Saturday, November 13, 2010

दाम्पत्य जीवन, संतान सुख

यदि आपका वैवाहिक जीवन फीका है, जीवनसाथी से नही बनती या झगड़े होते हो, तो समझ लीजिए आपका वैवाहिक जीवन शनि से प्रभावित हो रहा है और आपकी कुंडली में शनि की स्थिति अच्छी नही है।
कुंडली में शनि का सप्तम भाव या लग्र भाव में स्थित होना प्राय: अशुभ माना जाता है। शनि की इसी स्थिति से ही गृहस्थ जीवन में सुख नही मिल पाता, जीवन साथी से विचार नही मिलते या जीवन साथी किसी न किसी बीमारी से पीडि़त रहता है।ज्योतिष में शनि को पाप ग्रह माना गया है। शनि का स्वभाव कठोर होता है। यह एक रूखा ग्रह है एवं इसे स्त्री नपुंसक ग्रह भी माना गया है। शनि के इसी स्वभाव का प्रभाव जातक पर पड़ता है। जिससे जातक अपने जीवन साथी के साथ कठोर व्यवहार करता है। सप्तम भाव में शनि होने के कारण जातक जीवनसाथी की भावनाओं को नहीं समझ पाता है। ऐसा व्यक्ति अकेला रहना पसंद करता है एवं यथार्थ में जीने वाला होता है।

दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाने के उपाय :
-काली गाय को चारा खिलाएं।-किसी साधु को तवा या अंगीठी का दान दें।-बरगद के पेड़ पर दूध चढ़ा कर गिली मिट्टी का तिलक करें।-काले कपड़े में उड़द रख कर दान दें।- परिवार की खुशहाली और स्वास्थ्य के लिए पूरे परिवार का फोटो लकड़ी के फ्रेम में जड़वाकर घर की पूर्वी दीवार पर लटकाएं।
कैसे मिले संतान सुख?

दंपत्ति अपने परिवार को बढ़ाने के सपने देखने लगते हैं। सभी दंपत्तियों की मनोकामना होती है उन्हें कोई मम्मी-पापा कहने वाला हो।वैसे तो अधिकांश लोगों को संतान के संबंध कोई खास परेशानियों नहीं होती परंतु कुछ लोगों को विवाह के लंबे समय के बाद भी संतान का सुख प्राप्त नहीं हो पाता या कुछ दंपत्ति को आजीवन ही संतान के सुख से वंचित रहना पड़ता है। कई बार स्त्री का गर्भ ठहरने के बाद किसी वजह से गर्भपात हो जाता है या ऐसी ही कोई अन्य समस्या उत्पन्न हो जाती है।
शास्त्रों के अनुसार संतान पैदा नहीं होने के संबंध में दस कारण बताए गए हैं। इन दस कारणों में नौ कारणों के अतिरिक्त दसवां कारण ज्योतिष समस्या से संबंधित है।ग्रह दोष की वजह से भी कई बार दंपत्तियों को संतान उत्पन्न होने में विलंब होता है या संतान उत्पन्न नहीं हो पाती। पांचवा भाव यदि राहु, गुरु, शनि से ग्रस्त हो तथा इन पर किसी भी शुभ ग्रह की दृष्टि भी न हो तो संतान उत्पत्ति में परेशानी होती है या गर्भपात हो जाते हैं। ऐसे परिस्थिति में संबंधित ग्रहों के उपचार से संतान उत्पत्ति आसान हो सकती है।
पंचम भाव में यदि गुरु स्थित हो तो संतान में देरी होती है। साथ ही यदि पति या पत्नी में से किसी को गुरु की महादशा भी हो तो संतान विवाह के सोलह वर्षों के बाद होने की संभावना होती है। पंचम भाव में यदि गुरु की दृष्टि हो तो संतान विवाह के 8-10 वर्षों के बाद उत्पन्न होती है। राहु या शनि से युक्त पंचम स्थान बार-बार गर्भस्राव या हिनता का कारक होता है।
संतान सुख प्राप्ति के लिए यह उपाय करें-
-संतान में देरी हो तो पुत्रदा एकादशी व्रत करें।-हरिवंश पुराण का पाठ करें।-कार्तिक चैत्र, माद्य माह में प्रतिपदा से नवमी (शुक्लपक्ष) रामायण का नवाह्नपरायण करें।- यदि पति या पत्नी की कुंडली में पंचम भाव में गुरु हो तो उसका उपचार कराएं।
- यदि कुंडली में छठे भाव में नीच का शनि हो तो उसकी शांति हेतु शनि की विशेष पूजा कराएं।- शिवरात्री पर शिव-पार्वती का रातभर अभिषेक कराएं।- अनाथालय में दान दें और गरीब बच्चों को खाना खिलाएं।- वात, पित्त, कफ की बीमारी हो तो उसका इलाज कराएं।

चार प्रकार के होते हैं पुत्र

राजा चित्रकेतु को वैराग्य का उपदेश देते नारदजी ने बताया था कि पुत्र चार प्रकार के होते हैं- शत्रु पुत्र, ऋणानुबंध पुत्र, उदासीन और सेवा पुत्र।
शत्रु पुत्र: जो पुत्र माता-पिता को कष्ट देते हैं, कटु वचन बोलते हैं और उन्हें रुलाते हैं, शत्रुओं सा कार्य करते हैं वे शत्रु पुत्र कहलाते हैं।
ऋणानुबंध पुत्र: पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार शेष रह गए अपने ऋण आदि को पूर्ण करने के लिए जो पुत्र जन्म लेता है वे ऋणानुबंध पुत्र कहलाते हैं।
उदासीन पुत्र: जो पुत्र माता-पिता से किसी प्रकार के लेन-देन की अपेक्षा न रखते विवाह के बाद उनसे विमुख हो जाए, उनका ध्यान ना रखे, वे उदासीन पुत्र कहलाते हैं।
सेवा पुत्र: जो पुत्र माता-पिता की सेवा करता है, माता-पिता का ध्यान रखते हैं, उन्हें किसी प्रकार की कोई कमी नहीं होने देते, ऐसे पुत्र सेवा पुत्र अर्थात् धर्म पुत्र कहलाते हैं।
मनुष्य का वास्तविक संबंध किसी से नहीं होता। इसलिए आत्मचिंतन में रमना ही उसका परम कर्तव्य है।

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