Sunday, October 10, 2010

Devi

गायत्री की दस भुजाओं का रहस्य
वैज्ञानिक तरीके से शोध-अनुसंधान करने के बाद ही देवी-देवता सम्बंधी मान्यता की स्थापना हुई है। आज के तथाकथित पढ़े लिखे लोग देवी-देवता सम्बंधी बातों को अंधविश्वास या अंध श्रृद्धा कहते हैं, किन्तु उनका ऐसा सोचना, उनके आधे-अधूरे ज्ञान की पहचान है। चित्रों और मूर्तियों में देवी-देवताओं को एक से अधिक हाथ और कई मुखों वाला दिखाया जाता है। इन बातों के वास्तविक अर्थ क्या है? इस तरह के सारे प्रश्रों और जिज्ञासाओं का समाधान हम लगातार करते रहेंगे। इसी कड़ी में आज यह जानेगे कि गायत्री की दश भुजाओं का क्या अर्थ है:-
इंसान के जीवन में दस शूल यानि कि कष्ट हैं। ये दस कष्ट है—दोषयुक्त दृष्टि, परावलंबन ( दूसरों पर निर्भर होना) , भय, क्षुद्रता, असावधानी, क्रोध, स्वार्थपरता, अविवेक, आलस्य और तृष्णा। गायत्री की दस भुजाएं इन दस कष्टों को नष्ट करने वाली हैं। इसके अतिरिक्त गायत्री की दाहिनी पांच भुजाएं मनुष्य के जीवन में पांच आत्मिक लाभ—आत्मज्ञान, आत्मदर्शन, आत्म-अनुभव, आत्म-लाभ और आत्म-कल्याण देने वाली हैं तथा गायत्री की बाईं पांच भुजाएं पांच सांसारिक लाभ—स्वास्थ्य, धन, विद्या, चातुर्य और दूसरों का सहयोग देने वाली हैं।
दस भुजी गायत्री का चित्रण इसी आधार पर किया गया है। ये सभी जीवन विकास की दस दिशाएं हैं। माता के ये दस हाथ, साधक को उन दसों दिशाओं में सुख और समृद्धि प्रदान करते हैं। गायत्री के सहस्रो नेत्र, सहस्रों कर्ण, सहस्रों चरण भी कहे गए हैं। उसकी गति सर्वत्र है।

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