Monday, November 1, 2010

सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्।

सिंदूर गहरे नारंगी या भगवा रंग का होता है। पूजा में न केवल सिंदूर चढ़ाया जाता है बल्कि देवताओं की मूर्तियों पर सिंदूर का चोला भी चढ़ाया जाता है। हनुमान की मूर्ति पर सिंदूर का चोला चढ़ाया जाता है। पूजा में सिंदूर को चढ़ाने का अपना महत्व है। पूजा में इस मंत्र उच्चारण होता है-

सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्।
शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यïताम्॥
अर्थात- लाल रंग का सिंदूर शोभा, सौभाग्य और सुख बढ़ाने वाला है। शुभ और सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। हे देव! आप स्वीकार करें।

इसी प्रकार देवी-देवताओं के लिए यह मंत्र उच्चारित करें-
सिन्दूरमरुणाभासं जपाकुसुमसनिभम्।
अर्पितं ते मया भक्त्या प्रसीद परमेश्वरि॥
अर्थात- प्रात:कालीन सूर्य की आभा तथा जवाकुसुम की तरह सिंदूर आपको हम अर्पित करते हैं। हे मां! आप प्रसन्न हों।
सिंदूर का महत्व

सिंदूर का उपयोग महिलाओं द्वारा विवाह के पश्चात मांग भरने में भी किया जाता रहा है। आजकल सिंदूर से मांग भरने का चलन कम हो गया है। सिंदूर से मांग भरने से महिला के शरीर में स्थित वैद्युतिक उत्तेजना नियंत्रित होती है। सिंदूर में पारा होता है। इससे महिलाओं के सिर में होने वाली, जंू, लीख (डेन्ड्रफ) भी नष्ट होती है।
सिंदूर का विज्ञान
सिंदूर आरोग्य, बुद्धि, त्याग और दैवी महात्वाकांक्षा का प्रतीक है। साधु-संन्यासियों के वस्त्र का रंग भी ऐसा ही होता है। सिंदूर चढ़ाने का अभिप्राय यही है कि हमारा जीवन त्यागमय हो और लक्ष्य भगवान की प्राप्ति। सिंदूर में पारा होता है जो हमारे शरीर के लिए लाभकारी है। मूर्ति पर सिंदूर का चोला चढ़ाने से उसका संरक्षण होता है।

1 comment:

  1. thank you so much for great information Sir...
    awesome... everyone must know such things...

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