को उत्पन्न किया है। शिव ने केतकी पुष्प को झूठी साक्षी देने के लिए दंडित करते हुए कहा कि यह पुष्प मेरी पूजा में प्रयुक्त नहीं किया जा सकेगा। इसीलिए शिव के पूजन में कभी केतकी का पुष्प नहीं चढ़ाया जाता।

रुद्राक्ष की उत्पत्ति

रुद्राक्ष की उत्पत्ति शिव के आंसुओं से मानी जाती है। इस बारे में पुराण में एक कथा प्रचलित है। कहते हैं एक बार भगवान शिव ने अपने मन को वश में कर दुनिया के कल्याण के लिए सैकड़ों सालों तक तप किया। एक दिन अचानक ही उनका मन दु:खी हो गया। जब उन्होंने अपनी आंखें खोलीं तो उनमें से कुछ आंसू की बूंदे गिर गई। इन्हीं आंसू की बूदों से रुद्राक्ष नामक वृक्ष उत्पन्न हुआ। शिव भगवान हमेशा ही अपने भक्तों पर कृपा करते हैं। उनकी लीला से ही उनके आंसू ठोस आकार लेकर स्थिर(जड़) हो गए। जनधारणा है कि यदि शिव-पार्वती को प्रसन्न करना हो तो रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
रुद्राक्ष की श्रेणी
रुद्राक्ष को आकार के हिसाब से तीन भागों में बांटा गया है-
1- उत्तम श्रेणी- जो रुद्राक्ष आकार में आंवले के फल के बराबर हो वह सबसे उत्तम माना गया है।
2- मध्यम श्रेणी- जिस रुद्राक्ष का आकार बेर के फल के समान हो वह मध्यम श्रेणी में आता है।
3- निम्न श्रेणी- चने के बराबर आकार वाले रुद्राक्ष को निम्न श्रेणी में गिना जाता है।
जिस रुद्राक्ष को कीड़ों ने खराब कर दिया हो या टूटा-फूटा हो, या पूरा गोल न हो। जिसमें उभरे हुए दाने न हों। ऐसा रुद्राक्ष नहीं पहनना चाहिए।वहीं जिस रुद्राक्ष में अपने आप डोरा पिरोने के लिए छेद हो गया हो, वह उत्तम होता है।

भगवान शंकर को रुद्राक्ष अतिप्रिय है। भगवान शंकर के उपासक इन्हें माला के रूप में पहनते हैं। रुद्राक्ष के 14 प्रकार हैं तथा सभी का अलग-अलग महत्व है। रुद्राक्ष के संदर्भ में शिवमहापुराण के विद्येश्वरसंहिता में वर्णन मिलता है।
उसके अनुसार एक मुख वाला रुद्राक्ष साक्षात शिव का स्वरूप है। वह भोग और मोक्ष प्रदान करता है। जहां इस रूद्राक्ष की पूजा होता है वहां से लक्ष्मी दूर नहीं जाती। दो मुख वाला रुद्राक्ष देवदेवेश्वर कहा गया है। यह संपूर्ण कामनाओं और मनोवांछित फल देने वाला है। तीन मुख वाला रुद्राक्ष सदा साक्षात साधन का फल देने वाला है उसके प्रभाव से सारी विद्याएं प्रतिष्ठित होती हैं।
चार मुख वाला रुद्राक्ष ब्रह्मा का स्वरूप है। उसके दर्शन तथा स्पर्श से धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति होती है। पांच मुख वाला रुद्राक्ष कालाग्निरुद्ररूप है। वह सब कुछ करने में समर्थ है। सबको मुक्ति देने वाला तथा संपूर्ण मनोवांछित फल प्रदान करने वाला है। छ: मुख वाला रुद्राक्ष कार्तिकेय का स्वरूप है। इसे धारण करने वाला ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो जाता है।
सात मुख वाला रुद्राक्ष अनंगस्वरूप और अनंग नाम से प्रसिद्ध है। इसे धारण करने वाला दरिद्र भी राजा बन जाता है। आठ मुख वाला रुद्राक्ष अष्टमूर्ति भैरवस्वरूप है। इसे धारण करने वाला मनुष्य पूर्णायु होता है। नौ मुख वाले रुद्राक्ष को भैरव तथा कपिल-मुनि का प्रतीक माना गया है। दस मुख वाला रुद्राक्ष भगवान विष्णु का रूप है। इसे धारण करने वाले मनुष्य की संपूर्ण कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
ग्यारह मुखवाला रुद्राक्ष रुद्ररूप है इसे धारण करने वाला सर्वत्र विजयी होता है। बारह मुखवाले रुद्राक्ष को धारण करने पर मानो मस्तक पर बारहों आदित्य विराजमान हो जाते हैं। तेरह मुख वाला रुद्राक्ष विश्वदेवों का रूप है। इसे धारण कर मनुष्य सौभाग्य और मंगल लाभ करता है। चौदह मुख वाला रुद्राक्ष परम शिवरूप है। इसे धारण करने पर समस्त पापों का नाश हो जाता है।

यह है हनुमानजी की स्तुति

सनातन धर्म में श्री रामचरित मानस न केवल धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि इसके चरित्र और पात्र आदर्श व्यावहारिक जीवन के सूत्रों और संदेशों को भी उजागर करते हैं। इन पात्रों में रामभक्त श्री हनुमान के चरित्र में भी कर्म, समर्पण, पराक्रम, प्रेम, परोपकार, मित्रता, वफादारी जैसे अनेक आदर्शों के दर्शन होते हैं।
श्री हनुमान के दिव्य और संकटमोचक चरित्र के दर्शन श्री रामचरित मानस के सुन्दरकाण्ड में होता है। इसलिए सुन्दरकाण्ड का पाठ व्यावहारिक जीवन में आने वाली संकट, विपत्तियों और परेशानियों को दूर करने में बहुत प्रभावी माना जाता है। किंतु अगर समयाभाव से पूरा पाठ संभव न हो तो सुन्दरकाण्ड में दी गई श्री हनुमान की छोटी सी स्तुति का नियमित पाठ आपकी दु:ख व कष्टों से रक्षा करने के साथ हर मनोरथ पूरे कर देता है। यह स्तुति शनि पीड़ा के बुरे प्रभाव से भी बचाती है।
इच्छापूर्ति और शनि पीड़ा से रक्षा के लिए श्री हनुमान उपासना के विशेष दिन शनिवार और मंगलवार को इस हनुमान स्तुति का पाठ अवश्य करें।
- शनिवार या मंगलवार को सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। इस दिन बोल, विचार और व्यवहार को पवित्र रखें।
- घर या मंदिर में जाकर श्री हनुमान को गंध, सुगंधित तेल व सिंदूर, लाल फूल, अक्षत चढ़ाएं।
- गुग्गल अगरबत्ती या धूप बत्ती और घी के दीप जलाकर पूजा करें। केले, गुड़ या चने का भोग लगाएं।
- इसके बाद सुन्दरकाण्ड की इस छोटी-सी स्तुति का श्रद्धा और आस्था से पाठ करें -

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।

श्री हनुमान की इस स्तुति का नित्य पाठ दैनिक जीवन के कामों में आने वाली बाधा और परेशानियों को भी दूर कर व्यर्थ चिंता और तनाव से बचाती है या यूं कहें कि यह छोटी सी हनुमान स्तुति हर मुश्किलों और मुसीबतों से लडऩे का फौलादी जज्बा देती है।

शिव के श्रेष्ठ अवतार हैं हनुमानSource:

भगवान शंकर का हनुमान अवतार सभी अवतारों में श्रेष्ठ है। इस अवतार में भगवान शंकर ने एक वानर का रूप धरा था। शिव का यह अवतार बल, बुद्धि विद्या, भक्ति व पराक्रम का श्रेष्ठ उदाहरण है। इस अवतार से हमें यह सीख लेनी चाहिए कि यदि आप अपनी क्षमता को पहचाने तो सब कुछ संभव है। जिस तरह हनुमान ने अपनी क्षमता को जानकर समुद्र पार किया था उसी तरह हमारे लिए भी कुछ भी असंभव नहीं है। धर्म के पथ पर चलते हुए राम का हनुमान ने साथ दिया था उसी तरह यदि हम धर्म के मार्ग पर चलें तो भगवान हमारी सहायता भी अवश्य करेंगे।
ऐसे हुआ हनुमान का जन्म
विष्णुजी के मोहिनी रूप को देखकर लीलावश शिवजी ने कामातुर होकर अपना वीर्यपात कर दिया। सप्तऋषियों ने उस वीर्य को कुछ पत्तों में संग्रहित कर गौतम की पुत्री अंजनी के गर्भ में प्रवेश कराया जिससे अत्यंत तेजस्वी एवं प्रबल पराक्रमी श्री हनुमानजी उत्पन्न हुए। हनुमान जी सब विद्याओं का अध्ययन कर वे पत्नी वियोग से व्याकुल रहने वाले सुग्रीव के मंत्री बन गए। उन्होंने पत्नीहरण से खिन्न व भटकते रामचंद्र जी की सुग्रीव से मित्रता कराई। सीता की खोज में समुद्र को पार कर लंका गए और वहां उन्होंने अद्भुत पराक्रम दिखाए। हनुमान जी ने राम-रावण युद्ध ने भी अपना पराक्रम दिखाया और संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण के प्राण बचाए। अहिरावण को मारकर लक्ष्मण व राम को बंधन से मुक्त कराया। इस प्रकार हनुमान अवतार लेकर भगवान शिव ने अपने परम भक्त श्रीराम की सहायता की।

कलाएं जिनसे लक्ष्मी स्थाई हो जाती हैं

क्या आप पैसों के अभाव से परेशान हैं? आप चाहते हैं कि आपको इस परेशानी से छुटकारा मिल जाए। आपके घर में कभी लक्ष्मी की कमी नहीं हो तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं, लक्ष्मी की उन नौ कलाओं के बारे मे जिनके होने पर जीवन हर सुख से पूर्ण हो जाता है। जिस किसी व्यक्ति में लक्ष्मी की इन नौ कलाओ का विकास हो जाता है,लक्ष्मी वहां स्थाई रूप से निवास करने लगती है।

विभूति- सांसारिक कर्तव्य को निभाते हुए दान रूपी कर्तव्य जो निभाता है मतलब शिक्षा, दान, रोगी सेवा, जलदान आदि कर्तव्य लक्ष्मी की विभूति हैं ये सभी लक्ष्मी की पहली शक्ति है।
नम्रता- दूसरी शक्ति नम्रता होती है और ये दोनों क लाएं जिसमें आ जाती है तो लक्ष्मी उसे उतना ही ऊंचा उठाती है।
कान्ति- जब ऊपर लिखी दोनों कलाएं आ जाती है तो वह लक्ष्मी की तीसरी कला कांति का पात्र हो जाता है।
तुष्टि- इन तीनों कलाओं के एक हो जाने पर चौथी कला का आगमन अपने आप हो जाता है। वाणी सिद्धि, व्यवहार, नए कार्य, पुत्र प्राप्ति जैसे शुभ कार्य होने लगते है।
कीर्ति- यह लक्ष्मी की पांचवी कला है, इसकी उपासना से व्यक्ति का जीवन धन्य हो जाता है, संसार में उसकी कीर्ति फैलने लगती है।
सन्नति- कीर्ति मिलने पर लक्ष्मी की छटी कला सन्नति मुग्ध होकर विराजमान होती है।
पुष्टी- इस कला द्वारा साधक अपने जीवन में संतुष्टी का अनुभव करता है। उसे अपने जीवन का सार मालुम पड़ता है।
उत्कृष्टि- इस कला से जीवन में सुख की वृद्धि होती जाती है।
ऋद्धि - यह सबसे महत्वपूर्ण कला है जो बाकी सात कलाओं के होने पर खुद ही व्यक्ति के जीवन में समाहित हो जाती है।

Saturday, October 23, 2010

त्वचा रोगों का उपचार

प्रदूषण के इस दौर में त्वचा रोग सर्वाधिक पाया जाने वाला रोग है। यह रोग शहर में ज्यादा होता है। खासतौर पर युवा पीढ़ी इससे सबसे ज्यादा प्रभावित है। ज्योतिष में इसका कारक ग्रह बुध है तथा कुण्डली का षष्ठ भाव इसमें प्रमुख होता है। इसके अलावा शनि, राहु, मंगल के अशुभ होने पर तथा सूर्य, चंद्र के क्षीण होने पर त्वचा रोग होते हैं।
सप्तम स्थान पर केतु भी त्वचा रोग का कारण बन सकता है। बुध यदि बलवान है तो यह रोग पूरा असर नहीं दिखाता, वहीं बुध के कमजोर रहने पर यह कष्टकारी हो सकता है।
लक्षण::- पानी, मवाद से भरी फुंसी व मुंहासे चंद्र के कारण होती है- मंगल के कारण रक्त विकार वाली फुंसी व मुंहासे होती है।- राहु के प्रभाव से कड़ी दर्द वाली फुंसी होती है।
उपाय::- षष्ठ स्थान पर स्थित अशुभ ग्रह का उपचार कराएं।- सूर्य मंत्रों या आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।- शनिवार को कुत्ते को तेल चुपड़ी रोटी खिलाएं।- सरस्वती स्तोत्र का पाठ करें।- पारद शिवलिंग का पूजन करें।

फालतू सामान हटाएं तनाव भगाएं

हमारी प्रवृति होती है कि सामान को इकट्ठा करते जाते हैं। उसमें बहुत सा ऐसा होता है जिसे कि आपने यह सोचकर रख लिया था कि कभी काम आएगा। मगर कभी आप ध्यान से विचार करें तो पाएंगे कि साल बीत गया परन्तु वह सामान कभी काम नहीं आया। ऐसे ही कुछ सामानों की हम बात कर रहे हैं शायद इन में से कुछ सामान ऐसा होगा जो आपने भी संभाल रखा होगा और अनजाने में ही ऐसे सामान आपके घर में वास्तुदोष उत्पन्न कर रहे हों। ऐसे सामान हमारे घर मे नकारात्मक उर्जा पैदा करते हैं साथ ही सौभाग्य के लिए अच्छे नहीं होते हैं।
यदि नीचे लिखी वस्तुओं में से कोई वस्तु आपने भी रखी हुई हो तो उन्हें हटाइये हो सकता है वो सामान आपके घर में समस्याओं, बिमारियों व मानसिक अशांति को जन्म दे रहा हो।
- पुराने वस्त्र जो कि इस उम्मीद में रखे गए हों कि शायद पुराना फैशन वापस आ जाए।- पुरानी पत्रिकाएं , किताबें इत्यादि आपने संभालकर रखी हो कि आप इन्हे दुबारा पढ़ेंगे।- टूटे हुए खिलौने या शो पीस।- ताले बिना चाबियां या चाबियां बिना ताले की। दस साल पुराने रिकार्ड या बहीखाते।- बंद घडिय़ां।- जुते, गर्म कपड़े, पुराना फर्नीचर,।- इलेक्ट्रिकल सामान जैसे मिक्सी,रेडियो,टी.वी. जो कि बरसों से उपयोग में ना आ रहे हों।